मंगलवार, 19 अगस्त 2014

कमाल खान इन्सान हैं या पत्रकार या सिर्फ मुसलमान?

19 अगस्त,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इसमें कोई संदेह नहीं कि एनडीटीवी के रिपोर्टर कमाल खान कमाल के रिपोर्टर हैं। उनके बोलने का लहजा और शब्दों का चयन दोनों ही लाजवाब है लेकिन आज जब मैं फैजाबाद सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से,तड़पा-तड़पा कर एक लड़की की हत्या के मामले में उनकी रिपोर्ट देख रहा था तो लगा कि भले ही इन दोनों मामलों में कमाल खान कमाल हैं लेकिन वे कदाचित् इंसान हैं ही नहीं।
मित्रों,जहाँ तक मेरी परिभाषा का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ कि इंसान वही है जो सीने पर बंदूक टिकी होने पर भी,तोप के आगे बांध दिए जाने के बाद भी पीड़ितों का पक्ष ले न कि पीड़कों का और आज की अपनी रिपोर्ट में कमाल खान सीधे-सीधे पीड़कों का पक्ष ले रहे थे। श्री खान का मानना था कि यह मामला एक व्यक्तिगत मामला है क्योंकि पीड़क व दरिंदा नदीम बता रहा है कि हिन्दू लड़की उससे प्यार करती थी और उसकी मोबाईल की दुकान पर बराबर पैसा भरवाने आती थी। इधर कुछ दिनों से लड़की उस पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी इसलिए उसने उससे छुटकारा पाने के लिए उसकी हत्या कर दी और बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी। तो हमारे कमाल के धर्मनिरपेक्ष कमाल खान ने बिना किसी हीला-हवाली के इस दरिंदे की बात पर विश्वास कर लिया और अपना निर्णय सुना दिया कि यह मामला सांप्रदायिक तो है ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत है।
मित्रों,दूसरी तरफ दिवंगत पीड़िता ने पुलिस को अपने अंतिम बयान में कहा था कि फलां-फलां चार मुसलमान लड़कों ने मेरा जबर्दस्ती अपहरण किया फिर सामूहिक बलात्कार किया और बाद में उसके सारे बाल उखाड़ डाले,सारे दाँत तोड़ दिए और रीढ़ की हड्डी के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिया लेकिन कमाल खान जी को पीड़िता की बातों पर किंचित भी भरोसा नहीं है। क्यों? क्या इसलिए क्योंकि पीड़िता हिन्दू थी और हिन्दू तो झूठ ही बोलते हैं सच तो सिर्फ मुसलमान बोलते हैं? अब आप खुद भी निर्णय ले सकते हैं कि मेरी परिभाषा के अनुसार कमाल खान इंसानियत से कोसों दूर हैं। तो फिर कमाल खान हैं क्या? क्या वे पत्रकार हैं? लेकिन पत्रकार तो प्रत्येक मामले को सिर्फ गुण-दोष के आधार पर देखता है तो इस तरह तो कमाल खान जी तो पत्रकार भी नहीं रहे। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि यह मेरी परिभाषा है अब उनकी परिभाषा में पत्रकार को कैसा होना चाहिए यह तो वही बता सकते हैं।
मित्रों,हमारे कमाल खान जी वास्तव में न तो पत्रकार हैं और न ही इंसान वे तो सिर्फ मुसलमान हैं और मुसलमान भी कैसे? वे सूफी परंपरा वाले मंसूर बिन हल्लाज किस्म के मुसलमान नहीं हैं जिनको सऊदी अरब में अन हलक अर्थात् ब्रह्मास्मि की रट लगाने के चलते जिन्दा आग में झोंक दिया गया था,श्री खान इमाम हुसैन की तरह के मुसलमान भी नहीं हैं जिन्होंने पीड़ितों का पक्ष लेते हुए कर्बला के मैदान में बेनजीर शहादत दी थी। बल्कि श्री कमाल खान तो तालिबान,बोको हराम और आईएस किस्म के मुसलमान हैं जिनके अनुसार मुसलमान (खासकर सुन्नी) जो करे वही सही है और सिर्फ वही सही है। अन्यथा श्री खान को पीड़िता के दर्द के प्रति स्वानुभूति तो दूर सहानुभूति तो होती। उनके बोलने के लहजे से और बॉडी लैंग्वेज से तो यही लग रहा था कि पीड़िता जो कि एक प्रेंमिका भी थी (सिर्फ दरिंदे नदीम और महान पत्रकार कमाल खान के अनुसार) को शादी के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं था और चूंकि उसने यह अक्षम्य अपराध किया इसलिए नदीम का कर्त्तव्य था कि वो निहारत बहसीपना करके उसकी हत्या कर दे और सो उसने अपना कर्त्तव्य निभाया। फिर तो नदीम को राजकीय सम्मान मिलना चाहिए। है न कमाल खान जी?
मित्रों,मैं कमाल खान जी से पूछना चाहता हूँ कि अगर ऐसी हरकत किसी हिन्दू चांडाल चौकड़ी ने किसी मुसलमान लड़की के साथ किया होता तब भी क्या यह व्यक्तिगत मामला होता? वैसे मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि महिला चाहे हिन्दू हो या मुसलमान और पीड़क चाहे हिन्दू हो मुसलमान मेरा मानना है कि हर महिला का दर्द एकसमान होता है और हर पीड़क को सिर्फ एक ही दंड देना चाहिए-सड़क पर खड़ा करके पत्थरों से मार देना चाहिए और ऐसा होने पर पहला पत्थर मैं मारूंगा। तो मैं कह रहा था कमाल खान जी महाराष्ट्र सदन में रोटी खिलाने की घटना तो कमाल खान जी की नजरों में सांप्रदायिक थी लेकिन फैजाबाद का इंसानियत को शर्मसार कर देनेवाली घटना व्यक्तिगत है? हिन्दू लड़कियों को घर से निकलने से पहले लाख बार सोंचने को मजबूर और भयभीत कर देनेवाली घटना व्यक्तिगत है? वाह रे हमारे धर्मनिरपेक्ष चैनल,धर्मनिरपेक्ष पत्रकार और उनकी धर्मनिरपेक्षता। एक बात और आगे से जब भी किसी हिन्दू लड़की के साथ मुसलमानों द्वारा सामूहिक बलात्कार होगा तो धर्मनिरपेक्ष मीडिया,यूपी पुलिस और दरिंदे मिलकर यही कहेंगे कि लड़की लड़के से प्यार करती थी और ऐसे प्यार का अंजाम जो होना चाहिए वही हुआ। मतलब कि बलात्कार तो हुआ ही नहीं वह तो प्यार था यह बात अलग है कि इसे कई मानवता प्रेमी प्रेमियों ने मिलकर अंजाम दिया। यह ज्ञान आज मुझे श्री कमाल खान की रिपोर्टिंग देखकर ही प्राप्त हुआ है जिसके लिए मैं उनका बहुत-बहुत-बहुत-बहुत आभारी हूँ। तहेदिल से!


(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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