शनिवार, 4 अप्रैल 2020

नित नूतन सतीश नूतन की कविता


मित्रों, कभी-कभी किसी-किसी को जीवन में वो सब मिल जाता है जिसका वो हक़दार नहीं होता और कभी-कभी किसी-किसी को इसके उलट वो सब नहीं मिल पाता जिसका वो हक़दार होता है. हाजीपुर के महाकवि स्वर्गीय हरिहर प्रसाद चौधरी नूतन के सुपुत्र सतीश नूतन इसी दूसरी श्रेणी में आते हैं. सम्प्रति हाजीपुर के टाउन हाई स्कूल में क्लर्क सतीश जी उन कोमल भावनाओं के कवि हैं जो बढती प्रच्छन्नताओं के कारण हमारे जीवन से लुप्तप्राय हो चुकी हैं. उनकी कविताओं में आप बच्चों के निश्छल बचपन को महसूस करेंगे, गरीबों की मजबूरी भी देखने को मिलेगी, देशभक्ति के स्वर भी देखने को मिलेंगे और गंगा जल जैसी पवित्रता के साथ श्रृंगार रस भी. नूतन जी की कविताओं में आपको अक्सर हाजीपुर की स्थानीय भाषा बज्जिका के शब्दों का सौन्दर्य देखने को मिलेगा जैसे फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यासों में पूर्णिया की मिटटी की पहली बरसात की सोंधी-सोंधी खुशबू मिलती थी. तो आप मित्रगण भी आनंद लीजिए नूतन जी की सबसे नई कविता का जिसमें उन्होंने कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में परदेश से बिहार लौटे मजदूर की व्यथा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है-
क्वारंटाइन केन्द्र के एक मजदूर की व्यथा 

आया था ई सोच के दिल्ली
खूब कमाऊंगा
कम ही खाऊंगा
ज्यादा से ज्यादा बच पाए
जुगत लगाऊंगा
ठेकेदार, सेठ कहे तो
छुट्टी पाऊंगा
देगा जो सौगात उसे ढो
घर ले जाऊंगा
चमक-दमक दिखलाकर दिल्ली
हिरदय बीच बिठाया
रोटी, चावल, घुघनी परसा
लगा की सुख की हो गई वर्षा
आठ बजे तो
भोंपू लेकर
पहुंचे पंथ प्रधान!
किया बड़ा ऐलान-
इधर-उधर क रो ना
अपने बिल में घुस
कुछ ही दिनों में
ईहो विपदा
हो जायेगा फुस्स
सुबह हाथ में लट्ठ लिए
आया मेरा रखवाला
होकर बिल्कुल मतवाला
बोला-
जाओ अपने देस पूरबिये
जाओ अपने देस
तुम्हारा कुछ भी यहाँ न शेष
तथाकथित दिलवालों का
ई बोल सूनते भइया
याद आ गई मइया
खूंटे पे रंभाती गइया
गोर पकड़ कर
विनत भाव से पूछा-
साहब!
रुका हुआ है पहिया,
पैदल पहुँचेंगे कहिया?
ऊ स हम न जानें
अब तू हो बेगाने
भाग
भाग मजूरे भाग
आया है बड़ा व्याधि
मरोगे
आधाआधी
जिस दिल्ली को चिक्कन कीया
आफत में ऊ छीना ठीया
चकाचौंध की लाठी खाकर
दिखा गाँव का लुकझुक दीआ
खुद से ठोका नाल पांव में
उट्ठक बइठक
सोंटा खाते
पहुँचा तब जा अपन गाँव में
टाट लगाए
मुख्य सड़क सरपंच खड़ा था
पगडंडी पर कांट बिछा कर पंच खड़ा था
क्वारंनटाइन के लिए कटा चालान बाप रे!
बाबा ने समझाया
ढाढस खूब बंधाया
जब कह देंगे डागदर बाबू
तुम हो पूरे टंच
तो घर आना भगवंत
सही समय पर जांच करा ले
इस छुतहर को दूर हटा ले

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