रविवार, 30 अगस्त 2015

पोस्ट डेटेड चेक है नीतीश कुमार का पैकेज

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों बिहार में पैकेज-पैकेज का खेल चल रहा है। तेरा पैकेज इतने का तो मेरा इतने का। मगर सवाल उठता है कि पैकेज होता क्या है? क्या अपने घर में रखे पैसे को विभिन्न मदों में खर्च करना पैकेज देना होता है या फिर पैकेज का मतलब है कहीं बाहर से पैसों की प्राप्ति कर फिर उसको खर्च करना? जहाँ तक मैं समझता हूँ कि अपने दांयें हाथ से पैसे उठाकर बांयें हाथ को दे देने को किसी भी तरह से पैकेज देना तो नहीं ही कहा जाना चाहिए।
मित्रों,फिर भी अगर हम यह मान भी लें कि नीतीश कुमार जी ने बिहार के खजाने से बिहार के लोगों को 2 लाख करोड़ से ऊपर का पैकेज दे दिया तो क्या बिहार सरकार इस पैकेज तो तुरंत लागू करने जा रही है? इतिहास के आईने में अगर हम झाँकें तो पाते हैं कि 1942 में सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन ने भारत का दौरा किया था। मिशन का कहना था कि हम भारत को डोमिनियन स्टेटस तो देंगे लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति व विजय-प्राप्ति के बाद। जाहिर है कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्द में किसी भी तरह भारतीयों की सहायता चाहती थी। चूँकि प्रथम विश्वयुद्ध से पहले और के दौरान किए गए अपने वादों से ब्रिटिश सरकार युद्ध जीतने के बाद मुकर चुकी थी और उसका दमन-चक्र पहले से भी ज्यादा भीषण हो गया था इसलिए कांग्रेस ने अतीत से सीख लेते हुए क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को पूरी तरह से नकार दिया। गांधी ने प्रस्ताव को पोस्ट डेटेड चेक की संज्ञा दी अर्थात् यह प्रस्ताव एक ऐसे बैंक चेक के समान है जिस पर वर्तमान की नहीं बल्कि भविष्य की तारीख डाली गई है और वह बैंक भी ध्वस्त हो जानेवाला है।
मित्रों,नीतीश कुमार जी का कथित पैकेज भी एक पोस्ट डेटेड चेक के समान है जिसको जनता तभी भुना पाएगी जब वो नीतीश  कुमार जी की बातों पर भरोसा करके एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज कर देती है। अगर हम सन् 1942 के भारत से आज के बिहार की तुलना करें तो पाते हैं क्रिप्स मिशन यानि नीतीश सरकार बिहार के लोगों से कह रही है कि हमने जो-जो पिछली बार नहीं किया इस बार जरूर कर देंगे लेकिन पहले हमें जिताओ तो। तब तो भारत की जनता ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को सिरे से नकार दिया था तो क्या इस बार बिहार की जनता पोस्ट डेटेड चेक पर भरोसा कर लेगी? दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के पैकेज पर अमल शुरू हो भी गया है।
मित्रों,अब हम जरा-सा विश्लेषण कर लेते हैं कथित पैकेज में निहित कथ्य का भी। वास्तव में यह पैकेज सिर्फ व्यय का पैकेज है इसमें आय की बात कहीं की ही नहीं गई है। पैकेज में यह तो कहा गया है हम यह फ्री देंगे,वह फ्री देंगे लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि हम इतने उद्योग स्थापित करेंगे या बिहार की आय में इतने की वृद्धि करेंगे या फिर इतने लोगों को रोजगार देंगे। पूरी दुनिया जानती है कि बिहार के युवाओं को रोजगार चाहिए न कि फ्री की वाई-फाई,फ्री का बिजली-पानी। बिहार के युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहिए बल्कि रोजगार चाहिए,औद्योगिकृत-विकसित बिहार चाहिए जिसमें वे स्वाभिमान के साथ अपने घर-परिवार के साथ एक अच्छी और स्तरीय जिंदगी जी सकें। वास्तव में जिस दिन ऐसा होगा उसी दिन से बिहार स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर जी सकेगा। एक क्या हजारों स्वाभिमान रैलियों का आयोजन भी बिहार के प्राचीन और मध्यकालीन स्वाभिमान को पुनर्स्थापित नहीं कर सकती।
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

बेतुकी है वन रैंक वन पेंशन की मांग

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आप सोंच रहे होंगे कि मुझे क्या हो गया है। क्या अब मैं देशभक्त नहीं रहा? अगर आप ऐसा सोंच रहे हैं तो बिल्कुल गलत सोंच रहे हैं। दरअसल मैं इस तरह की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरा दिल आज भी देश के लिए धड़कता है। दरअसल आप रोज टीवी पर देखते हैं कि सैनिक वन रैंक वन पेंशन की मांग कर रहे हैं। टीवी वाले बस इतना ही दिखाते हैं और आप इतना ही देखते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि वन रैंक वन पेंशन की मांग है क्या और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
मित्रों,मैं पहेलियाँ बुझाने में यकीन नहीं रखता इसलिए मैं आपको बताता हूँ कि वन रैंक वन पेंशन की मांग क्या है और इसे लागू करने से पिछली सरकार क्यों हिचकती थी और वर्तमान सरकार भी क्यों संकोच कर रही है। दरअसर सैनिकों की मांग है कि जो व्यक्ति कर्नल या किसी भी पद से 1980 में 250 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हुआ उसका पेंशन उनके उन समकक्षों के बराबर हो जो अब एक-डेढ़ लाख प्रतिमाह के वेतन पर रिटायर हो रहे हैं।
मित्रों,आप जानते हैं कि हमारे देश में सारी सरकारी नौकरियों में पेंशन का निर्धारण उनके तत्कालीन वेतन के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए मेरे पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह,कॉलेज रीडर के पद से वर्ष 2003 में 18000 रुपये के वेतन पर रिटायर हुए। अभी उनको 45000 का पेंशन मिल रहा है लेकिन अभी दो महीने पहले रामसुरेश गिरि रीडर के पद पर ही सवा लाख के वेतन पर रिटायर हुए हैं और उनका पेंशन 60 हजार से भी ज्यादा है। अब अगर पिताजी को वन रैंक वन पेंशन चाहिए तो उनका पेंशन भी कम-से-कम 60 हजार तो होना ही चाहिए।
मित्रों,अब सोंचिए कि अगर सैनिकों की वन रैंक वन पेंशन की मांग को केंद्र सरकार ने मान लिया तो क्या अन्य विभाग के लोग भी अपने लिए यही मांग नहीं करेंगे? फिर देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा? वैसे भी अगले साल नए वेतनमान के आने के बाद अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़नेवाला है। क्या वन रैंक वन पेंशन लागू होने के बाद रचनात्मक कार्यों के लिए देश के खजाने में पर्याप्त पैसा बचेगा? फिर देश के विकास का क्या होगा? हो सकता है कि सैनिकों की मांग सैद्धांतिक रूप से सही हो लेकिन क्या वह व्यावहारिक तौर पर सही है? इसलिए सैनिकों को जिद छोड़ते हुए उस देश की भलाई के लिए बीच में कहीं समझौते को मान लेना चाहिए जिस देश के लिए उन्होंने अपना खून बहाया है। दरअसल वन रैंक वन पेंशन की मांग मधुमक्खी का छत्ता है जिस पर हाथ डालने का मतलब होगा सभी विभागों के सारे सरकारी पेंशनधारियों को धरना,प्रदर्शन,अनशन और आंदोलन के लिए भड़काना,प्रेरित करना। वैसे इसके लागू होने से मुझे भी लाभ होगा क्योंकि मेरे पिताजी भी पेंशनधारी हैं लेकिन मुझे देश की कीमत पर यह लाभ नहीं चाहिए,कतई नहीं।

