सोमवार, 25 अप्रैल 2016

ताड़ी व्यवसायियों के पक्ष में आज धरना देंगे पासवान

पटना (सं.सू.)। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ताड़ी की बिक्री पर प्रतिबंध के खिलाफ सोमवार को राजधानी में धरना देंगे। रविवार को लोजपा कार्यालय में पासवान ने इसकी घोषणा की। संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने ताड़ी की खूब वकालत की और गर्दनीबाग के धरनास्थल पर धरना पर बैठने का ऐलान किया। वहीं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राजनीतिक हमला भी किया। पासवान ने कहा कि राजनीतिक कलाकारी करना तो कोई नीतीश कुमार से सीखे।

उन्होंने कहा कि गजब का बुद्धि है, 17 साल तक भाजपा और आरएसएस  के गोद में  बैठे रहे। अब संघ मुक्त भारत की बात करते हैं। दस साल तक लोगों को शराब पिलाया और अब बंद करने की बात कर रहे  हैं। दोपहर बाद भाजपा कार्यालय पहुंचे पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार से बड़ा कलाकार कोई हो नहीं सकता। प्रधानमंत्री के सवाल पर पासवान ने कहा कि नीतीश कुमार संघमुक्त के पहले बिहार के अपराध मुक्त करें। उन्हें देश में घूमने की सलाह भी दी। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद पर निशाना साधते हुए कहा कि आज जो लोग मंडल मसीहा बन  रहे हैं उनका पहले कहीं पता नहीं था। वीपी सिंह को ये लोग भूल गए।  इसके पहले लोजपा कार्यालय में पासवान ने कहा है कि ताड़ी शराब नहीं है। यह आम, लीची की तरह रस है।

गांधी जी ने इसे नीरा कहा था। इसकी तुलना शराब से नहीं की जा सकती है। 1991 में लालू प्रसाद ने इस पर छुट दी थी। जब लालू प्रसाद ने ताड़ी पर छुट दी थी तो चुनाव के दौरान हाजीपुर में मेरे पक्ष में नारा लगता था - एक रुपया में तीन गिलास-जीतेगा भाई राम विलास। पता नहीं लालू प्रसाद अब नीतीश कुमार से क्यों डर रहे है। शायद कह दिया होगा कि हम पीएम होंगे और बिहार तुम्हारे लिए छोड़ देंगे। पासवान ने चुनौती दी कि कोई सुबह पांच बजे का ताड़ी एक साल तक पीये, यदि उसका हेल्थ खराब होगा तो हम राजनीति छोड़ देंगे। पासवान ने कहा कि जब उनकी आंख खराब हो गयी थी तो डॉक्टर ने उन्हें ताड़ी पीने के लिए कहा था। जब हमें अच्छा नहीं लगा तो पीना छोड़ दिया।

पीएम नरेंद्र मोदी की ग्रामोदय से भारत उदय की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि नरेंद्र माेदी पहला विजनरी पीएम है जिसने बाबा साहेब अंबेडकर से जुड़े पांच स्थलों को विकसित करने का निर्णय लिया। जिसमें उनके जन्म स्थान महु, 26 अलीपुर रोड जहां उन्होंने संविधान लिखा, चैत्य भूमि, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ, लंदन में जहां उन्होंने पढ़ाई की उसे सरकार ने खरीद कर राष्ट्रीय  स्मारक घोषित किया और नागपुर जहां उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार घूम -घूम कर कहते हैं कि लोगों को दो रुपये किलो अनाज दे रहे हैं, हकीकत है कि शत-प्रतिशत सबसिडी केंद्र सरकार देती है। हमने तो विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणा भी की थी कि बिहार में सरकार बनी तो लोगों को मुफ्त अनाज देंगे। केंद्र अनाज पर एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये सब्सिडी देती है।

