गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

राम की तरह राम मंदिर भी बने आदर्श

मित्रों, 'राम’ भारतीय परंपरा में एक प्यारा नाम है. वह ब्रह्मवादियों का ब्रह्म है, निर्गुणवादी संतों का आत्माराम है, ईश्वरवादियों का ईश्वर है, अवतारवादियों का अवतार है. वह वैदिक साहित्य में एक रूप में आया है, तो बौद्ध जातक कथाओं में किसी दूसरे रूप में. एक ही ऋषि वाल्मीकि के ‘रामायण’ नाम के ग्रंथ में एक रूप में आया है, तो उन्हीं के लिखे ‘योगवसिष्ठ’ में दूसरे रूप में. ‘कम्बन रामायण’ में वह दक्षिण भारतीय जनमानस को भावविभोर कर देता है, तो तुलसीदास के रामचरितमानस तक आते-आते वह उत्तर भारत के घर-घर का बड़ा और आज्ञाकारी बेटा, आदर्श राजा और सौम्य पति बन जाता है. इस लंबे कालक्रम में रामायण और रामकथा जैसे 1000 से अधिक ग्रंथ लिखे जाते हैं. तिब्बती और खोतानी से लेकर सिंहली और फारसी तक में रामायण लिखी जाती है. 1800 ईसवी के आस-पास उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मुल्ला मसीह फारसी भाषा के करीब 5000 छंदों में रामायण को छंदबद्ध करते हैं।
मित्रों, पिछले दिनों भारतीय संस्कृति की आत्मा उन्हीं राम के मंदिर को लेकर सोशल मीडिया पर सुझाव देनेवालों की भीड़ लगी रही. कोई कह रहा था कि वहां अस्पताल बनवा दो तो कोई कह रहा था स्कूल. लेकिन अभी भी बहुसंख्यक लोगों का मानना था कि वहां बने तो मंदिर ही बने. आखिर अयोध्या में रामलला का मंदिर नहीं बनेगा तो कहाँ बनेगा?
मित्रों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को लेकर पिछले कई दशकों से जमकर राजनीति हो रही है. पहले भाजपा कहती थी कि न तो दिल्ली में और न ही लखनऊ में हमारी सरकार है फिर हम क्या कर सकते हैं. आज दोनों की जगहों पर उसकी सरकार है फिर भी वो कह रही है कि हम कुछ भी नहीं कर सकते जो करेगा कोर्ट करेगा. बहाने पर बहाने. ऐसे में पता नहीं कि कब राम मंदिर बनेगा और कब रामलला को पक्का मकान मिलेगा. फिर भी मुझे पूरा यकीन है कि एक-न-एक दिन राम मंदिर बनेगा जरूर क्योंकि अब बहुत सारे मुसलमान भी खुलकर इसके पक्ष में आ रहे हैं.
