मंगलवार, 29 जुलाई 2014

जाँच पर जाँच,तारीख पर तारीख और अंत में इंसाफ को सजाये मौत

29-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हाल ही में मुझे कई बार टेलीवीजन पर अली बाबा और मरजीना फिल्म देखने का सुअवसर मिला। फिल्म क्या थी भारत के वर्तमान का सच्चा प्रतिबिम्ब थी। फिल्म में बगदाद में एक ऐसे अमीर का शासन है जो निहायत लालची है। वह अपने सारे फैसले और सारे न्याय इस आधार पर देता है कि किस पक्ष ने कितना सोना पेश किया है। वो हर बार कहता कि सबूत पेश किया जाए लेकिन सबूत के बदले पक्षकार सोने की अशर्फियाँ पेश करते हैं और तब वो कहता है कि इस पक्ष का सबूत उस पक्ष के सबूत (सोने की अशर्फी) से ज्यादा वजनदार है इसलिए फैसला इस पक्ष के पक्ष में सुनाया जाता है और उस पक्ष को सजा दी जाती है।
मित्रों,क्या आपको नहीं लगता कि इस समय भारत में भी ठीक यह स्थिति है? जिसके पास जितना ज्यादा पैसा और जितनी तगड़ी पैरवी होती है वह कानून के साथ बलात्कार करने के लिए उतना ही ज्यादा स्वतंत्र है। जाँच का नाटक किया जाता है फिर इंसाफ का ड्रामा खेला जाता है और अंत में इंसाफ को ही वजनदार सबूत के आधार पर सजाये मौत सुना दी जाती है। आखिर कब तक भारत में ऐसा चलता रहेगा,कब तक??
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि लखनऊ की निर्भया मामले की जाँच को यूपी की बाप-बेटे,बलात्कारियों और दंगाइयों की सरकार ने सीबीआई के हवाले कर दिया है। इससे पहले स्त्री-गौरव उप्र की एडीजी सुतापा सान्याल अपनी खराब किस्सागोई के कारण उप्र की सरकार की काफी फजीहत करवा चुकी हैं।
मित्रों,मैंने देखा है कि जो दलित-पिछड़ा-गरीब अधिकारी बन जाते थे वे दलित-पिछड़ा-गरीब नहीं रह जाते थे बल्कि वे सिर्फ और सिर्फ घूस खानेवाला अधिकारी रह जाता था लेकिन शायद यह पहली ऐसी महिला अधिकारी हैं जो अधिकारी बनने के बाद सिर्फ अधिकारी रह गई हैं। न तो इनके मन में महिलाओं के प्रति दर्द है और न ही करुणा इनके मन में तो सिर्फ जीहुजूरी है,अपने आका नेताओं को खुश रखने का उत्साह है,तत्परता है। मैं मानता हूँ कि अगर इस महिला को अपने महिला होने का थोड़ा-सा भी भान है तो उनको अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि उन्होंने महिला होते हुए भी एक बलात्कार-पीड़िता महिला के दर्द और संघर्ष की हँसी उड़ाने की धृष्टता की है।
मित्रों,आपको क्या लगता है कि अब जब सीबीआई इस मामले की जाँच करने जा रही है तो क्या पीड़िता को न्याय मिल जाएगा? मैं जानता हूँ कि आप भी इस संभावना को लेकर निश्चित नहीं हैं। मैं तो निश्चित हूँ कि और दुष्कर्मियों की तरह निश्चिंत भी कि सीबीआई अब उस रसूखदार को बचाने के लिए जिसको कि श्रीमती सान्याल बचा रही थीं काफी लंबे समय तक जाँच करने का नाटक करेगी और अंत में केस का क्लोजर रिपोर्ट लगा देगी। मामला खत्म इंसाफ खल्लास। दरअसल पिछले कुछ दशकों से सीबीआई का काम ही यही रह गया है कि बड़े और बहुत बड़े लोगों को कानून के पंजे से यानि सजा पाने से बचाना।
मित्रों,आपको याद होगा कि 90 के दशक के अंत में बिहार में गौतम सिंह और शिल्पी जैन नामक प्रेमी जोड़े की हत्या कर दी गई थी। तब शक के दायरे में थे लालू जी के साले यानि आधे घरवाले साधु यादव। यहां तक चर्चाएं रहीं कि साधु यादव और उनके तत्कालीन सहयोगी मंत्री ने मिलकर गौतम के सामने ही शिल्पी के साथ दुष्कर्म किया और फिर हत्या कर डाली। भाजपा के पुरजोर विरोध के बाद मामला सीबीआई के हवाले हुआ। पर साधु यादव ने पॉलीग्राफी टेस्ट और रक्त के नमूने देने से मना कर दिया। इसी बीच साधु जी केंद्र में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में चले गए। यूपीए 2 के आखिर में सीबीआई ने कहा साधु वाकई साधु हैं इसलिए हम उनको निर्दोष मानते हुए मामले को बंद करने की अनुमति मांगते हैं। कोर्ट ने भी सीबीआई के इस साधु वाद को साधुवाद कहा और इस प्रकार इंसाफ के साथ-साथ गौतम-शिल्पी की भी दोबारा हत्या कर दी गई।
मित्रों, इसी प्रकार यूपीए 1 के दौरान वर्ष 2006 में अपनी लाख कोशिशों के बावजूद सीबीआई को कई-कई महान घोटालों के निर्माता और निर्देशक लालू प्रसाद यादव जी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का कोई सबूत नहीं मिला और वे बरी करार दिये गए। इसी प्रकार सीबीआई को मुलायम सिंह यादव के पास भी आय से अधिक संपत्ति होने का कोई प्रमाण नहीं मिला और पिछले साल सितंबर में यूपीए 2 के समय वे भी दूध के धुले घोषित किए जा चुके हैं। कुछ इसी तरह की कोशिश यूपीए 2 के दौरान मायावती को भी आयानुसार सम्पत्ति निर्माण का प्रमाण-पत्र देकर सीबीआई कर चुकी है यानि यूपीए की सरकार के समय जिन-जिन भ्रष्टाचारियों-बलात्कारियों ने कांग्रेस की शरणागति स्वीकार कर ली सरकार ने सीबीआई के माध्यम से सबको अभयदान दे दिया कि करो और भ्रष्टाचार करो,और बलात्कार करो कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकेगा क्योंकि देश में कानून का नहीं हमारा स्वेच्छाचारी शासन है। न जाने क्यों न तो आयकर विभाग को ही और न तो सीबीआई को ही नेताओं के पास आय से ज्यादा सम्पत्ति मिल पाती है जबकि पटना के चोर बार-बार उसका पता लगा लेते हैं। इसी प्रकार मुजफ्फरपुर की नवरुणा का भी सीबीआई पिछले दो सालों में पता नहीं लगा पाई है क्योंकि उसके माता-पिता के पास इंसाफ पाने लायक सबूत (पैसा) नहीं है। यहाँ सवाल सिर्फ सीबीआई का नहीं है बल्कि पूरे तंत्र का है जो पैसों और पैरवी की बीन पर नाच रही है। राज्यों की जाँच एजेंसियाँ तो केंद्र की जाँच एजेंसियों से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं। जिनके पास पैसा और पैरवी नहीं है वे वास्तविक लाभार्थी होते हुए भी बेहाल हैं और जिनके पास पैसा है,पैरवी है वे जेल में होने के बदले मलाई चाभ रहे हैं।
मित्रों,इस बार के लोकसभा चुनावों में जब हमने मतदान किया था तो हमारे मन में एक आशा इस बात को लेकर भी थी कि आनेवाली सरकार सही मायनों में भारत में कानून का शासन स्थापित करेगी। तब कानून के हाथ इतने लंबे और मोदी जी की मजबूत सरकार की तरह मजबूत होगी कि कोई भी अपराधी सजा पाने से बच नहीं पाएगा भले ही वो देश का राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। मगर हमारा यह सपना सच होगा क्या? क्या लखनऊ की निर्भया समेत भारत के हजारों पीड़ितों को जीवित रहते या मरने के बाद भी कभी इंसाफ मिल पाएगा?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बुधवार, 23 जुलाई 2014

गवर्नेंट विथ डिफरेंस कहाँ तक डिफरेंट?