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गुरुवार, 27 अगस्त 2015

कौन कहता है बिहार बीमारू राज्य नहीं है?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक समय था जब भारत के अर्थशास्त्री बिहार,मध्य प्रदेश,राजस्थान और उत्तर प्रदेश को भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बोझ मानते थे और इनको इकट्ठे बीमारू राज्य कहा करते थे। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य अब दावा करने लगे हैं कि वे बीमारू नहीं रहे लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि ठीक ऐसा ही दावा इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बिहार के बारे में कर रहे हैं। शायद इसी तरह के घटनाक्रम में कभी यह कहावत बनी थी कि जब सारी लड़कियाँ नृत्य करने लगीं तो लंगड़ी-लूली ने कहा कि इनसे अच्छा नृत्य तो वो कर लेती है।
खैर,अब नीतीश कुमार उर्फ बिहार कुमार (कृपया इस नामकरण को मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार के प्रसंग से जोड़कर न देखें ) को जो दावा करना था उन्होंने कर लिया,दस साल तक जो हवाबाजी करनी थी कर ली। हवाबाजी में तो पूरी वसुधा पर उनका कोई जोड़ ही नहीं है। लेकिन क्या नीतीश कुमार जी बताएंगे कि बिहार बीमारू राज्य कैसे नहीं रहा? जहाँ भारत की प्रति व्यक्ति औसत आय 80388 रुपया है वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति औसत आय 31229 रुपया है। जहाँ बिहार में बिजली की प्रति व्यक्ति खपत 144 किलोवाट प्रति घंटा है. वहीं देश में औसतन प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 927 किलोवाट प्रति घंटा है। जहाँ राज्य की साक्षरता का औसत है 63.8 फीसदी है वहीं राष्ट्रीय औसत 74 फीसदी।  जहाँ बिहार में 43.85 फीसदी लोग अनपढ़ हैं वहीं देश का औसत 35.73 फीसदी है। जहाँ बिहार के 70 फीसदी ग्रामीण परिवार दिहाड़ी मजदूर हैं, वहीं देश का औसत 51 फीसदी है। जहाँ भारत में सिंचित क्षेत्र का औसर 28 प्रतिशत है वहीं कृषि योग्य कुल 93.6 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र 15 लाख हेक्टेयर भूमि ही वास्तविक रूप से सिंचित है। आज नीतीश कुमार उर्फ बिहार कुमार बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं तो लगे हाथ वे यह भी बता दें कि आज उनके दस साल के शासन के बाद भी राज्य में कितने प्रतिशत सरकारी नलकूप चालू अवस्था में हैं? जहाँ भारत में गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करनेवाले लोगों की संख्या जहाँ 36 प्रतिशत वहीं बिहार में आजादी के 70 साल बाद भी 55 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और जहालत और जलालत की जिंदगी जी रहे हैं।
मित्रों,अब बात करते हैं उद्योगों की। बिहार में देश की आबादी 9 प्रतिशत है जबकि राज्य के कारखानों से रोजगार पाने वाले लोगों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रलय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में 1.79 लाख कारखाने हैं जिनमें से बिहार में मात्र तीन हजार कारखाने ही हैं। बिहार में एक कारखाने से औसतन 40 लोगों को रोजगार मिल रहा है जबकि देश में यह औसत 72 है। राज्य में एक भी ऐसा कारखाना नहीं है जो 2,000 से अधिक लोगों को रोजगार देता हो। प्रदेश में जो भी कारखाने हैं उनमें से आधे ऐसे हैं जिनमें 15 से कम लोगों को रोजगार मिलता है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में बिहार में बरौनी रिफाइनरी ही प्रमुख औद्योगिक इकाई है। इसके अलावा छिटपुट खाद्य उत्पाद बनाने वाली इकाइयां हैं और नीतीश कुमार हैं कि बिहार को बीमारू मानने को तैयार ही नहीं हैं। जो राज्य पूरे देश में सबसे पिछड़ा है अगर उसे बीमारू नहीं कहा जाएगा तो क्या महाराष्ट्र,गुजरात और पंजाब को बीमारू कहा जाएगा? कुछ क्षेत्र जैसे शिक्षा ऐसे भी हैं जिनमें बिहार की स्थिति लालू-राबड़ी के आतंक-राज के मुकाबले और खराब ही हुई है। भले ही बिहार में साक्षर लोगों की संख्या बढ़ी है लेकिन सरकारी स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा का स्तर गिरा ही है।
मित्रों,हम नीतीश कुमार उर्फ बिहार कुमार जी से सविनय निवेदन करते हैं कि वे बिहार की हकीकत को देखते हुए मान लें कि बिहार आज से 25-30 साल पहले भी बीमारू था और आज भी बीमारू है। उनके जिद पकड़ने से सत्य और तथ्य बदल नहीं जाएगा। बिहार अधिकांश क्षेत्रों में 5-6 दशक पहले भी नीचे से अव्वल था और आज भी है लेकिन नीतीश कुमार जी को गांठ बांध लेनी चाहिए कि आगे ऐसा नहीं होगा। बिहार अब जाग चुका है और जनता परिवार कैसे बिहार को खंता (गड्ढे ) में फेंक देना चाहती समझ चुका है। अब बिहार नीचे से अव्वल नहीं ऊपर से अव्वल बनना चाहता है। बिहार को अब लालटेन की रोशनी और तीर-धनुष का युग नहीं चाहिए और न ही भारत-विरोधी खूनी पंजा चाहिए बल्कि अब हर बिहारी को विकास चाहिए,24 घंटे बिजली चाहिए,हर खेत को पानी चाहिए,हर हाथ को बिहार में ही काम चाहिए,हर बच्चे को साईकिल और पैसे के बदले बेहतरीन शिक्षा चाहिए,दिवाला नहीं दिवाली चाहिए,कमल पर सवार लक्ष्मी चाहिए।