मित्रों, राम मंदिर का निर्माण तो तय है पर यह जब भी बने मैं चाहता हूँ कि उसकी व्यवस्था कुछ उस तरह की हो जैसी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और पटना के महावीर मंदिर की है. यानि उसकी आमदनी से उसके पुजारी गोल्डन बाबा बनकर गुलछर्रे न उडाएँ बल्कि उससे भूखों को भोजन और बीमारों को ईलाज मुहैय्या कराई जाए. गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोले जाएँ. भिखारियों और बेसहारों के लिए धर्मशालाएं बनाई जाएँ. साथ ही इनसे जो भी लाभान्वित हों उनकी जाति-पाति और धर्म का ख्याल न रखा जाए. और यह सबकुछ निःशुल्क हो. मंदिर की तरफ से हो. मतलब कि इन सबका खर्च मंदिर प्रबंधन उठाए. मेरा मानना है कि यही राम की सच्ची भक्ति होगी क्योंकि हमारे राम गरीबों के राम हैं और रामचरितमानस के लेखक तुलसीदास का उनके प्रति सबसे प्रिय संबोधन गरीबनवाज है. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं रघुबर तुमको मेरी लाज।
सदा सदा मैं सरन तिहारी तुमहि गरीबनवाज।। 
हम जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास का आधा जीवन भूख और प्यास से लडते हुए बीता। तुलसी कहते हैं                                               किसबी ,किसान -कुल ,बनिक,भिखारी, भाट ,
चाकर ,चपल नट, चोर,  चार,  चेटकी  
पेटको पढ़त,गुन गढ़त ,चढत गिरि ,
अटत गहन -गन अहन अखेटकी 
ऊंचे -नीचे करम ,धर्म -अधरम  करि
पेट ही को पचत ,बेचत बेटा- बेटकी 
'तुलसी ' बुझायी एक राम घनश्याम ही ते ,
आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी
(अर्थात श्रमिक ,किसान ,व्यापारी ,भिखारी ,भाट ,सेवक,चंचल नट ,चोर, दूत और बाजीगर अर्थात हम सभी इस कलियुग में पेट के लिए ही सब कर्म कुकर्म कर रहे हैं -पढ़ते ,अनेक उपाय रचते ,पर्वतों पर चढ़ते और शिकार की खोज में दुर्गम वनों का विचरण करते फिरते हैं ..सब लोग पेट ही के लिए ऊंचे नीचे कर्म तथा धर्म -अधर्म कर रहे हैं ,यहाँ तक कि अपने बेटे-बेटी को बेच तक दे रहे हैं (दहेज़ ?) ----अरे यह पेट की आग तो समुद्रों की बडवाग्नि से भी बढ गयी है ;इसे तो केवल राम रूपी श्याम मेघ के आह्वान से ही बुझाया जा सकता है. )
मित्रों, आज भी हमारे देश में गरीबों की स्थिति कोई अच्छी नहीं है. आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में हैं. भूख, अभाव, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी से देश की बहुसंख्यक जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि क्या अच्छा रहे कि राम का मंदिर गरीबों की भूख मिटाए,उनके हर तरह के दुख दूर करे और भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त तुलसीदास द्वारा दिए उनके नाम को सार्थक करे, राम की तरह राम का मंदिर भी मानवता के लिए आदर्श बने, प्रेरणास्रोत बने.

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर बुलंदशहर कांड

मित्रों, आपने भी विश्व इतिहास की किताबों में पढ़ा होगा कि दुनिया के विभिन्न देशों में विभिन्न विचारधाराओं के नाम पर क्या-क्या हुआ है. आप जानते होंगे कि १७८९ में फ़्रांस की क्रांति हुई थी. फ़्रांस में लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समानता के नाम पर लाखों निर्दोष लोगों को सूली पर चढ़ा दिया गया. नरसंहार देखकर क्रांति समर्थक दार्शनिकों की आत्मा भी काँप उठी. १९१७ में रूस की क्रांति हुई और उसके बाद भी लेलिन और स्टालिन ने रूस में लाखों लोगों को क्रांतिविरोधी होने के आरोप में मौत के घाट उतार दिया. १९३३ में हिटलर जर्मनी का शासक बना तब महान और विश्वविजेता जर्मनी के नाम पर हजारों निर्दोष यहूदियों को तड़पा-तड़पा कर यातना शिविरों में मार दिया गया. फिर हुई चीन की क्रांति १९४९ में. माओ नामक सनकी ने इसके बाद  'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' (Great Leap Forward) और 'सांस्कृतिक क्रांति' के नाम कई करोड़ चीनी किसानों की जान ले ली. यहाँ तक कि चिड़ियों, मच्छरों, मक्खियों और चूहों को मारने का राष्ट्रीय अभियान चलाया गया. देश में एक तरफ तो अकाल पड़ा हुआ था तो दूसरी तरफ माओ की सरकार अनाज का निर्यात कर रही थी.
मित्रों, इसी तरह की एक महान क्रांति इन दिनों उत्तर प्रदेश में चल रही है, हिंदुत्व क्रांति. उत्तर प्रदेश में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो हमें लगा कि यह आदमी उत्तर प्रदेश को बदलकर रख देगा और उत्तर प्रदेश को वास्तव में उत्तम प्रदेश बना देगा. लेकिन बीच-बीच में लगातार ऐसी घटनाएँ घटती रहीं जो योगी सरकार के कानून के शासन की शान में बट्टा लगाती रही. कभी दयाशंकर सिंह पेट्रोल पम्प वाले को पीटता हुआ दिखा तो कभी कोई भाजपा नेता आईएएस-आईपीएस अधिकारी को धमकी देता हुआ नजर आया. मगर हद तो तब हो गई जब बुलंदशहर में गोकशी के बाद हुए हंगामे के बाद एक पुलिस अधिकारी अभय कुमार सिंह की हत्या कर दी गई और पुलिस हत्या के १९ दिनों के बाद तक भी मुख्य आरोपी बजरंग दल नेता योगेश राज को पकड़ नहीं पाई है. 
मित्रों, पुलिस की हालांकि इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने कथित रूप से गोकशी करनेवाले लोगों को काफी तत्परता से पकड़ा है तथापि यह समझ में नहीं आ रहा कि पुलिस इंस्पेक्टर की नृशंसतापूर्वक हत्या करनेवाले लोग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर क्यों है? आपको याद होगा कि अखिलेश यादव के राज में भी सपा के गुंडे थानों पर शासन करते थे. अब भाजपा के राज में भी वही हो रहा है बस पार्टी बदल गई है. या तो गुंडे बदल गए हैं या फिर उन्होंने पाला बदल लिया है फिर दोनों के शासन में क्या फर्क रह गया? क्या इसे ही राम राज्य कहा जाता है? दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज्य काहू नहीं व्यापा. सूधो मन,सूधो वचन,सूधी सब करतूति। तुलसी सूधी सकल विधि रघुवर प्रेम प्रसूति। कहाँ है रामभक्त वाला शुद्ध मन? क्या अशुद्ध मन लेकर राम की सच्ची भक्ति संभव भी है? क्या यही है असली हिंदुत्व और हिन्दुत्ववादी क्रांति? 
मित्रों, अगर इस तरह हिंदुत्व में नाम पर अराजकता पैदा करने को क्रांति कहते हैं तो हमें नहीं चाहिए ऐसी फर्जी और लोगों को मूर्ख बनानेवाली क्रांति. हमें तो मानसिक क्रांति चाहिए. केंद्र में आज भाजपा की सरकार है और खुद भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय जनसँख्या नियंत्रण कानून समेत देश को दिशा देनेवाली कई सारी मांगें करते-करते थक गए लेकिन केंद्र की सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. हमने खुद सरकार को कई बार दिशा दिखाने की कोशिश की है. मगर केंद्र सरकार अभी भी कांग्रेस की विफलताएं गिनाने में लगी है जबकि चुनाव सर पर खड़ा है. वो यह नहीं जानती है कि यह भारत है पाकिस्तान नहीं कि धर्म के नाम पर बहुसंख्यक वर्ग को बेवकूफ बनाया जा सके. आज पाकिस्तान कहाँ खड़ा है? भैसों की नीलामी हो रही है वहां. पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के सामने आने के बाद भी अभी लगता नहीं कि भाजपा यह समझ पाई है कि उसे करना क्या है? फर्जी क्रांति और उसके नाम पर हिंसा करनी है या सही मायनों में भारत को विश्वगुरु बनाना है? अगर बुलंदशहर भाजपा के सपनों के बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर है तो हमें नहीं चाहिए ऐसा बुलंद भारत, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए.