22-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक जंगल था जहाँ अचानक लोकतंत्र की हवा चलने लगी। चुनाव हुए तो चूँकि वहाँ बंदरों,हिरणों और खरगोशों की संख्या ज्यादा थी इसलिए एक बंदर को राजा चुन लिया गया। कुछ ही दिन बाद एक दिन जंगल के पुराने राजा सिंह ने एक हिरण के बच्चे को दबोच लिया। हिरणी बेचारी हाँफती हुई नए राजा बंदर के यहाँ पहुँची और उससे अपने पुत्र की रक्षा करने की गुहार लगाई। बंदर पेड़ों की डालों पर उछलता-कूदता हुआ भागा-भागा वहाँ पहुँचा जहाँ सिंह ने हिरणी के बच्चे को बंधक बना रखा था। बंदर ने सिंह को हिरणी के बच्चे को नहीं खाने और छोड़ देने का आदेश दिया लेकिन सिंह के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। बंदर चिल्लाता रहा और चिल्लाता-चिल्लाता लगातार पेड़ों की इस डाल से उस डाल पर कूदता रहा और उधर सिंह हिरणी के बच्चे को खा गया।
मित्रों,तब बच्चे की मौत से दुःखी हिरणी ने बंदर पर नाराज होते हुए कहा कि तुम बेकार राजा हो क्योंकि तुम सिंह से मेरे बच्चे की रक्षा नहीं कर सके। जवाब में बंदर ने कहा कि भले ही मैं तेरे बच्चे को नहीं बचा सका लेकिन मेरी कोशिश में तो कमी नहीं थी।
मित्रों,केंद्र में मोदी सरकार को गठित हुए 2 महीने हो चुके हैं और मोदी सरकार भी लगातार उस बंदर की तरह कोशिश ही करती हुई दिख रही है। महंगाई को कम करने की कोशिश,चीन-पाकिस्तान को समझाने की कोशिश,रोजाना 30 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की कोशिश,भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश,मुलायम-अखिलेश को समझाने की कोशिश,कांग्रेसी काल के राज्यपालों को इस्तीफे के लिए मनाने की कोशिश वगैरह-वगैरह। ठगा-सा देश और ठगी-सी देश की जनता ने क्या सिर्फ इसी बंदरकूद के लिए देश ने नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत-से चुनाव जिताया था?
मित्रों,चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में कुशासन के खिलाफ लगातार बोल रहे थे मगर आज जब यूपी में कानून-व्यवस्था नाम की चीज नहीं रह गई है तब वे अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों को दरकिनार करते हुए ठीक उसी तरह सपा-बसपा को साधने की जुगत भिड़ा रहे हैं जिस तरह कि कभी सोनिया-मनमोहन ने भिड़ाया था। तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाए कि अब उत्तर प्रदेश की लाचार जनता को मार्च 2017 तक मोदी कथित बाप-बेटे की सरकार को झेलना पड़ेगा? इसी प्रकार नरेंद्र मोदी सरकार चीन-पाकिस्तान और कांग्रेसी काल के राज्यपालों के आगे भी गिड़गिड़ाती हुई दिखाई दे रही है। चीन की घुसपैठ और पाकिस्तान की गोलीबारी में मोदी सरकार के गठन के बाद तेजी ही आई है लेकिन मोदी सरकार ने इनको ऐसा करने से रोकने के लिए अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे कि ऐसा लगे कि यह सरकार मोदी कथित वेंटिलेटर पर चल रही मनमोहन सरकार से किसी भी मायने में अलग है।
मित्रों,इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में कई ऐसे लोगों को शामिल किया है जिनको बेदाग नहीं कहा जा सकता। इनमें से जिन लोगों पर बलात्कार के आरोप हैं या दंगों के आरोप हैं उनको तो मैं नहीं जानता लेकिन मैं हाजीपुर के सांसद और भारत के उपभोक्ता एवं खाद्य आपूर्ति मंत्रालय रामविलास जी पासवान (मोदी जी और राजनाथ सिंह जी शायद उनको ऐसे ही पुकारते होंगे) को जरूर अच्छी तरह से जानता हूँ। ये वही रामविलास जी पासवान हैं जिनके रेल मंत्री रहते कभी अजमेर रेलवे भर्ती बोर्ड के चेयरमैन और इनके प्रिय समता कॉलेज,जन्दाहा के तत्कालीन प्रिंसिपल श्री कैलाश प्रसाद जी को एक उम्मीदवार से घूस लेते हुए सीबीआई ने पकड़ लिया था। बाद में अटल जी की उस सरकार ने न जाने क्यों मामले को दबा दिया था जिसमें स्वयं रामविलास जी पासवान भी शामिल थे। अभी लोकसभा चुनाव प्रचार के समय 22 फरवरी,2014 तत्कालीन मनमोहन सरकार ने यह खुलासा किया था (कृपया पूरा समाचार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें) कि रामविलास पासवान ने यूपीए 1 में केंद्रीय इस्पात और रसायन मंत्री रहते हुए बोकारो इस्पात कारखाने में कई ऐसी बहालियाँ की थीं जिनमें पैसे लेकर गड़बड़ी की गई थी लेकिन न तो मनमोहन सरकार ने और न ही अब मोदी सरकार ने इस मामले में जाँच को आगे बढ़ाया है। इसका सीधा मतलब देश की जनता यह क्यों न लगाए कि मोदी सरकार भी रामविलास जी पासवान के खिलाफ किसी तरह की सीबीआई जाँच नहीं करवाने जा रही है यानि मामला रफा-दफा?
मित्रों,क्या आपको भी ऐसा लगता है कि ऐसे दागी लोगों को सरकार में रखकर मोदी बेदाग शासन दे सकते हैं? मुझे तो ऐसा नहीं लगता क्योंकि ठीक ऐसी ही स्थिति सोनिया-मनमोहन की सरकार में भी थी। तब भी दाग अच्छे हैं वेद वाक्य था और आज भी है फिर यह सरकार कैसे गवर्नेंस विथ डिफरेंस हुई। तब भी तब की सरकार ने राष्ट्रमंडल घोटाले में आरोपी शीला दीक्षित को राज्यपाल बनाया था और बनाए रखा था और आज की सरकार भी शीला दीक्षित को हटा नहीं रही है बल्कि मोदी जी उनके साथ गुपचुप मुलाकात कर रहे हैं। क्या श्री श्री मोदी जी बताएंगे कि उनके और शीला आंटी के बीत क्या-क्या बातचीत हुई? क्या नरेंद्र मोदी ने शीला दीक्षित को अभयदान दे दिया है? अगर हाँ तो क्या वे बताएंगे कि ऐसा उन्होंने किन शर्तों पर किया है? प्रचंड बहुमत से बनी यह कैसी मजबूत सरकार है जो अपने भ्रष्ट राज्यपालों को हटा भी नहीं सकती फिर चीन-पाकिस्तान के साथ यह सरकार कैसे आँखों में आँखें डालकर बात करेगी। एक राज्यपाल हैं उत्तराखंड के राज्यपाल कुरैशी जी जो राज्यपाल के पद को पिकनिक मनाने जैसा समझ रहे हैं और रोजाना बिरयानी के जलवे लूट रहे हैं और बेहद संवेहनहीन होकर बलात्कार को स्वाभाविक परिघटना बता रहे हैं। रोजाना सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी में हमारे सैनिक मारे जा रहे हैं और मोदी सरकार सार्क उपग्रह की परिकल्पना करने में खोयी हुई है। क्या इसको कहते हैं आँखों में आँखें डालकर बात करना? हेमराज पहले भी सीमा पर मारे जा रहे थे और आज भी मारे जा रहे हैं। पहले भी तोगड़िया,ओबैसी,शिवसेना वगैरह बेलगाम थे और आज भी बेलगाम हैं। मोदी सरकार के मंत्री जीतेन्द्र सिंह जिन्होंने सरकार गठन के तत्काल बाद संविधान के अनुच्छेद 370 पर प्रश्नचिन्ह लगाया था अब संसद में ऐसा क्यों कह रहे हैं कि सरकार के पास अनुच्छेद 370 में किसी तरह की तब्दीली का कोई प्रस्ताव नहीं है? क्यों मोदी सरकार ने अभी तक दिन-प्रतिदिन गति पकड़ रहे उस पिंक रिव्यूलेशन को रोकने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है जिसको बढ़ाने के आरोप उन्होंने अपने चुनावी भाषण में लगातार लगाए थे? क्या अभी भी गोवंश के मांस के निर्यात पर केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी जारी नहीं है?
मित्रों,कुल मिलाकर अबतक नरेंद्र मोदी सरकार वही सब कर रही है और वैसे ही कर रही है जैसे कि मनमोहन सरकार चुनावों से पहले कर रही थी फिर कैसे समझा जाए कि यह सरकार उससे अलग हटकर है? माना कि मोदी सरकार ने महँगाई को काफी हद तक नियंत्रण में रखा है लेकिन क्या भारत की जनता ने सिर्फ 25 रुपये किलो का प्याज और 20 रुपये किलो का आलू खाने के लिए मोदी को भारी बहुमत दिया था? और अगर वही सब होना है जो अब तक होता आया है अथवा अगर मोदी सरकार को आगे भी वैसे ही और वही काम करना है जो उसने पिछले दो महीनों में किया है तो फिर अच्छे दिन तो आने से रहे अलबत्ता पहले से भी ज्यादा बुरे दिन जरूर आनेवाले हैं देश की जनता के लिए भी और मोदी सरकार के लिए भी। जनता को सिर्फ बंदरकूद जैसा प्रयत्न नहीं परिणाम चाहिए।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 21 जुलाई 2014

