बुधवार, 30 अप्रैल 2014

कौन कहता है कि (बूढ़े) दिग्विजय सिंह इश्क नहीं करते?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। एक बड़ा लोकप्रिय शेर है कौन कहता है कि बूढ़े इश्क नहीं करते,यह अलग बात है कि हम उन पर शक नहीं करते। इस शेर को अगर किसी पार्टी के नेताओं ने सचमुच में चरितार्थ करके दिखाया है तो वो पार्टी है कांग्रेस पार्टी। एक-के-बाद-एक कांग्रेस पार्टी के नेता ऐय्याशी में संलिप्त पाए गए हैं और अब बारी है पार्टी के थिंक टैंक दिग्विजय सिंह की।

आयु के मुताबित वयोवृद्ध की श्रेणी में आ चुके दिग्विजय सिंह की पोती की उम्र की लड़की के साथ तस्वीरें और सेक्स क्लिप इस समय सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। बताया जाता है कि लड़की का नाम अमृता राय है और वो राज्यसभा टीवी में एंकर है। सूत्रों से पता चला है कि यह क्लिप खुद दिग्विजय के मोबाईल से ही शूट किया गया है जिसको उनके ड्राईवर ने चुरा लिया था।

सवाल उठता है कि दूसरों पर जमकर ऊंगली उठानेवाले दिग्विजय अब अपनी पोल खुलने पर क्या प्रतिक्रिया देंगे? क्या उनका यह कृत्य नैतिक दृष्टि से उचित है? दिग्विजय को बुढ़ापे में विधुरावस्था बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो उन्होंने उक्त लड़की से शादी क्यों नहीं कर ली? पाठक चाहें तो यहाँ क्लिक करके मामले से संबंधिक जानकारी विस्तार से प्राप्त कर सकते हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बिहार पुलिस के वरीय अधिकारी अमिताभ कुमार दास का अमर्यादित आचरण

पटना,रजनीश कुमार। बिहार के लोगों ने शायद ही कभी पुलिस का मानवीय चेहरा भी देखा हो। शायद यही कारण है कि कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहता कि कोई पुलिस अधिकारी या जवान उसका पड़ोसी हो। लेकिन जब ऐसा हादसा हो ही जाए तो कोई क्या करे। बिहार पुलिस के वरिष्ठतम अधिकारियों में से एक रेल पुलिस अधीक्षक जमालपुर (मुंगेर) श्री अमिताभ कुमार दास के द्वारा न्यू पाटलिपुत्रा कोलोनी, पटना के स्काईज अपार्टमेंट में एक फ्लैट खरीदा गया है, जहाँ उनका स्थायी आवास है। दुर्भाग्यवश उसी अपार्टमेंट में संवाददाता के बहनोई के भी दो फ्लैट हैं। श्री दास जबसे पड़ोसी बने हैं तभी से उन्होंने अपने साथ करीब दस सिपाहियों को स्थायी रूप से रखा हुआ है, जिन्हें वे अपने फ्लैट में न रखकर नीचे पार्किंग एरिया में रखते हैं। सिपाहियों ने अपार्टमेन्ट के पार्किंग एरिया को बाकायदे टेंट लगाकर घेर लिया गया है और गाड़ी लगाने के जगह को अवैध रूप से कब्जे में कर लिया है।
इतना ही नहीं इनके ड्राईवर हरेन्द्र ने अपार्टमेन्ट की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित लिफ्ट-रूम को अपने कब्जे में कर रखा है तथा उसे अपने कमरे की तरह व्यवहार में लाते हैं। श्री दास के पास दो-दो सूमो गाड़ियाँ हैं, जिन्हें वे दूसरों के पार्किंग में लगाते हैं। अपने पार्किंग एरिया में अपने सिपाहियों को रखते हैं और दूसरों की जगह पर अपनी गाड़ी लगाते हैं। साथ ही गेस्ट के लिए निर्धारित पार्किंग एरिया को भी कब्जाए हुए हैं।
दोनों गाड़ियों से साहब के डेरे में अनजान महिलाओं का आना-जाना अक्सर लगा रहता है जिससे यहाँ का सामाजिक वातावरण दूषित हो रहा है। इसके चलते अन्य फ्लैट मालिकों को यहाँ पारिवारिक डेरा लेने से पहले हजार बार सोचना पड़ रहा है।
आते-जाते रास्ते पर इस अत्यंत छोटे से अपार्टमेन्ट में इतनी अधिक संख्या में अनावश्यक रूप से सिपाहियों के रहने के कारण भी लोगों को असहज लगता है और हालत यह है कि यहाँ अब फ्लैट भी कोई किराए पर लेने को तैयार नहीं।
एक सीनियर आईपीएस अधिकारी के इस प्रकार के अशोभनीय चरित्र और रवैये ने उनके पड़ोसियों का जीना मुहाल कर दिया है। ये अपने पद और मिली सुविधाओं का दुरूपयोग अपने पड़ोसियों को परेशान करने में कर रहे हैं। ऐसे पदाधिकारी जो सुविधाओं का दुरूपयोग करे की पोस्टिंग तो ऐसी जगह होनी चाहिए थी, जहाँ इसके दुरूपयोग की कोई गुजाईश ही न रहे। इनके इस कारनामे से बिहार पुलिस की बदनामी तो हो ही रही है, वे इस अपार्टमेन्ट के फ्लैट-धारकों के लिए स्थायी तनाव का कारण बन गए हैं और ऐसा वे केवल इस कारण कर पा रहे हैं क्योंकि वे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

भुखमरी के कगार पर पहुँचे बिहार के विश्वविद्यालय शिक्षक

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। प्रदेश और विशेष रूप से बीआरए बिहार विवि में कार्यरत और अवकाशप्राप्त विश्वविद्यालय शिक्षकों की हालत भिखारियों जैसी हो गई है और वे भुखमरी के कगार पर पहुँच गए हैं। विदित हो कि राज्य के विश्वविद्यालय शिक्षकों को फरवरी तक का ही वेतन-पेंशन दिया गया है। बीच में मार्च महीने में उनलोगों को बीमों की किश्तें और आयकर देना पड़ा जिससे फरवरी का वेतन-पेंशन इन कामों में ही हवा हो गया।

विदित हो कि गत 11 अप्रैल को राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव एचआर श्रीनिवास ने घोषणा की थी कि अगले एक सप्ताह में प्रदेश के कार्यरत और अवकाशप्राप्त विवि शिक्षकों नए वेतनमान के बकाये की पहली किस्त दे दी जाएगी परंतु जबकि अब यह महीना समाप्त होने को है किस्त का कहीं अता-पता नहीं है। पिछले दो महीने से वेतन-पेंशन नहीं मिलने से इन हजारों शिक्षकों की आर्थित हालत इतनी खराब हो चुकी है कि उनके परिवार को शाक-सब्जी जैसे छोटे-मोटे खर्चों में भी कटौती करनी पड़ रही है और परिचितों से कर्ज लेना पड़ रहा है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मैं चाय भी बेच सकता हूँ मेरी चिंता न करें कांग्रेसी-नमो

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने जी न्यूज को दिए गए साक्षात्कार में कहा है कि अगर हारा तो मैं चाय भी बेच सकता हूँ इसलिए कांग्रेसियों को उनकी चिंता नहीं करना चाहिए।  इसके बजाए उनको खुद की चिंता करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उनको इस बात की चिंता नहीं है कि कोई नेता उनको पसंद करता है या नहीं बल्कि वे तो बस इतना ही जानते हैं कि जनता को उनकी बातें अच्छी लगती हैं। श्री मोदी ने मीडिया के एक वर्ग पर बिना जाँच किये उनके खिलाफ मुहिम चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वे खुद भी खुद को पूरी तरह से नहीं जानते हैं परंतु इतना जरूर है कि उनमें अथक परिश्रम करने की क्षमता है और उनके मन में सिर्फ आशा ही आशा है। श्री मोदी ने कहा कि वे कभी अपनी जाति बताना नहीं चाहते थे क्योंकि वे जातिवादी बिल्कुल भी नहीं हैं लेकिन उनको जब पानी पी पीकर उनको ऊँची जाति का और अमीर परिवार का बताकर गालियाँ दी जाने लगीं तो उनको कहना पड़ा कि वे पिछड़ी जाति और गरीब परिवार से आते हैं।

उन्होंने कहा कि देश की सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस ने अपने वक्तव्यों से पिछले कुछ दिनों में स्पष्ट कर दिया है देश में इस समय परिवर्तन की हवा चल रही है और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आदि को लगता है कि मोदी को गालियाँ देने से वोट मिलेगा जबकि वे मानते हैं कि विकास और सुशासन के नाम पर वोट मिलेगा।

उन्होंने कहा कि देश के समक्ष सबसे बड़ा संकट यह है कि कांग्रेस अपने कुकृत्यों से शर्मिंदा नहीं है उल्टे आक्रामक है। मोदी ने कहा कि साथ में परिवार होने से ही कोई भ्रष्ट नहीं हो जाता बल्कि उनकी माँ तो आज भी 20 रुपए की चप्पल पहनती है और मुझे इस बात पर गर्व है। श्री मोदी ने कहा कि वे बदले की भावना से काम नहीं करते हैं बल्कि उनके पास तो काम करने से ही वक्त नहीं बचता। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मामले में कानून अपना काम करेगा।

श्री मोदी ने कहा कि उनका एजेंडा सुशासन है और वे सिर्फ इसी पर बात करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि गरीबों की गरीबी हमेशा के लिए समाप्त हो,बेरोजगारों को रोजगार मिले,कृषकों को फसल का सही मूल्य मिले,भ्रष्टाचार और महंगाई कम हो। उन्होंने कहा कि कश्मीर को डुबानेवाले उनके समर्थकों को डुबाने की बात कर रहे हैं। उनकी सुरक्षा पर मंडराते खतरे पर उन्होंने कहा कि मोदी रहे न रहे देश सुरक्षित रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव केंद्र में हो रहा है और विपक्ष गुजरात सरकार का विश्लेषण करने में लगे हैं जबकि बात केंद्र की सरकार के कामकाज की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वे मजदूर हैं और मजदूरों की तरह ही मेहनत करते हैं। वे अन्य नेताओं की तरह आरामतलब नहीं हैं। उनको आराम नहीं काम चाहिए।

मोदी ने कहा कि उनको तब घोर आश्चर्य हुआ था जब आधे भारत को अंधेरे में डुबा देनेवाले व्यक्ति को प्रोन्नति देकर भारत का गृह मंत्री बना दिया गया। क्या इस तरह से अच्छा शासन लाया जा सकता है? उन्होंने भारत के चुनावों में विदेश नीति की चर्चा नहीं होने पर चिेता जताई। उन्होंने कहा कि नैन्सी पावेल की छुट्टी हो जाने के कारणों को अमेरिका की सरकार ही बता सकती है।

उन्होंने कहा कि उनको यह पता है कि गुजरात मॉडेल पूरे देश में लागू नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि वे जनता की नब्ज समझते हैं। उनको पता है कि देश की जनता को पिछले 12 सालों में क्या-क्या भुगतना पड़ा है। उनको यह भी पता है कि पूरे देश को एक ही डंडे से नहीं हाँका जा सकता। उन्होंने कहा कि विकास और सुशासन उनकी प्राथमिकता है वे यह-वह कर देने के दावे नहीं करते। उन्होंने कहा कि कुशासन,महंगाई,बेरोजगारी सहित सारी समस्याएँ कांग्रेस से जुड़ी हुई हैं इसलिए कांग्रेस को समाप्त करना पड़ेगा तभी ये समस्याएँ भी समाप्त होंगी। उन्होंने कहा कि 16 मई को निराशा का अंत हो जाएगा और सवा सौ करोड़ भारतीयों के मन में आशा का संचार हो जाएगा। साक्षात्कार के अंत में उन्होंने 18 से 28 आयुवर्ग के नौजवानों से अपील की कि जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण क्षण में वोट डालकर उनको अपने भविष्य का फैसला खुद ही करना चाहिए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

क्या दाउद को पकड़ने की योजना बना चुके हैं मोदी?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। पिछले साल जब आईपीएल में मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया तो दिल्ली पुलिस को पता चला कि इस पूरे खेल के पीछे किसी और का नहीं बल्कि दाउद इब्राहिम का हाथ था। जाहिर है इतना बड़ा खेल वो भी सरेआम दाउद ऐसे ही नहीं खेल रहा था बल्कि उसकी पीठ पर केंद्र सरकार में शामिल किसी बहुत बड़े आदमी का हाथ था। ऐसे में जब भारत के गृह मंत्री ने इसी साल भरोसा जताया कि भारत एक दिन दाउद को भी पकड़ने में कामयाब हो जाएगा तो शायद ही किसी ने उनके इस भरोसे पर भरोसा जताया।

परंतु जिस तरह से कल भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपने साक्षात्कार में अचानक दाउद का जिक्र छेड़ दिया उसने एक बार फिर से इस सवाल को चर्चे में ला दिया है कि क्या दाउद इब्राहिम को सचमुच पकड़ा जा सकता है? मोदी ऐसे ही हवा में कोई बात नहीं करते। उनके पास हर समस्या का हल है,हल के लिए योजनाएँ हैं। तो क्या नरेंद्र मोदी ने पहले से ही दाउद को पकड़ने की योजना पर काम शुरू कर दिया है? आज वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी से उनकी योजना पूछी है। तो क्या केंद्र सरकार को सचमुच यह पता नहीं है कि दाउद को कैसे पकड़ा जा सकता है? क्या वर्तमान समय में भारतीय सेना और खुफिया एजेंसी में सचमुच ऐसे लोग नहीं हैं जो यह बता सकें?

मोदी के व्यक्तित्व के बारे में भारत के लोग जहाँ तक जानते हैं उससे यह भरोसा तो जनगणमन में जरूर उत्पन्न हो रहा है कि मोदी भारत के इस सबसे बड़े दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई जरूर करेंगे। मोदी जो ठान लेते हैं उसे करके छोड़ते हैं चाहे इसके लिए कितना भी नुकसान क्यों न उठाना पड़े? जाहिर है कि जैसा कि मोदी ने साक्षात्कार में कहा भी है कि अमेरिका ने बिन लादेन को मारने से पहले संवाददाता सम्मेलन नहीं किया था,वे केंद्र सरकार के मंत्रियों के लाख छेड़ने पर भी अपनी योजना के बारे में तब तक सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोलेंगे जब तक कि काम पूरा नहीं हो जाता। वैसे मोदी के पास चुनावों के बाद जनरल वीके सिंह,पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह,मेजर राज्यवर्द्धन राठौर जैसे कई योजनाकार उपलब्ध होंगे जो उनकी इस योजना को पूरा करने में सक्षम होंगे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

कौन सांप्रदायिक है क्या हमें अब महेश भट्ट बताएंगे?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। भारत का सबसे सांप्रदायिक दल कौन है यह भारत की हिन्दू-मुसलमान जनता बखूबी जान चुकी है। सोनिया गांधी बुखारी से पहले फतवा जारी करवाना और अब मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण का वादा करने से इस बारे में शक की कोई गुंजाईश ही नहीं रह गई है। भाजपा और नरेंद्र मोदी तो लगातार सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं,सीधे-सीधे सवा सौ करोड़ भारतीयों की बातें कर रहे हैं। मोदी तो यहाँ तक कह चुके हैं कि उनको पराजय मंजूर है लेकिन धर्म के आधार पर वे वोट हरगिज नहीं मांगेंगे। देश की जनता को धर्म के आधार पर विभाजित करने के प्रयास तो लगातार कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्षतावादी दल ही कर रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत की जनता को कौन-कौन से दल सांप्रदायिक हैं जानने के लिए महेश भट्ट जैसे परम भोगवादी की सहायता लेनी पड़ेगी? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही महेश भट्ट हैं जो कभी अपनी बेटी से भी कम उम्र की शिल्पा शेट्टी की बहन शमिता शेट्टी के साथ कुर्सी पर सरेआम बैठे हुए पाए गए थे और उस समय शमिता ने पैंटी भी नहीं पहन रखी थी। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ये वही महेश भट्ट हैं जो कह चुके हैं कि अगर पूजा भट्ट उनकी बेटी नहीं होती तो वे उसी से शादी कर लेते। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही महेश भट्ट है जिसने सन्नी लियोन जैसी पोर्न स्टार को बॉलीवुड में हिरोईन बना दिया और लगातार कागज के चंद टुकड़ों के लालच में युवाओं को अपनी फिल्मों में सेक्स परोसता रहा है। गांधी ने तो कहा था कि पाप से नफरत करो पापी से नहीं फिर मोदी ने तो अपने विचारों में पर्याप्त परिमार्जन कर लिया है फिर मोदी से नफरत क्यों? क्या महेश भट्ट या कांग्रेस सच्चे मायनों में गांधीवादी हैं? क्या गांधी ने गोहत्या रोकने और पूर्ण शराबबंदी का समर्थन नहीं किया था?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

क्या आपने देखा मोदी का अब तक का सबसे कठिन ईंटरव्यू?