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

कन्फ्यूजन में हनुमान जी

मित्रों, हमारा देश भी बड़ा विचित्र है. यहाँ जो जितना सीधा दीखता है वो उतना ही टेढ़ा होता है. कितनी बड़ी विडंबना है कि जो व्यक्ति यह कहकर राजनीति में आया कि वो राजनीति को साफ़-सुथरी करने आया है वह खुद राजनीति की सबसे बड़ी गंदगी बन गया, जो पार्टी यह कहती थी कि वो जाति की राजनीति नहीं करती बल्कि हिंदुत्व की राजनीति करती है उसने इन्सान तो इन्सान भगवान तक को गन्दी और घृणित जातीय राजनीति के कीचड़ में घसीट लिया है.
मित्रों, पहले इस पार्टी ने अम्बेदकर जी को भगवान बना दिया, फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससीएसटी एक्ट में दिए गए फैसले को पलट दिया, फिर प्रोन्नति में आरक्षण लागू कर दिया और अब आखिर में भगवानों को भी जाति में बांटना शुरू कर दिया. अपने दिव्यज्ञान का परिचय देते हुए इस पार्टी के एक बहुत बड़े नेता योगी आदित्यनाथ जी ने गहन शोध के बाद पता लगाया कि रामभक्त हनुमान जी बन्दर नहीं थे बल्कि दलित थे.
मित्रों, इसके बाद से तो बेचारे हनुमान जी की जान पर बन आई है. कोई उनको जाट बता रहा है तो कोई आदिवासी, कोई यादव तो कोई ब्राह्मण. एक ने तो धर्म की दीवारों को गिराते हुए उनको मुसलमान भी बता दिया. बेचारे हनुमान जी इसके बाद से जबरदस्त कन्फ्यूजन और गुस्से में हैं. भोले-भाले हनुमान जी समझ नहीं पा रहे हैं कि पहले उनके प्रभु राम को और अब खुद उनको क्यों वोट की गन्दी राजनीति का शिकार क्यों बनाया जा रहा है? सबसे पहले हनुमान जी जा पहुंचे अपने आराध्य प्रभु राम के पास फरियाद लेकर कि प्रभु त्राहिमाम. परन्तु वहां से बेचारे को निराशा हाथ लगी. राम जी ने चिरपरिचित मुस्कान के साथ अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहा कि वत्स जब मैं अपने आपको राजनीति से बचा नहीं पा रहा हूँ तो तुमको कैसे बचाऊँ?
मित्रों, फिर हताश-निराश हनुमान जी पहुंचे अपनी माँ अंजना के पास. माँ बेचारी क्या कहती क्योंकि उनके समय में तो जाति-प्रथा थी ही नहीं फिर जातीय राजनीति तो दूर की बात थी. तबसे हनुमान जी जो खुद ही संकटमोचक कहलाते हैं, बड़े संकट में हैं कि वे करें तो क्या करें.
मित्रों, मुझे याद आता है कि जब मैं १९९४-९५ में कटिहार जिले के फुलवडिया चौक पर अपने कामत पर रहता था तब एक पंडित जी कोढा बाज़ार में सड़क पर हनुमान जी की मूर्ति रखकर आने-जाने वाले हर वाहन से चंदा मांगते थे. क्या धूप, क्या वर्षा और क्या सर्दी. मैं उनकी अटूट भक्ति देखकर अचंभित था. एक दिन मैंने श्रद्धावश उनसे कहा कि पंडित जी आपकी भक्ति देखकर मैं अभिभूत हूँ. पंडित जी के उत्तर ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया. उन्होंने कहा कि वे तो सिर्फ इसलिए मंदिर बनाने में लगे हैं ताकि उनकी आनेवाली पीढ़ियों का भविष्य सेटल हो जाए. मैं समझ क्या रहा था और सच्चाई क्या निकली. तबसे मैं जब भी किसी चौक-चौराहे पर हनुमान जी की मूर्ति या मंदिर देखता हूँ मुझे वो पंडितजी याद आने लगते हैं.
मित्रों, कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म अफीम की तरह है. लगता है कि हमारे देश के नेता काफी पहले धर्म का राजनैतिक महत्व समझ गए थे. तभी तो देश का धर्म में नाम पर बंटवारा हुआ और अब धर्म के नाम पर चुनाव जीते जाते हैं. किसी ने सच ही कहा है कि पहले राजनीति में धर्म था और अब धर्म में भी राजनीति घुस गई है. पता नहीं अब धर्म का और भारत देश का क्या होगा? हम तो हनुमान जी से दोनों हाथ जोड़ कर यही विनती कर सकते हैं कि हे प्रभु, हे संकटमोचक, देवानामप्रिय हमारे प्यारे देश की रक्षा करिए. नहीं तो अभी तो आपकी जाति को लेकर राजनीति हो रही है भविष्य में न जाने भगवान शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, कुबेर, गणेश, कार्तिकेय, इंद्र, अग्नि, पवन, विश्वकर्मा, चित्रगुप्त आदि की जाति को लेकर भी तरह-तरह के दावे किए जाएंगे जैसे इन सबका जन्म प्रणाम-पत्र उन्होंने अपने ही हाथों से बनाया था. 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