नई गरीबी रेखा पर चुप क्यों है मोदी सरकार?

21-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,15 दिन हुए जब रंजराजन समिति ने गरीबी को मापने के लिए नए पैमानेवाली रिपोर्ट मोदी सरकार को सौंपी थी। हमें उम्मीद थी थी कि आदत के मुताबिक नरेंद्र मोदी इस रिपोर्ट पर तीव्र और तीखी प्रतिक्रिया देंगे और सिरे से रिपोर्ट को नकार देंगे। आखिर सवाल गरीबों की ईज्जत का था। याद करिए चुनाव प्रचार जब नरेंद्र मोदी पानी पी-पीकर मनमोहन सरकार पर शहरों के लिए 33 रुपए प्रतिदिन और गांवों के लिए 27 रुपये प्रतिदिन व्यय का पैमाना देकर भारत के गरीबों का अपमान करने और मजाक उड़ाने के आरोप लगा रहे थे। प्रश्न उठता है कि क्या अब शहरों के लिए 47 रुपए प्रतिदिन और गांवों के लिए 32 रुपए प्रतिदिन व्यय का सरकारी पैमाना गरीबों का अपमान नहीं कर रहा है या उनका मजाक नहीं उड़ा रहा है?

मित्रों,अगर श्री नरेंद्र मोदी भी इसे अपमान या मजाक मानते हैं तो फिर रिपोर्ट की सुपुर्दगी के बाद एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी उन्होंने या उनकी सरकार ने इसको क्यों नहीं नकारा है? क्या उनकी चुप्पी से जनता यह मतलब निकाले कि मनमोहन और मोदी में सिर्फ 32 और 47 का फर्क है यानि नरेंद्र मोदी ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है? गरीबों का मजाक मनमोहन ने भी उड़ाया था और अब मोदी भी उड़ा रहे हैं। हमें यह भी देखना होगा कि मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए अगर तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट सही भी थी तो 47 रुपए की गरीबी-सीमा काफी कम है। मोदी चुनाव प्रचार के समय और प्रधानमंत्री बनने के बाद लगातार यह दोहराते आ रहे हैं कि उनकी सरकार गरीबों की सरकार होगी। तो क्या गरीबों की गरीबी का मजाक उड़ाकर वे देश में गरीबों की सरकार स्थापित कर रहे हैं?

मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि सरकार को गरीबों को मुफ्तखोर बना देना चाहिए लेकिन सरकार गरीबी को स्वीकार तो करे। संयुक्त राष्ट्र संघ कह रहा है कि दुनिया के सबसे गरीब लोगों की एक तिहाई आबादी भारत में है। भारत सरकार को भी आय-वर्ग के आधार पर तीन श्रेणियों का निर्माण करना चाहिए। एक वे जो वास्तव में अमीर हैं,दूसरे वे जो अभावों में जी रहे हैं लेकिन हालत उतनी खराब नहीं है और तीसरे में वे लोग हों जो बेहद गरीब हैं। हमारे हिसाब से रंजराजन समिति ने जो व्यय-सीमा अपनी रिपोर्ट में दी है उसके अनुसार जीनेवाले लोग बेहद गरीब की श्रेणी में ही आ सकते हैं गरीब की श्रेणी में नहीं।

