बुधवार, 20 मई 2015

मोदी के एक साल बनाम सौ दिन के केजरीवाल

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अब कुछ ही दिन बचे हैं जब भारत में रक्तहीन क्रांति को हुए एक साल पूरे हो जाएंगे। एक साल पहले भारत ने कांग्रेस की फूट डालो और शासन करो की नीति को पूरी तरह से नकारते हुए नरेंद्र मोदी की सबका साथ सबका विकास की नीति पर अपनी मुहर लगाई थी।
मित्रों,दूसरी तरफ दिल्ली में केजरीवाल सरकार के सौ दिन भी दो-तीन दिन में ही पूरे हो जाएंगे। जहाँ नरेंद्र मोदी ने शपथ-ग्रहण से पहले ही काम करना शुरू कर दिया था वहीं दिल्ली में केजरीवाल सरकार के काम शुरू करने का अभी भी इंतजार हो रहा है। हम यह तो नहीं कह सकते कि मोदी सरकार ने एक साल में ही उतना काम कर दिया है जितना कि उसको 5 साल में करना था लेकिन हम यह जरूर दावे के साथ कह सकते हैं कि मोदी सरकार ने पिछले एक साल में उतना काम तो जरूर किया है जितना कि एक साल में कर पाना किसी भी सरकार के लिए संभव था और जब आगाज अच्छा होता है तो अंजाम भी अच्छा ही होता है।
मित्रों,आपको याद होगा कि मोदी सरकार ने पहला फैसला लिया था कालाधन पर एसआईटी के गठन का। फिर भारत के इतिहास में पहली बार मेक इन इंडिया अभियान का आगाज किया गया । फिर लाई गई प्रधानमंत्री जनधन योजना और तत्पश्चात् एलपीजी सब्सिडी को सीधे ग्राहकों के खातों में डालने की शुरुआत की गई। और अब लाई गई है 12 रुपये सालाना वाली लाजवाब प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना एवं प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा बीमा योजना । आगे उम्मीद की जानी चाहिए सारी सब्सिडी आधारित योजनाओं की सब्सिडी सीधे लाभान्वितों के खातों में डाल दी जाएगी और इस तरह दिल्ली से चला 1 रुपये में से 1 रुपया ही लाभुकों तक पहुँचेगा न कि 15 पैसे। इसी तरह ऐसी उम्मीद भी की जानी चाहिए कि निकट-भविष्य में पूरी सरकार हमारे मोबाईल में होगी,हमारी मुट्ठी में होगी। सबकुछ ऑटोमैटिक, न तो रिश्वत देनी पड़ेगी और न ही टेबुल-टेबुल दौड़ना ही पड़ेगा। जहाँ तक कालेधन का सवाल है तो संस्कृत का एक श्लोक तो आपने पढ़ा ही होगा कि पुस्तकेषु तु या विद्या परहस्तगतं धनं। आपतकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनमं।। इसलिए अगर मोदी सरकार देसी-विदेशी कालाधन के निर्माण पर ही रोक लगा दे तो देश का कायाकल्प हो जाएगा। इसके लिए आयकर विभाग को चुस्त-दुरूस्त बनाना होगा और आयकर अधिकारियों की सम्पत्ति की जाँच करवानी होगी और कदाचित सरकार ऐसा करेगी भी। इसके साथ ही कृषि को लाभकारी बनाने की दिशा में भी कई योजनाएँ बनाई जा रही हैं जिनको जल्दी ही लागू किया जाएगा। अगर भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाना है तो हमें कृषि को लाभकारी बनाने के साथ-साथ कृषि पर से जनसंख्या के भार को भी कम करना होगा और मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना मेक इन इंडिया इसी दिशा में किया जा रहा सार्थक प्रयास है।
मित्रों,जहाँ सोनिया-मनमोहन-राहुल की सरकार इसलिए चर्चा में रहती थी क्योंकि उसमें रोज ही कोई-न-कोई घोटाला होता था वहीं आज विपक्ष शोर मचा रहा है सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी के कपड़ों को लेकर। बेचारे करें तो क्या करें सरकार के खिलाफ और कोई मुद्दा मिल भी तो नहीं रहा। हल्ला भी एक ऐसे नेता के कपड़ों को लेकर किया जा रहा है जो हर साल अपने कपड़ों की नीलामी का आयोजन करता है और उससे होनेवाली आय को हर साल सरकारी खजाने में जमा कर देता है। भारत के किसी भी अन्य नेता ने कभी ऐसा किया था क्या?
मित्रों,एक और कारण से मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला मचाया जा रहा है और वह है भूमि अधिग्रहण बिल। आरोप लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार किसान-विरोधी है और किसानों की जमीनों को छीनकर राबर्ट वाड्राओं और जिंदलों को सौंप देगी। आश्चर्य तो इस बात को लेकर है कि आरोप लगानेवाले वही लोग हैं जिन्होंने पिछले 50 सालों में किसानों की जमीनों को मनमानी शर्तों पर बिना कुछ दिए छीनने का काम किया है और वाड्राओं और जिंदलों को देने का काम किया है। केंद्र सरकार आश्वस्त कर रही है कि अधिगृहित भूमि सरकार के पास ही रहेगी,पहली बार प्रभावित किसानों को चार गुना मुआवजा दिया जाएगा और देश के इतिहास में पहली बार नौकरी भी दी जाएगी फिर भी चोर शोर मचा रहे हैं। वास्तव में ये लोग चाहते ही नहीं हैं कि देश का विकास हो और इनक्रेडिबल इंडिया वास्तव में इनक्रेडिबल इंडिया बने। नई सड़कों,नए उद्योगों,पावर-प्लांटों,रेलवे-लाइनों के लिए जमीन के अधिग्रहण की आवश्यकता है और विपक्ष नहीं चाहता कि मोदी सरकार भारत की आधारभूत संरचना का विकास करे,भारत को उत्पादन में,जीडीपी में दुनिया में नंबर एक बनाए जैसे कि भारत 1813 ईस्वी तक था। हम उम्मीद करते हैं कि चालू वित्त वर्ष में मोदी सरकार बहुत जल्दी किसी-न-किसी तरह भूमि अधिग्रहण बिल को संसद से पारित करवा लेगी और वास्तविक भारत के निर्माण की दिशा में रॉकेट की गति से अग्रसर होगी। मोदी सरकार को यह बात समझ लेनी चाहिए कि चाहे उनका मूलमंत्र सबका साथ सबका विकास कितना ही पवित्र क्यों न हो उनके मार्ग में,यज्ञ में राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों स्तर पर कुछ राहु(ल)-केतु हमेशा विघ्न डालते ही रहेंगे।
मित्रों,अब बात करते हैं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सौ दिन पूरे करनेवाली केजरीवाल सरकार की जिसने वेलेन्टाईन दिवस को पदभार संभाला था। पिछले सौ दिनों अगर इस सरकार ने कुछ किया है तो बस रायता फैलाने का काम किया है। पहले आपस में ही झगड़ने का काम किया और अब संविधान और केंद्र सरकार से झगड़ा कर रही है। हमने विधानसभा चुनावों के समय दिल्ली की जनता को इसकी बाबत सचेत भी किया था लेकिन जनता ने हमारी नहीं सुनी और एक ऐसी सरकार चुनी जो सरकार है ही नहीं बल्कि अराजकतावादियों का जमघट है फर्जी डिग्रीवाले फर्जी लोगों की भीड़ है। जिसके लिए कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं और बातों का क्या! केजरी सर के लिए न तो कसमों का कोई मोल है,न ही पुराने साथियों का और न तो चुनावी वादों का ही। केजरी बाबू तो यही चाहते हैं कि उनके मन-मुताबिक फिर से भारत के संविधान का निर्माण हो जिसके अनुसार राबर्ट मुगाबे,किंग जोंग इल या सद्दाम हुसैन के चुनावों की तरह प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति पद के लिए सीधा चुनाव हो और उस चुनाव में राबर्ट मुगाबे,किंग जोंग इल या सद्दाम हुसैन के चुनावों की तरह केवल केजरी सर ही उम्मीदवार हों।