सज्जन दोषी तो कमलनाथ निर्दोष कैसे

मित्रों, महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाटक अंधेर नगरी आपने भी पढ़ा होगा मैंने तो मंचन भी किया है. उस नाटक में अन्याय और अराजकता की पराकाष्ठा दिखाई गई है. भारतेंदु ने एक ऐसे राज्य की कल्पना करते हुए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत पर टिपण्णी की है जिसमें एक ही दाम पर सब्जी और मिठाई बिकती है. अपराधी की तलाश में हुक्म जारी किया जाता है कि सबसे मोटे-तगड़े व्यक्ति को पकड़कर फांसी दे दी जाए. तभी गुरुदेव के सुझाव पर कि फंदा किसके गले में सही बैठता है जांच लिया जाए राजा अपने गले की माप लेता है और खुद ही फांसी पर चढ़ जाता है.
मित्रों, बुरा मानो या भला हमारे देश में आज भी अंधेर नगरी वाले हालात बने हुए हैं. आज भी जनता को बस टके सेर भाजी टके सेर खाजा चाहिए भले ही उसे बाद में फांसी पर चढ़ा दिया जाए. हम पर जो पार्टी भयंकर अत्याचार करती है हम सबकुछ भुलाकर मुफ्त की चीजों के लालच में आकर फिर से उसे ही चुन लेते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो १९८४ के सिखविरोधी दंगों से प्रभावित सिख कैसे फिर से पंजाब में कांग्रेस की सरकार बना देते? और वो भी बार-बार. इतना ही नहीं इस पार्टी ने एक ऐसे व्यक्ति को जिसने उस समय दिल्ली के रकाबगंज गुरूद्वारे में लोगों को भड़काकर सिखों को जिंदा जला दिया न सिर्फ उस पर एफआईआर नहीं होने दिया बल्कि पिछले दिनों मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री भी बना दिया.
मित्रों, कल जब दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्हीं दंगों के एक और आरोपी कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार के खिलाफ फैसला दिया तब परिजनों और उनके वकीलों के साथ-साथ जज साहब भी भावुक होकर रोने लगे. मैं बार-बार कहता रहा हूँ कि इस देश को पुलिस की आवश्यकता ही नहीं है उसे समाप्त कर देना चाहिए. जब १९८४ के दंगे हो रहे थे, लोगों को जिंदा जलाया जा रहा था तब कहाँ थी दिल्ली पुलिस. दंगों के बाद दंगाइयों के खिलाफ क्यों एफआईआर दर्ज नहीं किया गया और जिनके खिलाफ दर्ज हुआ भी उनमें से किसी को भी अब तक सजा क्यों नहीं मिली? अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी बांकी है. पता नहीं वो एक बार फिर से सज्जन को सज्जन घोषित कर दे. यह भारत है यहाँ कुछ भी संभव है. यहाँ जज लोया को मरणोपरांत न्याय नहीं मिलता तो जनता को कहाँ से मिलेगा?
मित्रों, आप समझते हैं कि सज्जन कुमार को सजा नहीं मिलने और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिए जाने के लिए सिर्फ कांग्रेस पार्टी, पुलिस और न्यायपालिका जिम्मेदार हैं? नहीं इसके लिए सबसे ज्यादा हमलोग जिम्मेदार हैं क्योंकि हम लोग मुफ्तखोर हो गए हैं नाटक अंधेर नगरी के चेले की तरह. हम कर्जमाफ़ी के लालच में आकर अपने कातिलों को ही अपना मसीहा चुन लेते हैं. बार-बार चुनते रहिए, कटते रहिए, रोते रहिए और फिर से लालच में आकर चुनते रहिए, फिर से ..... आपकी मर्जी देश सिर्फ मेरा या राहत इंदौरी का थोड़े ही है आपका भी है.

