बुधवार, 5 जनवरी 2011

ज़िन्दगी मौत न बन जाए संभालो यारों

कल का दिन भारत के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण दिन था.कल सीबीआई बोफोर्स मामले को समाप्त करने की अर्जी अदालत में दाखिल करनेवाली थी.लेकिन इससे एक दिन पहले आयकर अपीलीय प्राधिकरण ने इतावियो क्वात्रोची और बिन चड्ढा को बोफोर्स तोप खरीदारी में गैरकानूनी तरीके से दलाली खाने और करवंचना के अपराध का दोषी करार दे दिया.प्राधिकरण ने खाता संख्या और उनमें जमा हुई रकम का भी ब्यौरा दिया.अब सीबीआई के सामने असमंजस की स्थिति थी.लेकिन सीबीआई ने यह कहते हुए कि उसे सरकार से कोई नया निर्देश नहीं मिला है पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार मुक़दमा समाप्ति की अर्जी दाखिल कर दी.तो क्या सीबीआई को निर्देश की आवश्यकता पड़ती है?लेकिन हमारे प्रधानमंत्री तो बार-बार कहते रहे हैं कि सीबीआई अपने कार्यों को सम्पादित करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है.तो क्या हम यह समझें कि सच्चाई के इस कथित पुतले ने भी धड़ल्ले से झूठ बोलना सीख लिया है?वैसे भी उन्हीं की सरकार ने तो मंजूरी दी थी भ्रष्टाचारी क्वात्रोची के बैंक खाते के उपयोग पर लगी रोक को हटाने की.मुझे आश्चर्य इस बात पर नहीं हो रहा है कि कांग्रेस सारे सबूतों को नजरंदाज करके किस तरह बोफोर्स मामले को समाप्त करने पर आमादा है.बल्कि मुझे तो विस्मय यह देखकर हो रहा है कि कैसे बोफोर्स का भूत फ़िर से कब्र से बाहर आ गया.लानत है कांग्रेस की १२५ साल की आयु पर और उसके द्वारा ५० सालों से भी ज्यादा समय तक देश पर शासन करने से प्राप्त किए गए अनुभवों पर कि वह अब तक घोटालों के दफ़नाने का सही और फुलप्रूफ तरीका भी नहीं ढूंढ पाई है.छिः,शर्म करो भ्रष्टाचार के मामलों को रफा-दफा करनेवाले प्रबंधकों.जब ४० करोड़ (वर्तमान मूल्य लगभग ८०० करोड़) का घोटाला तुमसे दफ़न नहीं हो पाया तो क्या खाक दफ़न करोगे पौने दो लाख करोड़ के २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को तुम लोग.कुछ नहीं होगा तुम लोगों से.लेकिन कांग्रेस की एक बात के लिए दाद देनी पड़ेगी और वह है उसकी थेथरई.उसने आयकर अपीलीय प्राधिकरण के निर्णय को पूरी तरह से अनदेखा,अनपढ़ा और अनसुना कर दिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो.लोग तो सरकार के हर सही-गलत कदम पर उंगली उठाने के आदती हैं सो वे तो पूछेंगे ही कि बताईये आपने ऐसा क्यों किया?इतने सबूत होने के बावजूद आपकी सरकार क्यों भ्रष्टाचारियों को बचाने पर आमादा है?मनमोहनजी क्या इस तरह से लड़ा जाता है भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध?कल एक और दुर्घटना हुई है और वो भी हुई है कांग्रेस शासित महाराष्ट्र राज्य में.आदर्श सोसाईटी घोटाले के एक कथित आरोपी को राज्य का मुख्य सचिव बना दिया गया है.इन घटनाओं से क्या संकेत लिया जाए २-जी स्पेक्ट्रम और उन अन्य घोटालों के बारे में जो वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुए हैं?यही न कि अंत में सभी अभियुक्त बाईज्जत बरी करार दिए जाएँगे.२०-३० सालों तक जाँच चलती रहेगी और जब मामला ठंडा हो जाएगा तो सीबीआई मामले को ही समाप्त करने की अर्जी डाल देगी और फ़िर सब घोर-मट्ठा हो जाएगा.लोग जाँच से प्राप्त मक्खन के लिए मुंह ताकते रह जाएँगे.प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि वे भ्रष्टाचार को समाप्त करके ही छोड़ेंगे.तो क्या इस तरह समाप्त होगा भ्रष्टाचार,भ्रष्टाचारियों का बचाव करके और सम्मानित करके?वाह क्या कांग्रेसी तरीका है भ्रष्टाचार को जड़-मूल से समाप्त करने का!!ऐसा भी नहीं है कि भारत के इस लाईलाज बीमारी से ग्रस्त होने के लिए सिर्फ कांग्रेस ही दोषी है.चूंकि सत्ता की मलाई चाभने के मौके उसको ही ज्यादा मिले हैं इसलिए भ्रष्टाचार के आरोप भी उसी पर ज्यादा हैं वरना विपक्ष भी कम नहीं है हाथ की सफाई में.वर्तमान विपक्ष भी भ्रष्टाचार का हल्ला करके लाभ उठाने की फ़िक्र में ही ज्यादा है.भ्रष्टाचार मिटाने का सच्चा संकल्प अगर उसके मन में होता तो येदुरप्पा आज की तारीख में कर्नाटक के मुख्यमंत्री नहीं होते.शायद इस लाईलाज और दशकों पुरानी बीमारी का होमियोपैथिक ईलाज कर रही हैं हमारी राजनीतिक पार्टियाँ.जैसा कि माना जाता रहा है कि होमियोपैथी में पहले बीमारी को बढ़ाया जाता है,बाद में बीमारी को जड़ से समाप्त करने की दवा दी जाती है.हम पिछले ६३ सालों से यह ईलाज देखते आ रहे हैं.आने-जाने वाली सरकारें भ्रष्टाचार को बढ़ाती ही जा रही हैं.पता नहीं बीमारी घटाने की दवा कब दी जाएगी भारतवर्ष को?अब तक तो इस बीमारी को जड़ से भगानेवाली दवा दे दी जानी चाहिए थी क्योंकि बीमारी तो कब की उच्चतम बिंदु को प्राप्त कर चुकी है.लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे राजनीतिक दल ऐसा करने की ईच्छा भी रखते हैं;ईच्छाशक्ति तो दूर की कौड़ी है.तो फ़िर क्या किया जाए?मित्रों,महाभारत में यक्ष के प्रश्नों के जवाब में धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा है कि अराजकता राष्ट्र की मृत्यु का कारण होती है और अराजकता उत्पन्न होती है भ्रष्टाचार के कारण.तो मित्रों अपने भारत की रक्षा के लिए कोई अवतारी आसमान से नहीं उतरनेवाला.हमें खुद ही उतरना पड़ेगा सड़कों पर खेतों-खलिहानों,फैक्टरियों तथा झोपड़ियों-महलों से निकलकर और मरणासन्न भारत को देनी होगी नए युग और परिस्थितियों के अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर सेवा का अधिकार और भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त करने जैसा कानूनों की श्रृंखला की आखिरी डोज.साथ ही न्यायपालिका में भी व्यापक सुधारों की जरुरत है और इन्हें अब और टाला नहीं जा सकता.न सिर्फ हमें नए कानून बनाने पड़ेंगे और नए प्रावधान करने पड़ेंगे बल्कि कहीं उससे भी ज्यादा तत्परता और मनोयोग से हमें उन कानूनों और प्रावधानों को लागू भी करना पड़ेगा.तभी हमारा देश भारत जीवित बचेगा और हम भी तभी बचेंगे.

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