सोमवार, 4 मई 2020

मजदूरों के साथ सरकारी अन्याय





मित्रों, अगर आपने हमारे भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ी होगी तो आपको भी यह पता होगा कि भारत एक लोककल्याणकारी राज्य है. राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते हमें ज्ञात है कि एक लोककल्याणकारी राज्य की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं. किसी भी लोककल्याणकारी राज्य में सरकार का यह प्रथम कर्त्तव्य होता है कि वहां के जनसामान्य को आर्थिक सुरक्षा मिले क्योंकि इसके बिना लोककल्याणकारी राज्य का कोई महत्त्व नहीं है. ऐसे राज्य में सबके लिए रोजगार, न्यूनतम जीवन की गारण्टी, अधिकतम आर्थिक समानता होनी चाहिए। यदि शासन तन्त्र में राजसत्ता आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न लोगों के हाथों में होगी तो वह लोककल्याणकारी राज्य की श्रेणी में नहीं आयेगा। किसी भी लोककल्याणकारी लोकतंत्र की दूसरी विशेषता होती है राजनीतिक, सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था. लोककल्याणकारी राज्य को चाहिए कि वह ऐसी व्यवस्था करे कि राजनैतिक शक्ति सम्पूर्ण रूप से जनता के हाथ में हो। शासन व्यवस्था लोकहित में हो। इसके साथ ही लोककल्याणकारी राज्य का प्रमुख लक्षण यह होना चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा से साथ-साथ समाज में रंग, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वंश, लिंग के आधार पर भेदभाव न करे और न होने दे। राज्य को लोककल्याण सम्बन्धी वे सभी कार्य करने चाहिए, जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रता प्रभावित न हो और वे अपने कार्यक्षेत्र में पूर्ण क्षमता एवं स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य कर सकें। राज्य में शान्ति एवं सुव्यवस्था कायम करना तथा नागरिकों को कानून के तहत सुशासन प्रदान करना भी राज्य के कर्तव्यों में सम्मिलित है। लोककल्याणकारी राज्य को शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने के लिए स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्याय की भी व्यवस्था करनी चाहिए। लोककल्याणकारी राज्य को स्त्री-पुरुष, बच्चों तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का इस प्रकार नियमन करना चाहिए कि उनके बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न न हो. साथ ही सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना और नागरिकों के स्वास्थ्य रक्षा हेतु समुचित उपाय करना भी एक लोककल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्त्तव्य है.
मित्रों, इसके साथ ही कृषि की उन्नति हेतु राज्य को उत्तम बीज, खाद एवं सिंचाई के समुचित साधनों की व्यवस्था करना, कृषकों को कम ब्याज पर ऋण देना, यातायात एवं संचार के लिए सड़कों, रेलों, जल तथा वायुमार्गो, डाक, तार, टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन आदि की व्यवस्था करना, श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए श्रमहितकारी कानून बनाना, शारीरिक रूप से अपंग एवं वृद्ध व्यक्तियों के लिए इस प्रकार के शिक्षण और प्रशिक्षण की व्यवस्था करना कि वह अपना जीविकोपार्जन स्वयं कर सकें, राज्य में कला, साहित्य, विज्ञान को प्रोत्साहन देना, नागरिकों के लिए आमोद-प्रमोद व मनोरंजन की व्यवस्था करना, प्राकृतिक सम्पदा के अधिकाधिक उपयोग के उपाय करने के साथ ही प्राकृतिक आपदा के समय जनसामान्य के लिए राहत और प्राणरक्षा के उपाय करना भी राज्य का कर्त्तव्य है.
मित्रों, दुर्भाग्यवश इस समय भी हमारे देश में आपदा आई हुई है और जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि किसी देश ने जानबूझकर कोरोना वायरस को फैलाया है तब तक इसे प्राकृतिक आपदा ही माना जाना चाहिए. जैसा कि हमें ज्ञात है कि पूरे भारत में २४ मार्च से ही सबकुछ बंद है यानि पूर्ण लॉक डाउन है. प्रधानमंत्री ने इस दौरान राष्ट्र को अपने पहले संबोधन में देश के सभी नियोक्ताओं और मकानमालिकों से निवेदन किया था कि वे श्रमिकों को काम और घर से नहीं निकालें बल्कि उनकी मदद करें. कितना आदर्श दिवास्वप्न था यह! अद्भुत! लेकिन चाहे आदर्श हो या स्वप्न उनका सत्य के धरातल पर उतरना हमेशा असंभव होता है, ऐसा हो न सका. अचानक पूरे भारत में और खासकर बड़े-बड़े