रविवार, 20 सितंबर 2009

नहीं मेरी राह बदल देना

माँ दुर्गा के चरणों में समर्पित

नहीं मेरी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना तुम चल देना।
रहे चिर काल तक निवास तेरा मेरे हृदय के गह्वर में,
नहीं जमीं पे तुमसे जुदा रहूँ न अलग रहूँ मैं अम्बर में;
छीन के स्वर्गिक प्राकृतिक छटा
नहीं कंक्रीटों का जंगल देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना तुम चल देना।
बीते जीवन मेरा तेरी ही पूजा में,
नहीं चाहूं इसके सिवा दूजा मैं;
टूट जाए जो सिर्फ़ एक पत्थर से
नहीं ऐसा शीशमहल देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़कर ना तुम चल देना।
माता यही है मेरी कामना,
जब-जब हो बुरे वक़्त का सामना;
रख देना हाथ मेरे कंधे पर,
यह दया करना इस अंधे पर;
जब पड़ जाए अकाल मेरे जीवन में
तुम प्यार की नई फसल देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना तुम चल देना।
सौंपकर जीवन तेरे हाथों में,
आ गया मैं तेरी बातों में;
तेरे दर्शन को जो तरसती रहे
एक ह्रदय अति विकल देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना तुम चल देना।
कहीं ऐसा न हो कि कभी मुझे छोड़नी पड़े अपनी राह,
मेरा साहस न चुक जाए और मृत हो जाए जीने की चाह;
जो तूफानों में भी ना विचलित हो
मुझे विश्वास ऐसा अटल देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना तुम चल देना।
मेरे स्वाभाविक जीवन में कभी विघ्न न हो,
मेरा मन उत्तेजनाराहित रहे और अधिक उद्विग्न न हो;
तुम मेरे लिए जरूर ऐसा
कोई इंतजाम कर देना;
नहीं अपनी राह बदल देना,
मुझे छोड़ के ना ख़ुद चल देना।

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