मित्रों,गरीबों को सब्सिडी पर तो मीडिया लगातार सवाल उठाती रहती है लेकिन उससे कई गुना ज्यादा जो सब्सिडी सरकार अमीरों को दे रही है उस पर चुप्पी साध जाती है। सब्सिडी निश्चित रूप से बुरी चीज है और सबसे बुरी चीज है उस सब्सिडी का गरीबों तक न पहुँच पाना यानि बीच में ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाना। अच्छा हो कि सरकार गरीबी को मापने के लिए तर्कसंगत पैमाना बनाए,सब्सिडी को गरीबों तक पहुँचाने की दिशा में आ रही रूकावटों को दूर करे और गरीबों को खैरात बाँटने के बदले रोजगार दे और इस काम को पहली प्राथमिकता दे तब न तो उसको गरीबों की संख्या को जबरन कम करके दिखाना पड़ेगा और न ही देश के गरीबों को पागलपनभरी,बेसिर पैर की  सरकारी आंकड़ेबाजी से खुद को अपमानित ही महसूस करना पड़ेगा।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 20 जुलाई 2014

लखनऊ की निर्भया की पाती देशवासियों के नाम

20-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। प्यारे देशवासियों,मैं एक और निर्भया जो अपनों की ही हवश से खुद को बचा नहीं सकी आपलोगों के नाम यह खत लिख रही हूँ। मैं कहीं बाहर से नहीं बल्कि आपलोगों की अंतरात्मा,अंतर्मन से ही आपलोगों को यह संदेश दे रही हूँ। मुझे जिन्दगी से बहुत-कुछ नहीं मिला लेकिन फिर भी मैंने अपने कर्त्तव्यों से कभी मुँह नहीं मोड़ा। विवाह के तत्काल बाद ही मेरे पति के गुर्दे खराब हो गए लेकिन मैंने हार नहीं मानी और उनको अपना एक गुर्दा देकर बचा लेना चाहा। मगर मेरा यह महान त्याग भी उनकी प्राण-रक्षा नहीं कर पाया और उन्होंने अंततः मेरे विवाह के कुछ ही साल बाद दम तोड़ दिया। वे पीजीआई,लखनऊ में काम करते थे और न जाने कितनों की जान अपनी सेवा के द्वारा बचाई थी लेकिन वे अपनी ही जान नहीं बचा सके।

प्यारे भाइयों और बहनों,फिर मैंने पीजीआई में ही नर्स की नौकरी कर ली और पति ने जो जनसेवा का काम अधूरा छोड़ा था उसे भरे मन से सारे भावों को छिपाते हुए मुस्कान के साथ पूरा करने में लग गई। 16 जुलाई तक मेरे ऊपर मेरे पति की निशानी 13 साल की बिटिया और 3 साल के बेटे की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का भी भार था। 16 जुलाई को मुझे मेरी जान-पहचान के चार लड़के इमरजेंसी कहकर बुलाने आए। रात गहरा चुकी थी लेकिन मेरी करुणा ने मुझे रुकने नहीं दिया और मैं घर में अपने बेटे-बेटियों को जल्दी आ जाऊंगी कहकर निकल पड़ी। कार जब तहजीबों के शहर लखनऊ के सबसे बड़े अस्पताल पीजीआई से आगे बढ़ने लगी तब मैंने समझा कि मेरे साथ धोखा हुआ है। ठीक उसी तरह का धोखा जैसा धोखा कभी डाकू खड़क सिंह ने बाबा भारती के साथ किया था। मैंने उनसे कार रोकने को कहा तो उन्होंने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी। इस बीच उनकी कार कई बार शहर के विभिन्न थानों से होकर गुजरी।

दोस्तों,मैं अब डरने लगी थी। मुझे लगने लगा था कि मेरे साथ ये लोग काफी बुरा करनेवाले हैं। मुझे लखनऊ के ... मुहल्ले के एक बंद स्कूल में ले जाया गया। स्कूल का दरवाजा बंद था इसलिए वे लोग मुझे टूटी हुई चारदिवारी से उठाकर भीतर ले गए। वहाँ सीमेंट से बने बेंच पर मेरे साथ उन्होंने वह सब किया जिसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। वे मेरे अपने थे,मेरे परिचित थे और मुझे सिस्टर कहकर बुलाते थे फिर आप ही बताईए कि कोई अपनी सिस्टर यानि बहन के साथ बलात्कार करता है क्या? मैंने लगातार उनका विरोध किया जिससे नाराज होकर उन्होंने लाठी-डंडों से मेरी जमकर पिटाई की। डंडे से मेरे गुप्तांग को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। मेरा सिर भी दो फाँक कर दिया जिससे मेरे गुप्तांग के साथ-साथ सिर से भी तेज रक्तस्राव होने लगा। मैं लगातार चिल्लाती रही लेकिन मुझे बचाने कोई नहीं आया। या तो मानव-समाज तक मेरी चित्कार पहुँची ही नहीं या फिर आपलोगों ने उसे सुनकर अनसुना कर दिया क्योंकि मैं आपके परिवार की नहीं थी। वे मुझे वहीं घायल अवस्था में छोड़कर भाग गए। दर्द और लगातार खून बहने से मुझे तेज प्यास लग रही थी मैं स्कूल के मैदान में स्थित चापाकल तक घिसटकर पहुँची क्योंकि अब मेरे भीतर खड़ा होने की ताकत नहीं बची थी। बाँकी सरकारी स्कूलों के चापाकलों की तरह वह चापाकल भी खराब था इसलिए मैं पानी नहीं पी सकी। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और घुप्प अंधेरे में भी मैं कुल मिलाकर 80 मीटर तक घिसटती रही इस उम्मीद में कि मैं नजदीकी बस्ती तक पहुँच जाऊंगी और किसी तरह मेरे बच्चे पूरी तरह से अनाथ होने से बच जाएंगे। मैंने अस्पताल में अपनी सेवा से न जाने कितने बच्चों को अनाथ होने से बचाया था लेकिन आज मेरे बच्चे ही अनाथ होने जा रहे थे। अंततः मैं बेहोश होने लगी तब मुझे लगा कि मैं पूरी तरह से नंगी कर दी गई हूँ। मेरे कपड़े तो काफी दूर रह गए थे इसलिए मैं अपनी लाज को ढंकने के लिए जमीन की तरफ मुँह करके लेट गई और प्राण-त्याग दिया। तब शायद रात के दो बज रहे थे।

मेरे प्यारे देशवासियों,जो मेरे साथ हुआ आप ही बताईए कि उसके बाद कोई भी महिला क्या दूसरी महिला की इमरजेंसी में मदद करने की सोंचेगी भी? क्या ऐसे में देश की लाखों बहनों की जान पर खतरा नहीं बढ़ जाएगा? 16 दिसंबर से 16 जुलाई तक भारत में न जाने कितनी निर्भयाओं को बलात्कार के दर्द से गुजरना पड़ा और न जाने कितनी निर्भयाओं को सबूत छिपाने के लिए जान से मार दिया गया। मगर मेरा बलात्कार तो समाज द्वारा मेरी मृत्यु के बाद भी होता रहा। मैं दिन निकलने के बाद तीन घंटे तक नंग-धड़ंग पड़ी रही। पुलिसवाला हाथ में कपड़ा लिए खड़ा रहा,समाज मेरे नंगे मृत शरीर से नयनसुख प्राप्त करता रहा लेकिन किसी ने भी मुझ पर कपड़ा डालने की कोशिश नहीं की। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही देश है जहाँ पर दुर्गा और काली की पूजा की जाती है। मेरा अपराध क्या था? सिर्फ यही न कि मैं एक महिला थी। पुरुषप्रधान समाज ने हमें कभी भी आदर नहीं दिया। मूर्ति के रूप में हमारी पूजा की लेकिन वास्तव में हमें सिर्फ एक वस्तु समझा। मैं नहीं जानती कि मुझे मारने के बाद यह समाज मेरे बच्चों के साथ कैसा सलूक करेगा। क्या मेरी बेटी के साथ भी भविष्य में वही होनेवाला है जो 16 जुलाई को मेरे साथ हुआ?