(हाजीपुर टाईम्स पर प्रकाशित)

शनिवार, 9 मई 2015

आज मेरे पास न बंगला है, न गाड़ी है, न बैंक बैंलेन्स है और न माँ है

मित्रों,आज की ही तरह पहले भी मैं यही मानता था कि माँ के कदमों के नीचे स्वर्ग होता है। जब भी दुर्गा सप्तशती का पाठ करता तो सबसे ज्यादा श्रद्धाभाव से इसी श्लोक का पाठ करता कि माता कुमाता न भवति। दीवार फिल्म को दर्जनों बार टीवी पर देखता और सोंचता कि मेरी माँ भी फिल्म की सुमित्रा की तरह ही कभी मेरा साथ नहीं छोड़ेगी। तब भी नहीं जब मेरे पास कुछ भी नहीं होगा लेकिन हुआ उल्टा। आज मेरे पास न बंगला है, न गाड़ी है, न बैंक बॅलेन्स है और माँ भी नहीं है। आज मेरे पास अगर कुछ है तो वो हैं मेरे यानि रवि के कोरे आदर्श। खुद को बदलकर पूरी दुनिया को रामराज्य में बदल देने का सपना। खुद विष पीकर दुनिया को अमरत्व प्रदान करने का शिवभाव।
मित्रों,बचपन में मैं भी अंधेरे से बहुत डरता था। डरकर आँखें बंदकर लेता और माँ के सीने से चिपक जाता। सोंचता कि चाहे कोई भी संकट हो मेरी माँ उस संकट को खुद पर झेल लेगी लेकिन मुझे बचा लेगी। जब भी बीमार होता और माँ एक मिनट के लिए भी आँखों से ओझल हो जाती तो छटपटाने लगता ठीक वैसे ही जैसे पानी से बाहर निकाल देने पर मछली छटपटाने लगती है। मेरी माँ ने मुझे दूध पिलाकर नहीं बल्कि अपना खून पिलाकर पाला। कुछ बड़ा हुआ तो देखा कि घर-परिवार के मामलों के चलते माँ-पिताजी में झगड़ा अक्सर झगड़ा होता। मैंने कभी पिताजी का पक्ष नहीं लिया बल्कि हमेशा माँ का पक्ष लिया। हाँ,एक मुद्दे पर मैंने कभी माँ का समर्थन नहीं किया और वो मुद्दा था दो नंबर के पैसे का मुद्दा। मेरी माँ को न जाने क्यों एक नंबर के पैसों से ज्यादा दो नंबर के पैसों से प्यार था। वो हमेशा पिताजी को गलत तरीके से पैसे कमाने के लिए उकसाती लेकिन तब तक मैं पिताजी की ही तरह आदर्शवादी हो चुका था और हमेशा कहता कि नहीं माँ पिताजी ठीक कर रहे हैं। भले ही मेरे पाँव में चप्पल हो या नहीं,मेरे जिस्म पर अच्छे कपड़े नहीं हों,होली में पुराने कपड़ों से काम चलाना पड़े,सिर्फ पर्व-त्योहारों में मिठाई खाने को मिले लेकिन मुझे अपने पिता के आदर्शवाद पर तब भी गर्व था और आज भी है।
मित्रों,जब 1982 में मेरा हाथ टूटा तो मुझसे ज्यादा दर्द मेरी माँ को हुआ,जब 1991 में मैंने माँ से अंतिम विदा ले ली और उसके पैरों पर सर पटककर फिल्मी स्टाईल में बेहोश हो गया तब मेरी माँ पागलों की तरह जहर खोज रही थी। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि आज माँ दीवार फिल्म के रवि को छोड़कर विजय के घर जा बैठी है। साथ ही,साथ न देने पर आत्महत्या कर लेने की धमकी देकर मेरे पिताजी को भी साथ ले गई है। उसी पिताजी को जो कभी मुझसे एक दिन भी दूर नहीं रह पाते थे और ऐसा होने पर उनकी हालत अयोध्यापति दशरथ जैसी हो जाती थी। उसी पिताजी को जो मुझसे फोन पर बात करते-करते रोने लगते थे। मैं तो राम बन गया लेकिन अब कौशल्या और दशरथ को कहाँ से लाऊँ।
मित्रों,जो माँ कभी मेरे ऊपर तीनों लोक न्योछावर करती थी मेरी शादी के बाद वो क्यों मेरे सुख में सुख और मेरे दुःख में दुःख का अनुभव नहीं करती? क्यों जब भी मैं ससुराल पत्नी से मिलने जाता तो मेरी माँ कहती कि दिन रहते जाओ और शाम होने से पहले वापस आ जाओ? क्यों मेरी माँ मेरी शादी के बाद मुझे एक मिठाई या एक मैगी खाते हुए भी नहीं देखना चाहती? मैं तो हमेशा वही करता रहा जो करने के लिए उसने कहा फिर आज वो क्यों मुझे देखना तक नहीं चाहती? क्या इसलिए क्योंकि मेरी माँ मुझे अब बेटा नहीं अपना गुलाम मानने लगी है? क्या इसलिए क्योंकि मेरी माँ को अपने पैसों का घमंड हो गया है? क्या इसलिए क्योंकि मेरी माँ नहीं चाहती थी कि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ और उसकी गुलामी से मुक्त हो जाऊँ? क्या इसलिए क्योंकि मैं आज भी सच बोलता हूँ और प्यार का झूठा दिखावा नहीं करता बल्कि जो सच लगता है वही बोल देता हूँ? क्या इसलिए नहीं क्योंकि मेरी माँ का मानना था कि उसके पास पैसा रहेगा तो थक-हारकर बेटे-बहू की हाँ-में-हाँ मिलायेंगे ही और मैं जान दे सकता हूँ लेकिन हाँ-में-हाँ नहीं मिला सकता और तब तो हरगिज नहीं जब असत्यभाषण किया जा रहा हो या किसी तरह के अभिमान का प्रदर्शन किया जा रहा हो। मुझे याद है कि वर्ष 2007-08 में मेरी माँ के ऐसा कहने पर कि उसके पास पैसा होगा तो झक मारकर बहू प्यार करेगी ही मेरी छोटी बहन रूबी ने उसे चेताया था कि ऐसा नहीं होता है और नहीं होगा बल्कि कोई भी बहू व्यवहार को देखकर सास को पूजती है पैसे को देखकर नहीं।
मित्रों,यह सही है कि आज मैं अंधेरों से नहीं डरता बल्कि इंसानों के मन का अंधेरा मिटाने की कोशिश कर रहा हूँ। यह भी सही है कुछ ही दिनों में मेरे कारोबार से पैसा आना शुरू हो जाएगा लेकिन फिर भी माँ की कमी तो हमेशा रहेगी। आज भले ही रवि के पास बंगला, गाड़ी और बैंक बैंलेन्स नहीं है लेकिन कल होगा जरूर लेकिन शायद तब भी उसके पास माँ नहीं होगी और न ही पिताजी होंगे क्योंकि उन दोनों को विजय की झूठ,फरेब और धोखे की दुनिया कहीं ज्यादा रास आ रही है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

गुरुवार, 7 मई 2015

आपका कानून और आपकी अदालत आज भी अमीरों की रखैल है,मी लॉर्ड!