23-04-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,कल रात जब एबीपी न्यूज पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का ईंटरव्यू प्रसारित होनेवाला था तब मैंने नहीं सोंचा था कि यह ईंटरव्यू इतना कठिन साबित होने जा रहा है। एबीपी न्यूज पिछले कई महीनों से मोदीविरोधी रूख अख्तियार किए हुए है फिर भी ईंटरव्यू का नियम होता है कि बीच-बीच में ऐसे सवाल भी पूछे जाएँ जिससे कि माहौल खुशनुमा बना रहे। लेकिन इस ईंटरव्यू में ऐसे प्रयत्न बहुत कम किए गए।
मित्रों,ईंटरव्यू को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी अपराधी को गिरफ्तार करके थाने में लाया गया है और तीन-तीन पुलिसवाले घेरकर उससे थर्ड डिग्री पूछताछ कर रहे हैं। ईंटरव्यू की शुरुआत में नमो ने बताया कि उनको वोट क्यों मिलना चाहिए? फिर उसके बाद विवादित प्रश्नों की झड़ी लगा दी गई। उदाहरण के लिए क्या आपकी सरकार को अंबानी और अडाणी चलाएंगे,क्या आपकी सरकार अमीरों की सरकार होगी, क्या मुसलमानों को आपसे डरना चाहिए, क्या होगा राम मंदिर और समान नागरिक संहिता पर आपका रूख,क्या पिंक रिव्योलूशन से किसी खास समुदाय की रोजी-रोटी नहीं जुड़ी हुई है,,क्या आप खुद अपना ही मुखौटा हैं,क्या आपके विरोधियों को पाक चला जाना चाहिए,क्या आपने गुजरात दंगों के समय राजधर्म निभाया था,क्या जीजाजी और शहजादा कहना व्यक्तिगत आरोपों की श्रेणी में नहीं आते,क्या आपको बुरा नहीं लगा जब लोगों ने आपकी वैवाहिक स्थिति पर कटाक्ष किया,क्या आपकी सरकार आने पर वाड्रा पर भी मुकदमा चलाया जाएगा,क्या आपने सचमुच गिलानी के पास अपना कोई दूत भेजा था,क्या आपने अडाणी को 1 रुपए में जमीन दी,पाकिस्तान के प्रति आपकी नीति क्या होगी,क्या आप प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका जाएंगे,क्या आपकी सरकार पर आरएसएस का प्रभाव होगा,क्या आप इसी तेज-तर्रारी से सरकार चलाएंगे,क्या अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति में बदलाव लाकर उसे बहुसंख्यकों के अनुकूल बना लेना चाहिए,शारदा चिंट फंड घोटाले सहित इस तरह के सभी घोटालों में आपका क्या रूख होगा,क्या आप प. बंगाल को तोड़ना चाहते हैं,शरद पवार और ममता बनर्जी के प्रति आपके रूख में धीरे-धीरे सख्ती क्यों आती गई,क्या आपने कभी दोनों ठाकरे बंधुओं में समझौता करवाने की कोशिश की,क्या आपके मोहन भागवत के साथ व्यक्तिगत संबंध रहे हैं,क्या आपको अपने बेलूर मठ के बीते हुए दिन याद आते हैं,आपकी दिनचर्या क्या है आदि।
मित्रों,लेकिन प्रश्न जितने ही कठित उत्तर उतने ही सरल। नमो ने स्पष्ट किया कि अंबानी और अडाणी को टॉफी के दाम में भूमि भाजपा सरकारों ने नहीं बल्कि स्वयं कांग्रेस की सरकारों ने दी। भाजपा की सरकार ने तो निश्चित नीति बनाकर दलाल संस्कृति का समूल अंत ही कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने गुजरात की कृषि में सुधार किया और 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दी। गुजरात में खेतों का भी स्वायल स्मार्ट कार्ड होता है। उन्होंने पशुओं की दंत-चिकित्सा और शल्य चिकित्सा का इंतजाम करवाया। वाईव्रेंट गुजरात के साथ ही कुसुम महोत्सव का भी आयोजन करवाया। कृषि उत्पादन से लेकर लघु उद्योगों द्वारा उत्पादन में उनके समय में गुजरात में कई गुना की बढ़ोतरी हुई। मोदी ने दावा कि उन्होंने अपना राजधर्म हमेशा निभाया है चाहे वो शांतिकाल हो या अशांति का समय। लोगों की मौत से उनको दुःख भी हुआ और उन्होंने हमेशा इसकी जिम्मेदारी ली और हमेशा इस प्रयास में लगे रहे कि दोबारा वह सब नहीं देखना पड़े। जीजाजी और शहजादा शब्दों को उन्होंने व्यंग्य और विनोद का हिस्सा बताचा। शरद पवार और सुष्मा स्वराज का उदाहरण देते हुए उन्होंने व्यंग्य और विनोद को आवश्यक बताया। अल्पसंख्यकों की संस्कृति में संशोधन को उन्होंने बहुत बड़ा मुद्दा बताया और चैनल से अनुरोध किया कि चुनावों के बाद इस पर विस्तृत चर्चा करवाई जाए और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी उसमें बुलाया जाए। विदेश नीति के बारे में उन्होंने कहा कि वे न तो किसी को आँखें दिखाएंगे और न ही किसी के आगे आँखें झुकाएंगे बल्कि सबसे आँखों में आँखे डालकर बात करेंगे। सरकार पर आरएसएस के प्रभाव के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार सिर्फ संविधान को ध्यान में रखकर शासन करेगी। उनकी सरकार के लिए एक ही भक्ति होगी देशभक्ति,एक ही धर्म होगा नेशन फर्स्ट,एक ही धर्मग्रंथ होगा भारत का संविधान। काले धन पर उन्होंने कहा कि कालेधन को वापस लाना ही चाहिए। कई टैक्स हेवेन देशों ने अपनी नीतियों में बदलाव किया है जिसका भारत को लाभ उठाना चाहिए। पिंक रिव्योलूशन को उन्होंने आर्थिक समस्या बताया और किसी समुदाय विशेष से इसको जोड़ने का विरोध करते हुए कहा कि उनके कई जैन मित्र भी इस धंधे में हैं। उन्होंने कहा कि सारे मुद्दों और मोर्चों पर वर्तमान सरकार की असफलता से जनता का तंत्र में विश्वास कमजोर हुआ है जिसको फिर से पैदा करना पड़ेगा। वाड्रा पर मुकदमा चलाने के बारे में उन्होंने कहा कि कानून के समक्ष सभी बराबर हैं। अगर प्रधानमंत्री रहते हुए वे कोई भ्रष्टाचार करते हैं तो उनको भी जेल भेजना चाहिए। राजनैतिक विरोधियों पर धीरे-धीरे रूख को कड़ा करने को अपनी रणनीति बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर वे शुरू से ही सख्त रवैया अख्तियार कर लेते तो जनता उसे स्वीकार नहीं करती। श्री मोदी ने मीडिया में घुस आए कुछ न्यूज ट्रेडर्स की कटु आलोचना करते हुए कहा कि मीडिया को चंद लोगों द्वारा मिशन से गिराकर व्यापार बना दिया गया है। अंत में नरेंद्र मोदी ने बताया कि वे सिर्फ साढ़े तीन घंटे सोते हैं। खाने और सोने के समय के अतिरिक्त उनकी कोई निश्चित दिनचर्या नहीं होती। वे दिन-रात सिर्फ जनकार्य में ही लगे होते हैं। कुछ दिनों पहले गुजरात में आए तूफान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चुनावी दौरे से ही उन्होंने फोन करके स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए भारत सिर्फ एक भूगोल नहीं है बल्कि माँ से भी बढ़कर है। उन्होंने बार-बार दावा कि क्योंकि राजनीति में रसायन शास्त्र की तरह 1 और 1 ग्यारह होता है इसलिए उनको सरकार बनाने के लिए एनडीए से बाहर किसी का भी सहयोग आवश्यक नहीं होगा लेकिन सरकार को चलाने के लिए सवा सौ करोड़ भारतीयों की मदद चाहिए होगी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार उसकी भी होगी जो उसे वोट देंगे,उसकी भी होगी जो विरोध में वोट देंगे और उसकी भी होगी जो वोट डालने जाएंगे ही नहीं। श्री मोदी ने काम करने की कोई समय-सीमा नहीं बताई और कहा कि वे 5 सालों में काम करने की योजना लेकर चल रहे हैं। मोहन भागवत से अपने संबंधों का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि वे तो भागवत जी के पिताजी के ही शिष्य रहे हैं।
मित्रों,एक साथ राज,ज्ञान और कर्मयोग से युक्त नर केसरी नरेंद्र मोदी का यह सबसे कठिन ईंटरव्यू अगर आप नहीं देख पाए हों तो एक बार फिर से आपके पास मौका है। थोड़ी देर बाद ही आज सुबह 8 एबीपी न्यूज इस ईंटरव्यू को दोबारा प्रसारित करने जा रहा है। इस लिंक पर भी जाकर देख सकते हैं-http://abpnews.abplive.in/ind/2014/04/22/article299075.ece/%E0%A4%8F%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%AA
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

क्या एशिया का सबसे बड़ा बूचड़खाना कपिल सिब्बल की पत्नी का नहीं है?

16-04-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। क्या कपिल सिब्बल को हिंदू माना जा सकता है? कानून उनको या उनकी पत्नी को भले ही एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना खोलने से नहीं रोकता है लेकिन एक हिन्दू होने के नाते क्या उनको ऐसा करना चाहिए था? वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के समय श्री सिब्बल द्वारा दायर किए गए हलफनामे से पता चलता है साहिबाबाद स्थित एशिया का सबसे बड़ा बूचड़खाना जिसका नाम पहले अरिहंत एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड था की मालकिन कोई और नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की पत्नी है। हालाँकि इस बार के हलफनामे में श्री सिब्बल ने इसका जिक्र न जाने क्यों नहीं किया है जिसकी शिकायत भाजपा ने चुनाव आयोग से की भी है।
विदित हो कि सबसे पहले यह गोवधशाला तब चर्चा में आया था जब इसका नाम अरिहंत एक्सपोर्ट प्राइवेट रखे जाने के खिलाफ जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज ने ऐलान किया था कि वो २ अक्टूबर.2013 को अहमदाबाद मे लाखों लोगों की बड़ी रैली निकालेंगे और कांग्रेस को वोट न देने की अपील करेंगे। बाद में 16-17 सितंबर को दैनिक भास्कर में एक समाचार प्रकाशित हुआ जिसमें केप इंडिया के संयोजक डॉ.संदीप जैन ने एक बयान जारी कर केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की पत्नी प्रोमिला सिब्बल द्वारा खोले गए बूचडख़ाने का नाम बदलने को जैन समाज की जीत बताया। डॉ.जैन ने बताया कि यह कारखाना साहिबाबाद में है और इसकी कंपनी अरिहंत एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड का कार्यालय दिल्ली में है। उन्होंने बताया कि 24 जैन तीर्थंकरों को अरिहंत के नाम से जाना जाता है, इसलिए यह शब्द जैन धर्म में पूजनीय है। मांस के व्यापार वाली कम्पनी के नाम से अरिहंत शब्द जुडऩे से जैन समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही थी।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

मेरे कर्जदार हैं सांसद-पत्रकार हरिवंश

15-04-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,बात वर्ष 2010 की है। गर्मियों के दिन थे। मैं काफी परेशान था। अपनी छोटी बहन की शादी किए 1 साल से भी ज्यादा समय हो चुका था लेकिन अभी तक मेरी अपनी शादी का कहीं अता-पता नहीं था। अगुआ-वरतुहार (वर की तलाश में भटकनेवाले लड़कीवाले) आते और चले जाते। किसी की लड़की की तस्वीर हमें पसंद नहीं आती तो कोई हमारी बेरोजगारी देखकर खिसक लेता। तभी पिताजी ने सुझाव दिया कि कहीं नौकरी क्यों नहीं कर लेते।
मित्रों,तभी मेरे एक अभिन्न मित्र मीता ने बताया कि इस समय मुजफ्फरपुर में प्रभात खबर की यूनिट खुलने जा रही है। सीधे प्रधान संपादक हरिवंश जी बात करिए,काम हो जाएगा। मैं बात की तो मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वे मुझे जानते हैं और मेरी ब्रज की दुनिया के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मुझे राँची मिलने के लिए बुलाया। रातभर ट्रेन की सीट पर बैठे जागते-सोते हम सावन की रिमझिम फुहारों का आनंद लेते सहरसा-हटिया ट्रेन से राँची पहुँचे। रूकना मेरे मित्र धर्मेन्द्र कुमार सिंह के यहाँ रातु रोड में था। फ्रेश होकर हम प्रभात खबर कार्यालय के लिए रवाना हुए। वहाँ हमारा टेस्ट लिया गया जो मुझे बुरा भी लगा। फिर एचआर विभाग में पूछा गया कि कितना वेतन चाहिए। मैंने बताया दस हजार कम-से-कम। एचआर प्रधान ने कहा कि पिछले एक साल से आपकी आमदनी शून्य रुपया है तो फिर आपको हम इतना क्यों दें? मैंने छूटते ही कहा आपकी मर्जी। फिलहाल तो मुझे भूख लगी हुई है कोई होटल बताईए। उन्होंने झटपट प्रभात खबर के कैंटिन में फोन किया और कहा कि एक व्यक्ति को भेज रहा हूँ खाना खिला देना। मैंने टोंका जनाब जरा गौर से देखिए हम एक नहीं दो हैं और दूसरे ने भी सुबह से कुछ खाया नहीं है। उन्होंने कृपापूर्वक फिर से फोन किया। जब हम खाना खाने के बाद हरिवंश जी से मिलने गए तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन बाद हम फोन करके आपको सूचना देंगे। रास्ते में धर्मेन्द्र ने बताया कि प्रभात खबर कई बार नौकरी के लिए ईच्छुक उम्मीदवारों को यात्रा-भत्ता भी देता है। मैंने कहा नहीं दिया तो नहीं दिया हमें तो नौकरी चाहिए।
मित्रों,कई दिनों तक जब फोन नहीं आया तो मैंने फिर से हरिवंशजी को फोन मिलाया तब उन्होंने एक नंबर दिया और बात करने को कहा। वह नंबर किसी मोहन सिंह का था जिनको अखबार लांच करने के लिए मुजफ्फरपुर भेजा गया था। नौकरी शुरू हुई। तब प्रभात खबर कार्यालय जूरन छपरा,रोड नं.1 मुजफ्फरपुर में था। कार्यालय क्या था कबाड़खाना था। कार्यालय में पर्याप्त संख्या में कुर्सियाँ तक नहीं थीं। लोग कंप्यूटर पाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते रहते। वहाँ कई पुराने मित्र भी कार्यरत मिले और कई नए मित्र बने भी। हम घंटों फर्श पर पालती मारकर कंप्यूटर और कुर्सी के खाली होने का इंतजार करते। तब अखबार की छपाई शुरू नहीं हुई थी,प्रशिक्षण चल रहा था।
मित्रों,कार्यालय में न तो शुद्ध पेयजल था और न ही शौचालय में बल्ब। गंदा पानी पीने के चलते मेरा स्वास्थ्य लगातार गिरने लगा। फिर भी मैंने दो महीनों तक जमकर काम किया। इस बीच अगस्त या सितंबर में अखबार की छपाई भी शुरू हो गई। पहले दिन मुजफ्फरपुर पर विशेष परिशिष्ट प्रकाशित हुआ जो पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ मेरे द्वारा संपादित था।
मित्रों,तक कार्यलय में न तो किसी की हाजिरी ही बनती थी और न ही किसी को वेतन ही मिलता था। वहाँ के एचआर हेड से बात करता तो वो कहते कि आपके कागजात राँची भेज दिए गए हैं अभी वहाँ से कोई उत्तर नहीं आया है। सहकर्मियों ने बताया कि उनके कागजात के तो 6 महीने से उत्तर नहीं आए हैं। अब मुझे नौकरी करते दो महीने से ज्यादा हो चुके थे मगर वेतन का कहीं अता-पता नहीं था। नौकरी थी भी और नहीं भी। न कहीँ कोई नियुक्ति-पत्र और न ही कोई अन्य प्रूफ। कार्यालय का गंदा पानी पीने से मेरी तबियत भी बिगड़ती चली गई और अंत में मैंने निराशा और खींज में नौकरी छोड़ दी।
मित्रों,मुझे लगा कि पटना,हिन्दुस्तान की तरह प्रभात खबर भी खुद ही पहल करके मेरे दो महीने का वेतन दे देगा। इससे पहले जब मैंने पटना,हिन्दुस्तान की नौकरी छोड़ी थी तब हिन्दुस्तानवालों ने कई महीने बाद फोन करके बुलाकर मुझे मेरा बकाया दे दिया था। मगर यहाँ तो देखते-देखते तीन साल हो गए। न उन्होंने सुध ली न मैंने मांगे। फिर अगस्त,2013 में मुझे पैसों की सख्त जरुरत आन पड़ी। मैंने हरिवंशजी को फोन मिलाया तो पहली बार में तो वे चेन्नई में थे। दो-तीन दिन फिर से फोन मिलाया और अपनी व्यथा सुनाई। मैंने उनको याद दिलाया कि मैंने दो महीने तक मुजफ्फरपुर,प्रभात खबर में काम किया था जिसका मुझे पैसा नहीं मिला और उल्टे घर से ही नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने मुझे पहचान तो लिया मगर इस मामले में कुछ भी कर सकने में अपनी असमर्थता जताई। तब मैंने कहा कि मुझे पटना,प्रभात खबर में नौकरी ही दे दीजिए। उन्होंने सीट खाली नहीं होने की मजबूरी जताते हुए फोन काट दिया।
मित्रों,मैं हतप्रभ था कि हरिवंश जी भी ऐसा कर सकते हैं? महान समाजवादी,चिंतक,पत्रकार हरिवंश एक मजदूर का पैसा रख लेंगे? मगर यही सच था और आज भी यही सच है। वे आज भी मेरे कर्जदार हैं। दरअसल ये लोग छद्म समाजवादी हैं। चिथड़ा ओढ़कर ये लोग न सिर्फ मलाई चाभते हैं बल्कि अपने ही संस्थान के श्रमिकों का खून भी पीते हैं। ये लोग मुक्तिबोध के शब्दों में रक्तपायी वर्ग से नाभिनालबद्ध,नपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझे लोग हैं। फिलहाल वे जदयू की तरफ से राज्य सभा सदस्य हैं अपनी सत्ता की चाटुकारिता कर सकने की अद्धुत क्षमता के बल पर। उम्मीद करता हूँ कि वे संसद में मजदूरों के पक्ष में लंबे-लंबे विद्वतापूर्ण भाषण देंगे और समाजवादी होने के अपने कर्त्त्वयों की इतिश्री कर लेंगे। धरातल पर पहले की तरह ही उनके अपने संस्थान में श्रमिकों का शोषण अनवरत जारी रहेगा,फिल्मी महाजन की तरह उनके पैसे पचाते रहेंगे और परिणामस्वरूप प्राप्त अधिशेष के बल पर उनकी चल-अचल सम्पत्ति में अभूतपूर्व अभिवृद्धि होती रहेगी। अंत में उनकी लंबी आयु की कामना करता हूँ जिससे आनेवाले समय में देश में समाजवाद दिन दूनी और रात चौगुनी प्रगति कर सके।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