मेरे प्यारे देशवासियों,हमारे देश के मर्दों को हो क्या गया है? उनमें क्यों पशुता ने प्रवेश कर लिया है? क्या कथित आधुनिकता और नंगेपन की वैश्विक आंधी हम नारियों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देगा? क्या फिर से मध्यकाल की तरह जाकी कन्या सुन्दर देखी ता सिर जाई धरि तलवार वाला युग आ गया है? फिर तो हम महिलाओं को जन्म लेते ही लड़कियों को मार देना होगा क्योंकि वह मौत मेरी मौत से तो कम कष्टकारी होगा।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बुधवार, 16 जुलाई 2014

एफआईआर दर्ज करा के पछता रहा है पारस

16-07-2013,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यूँ तो पूरे भारत की पुलिस के काम करने का अंदाज निराला है लेकिन हमारी हाजीपुर की पुलिस की तो कोई हद ही नहीं है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। इसी शुक्रवार को जब मैं हाजीपुर नगर थाना के बैंक मेन्स कॉलोनी स्थित अपने मकान पर मौजूद नहीं था तभी देर रात को मेरे पड़ोस में स्थित किराने की दुकान गुंजन किराना स्टोर में चोरी हो गई। चोर दुकान का ताला तोड़कर करीब 20 हजार रुपये की नकदी और सामान ले गए। मेरी दुकानदार से अच्छी बनती है इसलिए जब परसों सोमवार को मैं घर आया तो हालचाल लेने चला गया। दुकानदार पारस कुमार जायसवाल ने बताया कि उसने शनिवार 12 जुलाई को ही नगर थाने में आवेदन दे दिया था,सोमवार के हिन्दुस्तान में समाचार प्रकाशित भी हुआ लेकिन अभी तक नगर थाने की पुलिस का कहीं अता-पता नहीं है।

मित्रों,कल अहले सुबह पारस मेरे घर पर आया और बताया कि संभावित चोर नत्थू साह पिता-श्री दशरथ साह उसको एफआईआर वापस लेने की अन्यथा परिवार सहित हत्या कर देने की धमकी दे गया है वो भी अकेले में नहीं मुहल्ला के दस आदमी के सामने। बेचारे का डर के मारे बुरा हाल था। उसने बताया कि जबसे वह धमकी देकर गया है दुकान खोलने की हिम्मत ही नहीं हो रही। मैं गरीब आदमी दुकान न खोलूँ तो कैसे खर्च चले और कैसे जीऊँ? मैंने तत्काल नगर थाने में फोन किया तो उधर से जवाब आया कि देखते हैं। फिर सवा दस बजे के करीब वैशाली जिले के पुलिस अधीक्षक सुरेश प्रसाद चौधरी जी से शिकायत की कि सुस्ती की भी एक सीमा होती है चोरी हुए चार दिन बीत गए मगर पुलिस तो क्या उसकी परछाई तक का कहीं अता-पता नहीं है। उन्होंने भी कहा देखते हैं। फिर दिन ढला और शाम हो गई। चार बजे फिर से चौधरी जी को फोन लगाया तो उन्होंने केस नं. मांगा जो मैंने दे दिया-केस नं.-575/14 डेटेड-13-07-2014।

मित्रों,अब आज बुधवार दिनांक 16 जुलाई,2014 के डेढ़ बज रहे हैं लेकिन अभी भी हाजीपुर नगर थाने की पुलिस छानबीन करने नहीं आई है। दोस्तों,मैं पहले भी अर्ज कर चुका हूँ कि हमारी पुलिस रक्षक नहीं भक्षक है,शोषक है फिर ऐसी पुलिस किस काम की? हम क्यों उठा रहे हैं या उठाएँ ऐसे पुलिस-तंत्र का खर्च? दरअसल हमारी बिहार पुलिस तब तक टस-से-मस नहीं होती जब तक कि उसकी जेब गर्म न कर दी जाए। वह पीड़ित से भी रिश्वत लेती है और पीड़क से भी इसलिए हमने दारोगा का फुल फॉर्म दो रोकर या गाकर कर दिया है। यही कारण है,यकीनन यही कारण है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति या महिला चाहे मामला बलात्कार का ही क्यों न हो एफआईआर दर्ज करवाने से हिचकते हैं। जब चोरी की घटना के तत्काल बाद ही एफआईआर कर देने के बाद 5 दिन बाद तक पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुँचती है तो इससे तो अच्छा है कि नुकसान को चुपचाप सह लिया जाए। अगर कल पारस की संभावित चोर हत्या कर देता तो इसके लिए दोषी कौन होगा? क्या अब 5 दिन बाद पुलिस अगर आती भी है तो चोरी का सामान बरामद होगा? क्या पुलिस ने चोर को चोरी के सामान को ठिकाने धराने के लिए पर्याप्त समय नहीं दे दिया है? क्या पुलिस का यह भ्रष्ट और लचर रवैय्या नत्थू जैसे अपराधियों का मनोबल नहीं बढ़ा रहा है? सवाल बहुत हैं मगर उत्तर किसी का भी नहीं है। कौन देगा और कहाँ से मिलेगा जवाब?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

