शनिवार, 8 अगस्त 2020

शम्बूक वध और सीता परित्याग की सत्यता

मित्रों, माता काली के महानतम भक्त रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि सारे ग्रन्थ जूठे और झूठे हैं. सबमें मनमाफिक संशोधन किए गए हैं. अब अगर रामकृष्ण कह रहे हैं तो वो सत्य तो होगा ही. वास्तव में हुआ भी यही है. हम जानते हैं कि पहले ग्रंथों को लिखने की सुविधा नहीं थी. तब पीढ़ी-दर-पीढ़ी ग्रंथों को कंठस्थ किया-कराया जाता था. ऐसे में गलतियों और भिन्नताओं की सम्भावना भी पूरी-पूरी रहती थी. बाद में जब ग्रन्थ लिखे जाने लगे तो इस कारण उनकी कई-कई प्रतियाँ हो गईं और विद्वानों के बीच समस्या उत्पन्न हो गई कि किस प्रति को प्रामाणिक माना जाए. यह अब सर्वमान्य तथ्य है कि पूर्व मध्य काल में भारतीय धर्म और राजनीति के इतिहास के साथ छेड़खानी की गई जिसके परिणामस्वरूप काफी भ्रम फैल गया। यह वही समय था जब उत्तर भारत में बौद्ध और जैन धर्म का बोलबाला था. बौद्धों और जैनों ने क्षत्रियों को चारों वर्णों में सबसे ऊपर कर दिया क्योंकि भगवान बुद्ध और महावीर क्षत्रिय थे जबकि हम जानते हैं कि वर्ण-व्यवस्था में क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद दूसरे स्थान पर आते हैं . जिस बुद्ध का पुनर्जन्म में विश्वास नहीं था उनके पूर्व जन्मों को लेकर जातक कथाओं की झड़ी लगा दी गयी.  जो बुद्ध और महावीर मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे उनकी जमकर मूर्ति पूजा होने लगी. इस काल में लगभग सारे हिन्दू ग्रंथों में जमकर छेड़छाड़ की गई. यहाँ हम आपको बता दें कि पहले रामायण 6 कांडों का होता था, उसमें उत्तरकांड नहीं होता था। बौद्धकाल में उसमें राम और सीता के बारे में झूठ लिखकर उत्तरकांड जोड़ दिया गया। उस काल में भी इस कांड पर विद्वानों ने घोर विरोध जताया था, लेकिन कालांतर में उत्तरकांड के चलते साहित्यकारों, कवियों और उपन्यासकारों को लिखने के लिए एक नया मसाला मिल गया और इस तरह राम को धीरे-धीरे बदनाम कर दिया गया। इसी बौद्ध काल में रामायण में शम्बूक-वध प्रकरण जोड़कर राम को न्यायी से अन्यायी राजा बना दिया गया.

मित्रों, आज राम को इन्हीं दो बातों के लिए बदनाम किया जाता है. पहला उन्होंने सीता का परित्याग कर दिया था. और दूसरा उन्होंने शम्बूक नामक शूद्र तपस्वी की हत्या कर दी थी. हद हो गई मिथ्यालाप की. राम ने सीता का परित्याग कर दिया था? इससे पहले यह प्रसंग भी जोड़ दिया गया कि राम ने सीता की अग्नि परीक्षा ली थी. डाल दो किसी स्त्री को आग में. क्या वो जीवित बचेगी? फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि सीता जी जीवित बच गईं? तात्पर्य यह कि पूरा प्रसंग ही असत्य और मनगढ़ंत है.  वाल्मीकि रामायण, जो निश्‍चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखी गई थी, समस्त विकृतियों से अछूती है। इसमें सीता परित्याग, शम्बूक वध, अग्नि परीक्षा आदि कुछ भी नहीं था। यह रामायण युद्धकांड (लंकाकांड) में समाप्त होकर केवल 6 कांडों का था। इसमें उत्तरकांड बाद में जोड़ा गया। शोधकर्ता कहते हैं कि हमारे इतिहास की यह सबसे बड़ी भूल थी कि बौद्धकाल में उत्तरकांड लिखा गया और इसे वाल्मीकि रामायण का हिस्सा बना दिया गया। हो सकता है कि यह उस काल की सामाजिक मजबूरियां रही हों लेकिन सच को इस तरह बिगाड़ना कहां तक उचित है? सीता ने न तो अग्निपरीक्षा दी और न ही पुरुषोत्तम राम ने उनका कभी परित्याग किया।