अब कोई कैसे शरण देगा निर्भया को?

8-4-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। बिदुपुर थाना क्षेत्र के खजबत्ती निवासी राजदेव राय की हत्या से पूरा वैशाली जिला सन्न है। उस आदमी की हत्या हो गई जिसने निर्भया को सामूहिक बलात्कार से न केवल बचाया था बल्कि शरण भी दी थी और उसके हिस्से की लड़ाई भी लड़ी थी वह भी अकेले? लड़ाई में उसने राज्य सरकार से मदद भी मांगी थी। सुरक्षा और हथियार का लाइसेंस मांगा था लेकिन मिला कुछ भी नहीं। मिली तो सिर्फ मौत।

मुख्यमंत्री ने उसकी मांग को ध्यान से सुना और डीजीपी को कार्रवाई करने को कहा। पुलिस ने मामले के अनुसंधान पदाधिकारी को निलंबित भर कर दिया और अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली। दो बलात्कारियों की गिरफ्तारी हुई तो पूरा गांव थाने पर चढ़ बैठा उनके समर्थन में। क्या यह संकेत नहीं है हमारे गांवों के नैतिक पतन का? पहले तो गांवों में अपराधियों को बहिष्कृत कर देने की प्रथा थी।

स्थानीय विधायक सतीश कुमार कहते हैं कि अपराधी दूसरे क्षेत्रों से आए हुए लोग थे। अगर ऐसा था तो फिर उनको गांववालों का साथ कैसे मिल गया? राजदेव को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी किसकी थी? पुलिस ने समुचित कदम क्यों नहीं उठाया? हथियार का लाइसेंस अगर दे दिया गया होता तो राजदेव अपनी रक्षा स्वयं कर लेते। क्यों उनको लाइसेंस नहीं दिया गया? क्या बिना घूस लिए पुलिस-प्रशासन किसी को भी लाइसेंस नहीं देती है? जब किसी को राज्य का मुख्यमंत्री भी सुरक्षा नहीं दिला सकता तो फिर कोई जरुरतमंद किससे उम्मीद रखेगा? क्या मतलब है मुख्यमंत्री के जनता दरबार का? इन परिस्थितियों में क्या अब कोई राजदेव बनने की हिमाकत करेगा भी? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 6 अप्रैल 2014

