बुधवार, 2 सितंबर 2009

ये क्या हो रहा है

हम अक्सर देखते हैं की देश, समाज और हमारे व्यक्तिगत जीवन में बहुत-सी

ऐसी बातें और घटनाएँ होती रहती हैं जो हमारे नियंत्रण में नहीं होती हैं। तब हम परेशां हो जाते हैं और सोचने को बाध्य हो जाते हैं की ये क्या हो रहा है? बीजेपी में जो हो रहा है उसके बारे में आडवाणी जी ने कभी नहीं सोचा होगा। निराश, हताश अमिताभ बच्चन को कभी हरिवंश राय बच्चन ने कहा था की जब तेरे मन का हो तो अच्छा और मन का न हो तो और भी अच्छा क्योंकि संसार को चलनेवाला आपसे ज्यादा जानता है की आपके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है। जीवन में मैंने न जाने कितने उतार-चढाव देखे हैं। आपने भी देखे होंगे। जीवन की अपने गति होती है, वह कभी और कहीं रूकती नहीं है। रूकते हैं हम। अगर आप सत्य के मार्ग पर चलकर सफर तय करना चाहते हैं तो सफलता में हो सकता है की देरी हो। पर वह सफलता विकार- रहित होगी। बिना साइड-एफ्फेक्ट्स के। और आप ज्यादा आनंद पायेंगे। दुनिया वही है लोगों की सोंच बदल गई है। कुछ लोग माउस की क्लिक की तरह तुंरत सफलता पा लेना चाहते हैं। धन कमा लेना चाहते हैं। इस जल्दीबाजी के कारन बहुत-कुछ पीछे छूट जाता है। छुट जाता है माँ का आँचल और सोंधी-सोंधी खुशबू वाली गाँव की जमीन। अंत में पता चलता है जीवन व्यर्थ हो गया। समाज और राष्ट्र से हर किसी को कुछ-न-कुछ प्राप्त होता है। पर हम समाज और देश को देते क्या हैं? कुछ भी नहीं। बिना कुछ दिए सब-कुछ मुफ्त में पा लेने की आशा रखते हैं और जीवन बिताकर चले जाते हैं। आज हमारे आदर्श राम,कृष्ण,गाँधी नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक अपराधी हो गए हैं। जब उद्देश्य ही ग़लत हो या नामालूम हो तो फ़िर परिणाम तो ग़लत आएगा ही। इस पर आप भी गौर करें हमें भी अपने टिप्पणियों द्वारा अवगत कराएँ.

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