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बुधवार, 12 अगस्त 2015

मोदी विरोध के बहाने देश को नुकसान पहुँचा रहे हैं लालू-नीतीश-कांग्रेस

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,नाना पाटेकर ने यशवंत फिल्म में एक डॉयलॉग कहा था कि गिरना है तो झरने की तरह गिरो लेकिन हमारे कुछ राजनेता कुत्ते की तरह गिर गए हैं। इनलोगों की प्राथमिकता सूची में देशहित कहीं है ही नहीं। वे दिखाने के लिए तो विरोध कर रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी का लेकिन वास्तविकता यह है कि वे देश को भी नुकसान पहुँचाना चाहते हैं और पहुँचा भी रहे हैं। क्या लालू-नीतीश और कांग्रेस को पता नहीं है कि संसद के ठप्प होने से सरकार अर्थव्यवस्था को गति देनेवाले दोनों महत्वपूर्ण विधेयकों जीएसटी बिल और भूमि अधिग्रहण बिल को पास नहीं करवा पाएगी और जब तक ये दोनों विधेयक पारित नहीं होते हैं देश में देसी-विदेशी निवेश को द्रुत-गति मिलना असंभव है? निश्चित रूप से लालू-नीतीश और कांग्रेस को यह पता है। तो फिर संसद को ठप्प करने का क्या मतलब है? क्या इसका यह मतलब नहीं है कि ये नेता भारत को बर्बाद कर देना चाहते हैं। इनको यह भी पता है कि पीएम मोदी जो रोजगार-निर्माण और अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जाने जाते हैं संसद को ठप्प कर देने से ऐसा नहीं कर पाएंगे और तब उन पर इस बाबत आरोप लगाना आसान हो जाएगा कि कहाँ कि 10 प्रतिशत की विकास दर और कहाँ हैं रोजगार?
मित्रों,दुर्भाग्यवश उसी फिल्म में नाना पाटेकर ने एक और डॉयलॉग बोला था कि एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है। क्या मुट्ठी-भर राजद,जदयू और कांग्रेस के सदस्यों ने अपनी मनमानी और देशविरोध नीति से पूरे भारत को हिजड़ा नहीं बना दिया है? आखिर कब तक हम आँखें बंद कर देखते रहेंगे कि चंद लोगों ने किस तरह भारत के विकास के पहिए को अवरूद्ध करके रख दिया है? एक अकेले जीएसटी के आने से भारत की जीडीपी में 2 प्रतिशत का उछाल आ जाएगा। आखिर कब तक हम इन भारतविरोधी पार्टियों की मनमानी को बर्दाश्त करते रहेंगे? लालू-नीतीश को अगर बिहार और बिहारियों को अमीर बनाना है तो उनको किसकी तरफ होना चाहिए? उनलोगों की तरफ जिनकी राजनीति आजादी के बाद से ही गरीबों को गरीब बनाकर रखने से चलती है या फिर उनलोगों के पाले में जो सबको अमीर बनाना चाहते हैं? कल तो इन विपक्षी दलों ने हर सीमा को पार कर लिया। अब इनको मनाने का समय बीत चुका है। अगर ये लोग चाहते हैं कि प्रत्येक विधेयक को संयुक्त सत्र बुलाकर ही पास कराया जाए तो मोदी-सरकार बिना ज्यादा सोंच-विचार किए ऐसा भी करना चाहिए और ऐसे प्रत्येक कदम उठाने चाहिए जिससे देश के आर्थिक विकास को नई गति मिले क्योंकि देश संसदीय परंपराओं से भी ऊपर है,सबसे ऊपर है।

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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

सावधान,मोदी जी,ई बिहार है,जुबान संभाल के!