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आज से लगभग 100 साल पहले जिन दिनों हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था महात्मा गांधी ने भारत के कानून और अदालतों के बारे में गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये दोनों ही दुर्भाग्यवश अमीरों की रखैल बनकर रह गई हैं। और दुर्भाग्यवश हमें आज भी,आजादी के 70 साल बाद भी अपने आलेख में यह कहना पड़ रहा है कि आज भी हमारे देश में दो तरह के कानून हैं-एक अमीरों के लिए और दूसरे गरीबों के लिए। हमारी अदालतों का रवैया भी अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग दो तरह का है।
मित्रों,हम सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने 27 नवंबर,2014 को बिना किसी लाग-लपेट के स्वीकार किया कि भारत की न्याय-प्रणाली गरीब और कमजोरविरोधी है लेकिन हमें 13 फरवरी,2015 को यह देखकर तब भारी दुःख हुआ जब इन्हीं दत्तू साहब की खंडपीठ ने तीस्ता शीतलवाड़ को जेल जाने से बचाने के लिए कपिल सिब्बल से फोन पर बात करने के दौरान ही फोन पर ही याचिका स्वीकार करते हुए फोन पर ही यह आदेश सुना दिया कि तीस्ता शीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर हम रोक लगाते हैं।
मित्रों,दत्तू साहब ने न्यायपालिका की बीमारी तो बता दी लेकिन किया वही जिसको करने से बीमार की हालत और भी गंभीर होती हो। सवाल उठता है कि जब चीफ जस्टिस का रवैया ऐसा है तो कौन करेगा न्यायपालिका का ईलाज? कौन न्याय-प्रणाली को कमजोर और गरीबपरस्त बनाएगा।
मित्रों,इसी तरह कल भी वॉलीबुड अभिनेता सलमान खान को सजा मिलने के चंद घंटों के भीतर ही बंबई हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करके,सुनवाई करके जमानत दे दी। सजा मिलने में जहाँ 13 साल लग गए वहीं जमानत मिलने में 13 घंटे भी नहीं लगे। सवाल उठता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जो 11 लाख मुकदमे लंबित हैं उनपर भी इसी तरह तात्कालिकता क्यों नहीं दिखाई जाती? क्यों एक आम आदमी को दशकों तक कहा जाता है कि अभी आपके मुकदमें का नंबर नहीं आया है और किसी रसूखदार लालू,माया,तीस्ता या सलमान के मामले की सुनवाई तमाम लाइनों को तोड़कर तत्काल कर ली जाती है?
मित्रों,कल जब सलमान खान को सजा सुनाई गई तो हमें खुशी हुई कि आखिर अदालत ने 13 साल की देरी के बाद भी यह तो साबित कर ही दिया कि कानून के समक्ष क्या अमीर क्या गरीब,क्या रामदेव और क्या रमुआ सभी एक समान हैं लेकिन कुछ ही घंटों के बाद हाईकोर्ट ने हमारे सभी भ्रमों को तोड़ते हुए गांधी जी द्वारा एक शताब्दी पहले की गई शिकायत को ही उचित ठहरा दिया। सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चलेगा? कब तक पुलिस,सीबीआई,कानून और अदालतें चांदी के सिक्कों की खनखनाहट पर थिरकते रहेंगे? कब और कैसे कानून और अदालतें गरीबपरस्त होंगे? शायद कभी नहीं!!!

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 3 मई 2015

मोदी सरकार में कुछ तो गड़बड़ है

मित्रों,केंद्र में मोदी सरकार कुछ ही दिनों में अपना एक साल पूरा करने जा रही है। इस अवधि में सरकार ने कई उपलब्धियाँ प्राप्त कीं मगर सवाल उठता है कि क्या वे उपलब्धियाँ जनता की आकांक्षाओं पर पूरी तरह से पूरा कर पाईँ या कहीं-न-कहीं उम्मीद से कम रहीं। विदेशों में तो मोदी सरकार की खूब धूम रही लेकिन देश में वही धूम देखने को क्यों नहीं मिल रही है? पहले दिल्ली विधानसभा,फिर प. बंगाल निकाय चुनाव और अव यूपी के उपचुनावों में पार्टी का प्रदर्शन क्यों शर्मनाक रहा? अगर इसी तरह से राज्यों में भाजपा का फ्लॉप शो चलता रहेगा तो फिर कैसे पार्टी को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त होगा?
