रविवार, 20 मई 2018

कर्नाटक का नाटक

मित्रों, पता नहीं आज हमारे तपोधर्मी संविधाननिर्माताओं की आत्माएँ हमसे कितनी शर्मिंदा होगी! हमने उनके बनाए संविधान को पूरी तरह से बेमानी जो साबित कर दिया है. यह हमारा दुर्भाग्य है कि शासन के तीनों ही भाग व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपनी-अपनी मनमानी पर इस बेशर्मी से उतारू हैं कि नैतिकता, गरिमा और मर्यादा जैसे महान शब्द अर्थहीन हो चुके हैं. द्रौपदी का चीरहरण तो एक बार हुआ था संविधान का तो रोजाना हो रहा है और सबसे घृणास्पद तो यह है कि इसमें न सिर्फ पांडव बल्कि भीष्म और विदुर भी शामिल हो गए हैं. मोदी सरकार को लगता है कि चूंकि कांग्रेस ने गलत किया था इसलिए उसकी गलती सही मान ली जाएगी। अगर ऐसा होता तो कांग्रेस आज ४०४ से ४४ पर नहीं आ गयी होती. जनता ने उसे गलत माना और दण्डित किया. भाजपा गलत करेगी तो उसके साथ भी निश्चित रूप से वही होगा।
मित्रों, यह सर्वविदित है कि सत्ता का गन्दा खेल भारत में कॉंग्रेस ने ही शुरू किया था. जिस तरह बिना पानी के मछली जीवित नहीं रह सकती उसी तरह कांग्रेस को भी विपक्ष की राजनीति रास नहीं आती है. क्योंकि विपक्ष की राजनीति संघर्ष और त्याग का मार्ग है और चूँकि कांग्रेस देश की आजादी के भी पहले से ही लगातार सत्ता में रही इसलिए संघर्ष उसके स्वाभाव में ही नहीं है. कदाचित इसलिए अपनी सरकार के खिलाफ जनादेश होने के बावजूद वो उसी दल के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है जिसके विरुद्ध उसने चुनाव के दौरान जमकर विषवमन किया था. कांग्रेस की इसी तरह की धोखेबाजी की राजनीति हमने लालू के दौर में बिहार में न सिर्फ देखा है बल्कि भोगा भी है. हर चुनाव से पहले कांग्रेस लालू से अलग हो जाती थी. जमकर आरोप-प्रत्यारोप चलते। चुनाव को हर बार बहुकोणीय बनाकर लालू की जीत सुनिश्चित करती और चुनावों के बाद सरकार में शामिल हो जाती. हालाँकि इस तरह कांग्रेस लम्बे समय तक भाजपा को सत्ता से दूर रहने में कामयाब भी हुई लेकिन धीरे-धीरे उसका जनाधार घटता रहा और आज कांग्रेस बिहार में लगभग समाप्त हो चुकी है.
मित्रों, जो लोग आज कर्नाटक में साझा सरकार के गठन को कांग्रेस की जीत मान रहे हैं वे मेरी इस बात को गाँठ बांधकर रख लें कि कांग्रेस का यह कदम भविष्य में आत्मघाती सिद्ध होगा और उसकी हालत वहां भी बिहार जैसी हो जाएगी.
मित्रों,जहाँ तक कर्नाटक में भाजपा की रणनीति का सवाल है  तो  मैं यह मानता हूँ कि उसने सरकार गठित करके ठीक किया. वो सबसे बड़ी पार्टी थी इसलिए उसके लिए जनता में यह सन्देश देना आवश्यक था कि हम तो आपकी सेवा करना चाहते थे लेकिन कमी आपकी तरफ से ही रह गई. पता नहीं उन अफवाहों में कितनी सच्चाई थी कि भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त में लगी है. क्योंकि कल जो कुछ हुआ उससे तो ऐसा लगता है कि उन अफवाहों में कोई सच्चाई थी ही नहीं.
मित्रों, हम यह नहीं कहते कि वाजपेयी के नक्शेकदम पर चलने से येदुरप्पा अचानक वाजपेयी हो गए हैं क्योंकि वाजपेयी आदर्श थे जैसे रामराज्य आदर्श है. यद्यपि किसी भी आदर्श को पूरी तरह से प्राप्त करना असंभव होता है तथापि उस दिशा में प्रयासरत होना ही बड़ी बात है वो भी चौतरफा पतन के इस विडंबनाओं, संत्रास और प्रच्छन्नताओं के युग में. भले ही वो आदर्श महज दिखावा हो और ज़माने को दिखाने के लिए हो. 

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