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

गिरगिटों के ताऊ नीतीश कुमार

मित्रों,राजनैतिक साहित्य में जंतु अलंकारों का अपना ही महत्व है. फिर बिहार का तो कहावतों की प्रचुरता में भी कोई सानी नहीं है.जैसे गंगा गए तो गंगा दास और जमुना गए तो जमुना दास या फिर जिधर देखी खीर उधर गए फिर,दोमुंहा सांप,गिरगिट.मगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश जी तो काफी पहले ही जंतु विज्ञान और अन्य कहावतों से ऊपर उठ चुके हैं.
मित्रों,आपको याद होगा कि नीतीश कुमार १८ सालों तक संघ के साथ रहे.आज नीतीश कुमार जो कुछ भी हैं वो निवर्तमान बड़े भाई लालू जी की वजह से नहीं हैं बल्कि संघ परिवार की देन है.सच तो यह भी है कि पहली बार जब लालू जी बिहार के सीएम बने थे तो भाजपा के ही समर्थन से.फिर वही नीतीश अब किस मुंह से भारत से संघ परिवार के खात्मे की बात कर रहे हैं?इससे पहले नीतीश जी लालू जी से हाथ मिला कर भी पूरी दुनिया के गिरगिटों को शर्मिंदा कर चुके है. कभी हमने कांग्रेस को ७ घूंघटों वाला चेहरा कहा था लेकिन अब समझ में नहीं आता है कि नीतीश कुमार जी के लिए उपमा कहाँ से लाऊं?लगता है कि हमें नीतीश कुमार जी की रंग बदलने की कला की तुलना दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल से करके काम चलाना पड़ेगा जो १ दिन में ही कई-कई बार रंग बदल लेते हैं.
मित्रों,इन दिनों नीतीश कुमार जी पीके अर्थात प्रशांत किशोर की सलाह पर शराबबंदी को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की मुहिम चलाने में पिले हुए हैं मानों बिहार में पहले किसी ने शराबबंदी के लिए कदम ही नहीं उठाया या फिर किसी और की सरकार ने बिहार के गाँव-गाँव में शराब की दुकानें खोल दी थी जबकि सच्चाई यह है कि कई दशक पहले कर्पूरी ठाकुर ने भी कोशिश की थी लेकिन भ्रष्ट प्रशासन के कारण होनेवाली तस्करी ने उनके सद्प्रयास पर गरम पानी फेर दिया था.सच्चाई यह भी है कि हर चौक-चौराहे पर शराब की दुकानें और किसी ने नहीं बल्कि स्वयं नीतीश कुमार की सरकार ने ही खुलवाई थी.वैसे ये बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि बिहार आज भी भारत के सबसे ज्यादा भ्रष्ट राज्य है फिर नीतीश कुमार कैसे सफल होंगे?वैसे चाहते तो हम भी हैं कि बिहार सही मायनों में अल्कोहल मुक्त प्रदेश बने और भारत अल्कोहल मुक्त देश.
मित्रों,अच्छा रहेगा कि पीके की सलाह पर कोरा दिखावा करना बंद करके और केजरी सर के साथ गिरगिटपने में प्रतियोगिता करना छोड़कर नीतीश जी सरकार के कामकाज पर ध्यान दें क्योंकि इन दिनों बिहार में सारे विकासपरक कार्य बंद हैं.कहीं अदालत परिसर में बम फट रहे हैं तो कहीं निर्माण एजेंसियों के यंत्रों को आग के हवाले किया जा रहा है तो कहीं रामनवमी के जुलूस पर हमले हो रहे हैं.यहाँ तक कि विधायक की बहन भी सुरक्षित नहीं रह गयी है.दारोगा भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं.हर जगह,हर विभाग में अराजकता और कुव्यवस्था है.लगता है जैसे वह समय आ गया है कि जिस तरह से बसों में लिखा होता है कि यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करें उसी तरह से बिहार के सारे सार्वजनिक स्थानों पर नीतीश कुमार उर्फ़ डेंटिंग पेंटिंग मास्टर को लिखवा देना चाहिए कि बिहारवासी अपने माल के साथ-साथ अपनी जान की भी रक्षा स्वयं करें.उधर राज्य के हैंड पम्प जिनमें भ्रष्टाचार के चलते आधे-अधूरे पाईप लगाकर पूरा पैसा बनाने का काम आजादी के बाद से ही लगातार चल रहा है सूखने लगे हैं और ईधर नीतीश कुमार जी अगले ५ सालों में सभी घरों में नलके का पानी उपलब्ध करवाने के वादे करने में लगे हैं.मतलब कि मिल तो चावल का माड़ भी नहीं रहा है और सपने बिरयानी के दिखाए जा रहे हैं क्योंकि भारत में हमेशा से न तो सपने देखने और न ही दिखाने पर कभी कोई रोक रही है.उस पर नीतीश कुमार जी तंज कस रहे हैं नरेन्द्र मोदी के ऊपर कि कालाधन का क्या हुआ?नीतीश जी को अपने हिस्से का १५ लाख भी चाहिए.कालाधन सहित सारे क्षेत्रों में जो होना चाहिए मोदी सरकार कर रही है और पूरी तरह से साफ़-सुथरे तरीके से जी-जान से कर रही है और इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि इन दिनों पिछले ७५ सालों में सत्ता में रहे सारे भ्रष्टाचारी १ ही नाव पर सवार हो गए हैं.वर्ना आज से २ साल पहले किसने कल्पना की थी कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट और लालू और नीतीश एकसाथ चुनाव लड़ेंगे? नीतीश जी चाहे जितनी सफाई से शब्दों की हेरा-फेरी कर लें सच्चाई तो यह है कि आज भारत में लोकतंत्र बिल्कुल भी खतरे में नहीं है बल्कि अगर कुछ खतरे है तो वो है छद्मधर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण की गन्दी और भारतविरोधी राजनीति.नीतीश जी को इन दिनों जिसका अगुआ बनने का चस्का लगा हुआ है.

रविवार, 3 अप्रैल 2016

साम्यवाद,समाजवाद,गांधीवाद और राष्ट्रवाद

मित्रों,भारत ने हमेशा से ही स्वतंत्र विचारों और विचारधाराओं को सम्मान दिया है। हमारे भारत में कभी किसी मंसूर बिन हल्लाज को देश और समाज से अलग सोंच रखने के कारण जिंदा आग में नहीं झोंका गया,न तो किसी सुकरात को विषपान कराया गया और न ही किसी ईसा को सूली पर ही चढ़ाया गया। हमारा वेद कहता है मुंडे मुंडे मति भिन्नाः और जैन तीर्थंकर कहते हैं स्याद अस्ति स्याद नास्ति यानि शायद मैं कहता हूँ वह ठीक है या हो सकता है कि आप जो कहते हैं वह सही है।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है भारत में हमेशा से प्रवृत्ति और निवृत्तिवादी दोनों तरह की विचारधाराएँ एकसाथ पल्लवित-पुष्पित होती रही हैं। वर्तमान भारत में भी कई तरह के वाद प्रचलन में हैं जिनमें साम्यवाद,समाजवाद,गांधीवाद और राष्ट्रवाद प्रमुख हैं। इनमें से ढोंगी तो सारे वाद वाले हैं। उत्पत्ति की दृष्टि से विचार करें तो इनमें से साम्यवाद और समाजवाद की उत्पत्ति विदेश की है जबकि गांधीवाद और राष्ट्रवाद ने भारत में जन्म लिया है।
मित्रों,साम्यवाद कहता है कि संसार में दो तरह के वर्ग हैं और उन दोनों में संघर्ष चलता रहता है। एक दिन यह संघर्ष चरम पर पहुँचेगा और तब दुनिया पर सर्वहारा वर्ग का शासन होगा और तब न तो कोई गरीब होगा और न ही कोई अमीर क्योंकि निजी संपत्ति भी नहीं होगी। साम्यवाद हिंसा की खुलकर वकालत करता है और मुसलमानों की तरह उसके लिए भी देशों की सीमाओं का कोई मतलब नहीं है बल्कि वह आह्वान करता है कि दुनिया के मजदूरों एक हो। यही कारण है कि आज देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा साम्यवादी हिंसा की चपेट में है। यही कारण है कि जब चीन ने भारत पर हमला किया तब भारत के साम्यवादियों ने चीन का समर्थन किया। यही कारण है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय चूँकि रूस इंग्लैंड एक साथ लड़ रहे थे इसलिए भारतीय साम्यवादियों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। चाहे वो दंतेवाड़ा के जंगलों के बर्बर नरपशु साम्यवादी हों या फिर संसद में घंटों बहस लड़ानेवाले सीताराम येचुरी वैचारिक रूप से सब एक हैं। जिस तरह आतंकवाद बुरा या अच्छा नहीं होता उसी तरह से साम्यवाद भी बुरा या भला नहीं होता सबके सब भारतविरोधी और अंधे होते हैं। अंधे इसलिए क्योंकि उनको अभी भी यह नहीं दिख रहा कि करोड़ों लोगों के नरसंहार के बाद शासन में आए साम्यवाद ने रूस,पोलैंड,चीन,पूर्वी जर्मनी,उत्तरी कोरिया आदि का क्या हाल करके रख दिया था और बाद में लगभग सभी साम्यवादी देशों को अस्तित्वरक्षण हेतु किस तरह पूंजीवाद की ओर अग्रसर होना पड़ा। भारत के साम्यवादी लालची और भ्रष्ट भी कम नहीं हैं। वे चिथड़ा ओढ़कर घी पीने में लगे हैं।
मित्रों,इसके बाद बारी आती है समाजवाद की यानि ऐसी विचारधारा की जो साम्यवाद की ही तरह मानती है कि सबकुछ सारे समाज का होना चाहिए लेकिन लक्ष्यप्राप्ति अहिंसक तरीके से होनी चाहिए,लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए। मगर भारतीय समाजवाद बहुत पहले ही अपने मार्ग से भटक चुका है। आरंभ में लोहिया-जेपी का झंडा ढोनेवाले समाजवादी आज निहायत सत्तावादी और आत्मवादी हो चुके हैं। लगभग सारी-की सारी समाजवादी पार्टियाँ किसी-न-किसी परिवार की निजी सम्पत्ति बनकर रह गई हैं और अपने-अपने परिवारों के साथ राज भोग रही हैं। उनका न तो देशहित से ही कुछ लेना-देना है,न तो प्रदेशहित से और न ही गरीबों से। सबै भूमि गोपाल की के पवित्र सिद्धांत से शुरू हुआ यह आंदोलन आज सबै कुछ मेरे परिवार की के आंदोलन में परिणत हो चुका है। बहुजनवादी और दलितवादी पार्टियों का भी कमोबेश यही हाल है।
मित्रों,भारत में अगर सबसे ज्यादा किसी वाद का दुरूपयोग किया गया है वह है गांधीवाद। कांग्रेस ने गांधीजी के नाम को तो अपना लिया लेकिन गांधी की विचारधारा को विसर्जित कर दिया। आज कांग्रेस ने घोर राष्ट्रवादी रहे गांधीजी को प्रिय रहे नारों वंदे मातरम् और भारत माता की जय तक से किनारा कर लिया है। आज कांग्रेस पार्टी सिर्फ मुस्लिम हितों की बात करनेवाली मुसलमानों की पार्टी बनकर रह गई है। उसका एकमात्र लक्ष्य हिंदू समाज और भारतीय संस्कृति के विरूद्ध बात करना, ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करना और फिर जमकर भ्रष्टाचार करना रह गया है। कांग्रेस गांधीवाद को पूरी तरह से छोड़ चुकी है बल्कि उसके लिए गांधीछाप ही सबकुछ हो गया है। उसकी प्राथमिकता सूची में न तो देश के लिए ही कोई स्थान है और न तो देशहित के लिए ही। जहाँ समाजवादी पार्टियाँ एक-एक संयुक्त परिवारों की संपत्ति बन चुकी हैं वहीं दुर्भाग्यवश कांग्रेस एक एकल परिवार की निजी संपत्ति बनकर रह गई है। आज कांग्रेस किसी विचारधारा का नाम नहीं है बल्कि पारिवारिक प्राईवेट कंपनी का नाम है। जहाँ तक तृणमूल कांग्रेस का सवाल है तो यह कांग्रेस और साम्यवाद के समन्वय से उपजी क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी है इसलिए उसमें एक साथ इन दोनों के अवगुण उपस्थित हैं।
मित्रों,अंत में बारी आती है राष्ट्रवाद की। एकमात्र यही एक विचारधारा है जो तमाम कमियों के बावजूद भारत के उत्थान की बात करती है। भारत को फिर से विश्वगुरू बनाने,एक विकसित राष्ट्र बनाने के सपने देखती है फिर भी यह देश का दुर्भाग्य है कि इस विचारधारा को देश की जनता हाथोंहाथ नहीं ले रही है। एक तरफ तो राष्ट्रवादियों को इस बात पर गहराई से विचार करना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और अपने संगठन और सोंच के भीतर वर्तमान सारी कमियों को दूर करना होगा। तो वहीं भारत की महान जनता को समझना होगा कि देश और देशवासियों से समक्ष एकमात्र विकल्प राष्ट्रवाद ही है क्योंकि बांकी के वाद अलगाववादियों का समर्थन करते हैं, देश को बर्बाद करने की बात करते हैं। राष्ट्र की बात नहीं करते देश के किसी न किसी भूभाग या जनता के किसी-न-किसी हिस्सेभर की बात करते हैं। उन सभी वादों के मजबूत होने अथवा राष्ट्रवाद के कमजोर होने का अर्थ है भारत का कमजोर होना।

जो गलतियों को बार-बार दोहराये उसे भाजपा कहते हैं

मित्रों,मिड्ल स्कूल में मेरे गुरू रहे श्री श्रीराम सिंह कहा करते थे कि जो गलती को दोहराता नहीं उसे भगवान कहते हैं,जो गलतियों को दोहराए उसे इंसान कहते हैं और जो गलतियों को बार-बार दोहराए उसे शैतान कहते हैं। परंत अप्रैल-मई में चार राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं और दुर्भाग्यवश भारत की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भाजपा जिस पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी हुई हैं वो भी बार-बार उन्हीं गलतियों को दोहरा रही है जो उसने पिछले यूपी और हालिया दिल्ली व बिहार चुनावों के समय किए थे।
मित्रों,आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनावों में जबकि चुनाव-प्रचार अपने पूरे उरूज पर था तब भाजपा ने बसपा के दागी मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा में अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। चुनावों में इस गलती का जो परिणाम भाजपा को और यूपी की जनता को भुगतना पड़ा वह पिछले 4 सालों से आपलोग भी देख रहे हैं। ठीक उसी तरह की गलती भाजपा ने केरल में दागी क्रिकेट खिलाड़ी एस. श्रीसंत को पार्टी में शामिल करके की है। लगता है जैसे भाजपाइयों का दिमाग ऐन चुनाव के वक्त घास चरने चला जाता है।
मित्रों,अगर हम चुनावी जुमलों की बात करें तो आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनावों के समय नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेताओं ने चीख-चीखकर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी अब बोरिया-बिस्तर बांधना शुरू कर दें क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार के बनते ही उनकी घर-वापसी की प्रकिया शुरू हो जाएगी लेकिन हम देखते हैं कि अब जबकि प. बंगाल और असम जहाँ कि घुसपैठ ने जनसांख्यिकी को बिगाड़कर रख दिया है में चुनाव-प्रचार जारी है भाजपा घुसपैठ पर लगाम लगाने के वादे कर रही है घर-वापसी का जिक्र तक नहीं कर रही। ऐसे में जनता इस बात को लेकर कैसे मुतमईन हो सकती है कि वर्तमान चुनावों में भाजपा जो वादे कर रही है वो चुनावी जुमला नहीं है।
मित्रों,तमाम मीडिया-सर्वेक्षण बता रहे हैं कि चार राज्यों में से सिर्फ असम में भाजपा टक्कर में है वरना प. बंगाल,केरल और तमिलनाडु में उसका खाता भी खुल जाए तो गनीमत है। हमने देखा कि ग्रासरूट लेवल तक गहन जनसंपर्क करके आप पार्टी ने कैसे दिल्ली में भाजपा को करारी शिकस्त दी। आखिर वही रणनीति अपनाने में भाजपा को समस्या क्या है? पार्टी के मिस्ड कॉल अभियान के बाद हमने पार्टी को सलाह दी थी कि अब पार्टी को उन लोगों से सीधा संपर्क करके सदस्यता प्रपत्र भरवाना चाहिए लेकिन लगता है कि पार्टी नेताओं को एसी में रहने की बीमारी हो गई है। मोदी और शाह यह तो चाहते हैं कि भाजपा इतनी शक्तिशाली हो जितनी कि 50 के दशक में कांग्रेस थी लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं से पसीना बहवाना नहीं चाहते। उनको अभी भी भ्रम है कि हर ब्लॉक या जिला मुख्यालय में पीएम की सभा आयोजित कर देने मात्र से ही चुनाव जीता जा सकता है। उधर यूपी से भी ओपिनियन पोल के नतीजे यही बता रहे हैं कि भाजपा वहाँ दूसरे नंबर पर भी नहीं आने जा रही है फिर उसका सरकार बनाने की बात तो दूर ही रही।
मित्रों,पार्टी को कैसे चलाना है,जिताना है या हराना है मोदी और शाह जानें लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव नतीजों का दुष्प्रभाव उस राज्य की सारी जनता को झेलना पड़ता है,पूरे देश को झेलना पड़ता है। अब बिहार को ही लें तो पहले शराब बंद करके,फिर बालू खनन पर रोक लगाकर और अब जमीन की रजिस्ट्री को ऑनलाईन करके नीतीश-लालू की सरकार ने चुनावों के बाद से लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसी तरह यूपी का पहले बसपा ने और बाद में कथित समाजवादियों ने क्या हाल करके रख दिया है किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसलिए अच्छा हो कि पार्टी नेतृत्व अपनी रणनीति को बदले और बात को नेहरू की गलत साबित हो चुकी ट्रिकल डाऊन थ्योरी की तरह ऊपर से नीचे पहुँचाने के बदले नीचे से ऊपर पहुँचाने के उपाय करे। यह सही है कि पार्टी ने पहले भी हमारी सलाहों पर किंचित भी ध्यान देने की जरुरत नहीं समझी है लेकिन हम भी क्या करें हमसे तो भारत दुर्दशा देखी न जाई।