शनिवार, 22 दिसंबर 2018

बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर बुलंदशहर कांड

मित्रों, आपने भी विश्व इतिहास की किताबों में पढ़ा होगा कि दुनिया के विभिन्न देशों में विभिन्न विचारधाराओं के नाम पर क्या-क्या हुआ है. आप जानते होंगे कि १७८९ में फ़्रांस की क्रांति हुई थी. फ़्रांस में लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समानता के नाम पर लाखों निर्दोष लोगों को सूली पर चढ़ा दिया गया. नरसंहार देखकर क्रांति समर्थक दार्शनिकों की आत्मा भी काँप उठी. १९१७ में रूस की क्रांति हुई और उसके बाद भी लेलिन और स्टालिन ने रूस में लाखों लोगों को क्रांतिविरोधी होने के आरोप में मौत के घाट उतार दिया. १९३३ में हिटलर जर्मनी का शासक बना तब महान और विश्वविजेता जर्मनी के नाम पर हजारों निर्दोष यहूदियों को तड़पा-तड़पा कर यातना शिविरों में मार दिया गया. फिर हुई चीन की क्रांति १९४९ में. माओ नामक सनकी ने इसके बाद  'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' (Great Leap Forward) और 'सांस्कृतिक क्रांति' के नाम कई करोड़ चीनी किसानों की जान ले ली. यहाँ तक कि चिड़ियों, मच्छरों, मक्खियों और चूहों को मारने का राष्ट्रीय अभियान चलाया गया. देश में एक तरफ तो अकाल पड़ा हुआ था तो दूसरी तरफ माओ की सरकार अनाज का निर्यात कर रही थी.
मित्रों, इसी तरह की एक महान क्रांति इन दिनों उत्तर प्रदेश में चल रही है, हिंदुत्व क्रांति. उत्तर प्रदेश में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो हमें लगा कि यह आदमी उत्तर प्रदेश को बदलकर रख देगा और उत्तर प्रदेश को वास्तव में उत्तम प्रदेश बना देगा. लेकिन बीच-बीच में लगातार ऐसी घटनाएँ घटती रहीं जो योगी सरकार के कानून के शासन की शान में बट्टा लगाती रही. कभी दयाशंकर सिंह पेट्रोल पम्प वाले को पीटता हुआ दिखा तो कभी कोई भाजपा नेता आईएएस-आईपीएस अधिकारी को धमकी देता हुआ नजर आया. मगर हद तो तब हो गई जब बुलंदशहर में गोकशी के बाद हुए हंगामे के बाद एक पुलिस अधिकारी अभय कुमार सिंह की हत्या कर दी गई और पुलिस हत्या के १९ दिनों के बाद तक भी मुख्य आरोपी बजरंग दल नेता योगेश राज को पकड़ नहीं पाई है. 
मित्रों, पुलिस की हालांकि इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसने कथित रूप से गोकशी करनेवाले लोगों को काफी तत्परता से पकड़ा है तथापि यह समझ में नहीं आ रहा कि पुलिस इंस्पेक्टर की नृशंसतापूर्वक हत्या करनेवाले लोग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर क्यों है? आपको याद होगा कि अखिलेश यादव के राज में भी सपा के गुंडे थानों पर शासन करते थे. अब भाजपा के राज में भी वही हो रहा है बस पार्टी बदल गई है. या तो गुंडे बदल गए हैं या फिर उन्होंने पाला बदल लिया है फिर दोनों के शासन में क्या फर्क रह गया? क्या इसे ही राम राज्य कहा जाता है? दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम राज्य काहू नहीं व्यापा. सूधो मन,सूधो वचन,सूधी सब करतूति। तुलसी सूधी सकल विधि रघुवर प्रेम प्रसूति। कहाँ है रामभक्त वाला शुद्ध मन? क्या अशुद्ध मन लेकर राम की सच्ची भक्ति संभव भी है? क्या यही है असली हिंदुत्व और हिन्दुत्ववादी क्रांति? 
मित्रों, अगर इस तरह हिंदुत्व में नाम पर अराजकता पैदा करने को क्रांति कहते हैं तो हमें नहीं चाहिए ऐसी फर्जी और लोगों को मूर्ख बनानेवाली क्रांति. हमें तो मानसिक क्रांति चाहिए. केंद्र में आज भाजपा की सरकार है और खुद भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय जनसँख्या नियंत्रण कानून समेत देश को दिशा देनेवाली कई सारी मांगें करते-करते थक गए लेकिन केंद्र की सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. हमने खुद सरकार को कई बार दिशा दिखाने की कोशिश की है. मगर केंद्र सरकार अभी भी कांग्रेस की विफलताएं गिनाने में लगी है जबकि चुनाव सर पर खड़ा है. वो यह नहीं जानती है कि यह भारत है पाकिस्तान नहीं कि धर्म के नाम पर बहुसंख्यक वर्ग को बेवकूफ बनाया जा सके. आज पाकिस्तान कहाँ खड़ा है? भैसों की नीलामी हो रही है वहां. पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के सामने आने के बाद भी अभी लगता नहीं कि भाजपा यह समझ पाई है कि उसे करना क्या है? फर्जी क्रांति और उसके नाम पर हिंसा करनी है या सही मायनों में भारत को विश्वगुरु बनाना है? अगर बुलंदशहर भाजपा के सपनों के बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर है तो हमें नहीं चाहिए ऐसा बुलंद भारत, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए.

कोई टिप्पणी नहीं: