रविवार, 18 फ़रवरी 2018

क्या यह मोदी के अंत का आरम्भ है?

मित्रों, अगर आपने मेरे आलेखों को लगातार पढ़ा होगा तो देखा होगा कि जब भी केंद्र की मोदी सरकार ने अच्छा काम किया है मैंने पूरे मन से उसका समर्थन किया है और जब भी उसका काम मुझे देशहित में नहीं लगा है मैंने पूरी ताक़त से उसका प्रतिकार किया है. चाहे कश्मीर में गठबंधन का मामला हो या फिर भूमि-अधिग्रहण कानून पर आगे बढ़कर पीछे हट जाने का सवाल हो या फिर पापियों-प्रलापियों को मंत्रिमंडल में स्थान देने का प्रश्न हो या फिर सैनिकों की शहादत मेरी कलम ने कभी मोदी सरकार पर प्रहार करने में देर ने नहीं की.
मित्रों, मैं मानता हूँ कि अर्थशास्त्र का अच्छा ज्ञान होने के बावजूद मैं न सिर्फ नोटबंदी के पीछे मोदी सरकार की छिपी हुई मंशा को नहीं समझ पाया बल्कि जीएसटी को अब तलक भी नहीं समझ पाया हूँ. फिर भी ऐसा मानकर कि इस सरकार की नीति तो गलत हो सकती है लेकिन नीयत गलत नहीं होगी इन दोनों मुद्दों पर सरकार के कहे को सच मानकर उसकी पैरोकारी की यह जानते हुए भी कि नीतिगत गलती भी अक्षम्य होती है. लेकिन जैसे गर्म शीशे के टुकड़े पर ठंडा पानी पड़ने से शीशा टूटकर बिखर जाता है वैसे ही पीएनबी घोटाला के सामने आने बाद हमारा भोला-भाला भक्त-ह्रदय पूरी तरह से भग्न-ह्रदय में परिवर्तित हो गया है.
मित्रों, मोदी खुद को खजाने का पहरेदार कहते हैं अन्ना चौबीस घंटे चौकन्ना फिर कैसे कोई खूनी पंजा खजाने को लूट गया.  और सबसे दुखद समाचार तो यह है कि वो खूनी पंजा कोई और नहीं है बल्कि प्रधान सेवक सह चौकीदार जी का मेहुल भाई और उन मेहुल भाई का भांजा है. हो सकता है कि जनता के पैसे की खुली लूट का यह मामला २०११ तक जाता हो लेकिन तथ्य तो यही बताते हैं कि ९० प्रतिशत से ज्यादा लूट २०१६ और उसके बाद हुई. हमने यह भी माना कि पहले की सरकारों के समय भी बैंकों में जमा जनता की मेहनत की कमाई को लूटा और लुटाया गया लेकिन मैं मोदी जी से पूछना चाहता हूँ कि अगर आपकी सरकार में भी चलता है चलता रहा तो फिर आपकी और पहले की सरकार में क्या अंतर रहा?  तो क्या जनता ने आपको मन की बात के जरिये कोरे प्रवचन करने के लिए ही चुना था?
मित्रों, स्वर्गीय संजय गाँधी जिनका पूरा परिवार अभी भाजपा में शरणार्थी है कहते थे कि बातें कम काम ज्यादा। लगता है कि मोदी जी का मूल मंत्र है बातें ही बातें और काम शून्य. बिहार में इस सन्दर्भ में एक बहुत ही खूबसूरत कहावत प्रचलन में है कि बात हमसे लीजिए और काम हमारे दादाजी से. दरअसल बिहार में कुछ ऐसे महारथी भी हैं जो बातों से न सिर्फ मन भर देते हैं बल्कि पेट भी भर देते हैं और होशियार-से-होशियार लोग भी उनके झांसे में आ जाते हैं.
मित्रों, अब जब अगला लोकसभा चुनाव दरवाजे से कुछेक फर्लांग ही दूर रह गया है तब मुझे एक किस्सा याद आ रहा है. किसी गांव में एक डॉक्टर था जो था तो डिग्री के अनुसार सर्जन लेकिन अल्पज्ञ और बातूनी था. शुरुआत में जो भी उसके संपर्क में आता उससे बिना ईलाज कराए रह नहीं पाता. कभी वो किसी का पेट खोल देता तो कभी किसी का फेफड़ा तो किसी का ब्रेन लेकिन आतंरिक अंगों की जटिलता को समझ नहीं पाता और मरीज मरघट पहुँच जाता. धीरे-२ लोग उसकी परछाई से भी डरने लगे और डॉक्टर शहर छोड़कर चला गया.
मित्रों, आज मोदी सरकार हर मोर्चे पर असफल है लेकिन यह उसकी असफलता नहीं है बल्कि भारत की असफलता है. समझ में नहीं आता कि अगले चुनाव में हम किसे वोट डालेंगे? आपकी समझ में कुछ आ रहा है क्या? यह सरकार या आनेवाले चुनाव में उपस्थित विकल्प? कुछ भी?

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