मित्रों,इसका सीधा मतलब है कि मोदी सरकार जिस तरह उम्मीदों के पहाड़ चढ़कर सत्ता में आई थी उनको पूरा कर पाने में कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई त्रुटि रह गई। यह त्रुटि नीतिगत स्तर पर तो है ही नीयत के स्तर पर भी है। हमने सरकार गठन के समय ही सरकार में दागियों को शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे लेकिन तब कहा गया था कि इनके ऊपर कड़ा अंकुश रखा जाएगा। कोई भी संसदीय प्रणाली में कोई भी सरकार वास्तव में वन मैन शो बनकर अच्छा काम कर ही नहीं सकती। सरकार चलाना एक टीम वर्क था,है और रहेगा। इसलिए अच्छे प्रदर्शन के लिए अच्छी और योग्य लोगों की टीम का होना जरूरी है। नरेंद्र मोदी कोई सुपरमैन नहीं हैं कि अकेले सारे मंत्रालयों की फाइलें रोजाना चेक कर लेंगे और उन पर निर्णय भी ले लेंगे। इसलिए मंत्रालयों में ईमानदार,भरोसेमंद और कर्मठ मंत्रियों का होना जरूरी है। कुछ इसी तरह के प्रयोग बिहार में नीतीश कुमार ने भी किया था और लंबे समय तक एक साथ 18 विभागों के मंत्री रहे थे लेकिन परिणाम क्या हुआ यह सारी दुनिया जानती है।
मित्रों,इसलिए नरेंद्र मोदी जी को चाहिए कि वे अपने मंत्रिमंडल की समीक्षा करें और नकारा मंत्रियों को बाहर निकालकर वास्तव में जो लोग ईमानदार,कर्मठ और देशभक्त हैं उनको मंत्री बनाएँ। मोदी सरकार की दूसरी कमजोरी मेरे हिसाब से रही है भ्रष्टाचार के मामले में कड़क और जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन नहीं कर पाना। यह सही है कि मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सामने नहीं आया है लेकिन सच यह भी है कि अभी भी ईमानदार अधिकारियों को परेशान किया जा रहा है। अशोक खेमका को तो हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी स्थानान्तरित कर दिया। अभी कल ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवाले कर्नाटक के वरिष्ठ आइएएस एमएन विजय कुमार को केंद्र सरकार की सहमति से राज्य सरकार ने जबरिया रिटायर कर दिया। इस तरह के कदमों से भ्रष्टाचार घटेगा नहीं बल्कि बढ़ेगा मोदी सरकार को यह समझना होगा। ईमानदार अधिकारियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए न कि दंडित।
मित्रों,फिर,भ्रष्टाचार के मामले में भाजपाशासित पंजाब, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। मोदी अपने इन क्षत्रपों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर कैसे अंकुश लगाएंगे अभी तक स्पष्ट नहीं है। मोदी कहते हैं कि सभी तरह की सब्सिडियों को सीधे लाभान्वितों के खातों में डाला जाएगा लेकिन ऐसा कब तक होगा कोई नहीं बताता। बैंक अधिकारी हों या प्रशासनिक अधिकारी बिना घूस लिए वे किसानों,छात्रों या अन्य ऋण के ईच्छुक लोगों का कोई काम नहीं करते हैं इस पर मोदी सरकार कैसे पूर्ण विराम लगाएगी? क्या ऋण देने की प्रक्रिया को ऑनलाईन नहीं किया जा सकता? सच्चाई तो यह है कि किसानों को केसीसी के जरिए मिलने वाले लाभ या सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा रिश्वत की भेंट चढ़ जाता है। इसी तरह आंगनबाड़ी,मध्याह्न भोजन योजना और मनरेगा के दी जानेवाली राशि का आधा से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा मोदी सरकार के एक साल हो जाने के बाद भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। जनवितरण प्रणाली तो भ्रष्टाचार की नाली बनी हुई है ही। आज भी कोई युवा नए उद्यम स्थापित करने से घबराता है क्योंकि बिना रिश्वत लिए ऋण नहीं मिलता और अगर सब्सिडी है भी तो सरकारी सब्सिडी घूस देने में ही चली जाती है।