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जब लोकसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब नरेंद्र मोदी अक्सर कहा करते थे कि मेरे हिसाब से पानी से आधा भरा गिलास पूरा भरा हुआ है यानि कि नरेंद्र मोदी जी सुपर आशावादी हैं लेकिन बिहार की दो रैलियों में नरेंद्र मोदी जी ने जो भाषण दिया है वह कदापि उनके इस पूर्व के बयान का समर्थन नहीं करता। उनके दोनों ही भाषणों में घबराहट है,पराजय का भय है मगर आत्मविश्वास नहीं है। मैं यह नहीं कहता कि मोदी का गिलास पूरी तरह से खाली है लेकिन आधा खाली तो जरूर है।
मित्रों,इन दोनों ही भाषणों में वही गलती की है जो कभी उन्होंने दिल्ली में केजरीवाल को अराजकतावादी और धरना विशेषज्ञ बताकर किया था। सकारात्मक सोंचवाले लोग दूसरों की आलोचना करने में समय बर्बाद नहीं करते बल्कि जनता को यह बताते हैं कि वे राज्य को क्या देने जा रहे हैं या उनकी झोली में राज्य के लिए कौन-कौन सी योजनाएँ हैं। मगर बिहार में मोदी जी ने अपने दोनों ही भाषणों में गाली-गलौज ही ज्यादा की है। शायद मोदी जी को पता नहीं है कि बिहार में गाली-गलौज को कितना बुरा माना जाता है और अक्सर गाली-गलौज के चलते हत्या तक हो जाया करती है। इसलिए उनको जो भी बोलना चाहिए जुबान संभाल के बोलना चाहिए अन्यथा भगवान न करे उनको एक बार फिर से दिल्ली का अनुभव करना पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो वो भारत के पीएम के लिए तो झटका होगा ही बिहार की जनता के लिए भी दुःस्वप्न के समान होगा और बर्बाद बिहार और भी बर्बाद हो जाएगा।
मित्रों,इसलिए हम नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध करते हैं कि जब वे अगली बार बिहार आएँ तो पूरी तरह भरे गिलासवाला भाषण दें। जनता को गठबंधन और गठबंधन करनेवालों की हकीकत पता है और उनसे ज्यादा पता है इसलिए आपादमस्तक कीचड़ में डूबे लोगों पर ढेला फेंकने की कोई जरुरत नहीं है बल्कि उनको सिर्फ यह बताना चाहिए कि वे बिहार के लिए क्या करने जा रहे हैं और इसके लिए उनके पास किस तरह की योजनाएँ हैं। मोदी जी पहले अपने मन में विश्वास उत्पन्न करें कि विकास के मुद्दे पर भी चुनाव जीते जा सकते हैं जनता खुद ही उनपर विश्वास कर लेगी। भयभीत व्यक्ति कभी जंग नहीं जीतते क्योंकि घबराहट बुद्धि और प्रतिउत्पन्नमतित्व को नष्ट कर देती है। कभी-कभी अतिआत्मविश्वास भी नुकसानदेह होता है क्योंकि वो आदमी को लापरवाह बना देता है।
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रविवार, 9 अगस्त 2015

लालू और नीतीश में कौन चंदन और कौन सांप?

