गुरुवार, 12 नवंबर 2009

मांझी जब नाव डुबोये तो उसे कौन बचाए


मेरा गाँव राघोपुर दियारे में पड़ता है. मुझे अक्सर नाव की सवारी करनी पड़ती है. मुझे तैरना नहीं आता. ऐसी भी बात नहीं है कि मैंने सीखने की कोशिश नहीं की लेकिन सफल नहीं हुआ. शायद मेरे प्रयास में ही कोई कमी रह गयी.तो मैं बात कर रहा था नाव से गंगा पर करने की.क्योंकि मुझे तैरना नहीं आता मैं पूरी तरह नाविक पर निर्भर रहता हूँ और मुझे विश्वास रहता है मांझी पर कि वह दुर्घटना की अवस्था में भी मुझे डूबने नहीं देगा. अब आप कल्पना करें कि किसी नाव को मांझी ही डूबाने पर उतारू हो जाये तब मेरा क्या होगा?कुछ ऐसी ही स्थिति हमारे देश की जनता की है. देश की नाव की पतवार इस समय है कांग्रेस पार्टी के हाथों में. महंगाई से जनता के हाथ-पांव फूल रहे हैं और कांग्रेस महंगाई को कम करने के बजाये बढ़ाने में जुटी है.पहले दिल्ली में बिजली को महंगा किया गया फ़िर बस का किराया बढा दिया गया और अब मेट्रो का किराया भी बढा दिया गया.इसी बीच भारत सरकार नियंत्रित मदर डेयरी ने दूध का दाम बढा दिया. वित्त मंत्री को चिंता है कि बजट घाटा को कैसे सीमा में रखा जाये.जबकि अमेरिका जैसा धनी देश मंदी के चलते घाटे की परवा किये बिना जनहित में लगातार कदम पर कदम उठाता जा रहा है. यही अंतर है अमेरिका और भारत के नेताओं में.हमारे यहाँ एक तरफ मंदी चल रही है तो दूसरी तरफ महंगाई यानि कोढ़ में खाज.क्या बजट घाटा जनता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है? एक तरफ तो बड़े-बड़े उद्योगों को अरबों रूपये की सहायता दी जा रही है और दूसरी ओर इसके चलते बढ़ते घाटे को गरीब जनता के पैसों से पूरा करने की जुगत भिडाई जा रही है.इसे अगर आम लोगों की सरकार न कहें तो फ़िर किसे कहें! सरकार को अमेरिका से सीख लेने की जरूरत है कि कैसे मंदी से लड़ा जाता है.१९२९ से भी और २००८-०९ से भी. सरकार को सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए, न कि खर्च कम करके बजट घाटे को कम करने की कोशिश.खर्च कम करना ही है तो मंत्री अपना खर्च कम करें आम आदमी की तरह ज़िन्दगी जीकर. गाँधी तो थर्ड क्लास डिब्बे में चलते थे और उन्हीं की विरासत सँभालने का दावा करनेवाली पार्टी के मंत्री १-१ लाख रूपए प्रतिदिन भाड़ावाले कमरों में रहते हैं और एसी वाले महलों में बैठकर योजना बनाते हैं घाटा कम करने की और महंगाई बढ़ाने की.

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

ब्रजकिशोर जी नमस्ते,
मैंने आपका यह लेख पढ़ा. मेरी समझ में समस्या है कि राजनीति ने अब व्यवसाय का रूप ले लिया है.
विनय, मुखर्जीनगर, दिल्ली