सोमवार, 22 अगस्त 2016

कानून का डंडा या डंडे का कानून?

मित्रों,आपने रॉलेट एक्ट का नाम जरूर सुना होगा। 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट को क़ानून का रूप दे दिया। इस विधेयक में सरकार को राजनीतिक दृष्टि से संदेहास्पद व्यक्तियों को बिना वारंट के बन्दी बनाने, देश से निष्कासित करने, प्रेस पर नियन्त्रण रखने तथा राजनीतिक अपराधियों के विवादों की सुनवाई हेतु बिना जूरी के विशेष न्यायालयों को स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया था। केन्द्रीय विधान परिषद के सभी सदस्यों द्वारा विरोध करने के बावजूद अंग्रेज़ सरकार ने रॉलेट एक्ट पारित कर दिया। इस अधिनियम से सरकार वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थगित कर सकती थी। वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार ब्रिटेन में नागरिक अधिकारों का मूलभूत आधार था। रॉलेट एक्ट एक झंझावत की तरह आया। युद्ध के दौरान भारतीय लोगों को जनतंत्र के विस्तार का सपना दिखाया गया था। उन्हें ब्रिटिश सरकार का यह क़दम एक क्रूर मज़ाक सा लगा।
मित्रों,पिछले दिनों भारत में दो ऐसे कानून आए हैं जिनकी तुलना बेझिझक रॉलेट एक्ट से की जा सकती है हालाँकि ये कानून बनाए हैं भारतीयों द्वारा निर्वाचित लोगों की व्यवस्थापिका ने। पहला कानून है निर्भया कानून जिसमें प्रावधान किया गया है कि अगर कोई पुरूष किसी महिला को 14 सेकेंड से ज्यादा एकटक देखता है उसको इसके लिए दंडित किया जा सकता है। कितना बड़ा मजाक और हास्यास्पद है ऐसा प्रावधान करना!
मित्रों,ठीक इसी तरह बिना खोपड़ी का इस्तेमाल किए बिहार की विधायिका ने कुछ ही दिनों पहले शराबबंदी से संबंधित एक अधिनियम को पारित किया है। इसके अनुसार अगर आपके घर में शराब की बोतल मिलती है तो आपके परिवार के सभी बालिग सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस अतार्तिक प्रावधान के पहले शिकार बने हैं पूर्णिया के वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार। किसी ने शरारतपूर्ण तरीके से उनके घर में शराब की बोतल रख दी और पुलिस को खबर कर दिया। बेचारे हाथ-पाँव जोड़ते रहे लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई जैसा कि रॉलेट एक्ट में होता था। क्या अजब कानून बनाया है बिहार विधानमंडल ने कि पीते हुए पकड़े जाओ तो सपरिवार जेल जाओ और पीकर मर जाओ तो परिजनों को पैसे मिलेंगे। आप सभी जानते हैं कि मैंने कभी कोई नशा नहीं किया लेकिन आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर कल मुझे भी मेरे घर से शराब बरामद करवाकर सपरिवार जेल भेज दिया जाए।
मित्रों,सवाल उठता है कि क्या हमारे माननीय कानून बनाते समय होश में नहीं रहते हैं? क्या कानून के डंडे के बल पर लोकरूचि और लोकव्यवहार को जबर्दस्ती बदला जा सकता है? सवाल उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का डंडा चलेगा या डंडे का कानून?

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