शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

जनसरोकार से कटती राजनीति


कहते हैं कि जब अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार किया गया था तो लखनऊ में एक कुत्ता तक नहीं भूंका था.कुछ ऐसा ही हुआ जब बिहार में सरकार ने जनता से सूचना के अधिकार को लगभग छीन लिया.बेवजह के मुद्दों पर गला फाड़ कर चिल्लानेवाले राजनेताओं ने आर.टी.आई. जैसे जनता से जुड़े मुद्दे पर एक बयान तक देना भी उचित नहीं समझा.लगता तो ऐसा है जैसे हमारे राजनेता चाहे वे किसी भी दल से सम्बद्ध हों उनका जनसरोकार से कुछ लेना-देना रह ही नहीं गया है.कोई भी राजनीतिक दल जनता को इस तरह का कोई अधिकार देना नहीं चाहता इससे तो यही लगता है.कुछ दिन पहले जब कानून में बदलाव की चर्चा शुरू हुई थी तब राजद नेता रामकृपाल यादव ने विरोध जरूर किया था परन्तु अब जबकि कानून बदलने को कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है न जाने क्यों वे भी पूरी तरह खामोश हैं.

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