सोमवार, 27 मार्च 2017

मोदी मोदी योगी योगी

मित्रों,पता नहीं किन परिस्थितियों में अतिस्पष्टवादी योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए. जितने मुंह उतनी कहानियां. लेकिन अन्दरखाने चाहे जो कुछ भी हुआ हो परिणाम बहुत अच्छा हुआ. यह उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो अब तक ऐसा मानते थे कि नरेन्द्र मोदी अपने समक्ष किसी और को उभरने नहीं देना चाहते. हालाँकि मोदी मंत्रिमंडल में आज भी परिवर्तन वांछनीय है क्योंकि अभी भी उसमें कई अपात्र-कुपात्र बने हुए हैं. माना कि कप्तान हरफनमौला है लेकिन कम-से-कम फील्डिंग के लिए और बैटिंग-बौलिंग में साथ देने के लिए तो अच्छी टीम चाहिए ही. जिस तरह से मनोहर पर्रीकर को वापस गोवा भेजना पड़ा है उससे यह तो साबित हो ही गया है कि एक अकेले नेता के नाम पर भारत के सभी २८ राज्यों और २ केन्द्रशासित प्रदेशों में चुनाव नहीं जीते जा सकते.दिल्ली में मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखना भी समझ से परे है.
मित्रों,योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद पहली बार ऐसा लग रहा है कि किसी राज्य की गाड़ी में जब दो-दो शक्तिशाली ईंजन लग जाते हैं तो क्या होता है. योगी जी हर गेंद पर छक्का मार रहे हैं मानो वे पहले ओवर में ही मैच समाप्त कर देना चाहते हैं. यह सही है कि गाय हिन्दुओं के लिए पूज्या है लेकिन गाय सहित सभी जानवरों को मारने के बारे में कई साल पहले ही एनजीटी दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है. यह अलग बात है कि अखिलेश सरकार ने उन्हें लागू तो नहीं ही करवाया बल्कि मूक पशुओं के प्रति पशुता को और बढ़ावा दिया. जहाँ तक एंटी रोमियो स्क्वायड के गठन का सवाल है तो ऐसा यूपी सरकार को तभी करना चाहिए था जब मुलायम सिंह बच्चों से गलती हो जाने की वकालत कर रहे थे. स्वच्छता में तो हर युग में ईश्वर का वास रहा है फिर चाहे वो गाँधी युग हो या आज का समय.
मित्रों,योगी के यूपी के सीएम बनने के बाद से कुछ लोगों को ऐसा लगने लगा है कि अब लोकप्रियता में योगी जी मोदी जी से आगे निकल जाएँगे. हो भी सकता है लेकिन इससे नए भारत के निर्माण और भारत के वैश्विक-उभार पर कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है क्योंकि दोनों ही देश और देशहित के प्रति समान रूप से समर्पित हैं. दोनों ही संन्यासी हैं और दोनों के पास ही खोने के लिए अपना कुछ भी नहीं है.

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