सोमवार, 13 नवंबर 2017

आसां नहीं है आदमी का मोदी होना

मित्रों, मिर्जा ग़ालिब ने कहा था कि बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना. कितने दूरदर्शी थे ग़ालिब जो यूरोप-अमेरिका से काफी पहले ही दो पंक्तियों में पूरे-के-पूरे अस्तित्ववादी दर्शन को कह डाला था.
मित्रों, अस्तित्ववाद कहता है कि हम जीवनभर अप्रामाणिक जीवन जीते हैं. हम बनना कुछ और चाहते हैं लेकिन बनते कुछ और हैं,हम करना कुछ और चाहते हैं लेकिन करते कुछ और हैं. मसलन मुकेश दिल्ली से मुंबई नायक बनने जाते हैं लेकिन परिस्थितिवश गायक बन जाते हैं. वैसे आरक्षण भी इन दिनों पढ़े फारसी बेचे तेल को चरितार्थ करने में अपना महती योगदान दे रहा है. अस्तित्ववाद तो यहाँ तक कहता है कि अगर हम प्रामाणिक जीवन नहीं जी सकते तो जिए ही क्यों?
मित्रों, सौभाग्यवश हमारा भारतीय दर्शन इस मामले में भी अतिवादी नहीं है. गीता में श्रीकृष्ण ने साफ शब्दों में हजारों साल पहले ही कहा था कि तेरे वश में परिणाम है ही नहीं बस कर्म है यद्यपि परिणाम वैसे ही होते हैं जैसे हमारे कर्म होते हैं.
मित्रों, तो हम बात कर रहे थे ग़ालिब की और आदमी के चाहकर भी इंसां नहीं हो पाने की मजबूरी की. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मजबूरियों के आगे मजबूर नहीं होते बल्कि उत्तरोत्तर मजबूत होते जाते हैं. ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है नरेन्द्र दामोदरदास मोदी. घनघोर गरीबी में उनका बचपन गुजरा लेकिन गरीबी उनके मनोबल को तोड़ न सकी और उसका बालमन सपना देखने लगा गरिबीविहीन भारत का. गृहस्थजीवन के छोटे-से दायरे में सिमटना उसने स्वीकार नहीं किया और पत्नी की रजामंदी से गृह त्याग दिया.
मित्रों, विवेकानंद की तरह हर क्षण भारत के लिए चिंतित रहनेवाला वो युवक पूरी जवानी भारत की खाक छानता रहा और भारत को समझने का प्रयास करता रहा. फिर अचानक उसके जीवन में गुजरात के भूकंप के रूप में भूकंप आया और उसने खुद को तबाह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पाया. पहले से कोई राजनैतिक अनुभव नहीं. कभी विधायक भी नहीं रहा था लेकिन वो घबराया नहीं और कुछ ही महीनों में गुजरात को फिर से खड़ा कर दिया और खड़ा भी कहाँ किया-चीन के आगे ले जाकर.
मित्रों, फिर ट्रेन में आग लगाकर आततायी मुसलमानों ने जिनमें से कई कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे कई दर्जन निर्दोष हिन्दुओं को जिंदा जलाकर मार डाला और भड़क उठी दंगे की आग. जिन लोगों ने ट्रेन में यात्रियों को जलाकर दंगों की शुरुआत की उनको बचाने और मोदी को फंसाने की साजिश प्रधानमंत्री निवास और १० जनपथ में रची जाने लगी क्योंकि तब तक दिल्ली में सोनिया-मनमोहन की सरकार बन चुकी थी. वे लोग भूल गए कि हिन्दू कभी दंगों की शुरुआत नहीं करते. मोदी को रोजाना दरिंदा, खूनी, खूंखार आदि कहा जाने लगा. मानो उस समय केंद्रीय सत्ता के पाम दो ही काम रह गए थे-एक घोटाला करना और दूसरा योजना बनाना कि मोदी को कैसे जेल में डाला जाए और गुजरात से उखाड़ फेंका जाए. लेकिन मोदी डरे नहीं, घबराए नहीं, लडखडाए भी नहीं और ६ करोड़ गुजरातियों के विश्वास के बल पर सारी साजिशों को नाकाम कर दिया.
मित्रों, मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने तब उनके माथे पर उम्मीदों का भारी बोझ नहीं पहाड़ था. जीडीपी को गति देनी थी, भ्रष्टाचार को कम करना था, बेरोजगारी दूर करनी थी, दुनिया में भारत के मान को पुनर्स्थापित करना था आदि. कुछ मोर्चों पर काम हुआ है तो कुछ पर अभी बहुत-कुछ होना है.
मित्रों, मोदी से इस दौरान कुछ गलतियाँ भी हुई हैं फिर भी हम ऐसा नहीं कह सकते कि मोदी की नीयत में खोट है यद्यपि उनसे नीतिगत भूल हुई है. मोदी का सीना कल भी भारत के लिए धड़कता था और आज भी केवल भारत के लिए ही धड़कता है. वाजपेयी की तरह ही आगे नाथ न पीछे पगहा. आज भी भारत की जनता ही मोदी का परिवार है, भारत के लोगों का प्यार ही मोदी की संपत्ति है.
मित्रों, इस बीच कुछ नेता मोदी की नक़ल करके खुद को मोदी साबित करने में जुट गए हैं. मोदी मंदिर जाते हैं इसलिए वे भी मंदिर जाते हैं जबकि वे न तो जन्मना और न ही कर्मना हिन्दू हैं. वे लोग जो इन दिनों अपने आपको विशुद्ध हिन्दू साबित करने में लगे हैं कुछ समय पहले ही सभी हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध करने में जीजान से लगे थे और कहते थे कि लोग मंदिरों में पूजा करने नहीं लड़कियों के साथ छेड़खानी करने जाते हैं. जाहिर है कि रावन साधू बनकर सीतारुपी जनता को ठगने के लिए फिर से आया हुआ है और हर दरवाजे को खटखटाता फिर रहा है. शायद इस रावन को पता नहीं है कि नक़ल करके कोई मोदी नहीं बन सकता बल्कि ५६ ईंच का सीना लेकर जियाले माँ के पेट से पैदा होते हैं.
मित्रों, हो सकता है कि भविष्य में मोदी के लिए भी आज का मोदी बने रह पाना संभव न रह जाए. सब जनता के विश्वास पर निर्भर करेगा कि आगे मोदी और मजबूत होंगे या फिर खूँटी में टंगे अपने झोले को उठाकर फिर से देशाटन पर चल देंगे जैसा कि वे पहले कह भी चुके हैं. यद्यपि अगर ऐसा होता है तो यही समझा जाएगा कि भारत की जनता मोदी जैसे महान राष्ट्रभक्त के नेतृत्व के लायक है ही नहीं उसे तो लल्लू-पंजू चोर-बेईमान-लुटेरा-राष्ट्रद्रोही नेतृत्व ही चाहिए.