मित्रों, सवाल उठता है कि जिस सीता के बिना राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने विश्व के सबसे शक्तिशाली राजा से युद्ध लड़ा उसे वे किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो? इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते। शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है। रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950) लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया। बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेर-फेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित 'रामचरित मानस' के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ।

मित्रों, हिन्दू धर्म के आलोचक खासकर 'राम' की जरूर आलोचना करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि 'राम' हिन्दू धर्म का सबसे मजबूत आधार स्तंभ है। इस स्तंभ को गिरा दिया गया तो हिन्दुओं को धर्मांतरित करना और आसान हो जाएगा। इसी नी‍ति के चलते तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ मिलकर वे राम के विरुद्ध असत्य का अभियान चलाते रहते हैं. अब हम बात करेंगे शम्बूक प्रकरण की.  यह सर्वविदित है कि चौदह वर्षों के वनवास में अंतिम दो सालों को छोड़कर राम के बारह वर्ष आदिवासियों और दलितों के बीच बीते। शुरुआत होती है बालसखा व विद्यालय के मित्र रहे निषादराज गुह से मिलन से. फिर केवट प्रसंग आता है। इसके बाद चित्रकूट में रहकर उन्होंने धर्म और कर्म की शिक्षा ली। यहीं पर वाल्मीकि आश्रम और मांडव्य आश्रम था। चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था। इनमें से वाल्मीकि के बारे में माना जाता है कि वे मुसहर जाति से थे. राम उनके चरण-स्पर्श करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं. बाद में वही वाल्मीकि रामायण की रचना करते हैं.

मित्रों, फिर सीता-हरण के बाद उनकी शबरी से भेंट होती है जो भील जाति की है. राम शबरी की जूठन भी बड़े ही प्रेम से खाते हैं. राम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को मुख्यधारा में ला दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में जहाँ राम ने अपना वनवास बिताया था, आज भी राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूजनीय माना जाता है। लेकिन अंग्रेज काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्मांतरण का कुचक्र चलाया और राम को दलितों-आदिवासियों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की, जो आज भी जारी है।

मित्रों, इसी प्रकार तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में समुद्र के मुख से कहलवाया है कि- 'ढोल गवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।' ऐसा श्रीराम ने अपने मुंह से कभी नहीं कहा। हो सकता है आज कोई लेखक अपनी किसी रचना में ऐसा राम से ही कहलवा दे. तुलसीदास द्वारा लिखे गए इस एक वाक्य के कारण राम की बहुत बदनामी हुई। कोई यह नहीं सोचता कि जब कोई लेखक अपने तरीके से रामायण लिखता है तो उस समय उस पर उस काल की परिस्थिति और अपने विचार ही हावी रहते हैं। फिर ऐसा समुद्र ने विनय भाव से कहा है. ठीक वैसे ही जैसे तुलसी अपने बारे में विनय भाव से कहते है-मो सम कौन कुटिल, खल, कामी? तो क्या तुलसी सचमुच महापतित थे या हो गए?

मित्रों, अब आप ही बताईये कि जो राम वनवास के चौदह में से बारह सालों तक दलितों-आदिवासियों के मध्य रहे और उनकी रक्षा की, जिस राम ने वाल्मीकि के चरण-रज माथे से लगाकर आशीर्वाद लिया, जिस राम ने शबरी के जूठन को भी निज माता का प्रसाद समझकर ग्रहण किया वही राम एक निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ इसलिए मार डालेगे कि वो वेद पाठ कर रहा है जबकि वेदों की रचना में भी अनगिनत शूद्रों ने अपना योगदान दिया है. अथर्ववेद के रचनाकार महर्षि अथर्वा कौन थे? शूद्र ही तो थे. हद हो गई झूठ बोलने की और राम को बदनाम करने की. 