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

राफेल मामले में फेल हुए राहुल

मित्रों, यकीन मानिए और मेरे आलेख गवाह हैं कि मैंने कभी भी राहुल गाँधी के राफेल को लेकर मचाए जा रहे शोर पर रंच मात्र भी यकीन नहीं किया. बल्कि हमेशा कहा कि राहुल और उनकी पार्टी चीन और पाकिस्तान के रिमोट से संचालित होकर इसलिए इस मामले में शोर मचा रहे हैं जिससे मोदी सरकार भारतीय सेना के सशक्तीकरण के महती कार्य को रोक दे. आज हमारे लिए प्रचंड ख़ुशी का अवसर है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार को यह कहते हुए कि राफेल डील में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है हमारी आशंकाओं को सही साबित कर दिया है. अब तो हम इतना ही कह सकते हैं कि काश यह फैसला एक महीने पहले आ गया होता तो भारत के तीन बहुमूल्य राज्य चोरों के कब्जे में जाने से बच जाते. फिर भी हमें इस बात का संतोष है कि देर आयद मगर दुरुस्त आयद.
मित्रों, इन दिनों देश संक्रमण काल से गुजर रहा है. एक तरफ देश के सारे घोटालेबाज जमा हैं और दूसरी तरफ है राष्ट्रवादी सरकार जिसकी नीतियाँ गलत हो सकती हैं लेकिन नीयत नहीं. हालाँकि नीतियों को भी गलत नहीं होना चाहिए क्योंकि इनसे देश को गंभीर नुकसान हो सकता है और हो भी रहा है लेकिन कोई अगर इस पर ऐसे आरोप लगाए कि चौकीदार चोर है और वो भी आधारहीन हवा-हवाई घोटाले को लेकर जो हुआ ही नहीं तो सिवाय इसके और क्या कहा जा सकता है कि चोर मचाए शोर.
मित्रों, हमारे एक बहुत-बहुत दूर के गरीब चाचाजी के साथ एक बार ट्रेन में अजीबोगरीब घटना घटी. हुआ यूं कि एक पॉकेटमार ने जैसे ही उनकी जेब से बटुआ निकाला उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया. लेकिन पॉकेटमार भी कम सयाना न था. उसने उल्टे पॉकेटमार-पॉकेटमार चिल्लाते हुए चाचाजी को ही फंसाना चाहा. गजब तो यह कि यात्री भी उसके झांसे में आ गए और चाचाजी को ही पीटने पर उतारू हो गए. वो तो भला हो उस बटुए का जिसमें चाचाजी की मय परिवारसहित तस्वीर थी वर्ना बेचारे का तो तभी राम नाम सत्त हो जाता. खैर किसी तरह राम जी की कृपा से चाचाजी की जान बच गयी और फिर पॉकेटमार की बिना साबुन-पानी के जमकर धुलाई हुई.
मित्रों, मेरी इस कहानी का कतई सीधा-सीधा सम्बन्ध राहुल गाँधी और मोदी सरकार से है. मेरी कहानी में तो एक ही पॉकेटमार थे यहाँ तो महागठबंधन में उनकी पूरी फ़ौज ही है. तो क्या हम अपने जान से प्यारे देश को फिर से ५-१०-१५-२० सालों के लिए पॉकेटमारों के हवाले कर देंगे जिन्होंने अभी ५ साल पहले तक घोटालों की पूरी अल्फ़ाबेट ही तैयार कर दी थी? अभी तो चोर-पॉकेटमार और भी बहुत शोर मचानेवाले हैं क्योंकि उनको पता है कि हम कहानीवाले ट्रेन के यात्रियों की तरह बहुत भोले-भाले हैं.
मित्रों, मैं यह नहीं कहता कि मोदी सरकार में कोई कमी नहीं है लेकिन उन कमियों को दूर भी तो किया जा सकता है. पता नहीं क्यों मुझे अभी भी पूरा यकीन है कि मोदी सरकार अपने बचे-खुचे समय का पूर्ण सदुपयोग करेगी और हमारी निराशा को दूर करने के अथक और विराट प्रयास करेगी न कि सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस को गरियाने का काम करेगी. अगर अपने और ऊपरवाले पर अटल विश्वास हो तो इस सरकार के पास जितना भी समय शेष है उसी में यह वे सारे काम कर सकती है जो वो आज तक नहीं कर सकी या इस सरकार ने जानबूझकर अज्ञात कारणों से नहीं किए मगर जिनका होना देशहित के लिए अत्यंत आवश्यक है. फिर से गिनाना अगर जरूरी है तो यूं ही सही-अनुच्छेद ३७० समाप्त करना, समान नागरिक संहिता लागू करना, जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाना, एससी-एसटी कानून को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पूर्ववत करना, प्रोन्नति में आरक्षण को समाप्त करना और मायावती जी के सुझावों पर अमल करते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करना इत्यादि. माफ़ करिएगा लिस्ट अधूरी छोड़ रहा हूँ आपके भरोसे कि आपलोग इसे फुरसत में पूरा कर देंगे. फिलहाल तो लगाईए नारा चौकीदार चोर नहीं है चोर ही चोर हैं. चौकीदार चोर नहीं ........
मित्रों, अंत में मैं अपनी आदत से मजबूर होकर मोदी जी को मुफ्त में एक सलाह देना चाहूँगा कि कोई बात जब समझ में न आए तो किसी ज्ञानी मानव से जो उन मामलों का विशेषज्ञ हो सलाह ले लें क्योंकि देश कोई मरे हुए इन्सान या जानवर की लाश नहीं है जिस पर कोई चीर-फाड़ कर तजुर्बा करे. देश की जान जा सकती है, देश नीम बेहोशी में जा सकता है यार.