बेवजह की आक्रामकता कर सकती है खुद कांग्रेस का नुकसान

14-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अंग्रेजी में एक कहावत है कि आक्रमण ही रक्षण का सर्वश्रेष्ठ तरीका है परन्तु यह कहावत सिर्फ चुनावों के समय के लिए ही सत्य हो सकती है। लगता है कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ऐसा बिल्कुल भी नहीं मानती। शायद उनका यह मानना है कि चाहे संघर्ष का समय हो या निर्माण का आक्रमण ही एकमात्र विकल्प हो सकता है। तभी तो जब यूपीए की सरकार सत्ता में थी तब भी देश का शुद्ध अंतर्मन से भारत-निर्माण करने के बदले कांग्रेस हमेशा इसी प्रयास में लगी रही कि कैसे विपक्ष के दामन को दागदार बना दिया जाए या दागदार साबित कर दिया जाए।
मित्रों,मैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन से पूरी तरह से सहमत हूँ कि आप अपने बल पर सरकार तो चला सकते हैं लेकिन देश का निर्माण नहीं कर सकते। सोनिया गांधी इसी बात को समझ नहीं पाई या फिर समझ कर भी समझना नहीं चाहा इसलिए उनका भारत निर्माण का नारा महज नारा बनकर रह गया। कभी द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की जीत सुनिश्चित करवाने वाले चर्चिल को ब्रिटेन की जनता ने यह देखकर सत्ता से बाहर कर दिया था कि विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भी उनका मिजाज सेनानायकों वाला ही था शायद यही हाल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों के समय से ही सोनिया गांधी का है। मेरी समझ से सोनिया जी की सबसे बड़ी परेशानी उनके पुत्र हैं जो वर्षों में भी कुछ भी सीख पाए। कदाचित् उनमें नेतृत्व क्षमता है ही नहीं और नेतृत्व क्षमता तो जियाले माँ के गर्भ से ही लेकर पैदा होते हैं उसे किसी के भीतर इंजेक्ट नहीं किया जा सकता। सोनिया जी को किसी दूसरे योग्य व्यक्ति को आगे लाना चाहिए और केंद्र सरकार के साथ सहयोगपूर्ण व्यवहार करना चाहिए अन्यथा क्या पता अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस दोहरे अंकों में भी नहीं पहुँच सके क्योंकि देश की जनता समझ चुकी है कि राहुल गांधी अयोग्य हैं और भविष्य में अगर देश के विकास की राह में मोदी सरकार के मार्ग में कांग्रेस किसी भी तरह से बाधक बनती है तो इसका दंड भी वही अकेली भुगतेगी।
मित्रों,कांग्रेस जब केंद्र में सत्ता में थी तब उसका फुलटाईम वर्क क्या था इसके बारे में हम पहले पाराग्राफ में बात कर चुके हैं। सत्ता से हटने के बाद भी उसके दुर्भाग्य से उसका रवैय्या वही है। सबसे पहले उसने बेवजह स्मृति ईरानी की पढ़ाई को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास किया फिर उस एक केंद्रीय मंत्री को बलात्कार के आरोप में लपेटना चाहा जिसको उसी की पार्टी की प्रदेश सरकार उसी मामले में कभी निर्दोष ठहरा चुकी है और अब पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के मामले में बिना किसी तथ्य के हो-हल्ला मचा रही है। शायद उसको लगता है कि इन बेतुके हमलों से जनता को विश्वास हो जाएगा कि इस सरकार और उसकी अपदस्थ हो चुकी सरकार में कोई फर्क नहीं है। हम जानते हैं कि वेद प्रताप वैदिक कभी नरेंद्र मोदी के नजदीकी नहीं रहे और लोकसभा चुनावों के दौरान तो उन्होंने कई बार उनका विरोध भी किया। यहाँ तक कि वे उनकी नजदीकी माकपा नेता सीताराम येचुरी और आप नेता अरविन्द केजरीवाल के साथ भी रही है फिर कांग्रेस क्यों वैदिक की रामदेव बाबा के साथ निकटता को लेकर हंगामा खड़ा कर रही है?
मित्रों,पत्रकार तो रोज सैंकड़ों लोगों से मिलता है। उसमें से कई अच्छे लोग होते हैं तो कई निहायत बुरे तो इसका यह मतलब नहीं हो जाता कि वह पत्रकार उसके गिरोह में शामिल हो गया। इतिहास गवाह है कि कभी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी जी के पति राजीव गांधी ने भी उस एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण के साथ मुलाकात की थी जिन पर बाद में उनकी ही हत्या करवाने का आरोप लगा तो क्या कांग्रेस बताएगी कि राजीव क्यों प्रभाकरण से मिले थे? क्या वे उनके यहाँ अपने बच्चों के लिए वर-वधु की तलाश कर रहे थे? फिर राजीव जी तो पत्रकार भी नहीं थे जबकि वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार है। अगर कांग्रेस पार्टी यह समझती है कि वैदिक को कटघरे में खड़ा करने का मतलब है मोदी को कटघरे में खड़ा करना तो यह उसकी निरी मूर्खता है। देश की जनता अब इतनी बेवकूफ नहीं रह गई है कि कांग्रेस के चोर बोले जोर से की नीति को समझ नहीं पाए इसलिए कांग्रेस और सोनिया परिवार के हित में यही अच्छा होगा कि वह मोदी सरकार के काम-काज में बाधा डालने के बदले उसके साथ सहयोग करे,मुद्दों के आधार पर विरोध करे न कि विरोध के लिए विरोध करे और बेवजह की आक्रामकता से बचे। बिना बात के गाली-गलौज को भारत में शिष्टता नहीं अशिष्टता माना जाता है। एक बात और कि जब शीशे के घर में रहनेवाला व्यक्ति दूसरे के घरों पर पत्थर फेंकता है तो अंततः वह अपने ही हाथों खुद का ही नुकसान करता है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 14 जुलाई 2014

बजट अच्छे हैं मगर आदर्श नहीं

14-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कहते हैं कि बजट को देखकर पता चलता है कि सरकार और देश की दशा और दिशा क्या है। जाहिर है कि 45 दिन पुरानी सरकार की दशा का अनुमान बजट से लगाना बेमानी होगा लेकिन दिशा का अनुमान तो हम लगा ही सकते हैं। चाहे मोदी सरकार का रेल बजट हो या आम बजट दोनों ही अच्छे हैं हालाँकि आदर्श नहीं हैं क्योंकि सरकार वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। शायद इसलिए वित्त मंत्री बजट में जनता को कड़वी दवा तो नहीं ही दे पाए उल्टे मीठी दवा दे डाली।
मित्रों,जहाँ तक रेल बजट का सवाल है तो इसमें निश्चित रूप से रेलवे को भारत के विकास का ईंजन बनाने की क्षमता है। रेलवे के पास विशाल नेटवर्क और अधोसंरचना है और उसके आधुनिकीकरण पर अगर समुचित ध्यान दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी दुनिया की सबसे तीव्रतम यातायात सेवा उपलब्ध होगी। कौन नहीं चाहेगा कि पटना से दिल्ली एक ही दिन में चला भी जाए और अपना काम करके देर शाम तक घर वापस भी आ जाए? जो लोग गरीबों के लिए बुलेट ट्रेन के भाड़े को लेकर चिंता से मरे जा रहे हैं उनको यह तो पता होगा ही कि देश में बुलेट ट्रेन के आने के बावजूद भी सस्ते विकल्प मौजूद रहेंगे। रेलवे की सामान ढुलाई में भी सुधार हो बजट में इसका भी खास ख्याल रखा गया है और माल ट्रेनों के लिए अलग स्टेशन बनाने की परिकल्पना की गई है। इतना ही नहीं रेलवे का उपयोग सरकार महंगाई को कम करने के लिए भी करने जा रही है।