मित्रों,पिछले दिनों रहीम कवि का एक दोहा बिहार के राजनैतिक जगत में काफी चर्चा में रहा। एक जिज्ञासु ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से सवाल पूछा था कि लालू जी के साथ रहकर आप किस तरह बिहार का विकास करवा पाएंगे। जवाब में लालू जी ने रहीम कवि का दोहा जड़ दिया कि जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग,चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग। जाहिर है कि न तो सवाल का और न ही जवाब का भाजपा से कोई लेना-देना था लेकिन जब नीतीश कुमार की तरफ से दोहे का भावार्थ बताया गया तो कहा गया कि उन्होंने तो भाजपा को सांप कहा था। खैर बिहार की जनता इतनी हिंदी तो जरूर जानती है कि वो समझ सके कि नीतीश जी ने किसको सांप और किसको चंदन कहा था।
मित्रों,वास्तविकता तो यह है कि लालू जी और नीतीश जी में से कोई भी चंदन नहीं है या चंदन कहे जाने के लायक नहीं है। तो क्या दोनों ही सांप हैं? जैववैज्ञानिक रूप से तो नहीं लेकिन अगर हम दोनों की करनी को देखें तो अवश्य ही दोनों सांप हैं। दोनों घनघोर अवसरवादी हैं। समय आने पर,अपने स्वार्थ के लिए दोनों किसी से भी हाथ मिला सकते हैं या किसी की भी गोद में जाकर बैठ सकते हैं। दोनों ने ही अपने-अपने समय में बिहार की जनता को धोखा दिया है,डँसा है।
मित्रों,आपको याद होगा कि 1990 के विधानसभा चुनाव लालू जी ने कांग्रेस-विरोध का नारा देकर जीता था। मगर हुआ क्या 1995 आते-आते लालू जी ने बिहार की जनता के जनादेश का अपमान करते हुए,बिहार की जनता को धोखा देते हुए उसी कांग्रेस के हाथ से हाथ मिला लिया जिसके खिलाफ लड़कर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे। मैं लालू जी को सलाह देना चाहूंगा कि कृपया बदली हुई परिस्थितियों में वे अपनी बड़ी बेटी मीसा का नाम भी बदल दें क्योंकि अब यह नाम शोभा नहीं देता है। अब यह नाम उनके कांग्रेस-विरोध को नहीं दर्शाता बल्कि उनकी अवसरवादिता का परिचायक बन गया है।
मित्रों,आपको यह भी याद होगा कि इन्हीं लालू जी के जंगल राज से बिहार को मुक्त करवाने के लिए मुक्तिदाता बनकर आए बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी लेकिन इन्होंने भी वही किया जो कभी लालू जी ने बिहार की जनता के साथ किया था यानि धोखा। ये श्रीमान भी आजकल उन्हीं लालू जी की गोद में जा बैठे हैं जो इनके बारे में कहा करते थे कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको नीतीश ने ठगा नहीं,या फिर नीतीश कुमार के पेट में भी दाँत है। हमने तो तब तक मुँह में ही दाँत देखे-सुने थे लालूजी ने पहली बार बताया था कि किसी-किसी के पेट में भी दाँत होते हैं। खैर,व्यक्तिगत रूप से नीतीश जी ने जिसको धोखा दिया सो दिया अब तो पूरे बिहार को भी इन्होंने नहीं छोड़ा। जनादेश का इतना बड़ा अपमान कि बिहार की जनता ने जिससे मुक्ति के लिए मत दिया उसी के हो बैठे! कथनी और करनी में इतना बड़ा फर्क! छोटा-मोटा नेता पाला बदले तो क्षम्य है लेकिन जिसको राज्य की जनता ने जिससे बचाने के लिए राज्य की बागडोर सौंप दी वही उसी कातिल की बाहों में समा जाए ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में ही देखने को मिलता है। पहले भी इन दोनों ने एक-दूसरे को धोखा दिया है लेकिन इन्होंने साथ ही अपने-अपने वक्त में राज्य की जनता के जनादेश के साथ भी धोखा किया। अब आप ही बताईए कि दोनों में से कौन साँप है और कौन चंदन? अलबत्ता चंदन तो कोई नहीं है बल्कि दोनों-के-दोनों ही सांप हैं और वो भी दोमुँहा। दोनों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है वो भी रहीम कवि के समकालीन तुलसी बाबा की सहायता से कि
को बड़ छोट कहत अपराधू। सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना। रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना॥2॥
भावार्थ:-इन (नाम और रूप) में कौन बड़ा है, कौन छोटा, यह कहना तो अपराध है। इनके गुणों का तारतम्य (कमी-बेशी) सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे।

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