महानगरों में हजारों लोग अपना रोजगार और निवास खोकर सडकों पर आ चुके हैं. कुछ दिनों तक तो भोजन और आवास का प्रबंध भी राज्य सरकारों और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया गया लेकिन धीरे-धीरे राहत कार्यों में शिथिलता आने लगी. दुनिया के सबसे बड़े लोककल्याणकारी गणराज्य की राजधानी में दिल्ली में हजारों श्रमवीरों को पुलों के नीचे खुले में सोना पड़ रहा है. इतना ही नहीं उन्हें भोजन भी दिनभर में एक ही बार दिया जा रहा है. कुछ ऐसी ही स्थिति मुम्बई और अन्य महानगरों में फंसे मजदूरों की है. जिन मजदूरों के साथ उनका परिवार भी है उनकी स्थिति तो और भी ख़राब है.
मित्रों, कुल मिलाकर पूरे भारत में इस समय श्रमिकों की हालत भिखारियों से भी बदतर है. कई मजदूर तो परेशान होकर आत्महत्या भी कर चुके हैं. लेकिन सरकारें उनके लिए कर क्या रही हैं? लोग सपरिवार भूखे-प्यासे हजारों किलोमीटर की यात्रा करके घर पहुँच रहे हैं. उनमें से कईयों ने तो रास्ते में ही दम भी तोड़ दिया है. इसी बीच दिल्ली सरकार ने अफवाह फैला दी कि आनंद विहार बस अड्डे से बसें खुलनेवाली हैं और मजदूरों को आनंद विहार ले जाकर छोड़ दिया ताकि मजदूर उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर जाएँ और दिल्ली सरकार का उनसे पिंड छूटे. उधर महाराष्ट्र सरकार भी लगातार कह रही है कि प्रवासी मजदूरों को राहत पहुँचाना उसका काम नहीं है. इतना ही नहीं जब केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर जाने की अनुमति दे दी तब कई राज्य सरकारें ऐसा कहने लगी कि प्रवासी मजदूरों को घर तक पहुँचाना उनका काम नहीं है. समझ में ही नहीं आता कि मजदूर किसकी जिम्मेदारी हैं? इतना ही नहीं आज सुबह से है आकाशवाणी पर प्रसारित समाचारों में कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी नए निर्देशों के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को घर लौटने की अनुमति होगी जो लॉक डाउन से तत्काल पहले यात्रा पर गए होंगे और लॉक डाउन घोषित हो जाने के चलते फंस गए होंगे. उन लोगों को घर जाने की अनुमति नहीं है जो पहले से ही मजदूरी या व्यापार के लिए बाहर रहते आ रहे हैं. क्या मजाक है? तो क्या रोजगार और आवास खो चुके सारे श्रमिक सामूहिक आत्महत्या कर लें? क्या इसी को लोककल्याणकारी शासन कहते हैं? कोरोनावीरों को सम्मान और श्रमवीरों को मृत्युदंड? फिर क्या जरुरत है दुनिया के सबसे बड़े रेल तंत्र की?
मित्रों, बिहार जहाँ के सबसे ज्यादा मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं वहां की सरकार की करतूत तो और भी शर्मनाक है. पहले बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने कहा कि बिहार में किसी को घुसने ही नहीं दिया जाएगा जैसे बिहार उनकी पैतृक और निजी संपत्ति हो. जब कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर जाने की अनुमति दे दी तब भी बिहार सरकार का रवैया निराशाजनक था. बिहार सरकार कहने लगी कि उसके पास मजदूरों को वापस लाने के लायक साधन ही नहीं है इसलिए केंद्र सरकार ट्रेनों की व्यवस्था करे. अब जब केंद्र सरकार इसके लिए भी तैयार हो गई तो उसने कुछ नंबर जारी किए और कहा कि ये नंबर उन नोडल अधिकारियों के हैं जिनसे प्रवासी मजदूरों को संपर्क करना है लेकिन उनमें से ज्यादातर नंबर बंद हैं. ऐसा संयोग है या सायास किया जा रहा है पता नहीं लेकिन सवाल उठता है कि कोई सरकार अपनी जनता के साथ ऐसा क्रूर और भद्दा मजाक कैसे कर सकती है और वह भी ऐसे लोगों के साथ जो मजदूर से मजबूर बन चुके हैं. ऐसा हमें वर्षों से ज्ञात है कि बिहार में सरकार नाम की चीज नहीं है लेकिन केंद्र सरकार गरीबों के साथ ऐसा कैसे कर सकती है? तो क्या केंद्र में भी सरकार नहीं है? और अगर सरकार है भी तो क्या वो गरीबों की सरकार नहीं है? समाचार तो इस तरह के भी प्राप्त हो रहे हैं कि जो मजदूर ट्रेनों से घर आ रहे हैं उनसे किराया वसूल रही है कांग्रेस और वामपंथियों की सरकारें. यहाँ तक कि राजस्थान से यूपी आनेवाले यात्रियों से भी ट्रेनों में चढ़ने से पहले ही राजस्थान की सरकार द्वारा किराया का पैसा ले लिया गया. हद हो गयी जिनका सबकुछ पहले ही लुट गया है वो बेचारे किराया कहाँ से देंगे? क्या भारत में अभी भी अंग्रेजों की सरकार है?

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