मंगलवार, 27 सितंबर 2011

पुलिस वाला लुटेरा अथवा वर्दी वाला गुंडा

मित्रों,इन दिनों भारतीय पुलिस की अनैतिकता के अद्भूत कारनामे रह-रहकर लगातार अलग-अलग प्रदेशों से सामने आ रहे हैं.कल-परसों की रात दिल्ली पुलिस का एक जवान लूटपाट और क़त्ल करता हुआ पकड़ा गया है.महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से अनवरत किसानों और आम जनता पर पुलिसिया फायरिंग और जुल्म की ख़बरें आती रहती हैं.बिहार पुलिस का तो कहना ही क्या?इनके बारे में तो जो भी कहा जाएगा कम होगा.बड़ी विविधतापूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बिहार के पुलिसवाले.ये एक साथ हत्यारे भी हैं,चोर और लुटेरे भी और अत्याचारी तो ये हैं ही.वर्दी जिस्म पर चढ़ी नहीं कि मिल गया रंगदारी और गुंडागर्दी का सरकारी लाइसेंस.सड़क चलते चाहे कोई सब्जी,केला या अनाज बेच रहा हो या कोई अन्य चीज;वर्दी ने इन्हें असीमित अधिकार दिया है कि ये किसी की टोकरी में से या ठेले पर से कुछ भी उठा लें.विरोध करने पर गरीब विक्रेताओं पर ऎसी-ऐसी धाराएँ लगा दी जाती हैं जिनका उन्होंने पहले कभी नाम भी नहीं सुन रखा होता है.ये लोग किसी के घर की दीवार कभी भी तोड़ सकते हैं और कभी भी किसी का पेड़ कटवा सकते हैं.
                     मित्रों,एक वर्दीवाले गुंडे के साथ मेरा रोज ही साबका पड़ता है.वह वास्तव में किसी भी सामान्य गुंडे से बड़ा गुंडा है.एक रोज वह अचानक हमसे आदेशात्मक स्वर में कहता है कि अलगनी पर से कपड़ा हटा लीजिए दीवार तोड़नी है.हम उसे रोकते हैं और मकान-मालिक जो सेना में काम करता है को फोन मिलाते हैं.हमारा मकान-मालिक उससे विनय के स्वर में ऐसा नहीं करने की विनती करता रहता है और चंद ही मिनटों में दीवार ढहा दी जाती है.वह वर्दीवाला गुंडा अपना नाम बड़े गर्व से पप्पू यादव बताता है (संभवतः बिहार के ही एक अपराधी नेता के साथ     नाम की समानता के चलते) और खुद को सैदाबाद (राघोपुर,वैशाली) के एक रिटायर्ड शिक्षक का बेटा बताता है.उसकी बदमाशी यहीं नहीं रूकती है.वह भारी सामानों से लदा ठेला मना करने के बावजूद हमारे कैम्पस में लाने लगता है.परिणाम यह होता है कि कई स्थानों पर जमीन धंस जाती है.एक जगह पर तो कई फुट गहरा गड्ढा बन चुका है लेकिन उसका कहना होता है कि ये गड्ढे भारी बरसात के चलते बने हैं न कि ठेला लाने से.उसको गड्ढा नहीं भरवाना था सो गड्ढा आज भी वर्तमान है और हमारी पुलिसिया नैतिकता को मुंह चिढ़ा रहा है.हमारे मकान-मालिक ने पानी और सामान रखने के लिए कमरे की सुविधा देकर इस कुत्ते(हमारे बिहार में लोग पुलिस को इस संबोधन के द्वारा भी बुलाते हैं) की मदद की और उसने क्या शानदार सिला दिया है उनके उपकारों का?यह पप्पू यादव अपनी निर्माणाधीन ईमारत की छत पर अपनी मंडली के साथ खुलेआम शराब पीता है और इस तरह समाज की नैतिकता की रक्षा के अपने वैधानिक कर्त्तव्य का अनुकरणीय तरीके से निर्वहन कर रहा है.इतना ही नहीं वह टोका फँसाकर बिना कनेक्शन लिए बिजली चोरी भी कर रहा है लेकिन बिजली बोर्ड के कर्मचारी उसकी इस कारस्तानी को देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं.