मित्रों, इसी प्रकार एक राम विरोधी कन्नड़ गायक तम्बूरी दासय्या जो कथा गाते हैं उसमें सीता को रावण की बेटी बताया गया है. हंसिये मत और हंसी को बचाकर रखिए. इस कथा में रावण जोर से छींकता है और उसकी छींक से सीताजी का जन्म होता है. इन्होने तो नया मेडिकल साईंस ही रच दिया. छींकने से बच्चा पैदा हो गया और वो भी एक पुरुष के. आगे से आप भी जब भी छींकें तो सचेत रहें. खासकर पुरुष. इसी प्रकार अगर कोई भर्ता को भ्राता पढ़-सुन ले और यह कहना शुरू कर दे कि राम और सीता तो भाई-बहन थे तो इसमें रामायणकार का क्या दोष?

मित्रों, अंत में मैं यह बताना चाहूँगा कि इतिहास की घटनाओं की सत्यता को प्रमाणित करना लगभग असंभव होता है. क्या हम जानते हैं कि सुभाष बाबू विमान-दुर्घटना में मरे थे या बच गए थे? क्या कोई बता सकता है कि शास्त्री जी की मृत्यु का क्या कारण था? इन घटनाओं की छोडिये इसी साल १४ जून को सुशांत सिंह राजपूत की मौत कैसे हुई क्या कोई बता सकता है? करनेवाले इतिहासकार भारत के बंटवारे की भी मनमानी व्याख्या कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हिन्दुओं ने भारत का बंटवारा करवाया। मुसलमानों ने नहीं हिन्दुओं ने अलग देश की मांग की थी. हद हो गई उल्टा इतिहास लिखा जा रहा है. विकीपीडिया कहता है कि २०२० के दिल्ली के दंगे हिन्दुओं की सोंची-समझी रणनीति के तहत हुए.  ताहिर हुसैन दंगाई नहीं है पीड़ित है. शिक्षाविद मधु किश्वर विकिपीडिया पर अपनी जीवनी को बदलना चाहती हैं क्योंकि उनके बारे गलत-सलत लिखा हुआ है लेकिन बदल नहीं सकती क्योंकि विकिपीडिया को प्रमाण चाहिए। ये तो वही बात हो गई कि डॉक्टर ने मरीज को मरा हुआ बता दिया. मरीज उठ बैठा और चिल्लाया कि वो जीवित है. तब उसकी पत्नी ने उसे डांट लगाई चुप रहो तुम डॉक्टर से ज्यादा जानते हो क्या? अब आप ही बताईइ किसका सच सच है? पूर्णिमा जी का या विकिपीडिया का? पालघर की अफवाह सही थी या संत सही थे? कल कोई विकिपीडिया पर लिख दे कि बगदादी जैनी था इसलिए अहिंसा का पुजारी था, ओसामा बिन लादेन कृष्ण भगवान का भक्त और परम भगवत था जिसने गौ रक्षा के लिए हथियार उठाया था तो करोड़ों साल बाद लोग कदाचित इसे ही सच मानेंगे. 

मित्रों, कहने का मतलब यह कि राम ने सीता परित्याग और शम्बूक-हत्या (मैं इसे हत्या ही नहीं जघन्य हत्या मानता हूँ बशर्ते यह सत्य हो) सत्य है या नहीं इसका पता लगाना आज सम्भव नहीं है क्योंकि राम को हुए करोड़ों साल हो चुके हैं. ऐसे में एक ही रास्ता हमारे समक्ष बचता है कि जो-जो कर्म राम के स्वाभाव से मेल नहीं खाते उनको असत्य और चरित्र-हनन का निंदनीय प्रयास मान लिया जाए.

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

भारत निर्वासित धार्मिक विश्वास और सहयोग प्रदान कर सम्मानित हुए।