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

अप्रत्याशित नहीं हैं चुनाव परिणाम

मित्रों, ५ राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं. पांच में से तीन में पहले भाजपा सरकार थी. अब जो आसार नजर आ रहे हैं उनसे ऐसा लगता है कि भाजपा पांच में से किसी भी राज्य में सत्ता में आने नहीं जा रही अलबत्ता वे तीन राज्य जहाँ कि उसकी सत्ता थी वहां भी जनता ने उसे पैदल कर दिया है. तथापि इन चुनाव परिणामों में कई ऐसे गहन संकेत छिपे हुए हैं जो २०१९ में नरेन्द्र मोदी सरकार की वापसी की संभावनाओं को धूमिल कर रहे हैं. संक्षेप में अगर हम कहें कि यह भाजपा की कम मोदी की हार ज्यादा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
मित्रों, मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने अनुभव किया है कि लोग नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रदर्शन से काफी नाराज़ हैं और वे किसी भी कीमत पर उसे हराना चाहते हैं. अभी दो दिन पहले मैंने एक समाचार पढ़ा कि एक किसान ने मध्य प्रदेश में १५०० किलो ग्राम प्याज बेचा और मंडी तक बोरियां लाने का खर्च काटकर उसके पास मात्र १० रूपये बचे. आप इस खबर से सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि देश में किसानों और खेती की स्थिति क्या है और किसानों की आय दोगुनी करने के मोदी के दावे कहाँ तक सच हैं. जिस किसान की कई महीने की सारी मेहनत मिट्टी में मिल गई उससे भाजपा कैसे वोट की उम्मीद कर रही थी ये तो वही जाने.
मित्रों, मोदी सरकार कहती है कि पिछले ५ सालों में देश में गरीबी तेजी से घटी है और हर मिनट ४४ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ रहे हैं. जहाँ तक मैं समझता हूँ ये सारे आंकड़े फर्जी और झूठे हैं. सच्चाई तो यह है कि जिन संपन्न लोगों के नाम पिछली सरकार के समय गलती से बीपीएल की सूची में दर्ज हो गए थे इस सरकार ने उनके नाम हटा दिए हैं इसलिए गरीबी अचानक बहुत कम होती दिखाई दे रही है. सच्चाई तो यह भी है कि नोटबंदी के बाद से ही गरीबों का जीवनयापन पहले से भी कहीं ज्यादा कठिन हो गया है. सच्चाई तो यह भी है कि ऐसी आंकड़ेबाजी से विश्वबैंक खुश हो सकता है भारत का गरीब और बेरोजगार नहीं जो कमरतोड़ महंगाई और बढती बेरोजगारी से परेशान है.
मित्रों, मैं कई बार मोदी जी से करबद्ध विनम्र प्रार्थना कर चुका हूँ कि वित्त मंत्री बदलिए लेकिन उनके लिए न जाने क्यों नेशन फर्स्ट के स्थान पर जेटली फर्स्ट हो गया है. वित्त मंत्रालय ऐसा मंत्रालय है कि अगर उसका सही तरीके के सञ्चालन न किया गया तो वो अकेले पूरे देश को तंगो तबाह कर सकता है क्योंकि जब सरकार की जेब में पैसा ही नहीं होगा तो वो विकास क्या खाक करेगी. नंगा नहाएगा क्या और निचोडेगा क्या. अभी तो रिजर्व बैंक के गवर्नर ने ही इस्तीफा दिया है अभी तो भाजपा सांसदों की भगदड़ मचनी बांकी है. देश मंदी की चपेट में जाएगा सो अलग फिर बदलते रहना आधार वर्ष और हेरा-फेरी करते रहना जीडीपी के आंकड़ों में. नाच न जाने आँगन टेढ़ा. जेटली को अर्थशास्त्र की एबीसीडी भी आती है?
मित्रों, मैं २०१४ से ही मोदी जी को चेताता आ रहा हूँ कि मंत्रिमंडल में ईमानदार और योग्य लोगों को रखो न कि चापलूसों को लेकिन वे सुन ही नहीं रहे. जो अनुभवी लोग थे उनको पहले ही उन्होंने जबरदस्ती मार्गदर्शक मंडल में डाल कर रिटायर कर दिया. हद तो यह है कि वे इस मार्गदर्शक मंडल से मार्गदर्शन भी नहीं ले रहे सिर्फ अपने मन की कर रहे जैसे कि हर महीने के अंतिम रविवार को अपने मन की बात करते हैं और जनता के मन की बात से उनका कोई सरोकार ही नहीं रह गया है. मैं पूछता हूँ कि जब एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने आवश्यक बदलाव किए तो क्या आवश्यकता थी उससे छेड़-छाड़ करने की? अब भुगतो-न तो एससी-एसटी का वोट मिला और न ही सवर्णों का जो भाजपा के परंपरागत समर्थक माने जाते रहे हैं.
मित्रों, मैं पूछना चाहता हूँ कि पिछले ५ सालोँ में मोदी जी ने एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं किया? क्या वे मीडिया को वाहियात मानते हैं? क्यों डरते हैं वे मीडिया से जबकि उनका सीना तो ५६ ईंच का है?
मित्रों, मैं पहले ही कह चुका हूँ कि यह मोदी जी की व्यक्तिगत हार है लेकिन चुनाव परिणाम यह भी बताते हैं कि जनता अभी भी कांग्रेस को लेकर असमंजस में है. वो इसलिए क्योंकि उसने कांग्रेस को जिताया जरूर है लेकिन प्रचंड बहुमत नहीं दिया है बल्कि साधारण बहुमत दिया है. दूसरी तरफ भाजपा को हराया जरूर है लेकिन उसका सूपड़ा साफ़ भी नहीं किया है. इसलिए मैं समझता हूँ कि अभी संभावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं बशर्ते मोदी अबसे से भी हिम्मत दिखाएँ. वैसे भी मैं नहीं समझता कि उनके सामने और कोई चारा भी है क्योंकि अगर वे अपने काम काज में सुधार नहीं करते तो २०१९ में हार तो अवश्यम्भावी है ही.

