शनिवार, 19 मार्च 2016

वित्तीय अराजकता की ओर बढ़ा बिहार,नहीं खर्च हो पायी बजटीय राशि

पटना (सं.सू.)। सीएजी की रिपोर्ट ने साबित किया है कि बिहार कितनी तेजी से वित्तीय अराजकता के दौर में जा रहा है। एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपये का बजट और 43 हजार करोड़ खर्च ही नहीं कर पाये तो ऐसे बजट का का क्या फायदा। ये 43 हजार करोड़ इस प्रदेश के गरीबों पर खर्च होने वाले थे जो खर्च नहीं हो पाये। ऐसी अराजकता तेजी से प्रशासनिक अराजकता में बदल जाती है। इसी अराजकता का नतीजा शिक्षा विभाग में दिखाई पड़ा है। वित्तरहित शिक्षकों का अनुदान चार साल से बाकी है, नियोजित शिक्षकों को वेतन नहीं मिल रहा है, स्कूलों के भवन खंडहर में बदल रहे हैं और विभाग विधायकों को मंहगे उपहार बांट रहा है।

विदित हो कि बिहार विधानसभा में शुक्रवार को सदन पटल पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की वित्तवर्ष 2014-15 की रिपोर्ट रखी गई। रिपोर्ट में सरकार के वित्तीय प्रबंधन को विफल बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार सरकार के वर्ष 2014-15 के कुल बजट 140022.59 करोड़ रुपये में से 27334.02 करोड़ रुपये वापस कर दिए गए।

बिहार विधानसभा में रिपोर्ट के पेश होने के बाद लेखाकार परीक्षक पी़ क़े सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि 2014-15 के कुल बजट 140022.59 करोड़ रुपये में से सरकार 43925.80 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं कर पायी, जो सरकार के पूरे बजट का बड़ा हिस्सा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने खर्च के अनुपात में बहुत ज्यादा बजट बना लिया था, जिस कारण यह स्थिति आई। ऐसे में कुल 27334.02 करोड़ रुपये वापस कर दिए गए, इसमें से 22740.73 करोड़ रुपये 31 मार्च, 2015 यानी वित्तवर्ष के आखिरी दिन वापस किए गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटा 11178.50 करोड़ रुपये रहा जो पिछले वर्ष से 34 प्रतिशत ज्यादा था। रिपोर्ट में विभाग द्वारा खर्च के बिल नहीं दिए जाने की भी बात कहीं है।

लेखाकार परीक्षक ने बताया कि बिहार में पुल निर्माण में भी विलंब हो रहा है। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष में 1252 पुलों के निर्माण का लक्ष्य था, जबकि मात्र 821 पुलों का ही निर्माण समय पर हुआ। 155 पुलों के निर्माण में एक से लकर 84 महीने तक का विलंब हो रहा है।

2 टिप्‍पणियां:

जमशेद आज़मी ने कहा…

बहुत ही अच्छा लेख प्रस्तुत किया है आपने। पर बिहार के साथ साथ देश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार भी जनविरोधी वित्तीय अराजकता फैलाने में पीछे नहीं है। हाल ही में सुकन्या समृद्धि खाते पर भी ब्याज दरें अमीरों के दबाव में घटा दी हैं। अब बताइए कि बड़ी बेटियों की बड़ी जरूरतें कैसे पूरी होगीं। एक ही साल में योजना टांय टांय फिस्स हो गई। यह भी एक तरह की वित्तीय अराजकता ही तो है।

ब्रजकिशोर सिंह ने कहा…

मित्र,ब्याज दर कम करना गलत निर्णय नहीं है बशर्ते ऋणों पर ब्याज दरों में भी कमी हो। अर्थशास्त्रियों की मानें तो भारत में अभी भी ब्याज दर काफी ज्यादा है। एक साल में हम किसी योजना पर निर्णय नहीं दे सकते। अगर योजना में कोई कमी है तो आप सुझाव दीजिए मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार सुधार करेगी। योजनाएँ कोई भी गलत नहीं होती क्रियान्वयन गलत होता है।