मित्रों,हमने मोदी सरकार के गठन के समय ही कहा था कि भारत की जनता को मोदी सरकार से कोशिश नहीं चाहिए बल्कि परिणाम चाहिए। कोशिशें जनता ने बहुत देख लीं और अब इंतजार की हद की भी हद हो चुकी है। सरकार काम करे,परिणाम दे और तेजी से परिणाम दे। यह सही है कि मोदी सरकार यह दिखाना चाहती है कि वो कालाधन को विदेशों से वापस लाने के लिए प्रयासरत है लेकिन जनता को प्रयास नहीं चाहिए बल्कि जनता तो यह जानना चाहती है कि पिछले एक साल में कितना कालाधन विदेश से भारत में वापस लाया गया? फिर भले हीं भारत के हर व्यक्ति के खाते में 15-पन्द्रह लाख रुपये डाले नहीं जाएँ या भले ही करदाताओं को कर देने से कुछ दिनों के लिए मुक्ति न मिले लेकिन देश के खजाने में तो पैसा वापस आए। साथ ही मोदीजी को और उनकी मंडली को यह भी समझ लेना होगा कि राजनीति में जुमले नहीं चलते इसलिए भाषण देते समय जुमलों से बचना चाहिए। इसी तरह मोदी सरकार के एक मंत्री जितेंद्र सिंह ने सरकार गठन के तत्काल बाद कहा कि धारा 370 पर पुनर्विचार किया जाएगा और अब कुछ ही दिन पहले वही मंत्री संसद में कहते हैं कि धारा 370 पर पुनर्विचार की सरकार की कोई योजना नहीं है। अगर यही करना था तो फिर सालभर पहले इस संबंध में सनसनीखेज बयान देने की क्या आवश्यकता थी? इसी तरह नरेंद्र मोदी ने खुद ही लोकसभा चुनावों के समय कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी बोरिया-बिस्तर बांध लें लेकिन अब तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा। शायद यह भी एक वजह है कि भाजपा को नगरीय निकाय चुनावों में प. बंगाल में धूल चाटनी पड़ी है जबकि वह वहाँ सरकार गठन के सपने देखने लगी थी। इसी तरह सैनिकों और पूर्व सैनिकों को भी मोदी सरकार के एक साल पूरा कर लेने के बाद भी एक रैंक एक वेतन और पेंशन का इंतजार है।
मित्रों,मोदी सरकार का सबसे ज्यादा नुकसान पिछले एक साल में अगर किसी ने किया है तो वो लोग हैं मोदी के सबसे बड़े कथित हितचिंतक बड़बोले नेता। चाहे वो आदित्यनाथ हों या साक्षी महाराज या फिर गिरिराज सिंह या साध्वी निरंजना ये लोग रह-रहकर ऐसी भाषा का प्रयोग करते रहते हैं जिसको किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि अपनी इस लगातार विषवमन करनेवाली मंडली की जुबान पर ताला लगाए फिर चाहे इसके लिए उनको कितने ही सेंटर फ्रेश क्यों न खिलाना पड़े। इसी तरह कई बार मोदी जी अपने इन हितचिंतकों की बकवास पर पूरी तरह से चुप्पी लगा जाते हैं वो भी कुछ इस तरह कि कई मर्तबा तो गुमाँ हो जाता है कि क्या अभी भी मनमोहन सिंह ही भारत के प्रधानमंत्री हैं?
मित्रों,एक गलती मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल और कृषकों के मामले में भी की है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले को इतना लंबा खींचने की आवश्यकता ही नहीं थी। दोबारा अध्यादेश लाने की तो कतई जरुरत नहीं थी जबकि उसको पता है कि उसका राज्यसभा में बहुमत नहीं है। अब अगर विपक्ष ने विधेयक को फिर से राज्यसभा में पारित नहीं होने दिया तो क्या वो तीसरी बार अध्यादेश लाएगी? बल्कि सरकार को चाहिए था कि वो शुरू में ही संसद का संयुक्त सत्र बुलाती और विधेयक को पारित करवा लेती। सरकार की दूसरी विफलता यह है कि वो हताश-निऱाश हो चुके किसानों के मन में आशा का संचार नहीं कर पाई है। कृषि को अगर लाभकारी बनाना है तो उत्पादकता में क्रांतिकारी बढ़ोतरी करनी होगी ही साथ ही कृषि पर से जनसंख्या के भार को भी कम करना होगा और ऐसा तब तक संभव नहीं है जबतक कि देश में बड़े पैमाने पर छोटे-बड़े उद्योग-धंधों की स्थापना नहीं की जाती और उद्योग-धंधों की बड़े पैमाने पर तब तक स्थापना नहीं हो सकती जब तक कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को संभव न बना दिया जाए। वर्तमान कानून जो 2013 में बना था के तहत तो भूमि-अधिग्रहण