मित्रों,अगर आप आम रेल यात्री से पूछें कि वो रेलवे में कौन-से परिवर्तन चाहता है तो वह यही बताएगा कि ट्रेनों में भोजन की गुणवत्ता और ट्रेनों-स्टेशनों की साफ-सफाई का स्तर अच्छा होना चाहिए। यह बड़े ही सौभाग्य का विषय है कि इस बजट में इन समस्याओं के समाधान पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही एक आम यात्री यह चाहता है कि ट्रेनों के विलंब से चलने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगनी चाहिए तो इसके लिए तो रेलवे का आधुनिकीकरण करना पड़ेगा और उसमें वक्त लगेगा। वैसे बुलेट ट्रेन और हाई स्पीड ट्रेनों को चलाने के लिए तो ट्रेन संचालन में आमूलचूल बदलाव तो करना पड़ेगा ही। यह हमारी अंग्रेजकालीन संचालन-प्रणाली का ही दोष है कि प्रत्येक साल सर्दी के दिनों में रेलगाड़ियों की गति को काठ मार जाता है और कई दर्जन महत्त्वपूर्ण गाड़ियों के संचालन को महीनों तक के लिए बंद कर देना पड़ता है जिससे यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
मित्रों,लेकिन फिर से वही सवाल उठ खड़ा होता है कि रेल बजट में जो प्रावधान किये गए हैं उनको धरातल पर उतारने के लिए पैसे आएंगे कहाँ से? जनता की जेब को तो पिछली सरकार ही लूट चुकी है इसलिए उसकी जेब से तो कुछ निकाल नहीं सकते तो क्या निजी कंपनियाँ सरकार की परियोजनाओं में अभिरूचि लेगी? अगर सरकार की नीति के साथ उसकी नीयत भी ठीक रही तो जरूर ऐसा संभव है इसलिए इस दिशा में पूरी तरह से निराश होने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
मित्रों,जहाँ तक आम बजट का सवाल है तो इसमें भी रेल बजट की ही तरह पीपीपी पर ज्यादा जोर दिया गया है यानि पब्लिक पाइवेट पार्टनरशिप पर। आम बजट में सबसे ज्यादा जोर विनिर्माण क्षेत्र के विकास पर दिया गया है जिससे देश की जीडीपी तो बढ़े ही देश के करोड़ों बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी मिले। देश का सबसे बड़ा क्षेत्र सेवा-क्षेत्र में विकास की रफ्तार एक तो संतृप्त हो चुका है और दूसरा यह कि उसमें रोजगार-सृजन की संभावना न के बराबर होती है। इसके लिए बीमा और रक्षा-क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दिया गया है। इसके साथ ही देश के कई क्षेत्रों में औद्योगिक गलियारों के निर्माण का भी प्रावधान किया गया है। 24 घंटे बिजली,नदियों को जोड़ने,कौशल विकास,सड़क-निर्माण,प्रधानमंत्री सिंचाई योजना,पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए कई सारी योजनाएँ,सीमावर्ती क्षेत्रों में रेल और सड़क निर्माण,महामना मालवीय के नाम पर नई शिक्षा योजना,गंगा सफाई और विकास योजना,सौ स्मार्ट सिटी निर्माण,मिट्टी हेल्थ कार्ड,2022 तक सबके लिए घर योजना,किसान टीवी चैनल की शुरुआत,हर राज्य में एम्स जैसी सुविधा देना,सबके लिए शौचालय,हर घर में बिजली पहुँचाने की योजना,किसानों को 7 प्रतिशत के ब्याज-दर पर ऋण,ई-वीजा प्रणाली,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना,सुशासन के लिए धन का आवंटन आदि कई सारे ऐसे कदम बजट में प्रस्तावित किए गए हैं जो देश में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं लेकिन वास्तविकता यह भी है कि सरकार के हाथों में कुल जीडीपी का मात्र 2 प्रतिशत ही है इसलिए बिना निजी क्षेत्र और विदेशी निवेशकों की सहायता के बजट-लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यहाँ मैं रेल और आम दोनों ही बजटों की बात कर रहा हूँ।

मित्रों,ऐसा होने के बावजूद भी मैं केंद्र सरकार की विनिवेश नीति से सहमत नहीं हूँ। मैं नहीं मानता कि सरकारी उपक्रमों को संचालन व्यावसायिक तरीके से नहीं किया जा सकता और उनमें सुधार लाकर उनको मुनाफे में नहीं लाया जा सकता फिर सरकारी हिस्सेदारी को बेचने या कम करने की क्या जरुरत है? आर्थिक सुधार का यह मतलब नहीं होता कि पूरे देश को राई से रत्ती तक को देसी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों में दे दो बल्कि किसी भी लोक-कल्याणकारी देश में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में एक संतुलन बनाए रखना जरूरी है वरना लोक-कल्याणकारी राष्ट्र होने का क्या औचित्य है? निजी क्षेत्र तो हमेशा अपना मुनाफा देखता है और आगे भी देखेगा फिर वो क्यों लोक-कल्याण से क्यों कर वास्ता रखने लगा? देश को देशहित में प्राइवेट कंपनी की स्टाईल में चलाया तो जा सकता है लेकिन प्राइवेट कंपनियों को सौंपा नहीं जा सकता क्योंकि देश की जनता इस सच्चाई को कभी स्वीकार नहीं करेगी इस बात को केंद्र सरकार को अच्छी तरह से अपने जेहन में बैठा लेनी पड़ेगी।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 7 जुलाई 2014

