गुरुवार, 14 मार्च 2019

कांग्रेस के तुरुप का आखिरी पत्ता प्रियंका वाड्रा

मित्रों, पिछले कई सालों से भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस अजीब संक्रमण और संकट की स्थिति से गुजर रही है. राजीव गाँधी की हत्या के बाद पार्टी को जब लगा कि फिर से पार्टी की बागडोर नकली गाँधी परिवार के हाथों में सौंपे बिना पार्टी का पुनरुत्थान नहीं हो सकता तब १९९८ में वयोवृद्ध अध्यक्ष सीताराम केसरी को जबरदस्ती हटाकर सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया गया. इसी बीच जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है वैसे ही २००४ के लोकसभा चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी द्वारा की गई अक्षम्य गलतियों के चलते कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. इसी बीच सोनिया गाँधी ने सही अवसर को भांपते हुए २००७ में अपने बेटे राहुल गाँधी को पार्टी महासचिव बना दिया. इससे पहले कई बार राहुल गाँधी की लौन्चिंग के कयास लगे लेकिन हर बार वह टालती रही. हर बार यह कहा गया कि अभी राहुल राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं. २००७ में राहुल गाँधी के आगमन के कुछ सालों के भीतर ही ऐसा प्रतीत होने लगा कि राहुल गाँधी कतई तुरुप का पत्ता नहीं हैं बल्कि जोकर हैं और उनमें वो दम नहीं है जिसके दम पर वे कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभाल सकें. बाद में जब इंतज़ार की हद हो गई तब थक हार कर राहुल गाँधी को २०१७ में यानि पिछले साल पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया. इस बीच २००९ में पार्टी की जीत का श्रेय बेवजह इन्हीं राहुल गाँधी को दिया गया जबकि पार्टी जीती थी मनमोहन सरकार के कामकाज से.
मित्रों, इसी बीच मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में अभूतपूर्व घोटालों के चलते कांग्रेस बदनाम हो गयी और देश की जनता ने उसे ४४ पर समेट दिया. पार्टी इतनी बुरी तरह से हारी कि भारत के इतिहास में पहली बार उसे प्रतिपक्षी पार्टी तक का दर्जा नहीं मिला. तभी से जब भी पार्टी जीतती है तो पार्टी के लोग कहते हैं कि जीत का श्रेय सिर्फ राहुल जी को जाता है और जब भी पार्टी हारती है तो कहा जाता है कि पार्टी अपनी गलतियों या इवीएम के कारण हारी है न कि राहुल गाँधी के चलते.
मित्रों, अभी कुछ दिन पहले जब कांग्रेस यह समझने लगी कि पार्टी की नैया लोकसभा चुनावों में पार लगाना अकेले राहुल गाँधी के वश की बात नहीं है तब उनकी छोटी बहन प्रियंका गाँधी को तुरुप के आखिरी पत्ते के रूप में ७ फरवरी २०१९ को पार्टी का महासचिव बना दिया गया. एक लम्बे इंतजार और गैरहाजिरी के बाद अभी कुछ दिन पहले से प्रियंका ने पार्टी के प्रचार करना शुरू किया है. इस बीच यह दावा भी किया गया कि उनकी नाक की लन्दन में प्लास्टिक सर्जरी करवाई गई है ताकि उनकी नाक देखने में उनकी दादी इंदिरा गाँधी की तरह लगे. उनकी पुरानी तस्वीर को देखकर ऐसा लगता भी है कि शायद ऐसा करवाया गया है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में उनके द्वारा दिए गए भाषण को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि प्रियंका अपनी दादी की छाया मात्र भी है दादी जैसी होना तो बहुत दूर की बात रही. मुझे लगता है कि वो कदाचित राजनीति में आती भी नहीं अगर उसके पति पर संकट नहीं आता क्योंकि उसे अपनी सीमाएं पता है. वो शायद इसलिए मजबूरन राजनीति में आई है क्योंकि उसे अपने पति को जेल जाने से बचाना है वर्ना कहाँ इंदिरा गाँधी और कहाँ प्रियंका. इसमें न तो दादी वाली सूक्ष्म बुद्धि है और न ही ज्ञान. साथ ही उसमें दादी वाली सम्प्रेषण क्षमता, साहस और दृढ़ता भी नहीं है. पिछले दो-तीन दिनों में किए गए विश्लेषण के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि प्रियंका राहुल गाँधी से ज्यादा योग्य नहीं है बल्कि अगर उसे हम लेडी राहुल कहें तो किसी भी दृष्टिकोण से ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा. वैसे यह तुरुप का पत्ता नहला, दहला, दुग्गी, तिग्गी या क्या निकलती है यह तो समय बताएगा लेकिन यह पत्ता राजा या रानी नहीं है इतना तो निश्चित है क्योंकि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते है. पता नहीं अब आगे कांग्रेस क्या करेगी? वैसे हो सकता है कि वो भविष्य में रोबर्ट वाड्रा में अपने भविष्य की तलाश करे, वैसे भी वाड्रा ने राजनीति में प्रवेश की अपनी ईच्छा जता भी दी है. मुझे पता है कि कांग्रेस मेरी सलाह को मानेगी नहीं लेकिन मैं उसे सलाह देना चाहूँगा कि परिवार के बाहर भी तो देखो. पार्टी में ऐसे कई नेता हैं जो काफी योग्य हैं उनमें नेतृत्व-क्षमता कूट-कूटकर भरी है.

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