अल्पसंख्यकवाद,आरक्षण और छद्म धर्मनिरपेक्षता

07-04-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,लाल किले के प्राचीर से अपने पहले संबोधन में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। भारत में अल्पसंख्यकों में सबसे ज्यादा जनसंख्या मुसलमानों की है फिर सिख,जैन,इसाई और पारसी आते हैं लेकिन मुसलमानों को छोड़कर बाँकी समुदायों की हालत हिन्दुओं से भी अच्छी है। मतलब कि भारत में अल्पसंख्यकों के लिए जो भी इंतजाम सरकार करती है तो वह वास्तव में मुसलमानों के लिए ही करती है।
मित्रों,बाद में सरकार ने मुसलमानों को पहला अधिकार दिया भी। 15 सूत्री कार्यक्रम बनाया जिससे सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को ही लाभ हुआ कदाचित एकाध सिख,इसाई या पारसी ने भी लाभ उठाया हो। अगर रजिया या अहमद को पढ़ाई के लिए सस्ते ऋण या विशेष छात्रवृत्ति दी जाती है तो इससे बहुसंख्यकों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन यह पहला अधिकार वास्तव में सिर्फ पहला अधिकार ही नहीं रहा बल्कि केंद्र सरकार और उ.प्र. और कर्नाटक जैसी कई राज्य सरकारों ने इसे सिर्फ अल्पसंख्यकों का अधिकार ही बना दिया। वरना क्या कारण है कि रजिया को सुविधा मिले और गरीब हिन्दू की बेटी राधा को साधनों के अभाव में पढ़ाई बीच में ही छोड़कर घर बैठना पड़े? कोई भी कार्यक्रम कैसे सिर्फ एक समुदाय विशेष के लिए ही बनाया जा सकता है? क्या ऐसा करना एक नए तरह के भेदभाव को जन्म नहीं देता है? आजादी से पहले अंग्रेजों ने अपने काम आनेवाले होटलों और स्वीमिंग पुलों में लिखवा दिया था कि डॉग्स एंड इंडियन्स आर नॉट एलाउड और अब बिना बोर्ड लगाए ही केंद्र सरकार योजनाओं के लाभ से वंचित कर बहुसंख्यक हिन्दुओं के साथ डॉग्स एंड हिन्दुज आर नॉट एलाउड जैसा व्यवहार कर रही है।
मित्रों,इतना ही नहीं बाद में जब उ.प्र. के मुजफ्फरनगर में दंगे हुए तो वहाँ की वर्तमान राज्य सरकार ने कहा कि हम तो सिर्फ मुसलमानों को ही दंगा पीड़ित मानते हैं इसलिए हम तो सिर्फ उनको ही मुआवजा देंगे। पीड़ितों के दर्द और आँसुओं को भी अल्पसंख्यकवाद की छद्म धर्मनिरपेक्षता की सियासत ने संप्रदायों में बाँट दिया। बाद में इससे भी एक कदम आगे बढ़कर केंद्र सरकार ने संसद में सांप्रदायिकता विरोधी बिल पेश कर दिया जिसमें इस तरह के प्रावधान रखे गए कि अगर देश में कहीं भी दंगे होते हैं तो चाहे दंगों की शुरुआत कोई भी करे जिम्मेदारी सिर्फ बहुसंख्यकों पर आएगी। वाह,नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का भी सरेआम खून कर दिया गया। जबकि सच्चाई तो यह है कि देश के प्रत्येक हिस्से में साम्प्रदायिक दंगों की शुरुआत हमेशा मुसलमान ही करते हैं।
मित्रों,भारत में नौकरियों में आरक्षण देने का उद्देश्य क्या है? यही न कि जो सदियों से पिछड़े हैं उनको बराबरी में आने का अवसर दिया जाए लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार के लिए इसका बस इतना ही मतलब है कि बाँटो और राज करो। तभी तो उसने देश के सबसे समृद्ध समुदायों में से एक जैनों को आरक्षण का लाभ दे दिया जिनको वास्तव में इसकी जरुरत थी ही नहीं। फिर गरीब सवर्ण मुसलमानों को भी आरक्षण देने की कोशिश की गई केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों के द्वारा भी। क्या गरीब सवर्ण हिन्दुओं ने कोई जघन्य अपराध किया है जो आज तक उनको इस सुविधा से वंचित रखा गया है और वही सुविधा गरीब सवर्ण मुसलमानों को दे दी गई। हालाँकि कोर्ट ने सरकार को ऐसा करने नहीं दिया। बाद में मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद जब केंद्र सरकार ने देखा कि प्रशासनिक भेदभाव से जाट मतदाता नाराज हो गए हैं तो जाटों को बिना जरूरी कानूनी प्रक्रिया को पूरा किए ही,राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग से सिफारिश लिए बिना ही आरक्षण दे दिया। क्या भारत के संविधान में आरक्षण का प्रावधान गंदी सियासत का हथियार बनाने के लिए किया गया था? कई सवर्ण हिन्दू जातियों की आर्थिक स्थिति जाटों से ज्यादा खराब है फिर उनको आरक्षण क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? कुछ लोग कह सकते हैं कि आरक्षण का आधार तो सामाजिक पिछड़ापन है तो फिर जैनों,गरीब सवर्ण मुसलमानों और जाटों को कैसे आरक्षण दे दिया गया?
              मित्रों,हमारे देश की छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ जिसे धर्मनिरपेक्षता कहती हैं वह वास्तव में धर्मनिरपेक्षता है ही नहीं। वह वास्तव में अल्पसंख्यकवाद है और वोट बैंक की गंदी राजनीति है। इन पार्टियों ने सत्ता प्राप्ति के लिए कुछ हिन्दू जातियों और पूरे मुस्लिम समुदाय को अपने साथ रखकर एक समीकरण बनाया है और उसके अनुपालन को ही ये लोग धर्मनिरपेक्षता कहते हैं। यह आरक्षण भी उसी नीति का एक भाग मात्र है। वास्तव में इन पार्टियों को न तो देशहित से कोई मतलब है और न ही प्रदेशहित से कोई लेना-देना। इनके पास न तो देश-प्रदेश के विकास के लिए कोई योजना है और न ही कोई ईच्छा। कहाँ तो राजग की केंद्र सरकार ने 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाने का लक्ष्य रखा था और कहाँ तो यूपीए की वर्तमान केंद्र सरकार ने भारत की विकास दर को फिर से हिन्दू विकास दर से भी नीचे ला दिया। जिस अब्दुल्ला बुखारी पर दर्जनों आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं,जिस व्यक्ति को जेल में होना चाहिए यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी उसी बुखारी से अनुनय-विनय करके मुसलमानों से अपने पक्ष में मतदान करने की अपील जारी करवाती हैं। क्या इसको धर्मनिरपेक्षता का नाम दिया जाना चाहिए?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

स्टिंग ऑपरेशन और लोकमंगल

04-04-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,कभी तुलसी और सूर की कविताओं और उन दोनों के आराध्यों की समीक्षा करते हुए हिन्दी के सबसे बड़े आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा था कि तुलसी लोकमंगल के कवि हैं और उनके राम के लिए भी लोकमंगल में ही अपना मंगल भी है। वहीं सूर के कृष्ण के लिए लोकमंगल प्राथमिकता नहीं है बल्कि आनन्द प्राथमिकता है। तुलसी के अनुसार आदर्श को सुधो मन,सुधो वचन,सुधो सब करतूती होना चाहिए।
मित्रों,आधुनिक युग संचार क्रांति का युग है। रोज-रोज नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। विज्ञान और तकनीक का सदुपयोग या दुरुपयोग स्वाभाविक रूप से मानव के स्वविवेक पर निर्भर करता है। आज इतने सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक यंत्र आ चुके हैं कि आपको इस बात का भान तक नहीं होता कि आपको कैमरे में कैद किया जा रहा है। प्रश्न उठता है कि क्या किसी को धोखा देकर बिना उसकी मर्जी के उसका वीडियो बनाना नैतिक रूप से उचित है? क्या यह सूधो मन,सूधो वचन,सूधो सब करतूती के मान्य सिद्धांत पर खरा उतरता है? क्या इस तरह से बनाए गए वीडियो को न्यायालय सबूत के रूप में स्वीकार करेगा? अगर न्यायालय ऐसा करता है तो उसे ऐसा करना चाहिए या नहीं?
मित्रों,सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कुकुरमुत्ते की तरह उग आई स्टिंग करनेवाली कंपनियों का उद्देश्य क्या है? क्या वे सिर्फ लोकमंगल के लिए स्टिंग करवाते हैं या फिर उनके भी निहित स्वार्थ हैं? इतिहास के पृष्ठों को अगर हम उलटें तो हम देखते हैं कि कभी तहलका ने स्टिंग करके तहलका मचा दिया था और बताया था कि एनडीए की सरकार में होनेवाली रक्षा खरीदों में कमीशनखोरी हो रही है। परन्तु उससे हजार गुना ज्यादा कमीशनखोरी परवर्ती कांग्रेस सरकार के समय में होती रही,स्थिति यहाँ तक बिगड़ी कि कोई नहीं कह सकता कि कौन-सी पनडुब्बी या युद्धपोत कब जल समाधि ले लेगा मगर तब तहलका ने कोई स्टिंग नहीं किया और मुंदहूँ आँख कतहुँ कछु नाहि को अपना मूलमंत्र बना लिया। सवाल उठता है कि क्या स्टिंग करनेवाले लोगों को निष्पक्ष नहीं होना चाहिए? अगर एनडीए का भ्रष्टाचार गलत था तो फिर गलत तो कांग्रेस का भ्रष्टाचार भी है। इसी तरह 2009 में 'नोट फॉर वोट' नामक स्टिंग आईबीएन 7 ने करवाया था। दिनभर 'खबर किसी भी कीमत पर' को अपना आदर्श माननेवाले इस चैनल पर घोषणा होती रही कि रात में स्टिंग को प्रसारित करके बताया जाएगा कि किस तरह कांग्रेस सरकार ने पैसे देकर सांसदों के मत खरीदे लेकिन न जाने किस चीज की कीमत पर स्टिंग को दबा दिया गया और प्रसारित नहीं किया गया। इसी प्रकार एक स्टिंग पिछले साल दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय आया था जिसमें आप पार्टी के ढोंग की पोल खोली गई थी। हालाँकि इससे आप पार्टी को फायदा हुआ या नुकसान यह आज भी विवाद का विषय है लेकिन इस प्रयास की निश्चित रूप से सराहना की जानी चाहिए क्योंकि इसके पीछे निश्चित रूप से लोकमंगल निहित था।
मित्रों,कई बार देखा गया है कि स्टिंग ऑपरेशन करनेवाले निजी शत्रुता में स्टिंग करते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ देते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2007 में एक स्टिंग में दक्षिण दिल्ली स्थित सर्वोदय कन्या विद्यालय की शिक्षिका उमा खुराना पर छात्राओं की अश्लील वीडियो बनाने का आरोप लगा था जो बाद में पूरी तरह से झूठा भी पाया गया था। लेकिन इस बीच अभिभावकों ने उमा के साथ मारपीट और बदसलूकी की,कपड़े तक फाड़ डाले थे। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को कई बार लाठीचार्ज करना पड़ा था और आँसूगैस के गोले भी छोड़ने पड़े थे।
मित्रों,आज कोबरा पोस्ट ने जो स्टिंग प्रसारित किया है उसमें कोई भी नया तथ्य या खुलासा नहीं है। पूरा भारत जानता है कि घटना पूर्वनियोजित थी। सवाल उठता है क्या कोबरा पोस्ट इस मामले में कांग्रेस के इशारे पर काम कर रहा है। क्या बाबरी के ढहाने की तरह इस स्टिंग का इस समय प्रसारण भी पूर्वनियोजित है? कल-परसों सोनिया ने बुखारी से भेंट की,आज बुखारी कांग्रेस के पक्ष में मुसलमानों से अपील कर सकते हैं ऐसे में अगर हम सारी बिखरी हुई कड़ियों को जोड़कर देखें तो इस समय इस स्टिंग के आने से सबसे ज्यादा लाभ कांग्रेस को होनेवाला है भले ही कोबरा पोस्ट की कांग्रेस से मिलीभगत हो या नहीं।
मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि प्रत्येक स्थिति में स्टिंग करना गलत है। अनैतिक लोगों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए कभी-कभी अनैतिक कर्म करने पड़ते हैं लेकिन स्टिंग का एकमात्र उद्देश्य लोकमंगल होना चाहिए,देशोद्धार होना चाहिए। शुद्ध व्यावसायिक हित के लिए इसका दुरुपयोग करना निहायत गैरजिम्मेदाराना और गलत है। उस पर उनलोगों के पक्ष में इसका जाने-अनजाने में इस्तेमाल करना तो और भी गलत है जो देश को लगातार नुकसान पहुँचा रहे हैं और जिन्होंने घोटालों की वर्णमाला ही तैयार कर दी है। तुलसी के राम राज्याभिषेक के बाद प्रतिज्ञा करते हुए कहते हैं कि 'निशिचरहीन करौं महि हथ उठाई पण कीन्ह'। पृथ्वी को निशिचरहीन करते समय किसी तरह का भेदभाव नहीं किया था राम ने। उन्होंने केवल उनके कर्म देखकर उनको सजा दी थी न कि अपना-पराया के आधार पर उनमें भेदभाव किया था। अगर भाजपा का भ्रष्टाचार नुकसानदायक है तो कांग्रेस का भ्रष्टाचार भी नुकसानदेह होगा। अगर बाबरी मस्जिद को तोड़ना सुनियोजित था तो 2009 में वोट के लिए पैसे बाँटना भी सुनियोजित था। अगर भूतकाल में भाजपा की सांप्रदायिकता बुरी थी तो भूत और वर्तमान काल में कांग्रेस की सांप्रदायिकता भी उतनी ही बुरी है।
मित्रों,इसलिए स्टिंग करते समय एक तो स्टिंग करनेवाले लोगों को निष्पक्ष तो होना ही चाहिए और इसके साथ ही देशहित और लोकमंगल का भी ध्यान रखना चाहिए। अगर इस स्टिंग से कांग्रेस को अप्रत्याशित लाभ हो जाता है और वह एक बार फिर से सत्ता में वापस आ जाती है तो निश्चित रूप से वह अपने उसी एजेंडे को आगे बढ़ाएगी जिस पर उसकी सरकार पिछले 10 सालों से काम करती रही है अर्थात् देश को लूटने की गति और तरीका और भी आक्रामक और निर्लज्ज हो जाएगा और इस प्रकार भारत वैश्विक और क्षेत्रीय विकास की दौड़ में क्रमशः काफी पीछे होता जाएगा। और यह तो आप भी जानते हैं कि इससे भारत की एकता,अखंडता और संप्रभुता निश्चित रूप खतरे में पड़ जाएगी क्योंकि निर्बल की पत्नी सबकी लुगाई हो जाती है। क्या स्टिंग करनेवाले कोबरा पोस्ट को सोंचना नहीं चाहिए था कि अगर ऐसा हुआ तो इस पाप में उसे भी हमेशा भागीदार माना जाएगा। 'राम की शक्ति पूजा' में निराला के राम इस बात पर क्षोभ प्रकट करते हैं कि 'जिधर अधर्म है उधर शक्ति'। क्या वर्तमान भारत में भी स्थिति ऐसी ही नहीं है? क्या कांग्रेस 10 साल की उत्तरोत्तर आक्रामक होती सतत लूट के बाद भी शर्मिंदा होने के बदले पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक नहीं हो गई है जैसे कि रावण सीता-हरण के बाद होता गया था? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)