रविवार, 20 मई 2018

साई बाबा पर विवाद क्यों?

मित्रों, पिछले कई सालों से मैं देख रहा हूँ कि हमारे देश में दशकों पहले स्वर्ग सिधार चुके महापुरुषों के चरित्रहनन का अभियान-सा चल पड़ा है. कभी गाँधी, कभी नेहरू, कभी अकबर तो कभी चिश्ती हद तो यह है कि छिद्रान्वेषियों ने साई बाबा तक को नहीं छोड़ा है.
मित्रों, मैं दिन-रात सिर्फ विषवमन करनेवाले नितांत नकारात्मक सोंच रखनेवाले लोगों से पूछना चाहता हूँ कि साई बाबा की पूजा हो रही है तो इससे हिंदुत्व और मानवता को क्या नुकसान हो रहा है? क्या साई भक्त देश में कहीं भी किसी अनैतिक गतिविधि में संलिप्त पाए गए हैं? क्या वे जेहादियों की तरह आतंक फैला रहे हैं?
मित्रों, इसके उलट मैं देखता हूँ कि साई भक्त हर जगह मानवता की सेवा में लगे हैं. कहीं भंडारा हो रहा है तो कहीं अस्पताल चल रहा है कहीं रक्तदान शिविर का आयोजन हो रहा है फिर साई का विरोध क्यों?
मित्रों, मैं नहीं जानता और जानना भी नहीं चाहता कि साई जन्मना हिन्दू थे या मुसलमान। मैं तो बस यह जानना चाहता हूँ और इसे ही पर्याप्त समझता हूँ कि साई के उपदेश क्या थे और सबसे बढ़कर कि साई के कर्म क्या थे?
मित्रों, सदियों पहले तुलसी बाबा कह गए हैं कि कर्म प्रधान विश्व करि राखा फिर जन्म की बात कहाँ से उठने लगी और वो भी २१वीं सदी में. मैं समझता हूँ कि इस तरह के सवाल हमारे विवेक पर सवाल उठाते हैं. और सवाल उठाते हैं हमारी आधुनिकता पर.
मित्रों, जहाँ तक मेरा मानना है और मैं मानता हूँ कि आपका भी यही मानना होगा कि जन्म और जाति का आज के ज़माने में कोई महत्व नहीं होना चाहिए। हजारों सालों से रावण ब्राह्मण होकर भी निंदनीय है और हनुमान बन्दर होकर भी परम पूज्य। आखिर क्यों? मैं यह भी मानता हूँ कि हमें अकबर, गाँधी या नेहरू की सिर्फ कमियों को नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी अच्छाइयों को भी मद्देनजर रखना चाहिए. इसी तरह से जो लोग वीर सावरकर और आरएसएस को दिन-रात गालियाँ देते रहते हैं और यही जिनका पुश्तैनी धंधा बन चुका है मैं उनसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि सावरकर के योगदान की भी कभी चर्चा कर लें. इसी तरह मैंने देखा है कि कहीं भी कोई दुर्घटना हो जाए या प्राकृतिक आपदा आ जाए तो आपदा विभाग के सक्रिय होने से काफी पहले और सबसे पहले आरएसएस वाले ही वहाँ पहुँचते हैं. क्यों कांग्रेस सेवा दल वाले उन स्थलों पर दिखाई नहीं देते?
मित्रों, बहुत से महापुरुषों में कुछ मानवोचित कमियाँ थीं लेकिन साई में तो कोई कमी थी ही नहीं इसलिए मैं समझता हूँ कि इस तरह के प्रयास तत्काल बंद होने चाहिए. इस तरह के प्रयासों की जितनी भी निंदा की जाए कम है. वैसे सूरज पर थूकने से जिन लोगों को संतोष मिलता है उनको मैं दूर से ही नमस्कार करना चाहूंगा क्योंकि
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये, पयःपानः हि भुजङ्गानाम केवलं विषवर्द्धनं। 

