शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मैं दर्द दबाकर हंसता हूँ

मैं दर्द दबाकर हंसता हूँ
आखों में भरकर के आंसू ,
लेकर किरमिचें टूटे सपनों के दिल में;
सजाता रहता हूँ मुस्कानें
सूखे, मुरझाये अधरों पर,
पर सूख के लिए तरसता हूँ
मैं दर्द दबाकर हंसता हूँ।
छायी रहती हैं धून्धेन दिल पर
हरपल विकट उदासी की,
उग आयीं हैं लहलह फसल
जीवन में सत्यानाशी की;
ठहाकों की गर्जन लेकर
व्यंग्य बनकर बरसता हूँ
मैं दर्द दबाकर हंसता हूँ

कोई टिप्पणी नहीं: