गुरुवार, 30 मार्च 2017

बुझी हुई मोमबत्ती के मोम हैं नीतीश


मित्रों,कुछ दिन पहले आए सीएजी की रिपोर्ट ने बिहार में मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना पर सवाल खड़ा किया है. बिहार विधान सभा के पटल पर रखे गये इस रिपोर्ट में कई वित्तीय अनियमितताओं के साथ ये खुलासा किया गया है कि 2015-16 के बजट की लगभग 35 प्रतिशत राशि बिहार में खर्च ही नहीं की गयी.
मित्रों,सीएम नीतीश कुमार के सात निश्चयों में से एक निश्चय हर घर जल का नल योजना का सीएजी के एक वर्ष का सर्वे कराया जिसमें पाया गया कि योजना के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी कार्य प्रारंभ भी नहीं कराया जा सका है. महालेखा परीक्षक धर्मेन्द्र कुमार ने सीएजी रिपोर्ट को लेकर पत्रकारों को संबोधित किया. 
रिपोर्ट के कुछ मुख्य तथ्यों पर एक नजर ड़ालते हैं ....
1. बिहार राज्य जल विद्युत् निगम लिमिटेड के वित्तीय कुप्रबंधन के कारण 2011 -16 के बीच 147.66 करोड़ की हानि.
2.साउथ बिहार पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी की त्रुटिपूर्ण आतंरिक नियंत्रण प्रणाली की वजह से 3.20 करोड़ के राजस्व की हानि.
3.नार्थ बिहार पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी द्वारा उपभोक्ताओं के अनुचित वर्गीकरण के कारण 5.55 करोड़ के राजस्व की हानि.
4.बिहार राज्य पथ विकास निगम ने अनुबंध के प्रावधानों का उल्लंघन कर संवेदकों को छूट देने से 1.66 करोड़ राजस्व की हानि
5. पटना में वाहन प्रदूषण में भारी वृद्धि. पटना विश्व का छठा सबसे प्रदूषित शहर.
6. पाइप जलापूर्ति योजना बिहार में बुरी तरह फेल. राज्य के केवल 6 प्रतिशत जनसंख्या को ही पाइप जलापूर्ति उपलब्ध.
7. मध्याह्न भोजन योजना की बड़ी विफलता उजागर 33 से 57 प्रतिशत नामांकित बच्चे मध्याह्न भोजन से वंचित रहे.
8. बिहार सरकार के कार्यालयों के व्यक्तिगत जमा खातो में 4126.37 करोड़ की राशि पड़ी रही.
सीएजी की रिपोर्ट की एक जो अहम बात है वो ये है कि 2015- 16 के बजट का लगभग 35 प्रतिशत राशि सरकार खर्च करने में नाकाम रही है. बजट का 35 हजार 13 करोड रुपया खर्च ही नहीं हुआ है जबकि 25 हजार करोड रुपया सरेंडर हुआ है. 
मित्रों,जब २०१५ में महागठबंधन सरकार के गठन के बाद राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ७ निश्चयों की घोषणा की थी तब हमने अपने ब्लॉग ब्रज की दुनिया पर उनको चुनौती देते हुए कहा था कि नीतीश सिर्फ एक निश्चय हर घर नल का जल को पूरा करके दिखा दें. ऐसा हमने इसलिए कहा था क्योंकि हमें पता था कि न तो नीतीश और न ही उनकी सरकार के पास वो कुव्वत है कि वे इस एक निश्चय को भी पूरा कर सकें बाँकी की तो बात ही छोडिये.
मित्रों,हमने तब यह भी कहा था कि २००५ से २०१३ तक बिहार में काम सिर्फ उन्हीं विभागों में हुआ है जिनकी बागडोर भाजपा के पास थी. जदयू नेताओं की बात कि राजद और कांग्रेस के मंत्रियों के ठीक से काम नहीं करने के चलते ७ निश्चयों का कबाड़ा हुआ है अगर हम मान भी लें तो जो विभाग जदयू के पास हैं उनमें चार चांद क्यों नहीं लग गए? क्यों दिनदहाड़े श्रीनूज एंड कंपनी से रंगदारी मांगकर उसे बंद करवाने वाले बिहार के श्रम मंत्री जेल से बाहर हैं और मंत्रिमंडल से बाहर नहीं हैं? क्या नीतीश कुमार बिहार के गृह मंत्री नहीं हैं? क्या मुख्यमंत्री का पद भी राजद के पास है?
मित्रों,आपको याद होगा कि नीतीश पहले जनता दरबार लगाया करते थे. बाद में इसे बंद कर दिया गया और दिनांक 05 जून 2016 से बिहार लोक शिकायत  निवारण अधिकार अधिनियम लागू किया गया.
इसके लिए एक वेबसाईट बनाया गया जिस पर कोई भी परिवाद दर्ज करवा सकता है. परिवाद दर्ज करने से पहले आपसे आपका मोबाईल नंबर माँगा जाता है OTP भेजने के लिए मगर OTP भेजा ही नहीं जाता. मतलब कि पहले जनता दरबार द्वारा और अब जनशिकायत अधिनियम के माध्यम से बिहार की जनता की आँखों में धूल झोंका जा रहा है.
मित्रों,कारण चाहे राष्ट्रपति चुनाव हो या कुछ और नीतीश को एनडीए में लाना है तो लाया जाए लेकिन उनको बिहार का मुख्यमंत्री हरगिज न बनाए रखा जाए. किसी नए ऊर्जावान-स्वप्नदर्शी और उद्दाम देशभक्त को बिहार का सीएम बनाया जाए. पिछले ५-सात सालों में यह साबित हो चुका है कि नीतीश आग नहीं हैं बुझी हुई राख हैं, अँधेरे घर की रौशनी नहीं हैं बल्कि बुझी हुई मोमबत्ती के मोम हैं, वे अच्छा रायता बना नहीं सकते सिर्फ फैला सकते हैं. उनके लिए कुर्सी नाम परमेश्वर (राम) है राज्य या देश के विकास से उनका कुछ भी लेना-देना नहीं है. वे कभी भी फिर से भाजपा को धोखा दे सकते हैं क्योंकि वे नफादार हैं वफादार नहीं, चोखेलाल नहीं धोखेलाल हैं, सेवालाल नहीं मेवालाल हैं, सच्चा नहीं बच्चा यादव हैं, जयप्रकाश नारायण नहीं विजय प्रकाश यादव हैं, बिहार के लाल नहीं लालकेश्वर हैं, बिहार के माथे पर गौरव की बिंदी नहीं बिंदी यादव हैं, हर स्थिति में अटल रहने वाले रॉकी पर्वत नहीं बल्कि रॉकी यादव हैं, बिहार की शान नहीं झूठ,फरेब और ढोंग की खान हैं, चन्दन-वृक्ष नहीं विषबेल हैं जो सहारा देनेवाले वृक्ष को ही ठूंठ बना देता है.

सोमवार, 27 मार्च 2017

मोदी मोदी योगी योगी

मित्रों,पता नहीं किन परिस्थितियों में अतिस्पष्टवादी योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए. जितने मुंह उतनी कहानियां. लेकिन अन्दरखाने चाहे जो कुछ भी हुआ हो परिणाम बहुत अच्छा हुआ. यह उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो अब तक ऐसा मानते थे कि नरेन्द्र मोदी अपने समक्ष किसी और को उभरने नहीं देना चाहते. हालाँकि मोदी मंत्रिमंडल में आज भी परिवर्तन वांछनीय है क्योंकि अभी भी उसमें कई अपात्र-कुपात्र बने हुए हैं. माना कि कप्तान हरफनमौला है लेकिन कम-से-कम फील्डिंग के लिए और बैटिंग-बौलिंग में साथ देने के लिए तो अच्छी टीम चाहिए ही. जिस तरह से मनोहर पर्रीकर को वापस गोवा भेजना पड़ा है उससे यह तो साबित हो ही गया है कि एक अकेले नेता के नाम पर भारत के सभी २८ राज्यों और २ केन्द्रशासित प्रदेशों में चुनाव नहीं जीते जा सकते.दिल्ली में मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखना भी समझ से परे है.
मित्रों,योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद पहली बार ऐसा लग रहा है कि किसी राज्य की गाड़ी में जब दो-दो शक्तिशाली ईंजन लग जाते हैं तो क्या होता है. योगी जी हर गेंद पर छक्का मार रहे हैं मानो वे पहले ओवर में ही मैच समाप्त कर देना चाहते हैं. यह सही है कि गाय हिन्दुओं के लिए पूज्या है लेकिन गाय सहित सभी जानवरों को मारने के बारे में कई साल पहले ही एनजीटी दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है. यह अलग बात है कि अखिलेश सरकार ने उन्हें लागू तो नहीं ही करवाया बल्कि मूक पशुओं के प्रति पशुता को और बढ़ावा दिया. जहाँ तक एंटी रोमियो स्क्वायड के गठन का सवाल है तो ऐसा यूपी सरकार को तभी करना चाहिए था जब मुलायम सिंह बच्चों से गलती हो जाने की वकालत कर रहे थे. स्वच्छता में तो हर युग में ईश्वर का वास रहा है फिर चाहे वो गाँधी युग हो या आज का समय.
मित्रों,योगी के यूपी के सीएम बनने के बाद से कुछ लोगों को ऐसा लगने लगा है कि अब लोकप्रियता में योगी जी मोदी जी से आगे निकल जाएँगे. हो भी सकता है लेकिन इससे नए भारत के निर्माण और भारत के वैश्विक-उभार पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है क्योंकि दोनों ही देश और देशहित के प्रति समान रूप से समर्पित हैं. दोनों ही संन्यासी हैं और दोनों के पास ही खोने के लिए अपना कुछ भी नहीं है.