कर्नाटक का नाटक

मित्रों, पता नहीं आज हमारे तपोधर्मी संविधाननिर्माताओं की आत्माएँ हमसे कितनी शर्मिंदा होगी! हमने उनके बनाए संविधान को पूरी तरह से बेमानी जो साबित कर दिया है. यह हमारा दुर्भाग्य है कि शासन के तीनों ही भाग व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपनी-अपनी मनमानी पर इस बेशर्मी से उतारू हैं कि नैतिकता, गरिमा और मर्यादा जैसे महान शब्द अर्थहीन हो चुके हैं. द्रौपदी का चीरहरण तो एक बार हुआ था संविधान का तो रोजाना हो रहा है और सबसे घृणास्पद तो यह है कि इसमें न सिर्फ पांडव बल्कि भीष्म और विदुर भी शामिल हो गए हैं. मोदी सरकार को लगता है कि चूंकि कांग्रेस ने गलत किया था इसलिए उसकी गलती सही मान ली जाएगी। अगर ऐसा होता तो कांग्रेस आज ४०४ से ४४ पर नहीं आ गयी होती. जनता ने उसे गलत माना और दण्डित किया. भाजपा गलत करेगी तो उसके साथ भी निश्चित रूप से वही होगा।
मित्रों, यह सर्वविदित है कि सत्ता का गन्दा खेल भारत में कॉंग्रेस ने ही शुरू किया था. जिस तरह बिना पानी के मछली जीवित नहीं रह सकती उसी तरह कांग्रेस को भी विपक्ष की राजनीति रास नहीं आती है. क्योंकि विपक्ष की राजनीति संघर्ष और त्याग का मार्ग है और चूँकि कांग्रेस देश की आजादी के भी पहले से ही लगातार सत्ता में रही इसलिए संघर्ष उसके स्वाभाव में ही नहीं है. कदाचित इसलिए अपनी सरकार के खिलाफ जनादेश होने के बावजूद वो उसी दल के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है जिसके विरुद्ध उसने चुनाव के दौरान जमकर विषवमन किया था. कांग्रेस की इसी तरह की धोखेबाजी की राजनीति हमने लालू के दौर में बिहार में न सिर्फ देखा है बल्कि भोगा भी है. हर चुनाव से पहले कांग्रेस लालू से अलग हो जाती थी. जमकर आरोप-प्रत्यारोप चलते। चुनाव को हर बार बहुकोणीय बनाकर लालू की जीत सुनिश्चित करती और चुनावों के बाद सरकार में शामिल हो जाती. हालाँकि इस तरह कांग्रेस लम्बे समय तक भाजपा को सत्ता से दूर रहने में कामयाब भी हुई लेकिन धीरे-धीरे उसका जनाधार घटता रहा और आज कांग्रेस बिहार में लगभग समाप्त हो चुकी है.
मित्रों, जो लोग आज कर्नाटक में साझा सरकार के गठन को कांग्रेस की जीत मान रहे हैं वे मेरी इस बात को गाँठ बांधकर रख लें कि कांग्रेस का यह कदम भविष्य में आत्मघाती सिद्ध होगा और उसकी हालत वहां भी बिहार जैसी हो जाएगी.
मित्रों,जहाँ तक कर्नाटक में भाजपा की रणनीति का सवाल है  तो  मैं यह मानता हूँ कि उसने सरकार गठित करके ठीक किया. वो सबसे बड़ी पार्टी थी इसलिए उसके लिए जनता में यह सन्देश देना आवश्यक था कि हम तो आपकी सेवा करना चाहते थे लेकिन कमी आपकी तरफ से ही रह गई. पता नहीं उन अफवाहों में कितनी सच्चाई थी कि भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगी है. क्योंकि कल जो कुछ हुआ उससे तो ऐसा लगता है कि उन अफवाहों में कोई सच्चाई थी ही नहीं.
मित्रों, हम यह नहीं कहते कि वाजपेयी के नक्शेकदम पर चलने से येदुरप्पा अचानक वाजपेयी हो गए हैं क्योंकि वाजपेयी आदर्श थे जैसे रामराज्य आदर्श है. यद्यपि किसी भी आदर्श को पूरी तरह से प्राप्त करना असंभव होता है तथापि उस दिशा में प्रयासरत होना ही बड़ी बात है वो भी चौतरफा पतन के इस विडंबनाओं, संत्रास और प्रच्छन्नताओं के युग में. भले ही वो आदर्श महज दिखावा हो और ज़माने को दिखाने के लिए हो.