बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

अद्वितीय, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय

१७८९ में हुई फ़्रांस की क्रांति के बारे में कभी अंग्रेजी के कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने कहा था कि इस काल में जीवित होना एक अविस्मरणीय अनुभव था और युवा होना तो स्वर्गिक.कुछ ऐसा ही महसूस किया आज २४ फरवरी २०१० को दुनियाभर में फैले क्रिकेटप्रेमियों ने.युवाओं के उत्साह का तो कहना ही क्या!आज दुनिया के सबसे महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने अपनी सबसे महान पारी खेली.सचिन ने ग्वालियर की ऐतिहासिक धरती पर एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे पहला दोहरा शतक जमाया और सिद्ध कर दिया कि उन्हें यूं ही क्रिकेट का भगवान नहीं कहा जाता.उन्होंने मात्र १४७ गेंदों में २०० रन बनाये.इस दौरान उन्होंने मैदान के चारों ओर २५ चौके और ३ छक्के लगाये.ये रन किसी ऐरे-गैरे देश के खिलाफ नहीं बने बल्कि दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीम के खिलाफ बने.आज स्थिति ऐसी थी कि दक्षिण अफ़्रीकी गेंदबाजों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि बल्लेबाजी के तमाम रिकार्डों को धारण करनेवाले नाटे कद के इस खिलाड़ी के सामने गेंद को कहाँ पटकें.अभी हाल ही में सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपने बीस साल पूरे किये हैं.लगता है जैसे ३६ वर्षीय इस खिलाड़ी की रनों की भूख उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढती जा रही है.ऐसा भी नहीं है कि अपने कैरियर में सचिन की आलोचना नहीं की गई हो लेकिन सचिन खामोश तपस्वी की तरह शब्दों द्वारा नहीं वरन अपने प्रदर्शन द्वारा समस्त आलोचनाओं का जवाब देते रहे. आज जैसे ही सचिन ने अपने २०० रन पूरे किये पूरा स्टेडियम पूरा भारत ख़ुशी से झूम उठा.वैसे तो सचिन के नाम रिकार्डों का अम्बार है लेकिन यह रिकार्ड निश्चित रूप से हीरे में नगीने, सोने पर सुहागा की तरह है.आज जिन लोगों ने भी सचिन का खेल देखा होगा वे अपने को निश्चित रूप से भाग्यशाली मानेंगे.क्रिकेट की दुनिया में सचिन के चलते पहले से ही भारत का मस्तक गौरव से तना हुआ था अब उसके मुकुट में सचिन ने  कोहिनूर जड़ दिया है.आज ममता बनर्जी ने रेल बजट पेश किया है जो भारत में एक बड़ी घटना मानी जाती है लेकिन आज की  सारी सुर्खियाँ सचिन बटोर ले गए; रेल बजट का स्थान चर्चित घटनाओं की रेटिंग में सचिन के इस अद्वितीय, अविस्मरणीय और अविश्वसनीय प्रदर्शन के बाद ही नहीं बहुत नीचे आता है.

1 टिप्पणी:

प्रभात कुमार सिंह ने कहा…

भाई साहब अलबर्ट आईंस्टीन ने गाँधी जी के बारे में कहा था कि आनेवाली पीढियां यह विश्वास ही नहीं करेगी कि कभी धरती पर इस तरह का हाड़-मांस का बना मानव विचरण करता था.सचिन के बारे में भी यह बात लागू होती है.