रविवार, 12 नवंबर 2017

राहुल गाँधी को ज्ञान प्राप्ति

मित्रों, सारी दुनिया जानती है कि आज से ढाई हजार साल पहले सिद्धार्थ गौतम को भारी तपस्या के बाद बोधगया के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सारी दुनिया यह भी जानती है कि गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल अर्थात बाधा को घर पर छोड़ कर रात्रि के समय गृहस्थ जीवन से पलायन कर गए थे.
मित्रों, बुद्ध के ढाई हजार साल बाद एक और राहुल भारतभूमि पर अवतरित हुए हैं और इनको भी ज्ञानप्राप्ति की तलाश है. लेकिन इसके लिए ये जंगल नहीं जा रहे बल्कि बार-बार थाईलैंड और यूरोप के चक्कर काट रहे हैं. यहाँ तक कि विदेशी बिगडैल महिलाओं के साथ होटल में कमरा भी साझा करते हैं. ऐसा लगता कि इनको रजनीश के दिए सम्भोग से समाधि के सिद्धांत पर कुछ ज्यादा ही यकीन है. 
मित्रों, यह मेरा व्यक्तिगत मत कदापि नहीं है कि इस अबोध बालक के उलटे क्रियाकलाप में इसका किंचित भी दोष नहीं है. दोषी तो इसके लिए आलेख और भाषण लिखनेवाले अथवा इसको सलाह देनेवाले हैं क्योंकि ये बेचारा तो आज से ३०-३५ साल पहले भी सादा स्लेट था और आज भी है. अब आज से कुछ दिन पहले ८ नवम्बर को अख़बारों में प्रकाशित इस चिरबालक के नाम से प्रकाशित आलेख को ही लें जिसमें सिवाय झूठ के और कुछ है ही नहीं. आलेख कहता है मोदी सरकार ने काफी तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर दिया है.
मित्रों, जबकि वास्तविक आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि जब अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र के डॉक्टर मनमोहन सिंह के हाथों में थी तब उसकी हालत २०१० के बाद से ही दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही थी. देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2012-13 के दौरान तो 4.5 फ़ीसदी रही थी जो कि पिछले एक दशक की सबसे कम थी. इससे पहले विकास दर वर्ष २०१० में ८.९, २०११ में ६.७ प्रतिशत थी. सोनिया-मनमोहन सरकार के अंतिम वर्ष २०१३ में विकास दर हांफती हुई ४.७ प्रतिशत रही थी.
मित्रों, मोदी सरकार के शुभागमन के बाद वित्‍त वर्ष 2014-15 में देश की विकास दर लम्बी छलांग लगाती हुई 7.2 फीसदी पर पहुँच गयी. फिर 2015-16 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई और वास्तविक प्रति व्यक्ति आय भी 6.2 फीसदी बढ़कर 77,435 रुपए हो गई। २०१६-१७ में विकास दर में हल्की सी गिरावट आई और यह ७.१ प्रतिशत पर रही. मगर ऐसा होना किसी भी प्रकार से अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि अर्थव्यवस्था के शुद्धिकरण के लिए की गई नोटबंदी के बाद ऐसा होना अपेक्षित ही था.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि राहुल के आलेख में सच का लेश भी है? अर्थव्यवस्था की हालत तो घोटालों के चहुमुखी विकास के चलते उनकी सरकार के समय ही ज्यादा ख़राब थी और मृत्युगामी थी. आश्चर्यजनक तरीके से बाद में और ८ नवम्बर से पहले गुजरात में दिए गए अपने कई भाषणों में भी राहुल ने मोदी सरकार को तेज गति से आगे बढती अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर देने का आरोप लगाया.
मित्रों, चूंकि हम उनको आज भी अबोध बालक समझते हैं इसलिए हमें उनसे कोई गिला-शिकवा नहीं है बल्कि हम तो उस व्यक्ति के परम पवित्र चरणों को ढूंढ रहे हैं जो उनके लिए भाषण और आलेख तैयार करता है. वैसे सोनिया ताई हमारे जैसे अकुलीन की सुननेवाली नहीं हैं फिर भी हम उनसे अनुरोध करना चाहते हैं कि ताई उधार के ज्ञान से न तो कोई बुद्धत्व की प्राप्ति कर पाया है और न ही भविष्य में कर पाएगा बैशाख पूर्णिमा तो हर साल आता है और चला जाता है. फिर काहे उपले में घी लपेट रही हो इस उम्मीद में कि एक दिन उपला रोटी बन जाएगा? हो सकता है कि राहुल गुजरात चुनाव जीत भी जाएं लेकिन इसके लिए उसकी बौद्धिक योग्यता नहीं बल्कि सीधे तौर पर बुद्धिमान गुजरातियों की मूर्खता जिम्मेदार होगी.

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

गुजरात चुनाव,चीन और पाकिस्तान

मित्रों, एक बार फिर से दो राज्यों के चुनाव सर पर हैं. इसमें भी गुजरात चुनाव को लेकर उत्सुकता कुछ ज्यादा ही है. ऐसा लग रहा है जैसे चक्रव्यूह में अभिमन्यु को फंसाने की तैयारी चल रही हो. इस युद्ध में एक तरफ तो गुजरात और भारत के गौरव मोदी हैं वहीँ दूसरी तरफ विपक्ष ही नहीं बल्कि सीधे चीन और पाकिस्तान भी हैं. सवाल उठता है कि क्या गुजरात के लोग विशेषकर हिन्दू गुजरात के गौरव को हराकर चीन-पाकिस्तान को जिताएंगे?