बिहार की पब्लिक आप दोनों को जान चुकी है लालू जी-नीतीश जी

7-7-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,न जाने क्यों हमारे देश के नेताओं को अपनी धूर्तता और जनता की मूर्खता पर अपार विश्वास है। वे समझते हैं कि वे बार-बार जनता को झाँसा दे सकते हैं,ठग सकते हैं। मगर वे बेचारे यह नहीं जानते कि देश-प्रदेश की जनता अब वो पुरानी 20वीं सदी वाली जनता नहीं रही बल्कि देश-प्रदेश की 55 प्रतिशत जनसंख्या आज युवा है और पल-पल जागरुक और चौकन्नी है। बिहार में जंगलराज के निर्माता और निर्देशक लालू प्रसाद जी पिछले कई चुनावों से बिहार की जनता को बरगलाने का प्रयास करते आ रहे हैं। वे हर चुनाव में अपना वही पुराना जातिवादी मंडल राग छेड़ते आ रहे हैं और मुँह की खाते आ रहे हैं। पिछले दो चुनावों में बिहार के वर्तमान से पूर्व मुख्यमंत्री हो चुके नीतीश कुमार बिहार की जनता को विकास और भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वादा करके जीतते रहे मगर किया कुछ नहीं। घूसखोरी बढ़ती गई,अराजकता पाँव पसारती गई और आज तो स्थिति ऐसी हो गई है कि जहाँ पूरे बिहार में पिछले छः महीने से अनाज नहीं बँटा है तो कई स्थानों पर सामाजिक पेंशन बँटे दो साल हो गए हैं, राज्य के 90 प्रतिशत शिक्षक नकली डिग्रीधारी हैं और अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में पूरी तरह से अक्षम हैं। कानून-व्यवस्था की स्थिति एक बार फिर से इतनी खराब हो चुकी है कि बिहार के वित्त मंत्री के नाती का ही अपहरण हो गया है।
मित्रों,जब नीतीश कुमार पहली बार जीते तो लालू के जंगलराज से मुक्ति के वादे पर सवार होकर जीते। इसी तरह 2010 के चुनावों से पहले उन्होंने वादा किया कि इस पारी में उनकी सरकार भ्रष्टाचार को निर्मूल करके रख देगी लेकिन जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि भ्रष्टाचार घटने के बदले बढ़ता ही जा रहा है। चारों तरफ सरकारी पैसों की लूट और अराजकता का बोलबाला है। जनता परेशान है और धीरज खो रही है लेकिन लगता है जैसे नीतीश कुमार जी को यह दिखाई ही नहीं दे रहा था तभी तो वे सीएम से पीएम बनने का सपना पाल बैठे। जब सपना टूटा तो बेचारे सीएम की कुर्सी भी छोड़कर भाग गए। कदाचित् अरविन्द केजरीवाल की तरह वे भी यह समझ चुके थे कि भ्रष्टाचार को मिटाना तो दूर उसका बाल बाँका तक कर सकने की क्षमता भी उनमें नहीं है। चले थे नरेंद्र मोदी बनने और बन गए अरविन्द केजरीवाल। जाहिर है कि जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने की परीक्षा में नीतीश कुमार बुरी तरह से फेल हो चुके हैं।
मित्रों,फिर भी लालू और नीतीश दोनों परखे जा चुके नेता यह समझ रहे हैं कि अगर वे दोनों मिल जाएँ तो जनता फिर से उनको ही मौका दे देगी। वे फिर से चुनावों को केमिस्ट्री के बजाये गणित समझने की भूल कर रहे हैं। आखिर क्यों देगी जनता मौका जब वे दोनों जनता की आशाओं पर खरे नहीं उतर सके हैं? एक ने जो कुर्सी से चिपक कर बैठ गया था पूरे बिहार के खून को जोंक की तरह चूसकर बीमार बना दिया और दूसरा जनाकाक्षाओं को पूरा करने की कोई राह नहीं सूझने पर कुर्सी छोड़कर भाग गया फिर जनता क्यों दे उनको फिर से बिहार को बर्बाद करने का मौका जबकि उनके पास बिहार के लिए कोई नवीन योजना और उनको धरातल पर उतारने का जिगर है ही नहीं? वे दिन गए जब बिहार के लोग जाति-पाँति के बहकावे में आ जाते थे। अब वे समझ चुके हैं कि ये नेता जाति-पाँति के नाम पर जीतने के बाद जनता की जगह अपना और अपनों का ही भला करनेवाले हैं। हालाँकि बिहार की जनता का एक बड़ा भाग ऐसा है जो भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को पसंद नहीं करता है। कारण यह है कि श्री मोदी ने बेवजह नीतीश कुमार को बिहार का मसीहा बन जाने दिया जबकि वे दूर-दूर तक ऐसा बनने के लायक नहीं थे। इतना ही नहीं श्री मोदी लंबे समय तक नीतीश कुमार को ही भारत के पीएम पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बताते रहे जबकि उनको पता था कि भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने जा रही है इसलिए अच्छा हो कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले सुशील कुमार मोदी को भाजपा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार या स्टार प्रचारक नहीं बनाए। या तो किसी और को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए या फिर यह निर्णय चुनावों के बाद जीतनेवाले विधायकों के विवेक पर छोड़ दे तभी उसकी जीत और लालू-नीतीश जैसे महान काठ की हाँड़ी विशेषज्ञ नेताओं की हार सुनिश्चित हो पाएगी।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

इराक में इस्लाम कहाँ है?

1 जुलाई,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जहाँ तक मैं जानता हूँ कि इस्लाम का अर्थ शांति होता है लेकिन विडंबना यह है कि जहाँ-जहाँ भी इस्लाम है वहाँ-वहाँ ही शांति नहीं है। पूरी दुनिया में मुसलमान दूसरे धर्मवालों से तो संघर्ष कर ही रहे हैं जहाँ जिस देश में सिर्फ मुसलमान ही हैं वहाँ आपस में ही लड़ रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में हमने इराक में इस्लाम की जो क्रूरता देखी,जो स्वरूप देखा वह बिल्कुल भी इस्लाम के प्रति श्रद्धा या प्रेम नहीं जगाता बल्कि जुगुप्सा और घृणा उत्पन्न करता है। क्या कोई व्यक्ति या धर्म इतना हिंसक और बेरहम हो सकता है कि 1700 निहत्थों को पंक्तिबद्ध करके गोलियों से भून दे? क्या कोई धर्म तब भी धर्म कहलाने का अधिकारी हो सकता है जब सैंकड़ों लोगों के सिरों को धड़ों से अलग करके ढेर लगा दे और फिर पूरी प्रक्रिया का वीडियो जारी करे? इतनी निर्दयता तो अपनी प्रजाति के लिए मांसाहारी पशुओं में भी नहीं होती फिर इंसान में कहाँ से आ गई और यह सब उस धर्म के नाम पर किया गया जिसका शाब्दिक अर्थ ही शांति होता है? तो क्या इस्लाम का नाम कुछ और रखना पड़ेगा क्योंकि अब यह नाम अपने अर्थ को खो चुका है?

मित्रों,हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सारा रक्तपात फिर से उसी धरती पर किया गया,उसी देश में किया गया जहाँ के एक शहर कर्बला में कभी यजीद नामक रक्तपिपासु की क्रूरता का विरोध करते हुए इमाम हुसैन शहीद हुए थे। अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक जहाँ देखिए मुसलमानों के कबीले आपस में खून की होली खेल रहे हैं। कहीँ सुन्नी हजारा को मार रहा है तो कहीं शिया सुन्नी को। हर मुस्लिम संप्रदाय यही समझता है कि उसका मत ही सही है और दूसरे मतवालों को जीने का कोई अधिकार नहीं है। यह असहिष्णुता और असहअस्तित्व ही सारे झगड़ों की जड़ है और इस झगड़े में इस्लाम को तो नुकसान हुआ ही है पूरी मानवता शर्मसार हुई है। इराक के नरपिशाचों ने तो छोटे-छोटे मासूम बच्चों तक की हत्या निहायत पशुता के साथ की है। कभी एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण के बेटे की श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा की गई हत्या की तस्वीरों ने पूरी दुनिया को विचलित कर दिया था लेकिन इराक में तो न जाने कितने मासूमों के गले पर बेहरमी से चाकू चलाए गए।

मित्रों,सवाल उठता है कि अफगानिस्तान,इराक और सीरिया में इस्लाम इतना बेरहम क्यों है? धर्म को मानव ने बनाया है धर्म ने मानव को नहीं बनाया फिर धर्म के नाम पर नरसंहार का क्या औचित्य है? अगर कुरान-शरीफ या किसी अन्य इस्लामिक पुस्तक में हिंसा को बढ़ावा देनेवाले वाक्य मौजूद हैं तो निश्चित रूप से उनको हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि वे अब सामयिक नहीं रह गए हैं। धर्म का काम शांति स्थापित करना होना चाहिए न कि खूरेंजी को बढ़ावा देना। पूरी दुनिया में सिर्फ सुन्नी या शिया ही शेष रह जाएँ तो क्या गारंटी है कि दुनिया में शांति स्थापित हो जाएगी और सुन्नी और शियाओं के गुट आपस में ही नहीं लड़ेंगे? याद रखिए दुनिया का प्रत्येक मानव प्रकृति की ओर से दुनिया को व मानवता को एक अमूल्य देन है। एक समय था जब मानव मानव के लिए मर रहा था और आज मानव मानव को मार रहा है? मानव का मानव के साथ प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है और जो भी धर्म इस धर्म को नहीं मानता है वह धर्म नहीं अधर्म है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)