रविवार, 2 दिसंबर 2018

मनमोहन सिंह का सर्जिकल स्ट्राइक

मित्रों, हमारे गाँव में एक बच्चा था. पढने-लिखने में भोंदू मगर बात बनाने में होशियार. जाहिर है कि घर के लोग उससे परेशान रहते थे. एक दिन पढाई के लिए बहुत दबाव पड़ने पर उसने कहा कि जब घर के सारे लोग सो जाएंगे तब वो पढ़ेगा. कल होकर उसके पिता ने पूछा कि रात तूने पढ़ा क्यों नहीं. उसने कहा आपको पता कैसे चला. पिता ने कहा कि मैं रजाई में जगा हुआ था. बेटे ने तुरंत कहा कि मैंने तो कहा था कि जब सब सो जाएँगे तब मैं पढूंगा.
मित्रों, मेरी इस हास्यास्पद कहानी का सीधा-सीधा सम्बन्ध राहुल गाँधी के उस बयान से है जिसमें उन्होंने कहा है कि मनमोहन सिंह ने भी पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक किया था लेकिन किसी को इसके बारे में पता नहीं है. पता नहीं कि मनमोहन को भी इस बारे में पता है या नहीं है. शायद सेना को भी पता नहीं होगा कि उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक किया है क्योंकि राहुल गाँधी फरमा रहे हैं कि इसके बारे में किसी को पता ही नहीं है.
मित्रों, जब मनमोहन सिंह १९९१ में वित्त मंत्री बने थे तब भी उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक किया था. फिर प्रधानमंत्री बने तब भी किया. वो इस तरह कि सेना का आधुनिकीकरण रोक दिया. सीमावर्ती इलाकों में सड़कों,रेल लाइनों और हवाई अड्डों का निर्माण रोक दिया. यहाँ तक कि जम्मू और कश्मीर में सीआरपीएफ के जवानों को डंडे लेकर ड्यूटी करने के लिए मजबूर किया गया ताकि उनकी हत्या करने में कांग्रेस के हितैषी आतंकवादियों को किसी तरह की परेशानी न हो. सेना को न तो बुलेट प्रूफ जैकेट दिए और न ही नाईट विजन यन्त्र.
मित्रों, मुबई का आतंकी हमला तो आपको भी याद होगा जब कांग्रेस पार्टी ने आरएसएस पर यह हमला करवाने के आरोप लगाए थे. वो तो भला हो तुकाराम का कि उसने जान देकर भी कसाब को पकड़ लिया वरना पता ही नहीं चलता कि इसके पीछे उसी पाकिस्तान का हाथ है जिसके हाथों में कांग्रेस का हाथ है. वैसे अगर राहुल गाँधी चाहें तो दिल्ली और मुंबई की २००५ और २००८ की आतंकी घटनाओं को कांग्रेस सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में गिना सकते हैं. हम वादा करते हैं कि हम उनको कुछ नहीं कहेंगे. उन पर हँसेंगे भी नहीं.
मित्रों, मनमोहन सरकार के समय तो कांग्रेस नेताओं के ड्राइंग रूम तक कश्मीर के आतंकवादियों की सीधी पहुँच थी, इनके नेता आज भी बार-बार चुनाव जीतने में सहायता मांगने पाकिस्तान जाते हैं और लौटकर बड़े गर्व से कहते हैं कि उनको तो स्वयं राहुल गाँधी ने भेजा था, इनके नेता याकूब की फांसी रुकवाने के लिए रात के २ बजे सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाते हैं और इन्होंने किया था सर्जिकल स्ट्राइक? झूठ की भी एक हद होती है. इनके झूठ पर तो शायद शर्म को भी शर्म आ रही होगी.
मित्रों, वैसे हमें यह देखकर ख़ुशी भी हो रही है कि राहुल गाँधी अब जमकर झूठ बोलने और नाटक करने लगे हैं जबकि हम उन्हें मंदबुद्धि समझते रहे. निश्चित रूप से यह उनके मानसिक विकास का परिचायक है. तो क्या अब हम उनकी तुलना अपने गाँव के उस बच्चे से कर सकते हैं जिसकी चर्चा हमने पहले पैराग्राफ में की है? जरूर जवाब दीजिएगा. आपके जवाब का इंतजार रहेगा.