         मित्रों,यूं तो मुझे पुलिस थानों पर जाने का कुअवसर बहुत ही कम मिला है लेकिन जितनी भी बार मैं वहां गया हूँ उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि सरकार जितना पुलिस बल थानों को उपलब्ध कराती है वास्तव में उतने लोग वहां मौजूद होते नहीं हैं.कई बार वे अपने अधिकारी की मिलीभगत से या रिश्वत देकर अपने को ड्यूटी पर उपस्थित दिखाते हुए ही घर चले जाते हैं और घर का काम-काज करने लगते हैं.मैंने पुलिसवालों को एस.पी. के गाँव जाकर खेती करवाते भी देखा है.ऐसे में जब नक्सली हमला हो जाए तो फिर वही होता है जो नहीं होना चाहिए.मैं देख रहा हूँ कि कुछ ही दिनों के लिए सही जबरन मेरा पडोसी बन गया पप्पू यादव पिछले 4 महीनों से लगातार मेरी आँखों के सामने रहकर घर बनवा रहा है.मैं नहीं समझता कि वह ऐसा विधिवत छुट्टी लेकर कर रहा है.
              मित्रों,फारबिसगंज में बिहार पुलिस ने जो पराक्रम दिखाया वह शायद आप सबने भी टी.वी. पर देखा होगा.फिर नालंदा में प्रदर्शनकारी महिलाओं की कैमरे के सामने पिटाई और अब मुजफ्फरपुर में राइफल के कुंदे से मारकर महिला की हत्या बिहार पुलिस की कर्तव्यनिष्ठा के अविस्मरणीय उदाहरण बन चुके हैं.
         मित्रों,कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक प्रत्येक राज्य की पुलिस अपने कर्त्तव्य से च्युत हो चुकी है;पुलिस विभाग चाहे वह किसी भी भारतीय प्रदेश का हो इतना ज्यादा भ्रष्ट हो चुका है कि पुलिस थाने पर जाने की सोंचकर ही भलेमानसों की रूहें कांपने लगती हैं.जनता के ये आधिकारिक रक्षक बहुत पहले ही भक्षक बन चुके हैं.इन्हें वर्दी दी जाती है जनता की सेवा और रक्षा करने के लिए और ये बन बैठते हैं सरकारी दामाद जी.इनका मानना होता है कि इनको सबकुछ फ्री है;कुछ भी खरीदने की जरुरत नहीं है.मामला उजागर होने पर इन्हें कुछ दिनों के लिए निलंबित कर दिया जाता है जो किसी भी तरह इस लगातार बढती जा रही समस्या का समाधान नहीं है.पकडे जाने पर इनको निलंबित करने के बदले बर्खास्त किया जाना चाहिए.साथ ही इनकी संपत्ति की समय-समय पर जाँच भी होनी चाहिए और आय से ज्यादा पाए जाने पर जब्त कर लेना चाहिए.(इस सम्बन्ध में मैं जिक्र करना चाहूँगा वर्ष २००२-०३ में राजस्थान में रिश्वत लेते पकड़े गए एक सब-इंस्पेक्टर का जिसके पास से आयकर विभाग ने करीब २५० करोड़ की अवैध संपत्ति जब्त की थी)तभी इनकी मनमानी और अत्याचारी प्रवृत्ति को रोका जा सकेगा.अन्यथा जनता का कानून और संविधान पर से विश्वास का जो पात्र रिक्त होने की तरफ बढ़ रहा है बहुत जल्दी रिक्त हो जाएगा और जनता कानून को अपने हाथों में लेने लगेगी.फिर तो ऐसी खून-खराबी होगी जैसी न तो कभी ऐतिहासिक काल में ही मानवों ने देखी है और न ही प्रागैतिहासिक काल में ही.

1 टिप्पणी:

शशि "सागर" ने कहा…

शर्मनाक घटना है साहब. और अजीबोगरीब स्थिती तो यह है कि यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अघोषित प्रतिबंध भी है.