मित्रों, लगभग हर चुनाव में हम इस नारे को सुनते हैं-तख़्त बदल दो ताज बदल दो बेईमानों का राज बदल दो. एक समय था जब समाजवादी होना ईमानदारी का प्रमाणपत्र माना जाता था लेकिन आज अखिलेश टोंटी चोर के नाम से जाने जाते हैं. यूपी की ही तरह बिहार में भी पिछले २८ सालों से समाजवादियों का शासन है जिन्होंने बिहार को क्या से क्या बनाकर रख दिया है.
मित्रों, कई बार जब हम समय के पन्ने को पलटकर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जिस सत्ता परिवर्तन को क्रांति समझा था वो दरअसल भ्रान्ति थी और कदाचित पहलेवाला शासन ही अच्छा था. हमें याद है कि १९९० के विधानसभा चुनावों के समय बिहार में कांग्रेसविरोधी लहर चल रही थी. वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे और यूं लगता था कि समाजवादी बिहार का भाग्य बदल कर रख देंगे. उन्होंने ऐसा किया भी और बिहार के सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल दिया. कुछ ही सालों में समाजवादी राज यादव राज में बदल गया. लालू के साले और पार्टी वालों ने दरोगा तो क्या डीएम तक को कार्यालय में घुसकर पीटा. आईएएस की पत्नियों के साथ बलात्कार तक हुआ. अब जब अधिकारी ही लाचार थे तो जनता की कौन सुनता. बिहार से व्यवसायी भागने लगे. देखते ही देखते बिहार के ३० चीनी मिलों में से २५ बंद हो गए. कहना न होगा लालू राज से पहले बिहार चीनी उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर था. मतलब कि लालू ने वादा तो किया था बिहार को औद्योगिक राज्य बनाने का लेकिन किया उल्टा. जो उद्योग पहले से चालू थे उनको भी बंद करवा दिया और बिहार को पूरी तरह से मजदूरों की आपूर्ति करनेवाला राज्य बना दिया. यहाँ मैं आपलोगों को याद दिला दूं कि बिहार प्रतिव्यक्ति आय के मामले में १९४७ में देश में दूसरा स्थान रखता था.
मित्रों, इसी बीच बिहार में नीतीश कुमार का अवतरण हुआ. उनको भी शासन करते आज १३ साल हो चुके हैं लेकिन बिहार की दशा सुधरने के बदले बिगड़ी ही ज्यादा है. अंतर बस इतना है कि लालू ताल ठोंककर भ्रष्टाचार करता था और ये चुपचाप करते हैं लेकिन आज बिहार में भ्रष्टाचार लालू के ज़माने से भी ज्यादा है. लालू के ज़माने में जिला प्रशासन ने विकास निधि की राशि को निजी खाते में नहीं डाला था लेकिन नीतीश के समय सृजन घोटाला हो चुका है. लालू के समय बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतनी बुरी नहीं थी जितनी नीतीश ने ग्राम प्रधानों से शिक्षकों की बहाली करवा कर कर दी है. लालू के ज़माने में प्रत्येक बहाली में कम से कम आधे लोग प्रतिभा के आधार पर चुने जाते थे नीतीश के ज़माने में पूरी सीट पहले ही बिक जाती है. लालू के ज़माने में बिहार बोर्ड इतना बदनाम नहीं था लेकिन आज बिहार बोर्ड अराजकता और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा अड्डा बन चुका है कि लोग इसके द्वारा परीक्षा देने में डरने लगे हैं.
मित्रों, पिछले कुछ दिनों से बिहार बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर पर ऊँगलियाँ उठ रही हैं. लेकिन सवाल उठता है कि थाने-प्रखंड से लेकर सचिवालय तक बिहार में ऐसा कौन-सा कार्यालय है जहाँ पैसे लेकर अधिकारियों को तैनात नहीं किया गया है? काफी समय पहले शायर शौक बहराईची ने कहा था-
मित्रों, कई बार जब हम समय के पन्ने को पलटकर देखते हैं तो पाते हैं कि हमने जिस सत्ता परिवर्तन को क्रांति समझा था वो दरअसल भ्रान्ति थी और कदाचित पहलेवाला शासन ही अच्छा था. हमें याद है कि १९९० के विधानसभा चुनावों के समय बिहार में कांग्रेसविरोधी लहर चल रही थी. वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे और यूं लगता था कि समाजवादी बिहार का भाग्य बदल कर रख देंगे. उन्होंने ऐसा किया भी और बिहार के सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल दिया. कुछ ही सालों में समाजवादी राज यादव राज में बदल गया. लालू के साले और पार्टी वालों ने दरोगा तो क्या डीएम तक को कार्यालय में घुसकर पीटा. आईएएस की पत्नियों के साथ बलात्कार तक हुआ. अब जब अधिकारी ही लाचार थे तो जनता की कौन सुनता. बिहार से व्यवसायी भागने लगे. देखते ही देखते बिहार के ३० चीनी मिलों में से २५ बंद हो गए. कहना न होगा लालू राज से पहले बिहार चीनी उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर था. मतलब कि लालू ने वादा तो किया था बिहार को औद्योगिक राज्य बनाने का लेकिन किया उल्टा. जो उद्योग पहले से चालू थे उनको भी बंद करवा दिया और बिहार को पूरी तरह से मजदूरों की आपूर्ति करनेवाला राज्य बना दिया. यहाँ मैं आपलोगों को याद दिला दूं कि बिहार प्रतिव्यक्ति आय के मामले में १९४७ में देश में दूसरा स्थान रखता था.
मित्रों, इसी बीच बिहार में नीतीश कुमार का अवतरण हुआ. उनको भी शासन करते आज १३ साल हो चुके हैं लेकिन बिहार की दशा सुधरने के बदले बिगड़ी ही ज्यादा है. अंतर बस इतना है कि लालू ताल ठोंककर भ्रष्टाचार करता था और ये चुपचाप करते हैं लेकिन आज बिहार में भ्रष्टाचार लालू के ज़माने से भी ज्यादा है. लालू के ज़माने में जिला प्रशासन ने विकास निधि की राशि को निजी खाते में नहीं डाला था लेकिन नीतीश के समय सृजन घोटाला हो चुका है. लालू के समय बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतनी बुरी नहीं थी जितनी नीतीश ने ग्राम प्रधानों से शिक्षकों की बहाली करवा कर कर दी है. लालू के ज़माने में प्रत्येक बहाली में कम से कम आधे लोग प्रतिभा के आधार पर चुने जाते थे नीतीश के ज़माने में पूरी सीट पहले ही बिक जाती है. लालू के ज़माने में बिहार बोर्ड इतना बदनाम नहीं था लेकिन आज बिहार बोर्ड अराजकता और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा अड्डा बन चुका है कि लोग इसके द्वारा परीक्षा देने में डरने लगे हैं.
मित्रों, पिछले कुछ दिनों से बिहार बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर पर ऊँगलियाँ उठ रही हैं. लेकिन सवाल उठता है कि थाने-प्रखंड से लेकर सचिवालय तक बिहार में ऐसा कौन-सा कार्यालय है जहाँ पैसे लेकर अधिकारियों को तैनात नहीं किया गया है? काफी समय पहले शायर शौक बहराईची ने कहा था-
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
सो इस स्थिति में बिहार का जो अंजाम होना था या होना चाहिए हो रहा है. नीतीश एक भी बंद चीनी मिल चालू नहीं करवा पाए और न ही कोई नया उद्योग ही बिहार में स्थापित करवा पाए. आज बिहार में फिर से लूट-मार-बलात्कार-अपहरण का बोलबाला है. आज फिर से भाजपा नीतीश के साथ आ चुकी है लेकिन अब तक इससे सेहत समेत बिहार के किसी भी महकमे की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
मित्रों, मोदी जी ने तो कहा था कि वो भारतमाता के वामांग को भी शक्तिशाली बनाएंगे लेकिन बिहार में तो ऐसा कुछ दिख नहीं रहा बल्कि बिहार दिन-ब-दिन और भी बर्बाद होता जा रहा है. अलबत्ता बिहार भाजपा के अध्यक्ष नित्यानन्द राय जरूर इन दिनों राष्ट्रपति के साथ विदेश दौरे का लुत्फ़ उठा रहे हैं. भले ही वो बिहार में भाजपा को एक भी यादव का वोट नहीं दिलवा पाएँ.
मित्रों, आगे बिहार का क्या होगा पता नहीं. लालू के बेटों को हमने अब तक जितना देखा है उससे तो यही लगता है कि ये लालू से भी बड़े यादववादी हैं फिर बिहार की जनता के सामने विकल्प क्या है? यूपी को तो योगी मिल गया है. वैसे भी माया-मुलायम या अखिलेश के समय यूपी की दशा उतनी नहीं बिगड़ी थी जितनी बड़े भाई लालू और छोटे भाई नीतीश के समय बिहार की बिगड़ी है. इन दिनों मैं यूपी के मुज़फ्फरनगर में रह रहा हूँ और देखता हूँ कि किस तरह चीनी मीलों ने जिले के किसानों की दशा को बदलकर रख दिया है. क्या बिहार में ऐसा कभी देखने को मिलेगा? आखिर कब तक बिहार के किसान हानिकारक खेती करने को अभिशप्त रहेंगे? आखिर कब तक बिहार के युवा श्रमिक दूसरे राज्यों को पलायन करते रहेंगे,कब तक?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वीरांगना रानी दुर्गावती का ४५४ वां बलिदान दिवस “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सारगर्भित यथार्थ दर्शन।
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