बुधवार, 13 अप्रैल 2011

हाथी चले बाजार तो कुत्ता भूंके हजार

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मित्रों,हुआ यूं कि एक बार कुछ हाथी किसी गाँव से होकर गुजर रहे थे.उनके साथ एक बच्चा हाथी भी था.जैसे ही झुंड गाँव में पहुंचा गाँव के कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया.लेकिन इसका हाथियों पर कोई असर नहीं हुआ.वे अपनी मदमस्त चाल में चलते चले जा रहे थे.यह देखकर शिशु हाथी को घोर आश्चर्य हुआ.उसने अपनी माँ से पूछा कि बड़े हाथी कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहे?तब माँ ने समझाया कि हम इन्हें जब भी चुनौती देते है ये भाग खड़े होते हैं और जैसे ही हम आगे बढ़ने लगते हैं ये फिर से पीछे-पीछे भौंकना शुरू कर देते हैं.इसलिए हमारे लिए उचित यही है कि हम चुपचाप बिना कोई प्रतिक्रिया प्रकट किए अपने मार्ग पर चलते चलें.
                        मित्रों,इस तरह की एक और कहानी स्वामी विवेकानंद बड़े ही चाव से सुनाया करते थे.एक बार कोई लकडहारा जंगल में डाकुओं के हाथ लग गया.डाकुओं को जब उससे कुछ भी हाथ नहीं लगा तो उन्होंने गुस्से में आकर उसकी नाक काट ली.अब बेचारा कटी नाक लेकर अपने गाँव कैसे जाता सो जंगल में ही उसने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया और कुटिया बनाकर रहने लगा.धीरे-धीरे आसपास के लोगों को खबर हुई और वे उसे सिद्ध पुरुष समझकर खाने-पीने का सामान लाने लगे.जब भी कोई उससे कटी नाक का रहस्य पूछता तो वह बताता कि कुछ विशेष सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए उसे अपनी नाक का बलिदान देना पड़ा.कई लोग सिद्धि प्राप्त करने के लिए व्यग्र हो उठे.वह उन्हें रात के अँधेरे में बुलाता और उनकी नाक काट लेता.फिर जिनकी नाक कट गई वे भी उसी प्रकार का ढोंग करने लगे और दूसरों की नाक काटने लगे जिसका परिणाम यह हुआ कि कटी नाक वालों की एक बड़ी जमात खड़ी हो गयी.
         मित्रों,जबसे अन्ना हजारे के आगे भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को झुकना पड़ा है उसके नेता बुरी तरह बौखला गए हैं.वे अन्ना और उनकी टीम के पीछे कुत्ते की तरह पिल गए हैं.वे लगातार भौंक रहे हैं लेकिन जैसे ही अन्ना जवाब में कुछ बोलते हैं वे सीधे यूं टार्न ले ले रहे हैं.पहले सिब्बल ने भौंकना शुरू किया और अब कुतर्क शिरोमणि दिग्विजय अन्ना को भी नककटा सिद्ध करने में लग गए हैं.दिग्विजय इन दिनों पूरी तरह बेरोजगार हैं.उनका काम रह गया है सिर्फ देशविरोधी बयान देना जिससे वे राजमाता को खुश कर सकें.
           मित्रों,हमें इन कुत्ता सदृश व्यवहार करनेवाले तत्वों से सचेत रहना होगा.हमें इस नककटा गिरोह से अपनी नाक तो बचानी है ही साथ ही उन्हें भौंकने से रोकने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास कर अपनी ऊर्जा को नष्ट होने से भी बचाना है.हम लाख प्रयास कर लें इन्हें इनके कुकुरोचित व्यवहार से रोक नहीं सकते.इनका स्वाभाव ही ऐसा है.ये गोब्यल्स के सच्चे अनुयायी हैं,मक्कारी इनके रग-रग में है.
        मित्रों,अन्ना ने तो सिर्फ नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक क्षमता की प्रशंसा की थी.उन्होंने यह नहीं कहा कि मोदी पूरी तरह दूध के धुले हैं.फिर उन्होंने अकेले मोदी की ही बडाई नहीं की है.उन्होंने तो धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक नीतीश कुमार की भी प्रशंसा की थी.फिर कांग्रेसी सिर्फ मोदी को लेकर ही हंगामा क्यों कर रहे हैं?कारण स्पष्ट है कि वे डरे हुए हैं कि अन्ना के आन्दोलन का असर कहीं चारों राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों पर न पड़ जाए.इसलिए वे अन्ना पर बेतुका प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे.साथ ही अन्ना को मोदी की श्रेणी में खड़ा कर देने से उन्हें उम्मीद है कि मुसलमान भाइयों का वोट तो मिल ही जाएगा.
           मित्रों,समझ में नहीं आता कि कांग्रेसी कौन-सा खेल खेल रहे हैं?खेल चाहे जो भी हो वे इसे स्वच्छ तरीके से तो नहीं ही खेल रहे.एक तरफ तो अनशन तुडवाने का श्रेय राजमाता सोनिया को देकर वे उन्हें ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बना देने पर तुले हैं वहीं दूसरी और वे अन्ना को बेईमान सिद्ध कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही लडाई को कमजोर भी कर रहे हैं.इस तरह का दोहरा खेल कांग्रेसी इंदिरा गाँधी के समय से ही खेल रहे हैं.आपातकाल के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधान सचिव रहे पी.एन.धर ने अपनी पुस्तक इंदिरा गाँधी,आपातकाल और लोकतंत्र में बताया भी है कि किस तरह श्रीमती गाँधी अपने मंत्रियों को पहले से ही सिखा देती थीं कि वे प्रस्ताव का विरोध करेंगी और आपलोग मेरा विरोध करना.इस तरह मनोवांछित प्रस्ताव भी पारित हो जाएगा और दुनिया यह समझेगी कि कांग्रेस पार्टी में खूब आतंरिक लोकतंत्र है.
                मित्रों,हमें गाँधी परिवार के इस खानदानी दोहरे चरित्र को समझना होगा और उनसे सावधान भी रहना होगा.ये लोग ऐसे जीव नहीं हैं जो आसानी से भ्रष्टाचार को समाप्त हो जाने दें.इसलिए वे हमारे साथ तरह-तरह के खेल खेलेंगे;तरह-तरह के व्यूहों की रचना करेंगे.हमें न केवल अभिमन्यु की तरह उनके बनाए चक्रव्यूहों में घुसना होगा बल्कि अर्जुन की तरह उनकी हर रणनीति पर विजय भी पानी होगी.अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम यह लडाई आरंभिक चरण में ही हार जाएँगे और प्रभावी लोकपाल की स्थापना और भ्रष्टाचारमुक्त भारत की नींव पड़ते-पड़ते रह जाएगी.

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