शनिवार, 19 नवंबर 2022

अमित शाह जी आतंकवाद का भी धर्म होता है

मित्रों, कहते हैं कि एक बार भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु संसद की सीढियों पर लड़खड़ा गए थे तब दिनकर जी ने उनको संभाला था और मजाक में कहा था कि जब भी भारत की राजनीति लड़खड़ाएगी साहित्य आगे बढ़कर उसे संभाल लेगा. खैर ये तो हुई मजाक की बात. नेहरु ने भले कितनी भी गलतियाँ की हों, आजाद भारत में भी अंगेज को गवर्नर जनरल बनाए रखा हो, कश्मीर के महाराजा के विलय के प्रस्ताव पर कश्मीर के मुसलमानों की ईच्छा को तरजीह दी हो, अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर द्वारा चीनी हमले की आशंका पर ध्यान न दिया हो और हिन्दू विवाह कानून बनाकर हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया हो लेकिन फिर भी देश में जब तक कांग्रेस का शासन रहा भ्रष्टाचार कम रहा और राजनीतिज्ञों की आँखों में लाज थी. निस्संदेह सन १९६७ से देश की राजनीति लगातार पराभव की तरफ जाने लगी जबसे राजनीति में पिछड़ों की राजनीति करनेवाली शक्तियां मजबूत होने लगी. मित्रों, आज स्थिति क्या है? आज भारत की राजनीति से मूल्य बिलकुल ही गायब हो चुका है. नेता येन-केन-प्रकारेन गद्दी पा लेना चाहते हैं. मिनट-मिनट पर झूठ बोलना और जनता को ठगना ही उनके लिए राजधर्म बन गया है भले ही उनकी नीतियों से देश-प्रदेश को कितना ही दीर्घकालिक नुकसान क्यों न हो. एक तरफ केजरीवाल हैं जिनकी झूठ की ही खेती है और जिनके लिए दिल्ली में राजनीति का मतलब जनता को फ्री का लालच देकर गद्दी प्राप्त करना है और गद्दी प्राप्त करने के बाद खजाने को लूट लेना है. तो वहीँ केजरीवाल जी के लिए पंजाब में राजनीति का मतलब खालिस्तान समर्थकों के समर्थन से सत्ता प्राप्त करना है और जीतने के बाद तुभ्यदीयं गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पयामि के अंदाज में खालिस्तानियों के चरणों में दंडवत हो जाना है फिर राज्य आतंकवाद की आग में जले तो जले. मित्रों, बिहार के नेताओं की हालत भी कोई अलग नहीं है. यहाँ नौकरी पानेवालों की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने के लिए सरकार नियुक्ति घोटाला कर रही है. जो लोग पहले से ही नौकरी में हैं उनको गाँधी मैदान में बुलाकर और करोड़ों रूपये खर्च कर समारोहपूर्वक फिर से नियुक्ति-पत्र बांटे जा रहे हैं. राजस्थान में महिलाओं की ईज्ज़त दुश्शासन दिन-दहाड़े लूट रहे हैं मगर वहां की सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा. कांग्रेस नेतृत्व यहाँ तक पतित हो चुकी है कि अपने ही पति की हत्या से राजनैतिक लाभ लेने के प्रयास कर रही है. उद्धव ठाकरे कुर्सी के लिए सावरकर को भुला देते हैं और दिन-रात पानी पी-पीकर सावरकर जी को गालियाँ देनेवाले लोगों के साथ मिलकर सरकार बनाते और चलाते हैं जबकि उनकी पार्टी शुरू से ही घनघोर हिंदुत्ववादी पार्टी रही है. मित्रों, ममता, सोरेन, स्टालिन और विजयन से मूल्यपरक राजनीति की उम्मीद करना सीधे-सीधे समय की बर्बादी होगी लेकिन हद तो तब हो गई जब भारत के गृह मंत्री माननीय अमित शाह ने कल कह दिया कि आतंकवाद को किसी धर्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए जबकि सच यह है कि उनकी पार्टी को हमेशा की तरह गुजरात में भी मुसलमानों का एक भी वोट नहीं मिलने जा रहा. अमित शाह जी आतंक को धर्म के साथ हिन्दुओं ने नहीं जोड़ा है फिर आप समझा किसको रहे हैं? आतंकवाद को धर्म से उन्होंने ही जोड़ा है जो धर्म के नाम पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में आतंक फैला रहे हैं और काफिरों को मारकर काल्पनिक स्वर्ग के लिए स्वर्ग समान धरती को नरक बना रहे हैं. आज पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद का धर्म क्या है? पूरी दुनिया में अल्लाह हो अकबर का नारा लगाते हुए काफिरों पर हमले होते हैं. हाल में लन्दन में हिन्दुओं मंदिरों पर जब हमले हुए तब भी हमलावरों की भीड़ यही नारा लगा रही थी. अमित जी हमें कम-से-कम आपसे इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं थी. माफ़ कीजिएगा आप भी बांकी दलों के कुर्सीवादी छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों की तरह दिशाहीन हो रहे हैं. याद रखिएगा जो गाडी बार-बार हर यू टर्न पर यू टर्न लेती है कभी भी मंजिल तक नहीं पहुँचती.

कोई टिप्पणी नहीं: