सोमवार, 2 नवंबर 2009

नौकरशाह और आम आदमी

भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है और किसी भी प्रजातंत्र में नैतिकता का महत्व सर्वाधिक होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस शासन व्यवस्था में सभी काफी हद तक स्वतंत्र होते हैं. कहने का अर्थ यह कि सब कुछ चेक एंड बैलेंस के सिद्धांत पर काम करता है. हर कोई किसी-न-किसी के प्रति जवाबदेह होता है. जब तक यह जवाबदेही का भाव लोगों के मन में होता है सबकुछ ठीक-ठाक चलता है. पर जैसे ही चेक करनेवाले भ्रष्ट और बिकाऊ होने लगते हैं बैलेंस भी बिगड़ जाता है. कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रहा है सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा. अभी मैं अपने शहर के विश्वप्रसिद्ध कोनहरा घाट पड़ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा स्नान करने गया था. लौटते समय एक लालबत्ती की गाड़ी ने भीड़-भाड़वाले उस इलाके में मुझे पीछे से धक्का मारा जो गाड़ियों के लिए प्रतिबंधित था. ऐतराज जताने पर पातेपुर के बीडीओ जिनकी वो गाड़ी थी का ड्राईवर ठसक के साथ बोला होर्न सुनाई नहीं पड़ता है क्या? मैंने कहा प्रतिबंधित क्षेत्र में आप गाड़ी ले कैसे आये? सुनते ही वह खाकीधारी तमककर गाड़ी से उतरने लगा. मेरे मन में उसके इरादों के प्रति कोई संदेह नहीं था. मैं कहा भाई साहब मैं पत्रकार हूँ और आप जो कुछ कर रहे हैं वह ठीक नहीं है. वह फुर्ती से गाड़ी में चढ़ गया. बीडीओ साहब ने मुझसे मामले को रफा-दफा करने का अनुरोध किया. लेकिन जहाँ तक मैं समझता हूँ अगर मैं पत्रकार नहीं होता तो इन्टरनेट पर बैठने के बजाये अस्पताल में होता. तो श्रीमान यह है भारत के एक छोटे नौकरशाह का आम आदमी के प्रति रवैया. मैं उनके मन में तो घुस नहीं सकता लेकिन उनके व्यवहार से यह पता तो चल ही जाता है कि वे अपने को आम-आदमी से अलग मानते है. जो भाव कभी मानवों के प्रति देवताओं के मन में हुआ करता था कुछ वैसा ही ये नौकरशाह आम-आदमी के बारे में सोंचते हैं. शायद हम उनकी नज़रों में इन्सान हैं ही नहीं पशु हैं, जिन्हें हलाल किया जा सकता है, अपने मनमाफिक प्रयुक्त किया जा सकता है. फ़िर इनसे मानवाधिकारों के पालन की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है? मानवाधिकार मानवों के लिए है पशुओं के लिए नहीं.

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