रविवार, 12 मार्च 2017

यूपी की जीत के सबक

मित्रों,बहुत पुरानी कहावत है कि जो जीता वही सिकंदर.

अर्थात सफलता सारे अवगुणों को छिपा देती है.यह कहावत अपनी जगह सही है लेकिन एक और कहावत है जिसे हम सीख का नाम भी दे सकते हैं कि फूलो मत भूलो मत. मतलब कि सुख में फूलो मत और दुःख के दिनों को भूलो मत.वैसे बुद्धिमान लोग जीत से भी सबक लेते हैं और मूर्ख हार से भी नहीं लेते.
मित्रों,हम जानते हैं कि अभी भारतीय जनता पार्टी फूले नहीं समा रही है.उसने उत्तर प्रदेश में अद्भूत, अविश्वसनीय, अभूतपूर्व और अकल्पनीय जीत दर्ज की है.भविष्य में कोई दल या गठबंधन यूपी में ऐसी जीत दर्ज कराएगा या नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन भूतकाल में तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं हुआ था.दुनिया के अधिकतर देशों से ज्यादा जनसंख्या को धारण करनेवाले उत्तर प्रदेश में बहुमत प्राप्त करना ही बड़ी उपलब्धि होती है फिर इस तरह की एकतरफ़ा जीत!!!निश्चित रूप से भाजपा बधाई की पात्र है.जीत का जश्न मनाने में कुछ भी गलत नहीं लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ४ अन्य राज्यों में भी चुनाव हुए थे और उनमें से २ में भाजपा सत्ता में थी.उनमें से एक पंजाब में पार्टी की करारी हार भी हुई है.गोवा में भी पार्टी हारी है फिर भी ईज्ज़त बचा ले गयी है.इन पाँचों राज्यों के चुनाव-परिणामों का अगर हम विश्लेषण करें तो आसानी से देख सकते हैं कि इन राज्यों में कहीं-न-कहीं सत्ता-विरोधी लहर चल रही थी और इसलिए चल रही थी क्योंकि जनता से किए गए वादों में से शतांश को भी पूरा नहीं किया गया था.
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि इन चुनावों से सबक लेते हुए भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत उन सभी राज्यों में वादों पर खरा उतरना पड़ेगा जहाँ उसकी पहले से सरकार है या अब जहाँ बनने जा रही है.यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार खुद शराब बेचने की फ़िराक में है जबकि उसके १3 सालों के शासन के बावजूद राज्य के एक बड़े हिस्से पर नक्सलियों का आतंक कायम है.कल एक तरफ भाजपा जीत के जश्न मना रही थी तो वहीं दूसरी ओर कल ही भाजपा-शासित छत्तीसगढ़ में हमारे १७ जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया.
मित्रों,राजनैतिक दांव-पेंच अपनी जगह हैं और उनका भी अपना महत्व है लेकिन देशहित सर्वोपरि है.सौभाग्यवश मोदी जी ने नेशन फर्स्ट को अपना ध्येय वाक्य घोषित भी कर रखा है.भ्रष्टाचार की समाप्ति की दिशा में जब मोदी सरकार को नोटबंदी जैसा छोटा कदम उठाने पर इतना विराट जनसमर्थन मिल सकता है तो सोंचिए कि तब क्या होगा जब सरकार बड़े कदम उठाएगी.
मित्रों,तुलसी बाबा कहते हैं कि प्रभुता पाई कोऊ मद नाहीं.अभी तक जिस तरह मोदी सरकार काम कर रही है उससे ऐसा तो लगता नहीं कि उसमें सत्ता का मद घर कर पाया है.फिर अभी तो भारत-निर्माण शुरू ही हुआ है.अभी देश और सरकार को बहुत-बहुत-बहुत लम्बा रास्ता इस दिशा में तय करना बांकी है.काम बहुत कठिन है और समय बहुत कम क्योंकि ६७ साल के मोदी जी अनंतकाल तक न तो जवान ही रहनेवाले हैं और न ही जीवित.जनता के धैर्य का तो कहना ही क्या? निस्संदेह रफ़्तार बढ़ानी होगी.