मित्रों, हमने चीन और पाकिस्तान का नाम इसलिए लिया क्योंकि डोकलाम विवाद के समय चीन ने भारत सरकार को इसका परिणाम भुगतने की धमकी दी थी. फिर डोकलाम विवाद के समय राहुल चीनी दूतावास में कोई रिश्ते की बात तो करने गए नहीं थे. जहाँ तक पाक का सवाल है तो उसके नापाक मंसूबे किसी से छुपे हुए नहीं हैं. पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि भारत में देशहित को सर्वोपरि माननेवाली सरकार हो. पाकिस्तानी पत्रकार टीवी बहसों में खुलेआम कहते रहे हैं कि अगर मोदी तदनुसार हिन्दू राष्ट्रवाद को कमजोर करना है तो हिन्दुओं में फूट डालनी होगी.  पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने हार्दिक को प्लांट किया, आरक्षण आन्दोलन खड़ा करवाया और जानबूझकर हिंसा करवाई गयी.

मित्रों, इस युद्ध में एक पक्ष मीडिया भी है. बिहार चुनावों की तरह एक बार फिर से मीडिया माहौल को जातिवादी बना रही है. आपको याद होगा कि एबीपी पर जहानाबाद की हालत को इस तरह से बयां किया जा रहा था मानों वहां की हालत कश्मीर से भी ख़राब हो. इसी तरह से एनडीटीवी के रवीश कुमार बिहार में लोगों से उनकी जाति पूछते फिर रहे थे.

मित्रों, जिस तरह राम-रावण युद्ध में दुनिया के सारे राक्षस एकजुट हो गए थे वैसे ही गुजरात में भी इस समय एकजुट हो गए हैं. गुजरात चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं है यह एक प्रयोग है जिसको आईएसआई आजमाने जा रही है. सवाल उठता है कि क्या हम आईएसआई के इस प्रयोग को सफल हो जाने देंगे? प्रश्न उठता है कि बिहार में भाजपा को हरा दिया गया था मगर परिणाम क्या हुआ? बिहार का विकास पूरी तरह से ठप्प हो गया और नीतीश कुमार को मन मार कर फिर से भाजपा के साथ जाना पड़ा.

मित्रों, हम मानते हैं कि कुछ गलतियाँ भाजपा से भी हुई हैं. सेक्स सीडी मामले में एकतरफा कार्रवाई करते हुए पत्रकार को भीतर कर दिया लेकिन मंत्री पर कार्रवाई नहीं की गई. साथ ही मुकुल राय को पार्टी में शामिल करना तो गलत है ही इसकी टाइमिंग भी गलत है. पार्टी को बताना चाहिए कि शारदा मामले में आरोपी मुकुल अब कैसे भ्रष्ट नहीं रहे. साथ ही व्यवसाय प्रधान राज्य होने के कारण कुछ असर तो जीएसटी का भी पड़ेगा.

मित्रों, फिर भी अंत में मैं गुजरातियों से पूछना चाहूँगा कि उनको विकसित भारत और गुजरात चाहिए या आरक्षण के नाम पर बर्बादी चाहिए. हम जब बचपन में क्रिकेट खेलते थे तब टॉस के समय सिक्का उछालने के समय हमेशा भारत को ही चुनते थे भले ही हर बार टॉस हार जाएं. जिस तरह से हमने २०११  और २०१६ में पश्चिम बंगाल, २०१२ में यूपी, २०१५ में बिहार की जनता को सचेत किया था उसी तरह से गुजरात की जनता को चेताना चाहेंगे कि अगर वो आरक्षण के चक्कर में पड़ेंगे तो गुजरात का भी विकास रूक जाना निश्चित है. आरक्षण की राजनीति ने पिछले २५-३० सालों में बिहार को कहाँ-से-कहाँ पहुंचा दिया जगजाहिर है. बिहार को आरक्षण ने लालू जैसा लम्पट दिया फिर गुजरात का हार्दिक तो इस मामले में लालू के बेटे से भी ज्यादा तेजस्वी है. जिस तरह लालू कभी बिहार का भला नहीं कर सकते वैसे ही हार्दिक भी गुजरात का भला नहीं कर सकता बस लालू की तरह आपको उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा करता रहेगा. ये तो अभी से ही होटल से थैली और अटैची भर-भर के रूपया ले जाने लगा है.