कर पाना लगभग असंभव ही कर दिया गया है। मैं यह नहीं कहता कि जनता से जबर्दस्ती जमीन छीन ली जाए लेकिन स्थिति ऐसी भी नहीं हो कि विकास-कार्यों के लिए जमीन प्राप्त कर पाना नितांत असंभव ही हो जाए। मोदी सरकार को यह समझना होगा कि देश के युवा प्रतीक्षा कर पाने की स्थिति में कतई नहीं हैं इसलिए मेक इन इंडिया पर काम तेजी से और तुरंत होना चाहिए। बार-बार भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश लाना सिर्फ समय की बर्बादी है और इसके अलावा और कुछ नहीं क्योंकि अब तक इस कानून को बन जाना चाहिए था और मेक इन इंडिया का काम पूरे जोर-शोर से शुरू हो जाना चाहिए था।
मित्रों,इसके साथ ही गांव-गांव में अनाज गोदामों,शीतभंडार गृहों की व्यवस्था भी करनी होगी और कृषि के क्षेत्र से बिचौलियों को समाप्त करना होगा तभी किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल पाएगा और उपभोक्ताओं को भी महंगाई से स्थायी रूप से निजात मिलेगी। साथ ही अगर हो सके तो कृषि और कृषि संबंधी कार्यों में केंद्र सरकार के दखल को बढ़ाना होगा क्योंकि देखा जाता है राज्य सरकार के मातहत काम करनेवाला भ्रष्ट प्रशासन केंद्र सरकार के सद्प्रयासों को असफल कर देता है। आज ही यूपी में एक किसान की उस समय हृदयगति रूक जाने से लेखपाल के दरवाजे पर ही मौत हो गई जब उस प्राकृतिक आपदा के मारे किसान से लेखपाल ने मुआवजे का चेक देने के बदले रिश्वत की मांग कर दी।

मित्रों,इसी तरह से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब ने यह कह तो दिया है कि मुकदमों के निबटारे के लिए समय-सीमा का निर्धारण किया जाएगा लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस दिशा में सहयोग नहीं करतीं। अच्छा होता कि नया कानून बनाकर अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्ति को भी केंद्र या सर्वोच्च न्यायालय के जिम्मे कर दिया जाता। साथ ही न्यायालयों में जो प्रक्रियागत देरी होती है को भी रोकना होगा और प्रक्रिया को सरल करना होगा। इस दिशा में भी मोदी सरकार ने पिछले एक साल में कुछ नहीं किया है।

मित्रों,तीसरी बात कि मोदी जी बार-बार कौशल-विकास पर जोर दे रहे हैं लेकिन देश की सच्चाई क्या है? जब तक अवसर पैदा नहीं किया जाएगा तब तक कुशलता प्राप्त लोगों को योग्यतानुसार वेतन पर नौकरी मिलेगी कैसे? नरेंद्र मोदी बार-बार वैश्विक स्तर पर डॉक्टरों,इंजीनियरों की कमी का जिक्र करते हैं लेकिन हम तब तक दुनिया को अच्छे डॉक्टर और इंजीनियर नहीं दे सकते जब तक हम हमारी शिक्षा-प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन नहीं करें या फिर सरकारी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और विश्वस्तरीय न कर दें। हम भारत को तब तक विश्वगुरू नहीं बना सकते जब तक देश में शोध और अनुसंधान का माहौल नहीं बनेगा। क्या कारण है कि हमारे देश में नोबेल जीतने लायक वैज्ञानिक खोज नहीं हो पा रही है या विश्वस्तरीय शोध-अनुसंधान नहीं पा रहे हैं?
मित्रों,अंतिम बात यह कि मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को राज्यों में गलत लोगों के साथ गठबंधन करने से बचना चाहिए था। भाजपा ने पहले महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और बाद में जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन करके भयंकर गलती की है। शिवसेना बराबर बेलगाम बयान देती रहती है तो पीडीपी अलगाववादियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपना रही है जिससे भाजपा के साथ-साथ मोदी सरकार की भी फजीहत हो रही है। इससे तो अच्छा रहता कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन ही रहता।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित