रविवार, 7 मई 2023

अरविन्द केजरीवाल की नई राजनीति

मित्रों, क्या आपको साल २०१२-१३ याद है? तब अन्ना के नेतृत्व में दिल्ली में भ्रष्टाचारविरोधी आन्दोलन चल रहा था. पूरा देश रोमांचित था कि आन्दोलन रुपी यज्ञ से भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का सूत्र निकलेगा. फिर बड़ी ही चालाकी से अन्ना को किनारे करके अरविन्द केजरीवाल नामक बड़बोले ने आन्दोलन का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया. बड़े-बड़े वादे किए गए. लगा जैसे सादगी और ईमानदारी का मसीहा आ गया है. नई तरह की राजनीति के सब्जबाग दिखाए गए. उन दिनों उनके हाथों में दिल्ली की शीला दीक्षित की नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई सौ पृष्ठों का आरोपपत्र होता था. ७ जून, २०१३ को अरविन्द केजरीवाल ने एक शपथ-पत्र जारी किया जिसके अनुसार वो मुख्यमंत्री बनने के बाद न तो सरकारी गाड़ी का प्रयोग करनेवाले थे, न ही सरकारी सुरक्षा लेनेवाले थे और न ही बड़े निवास में रहनेवाले थे. मित्रों, धीरे-धीरे समय बीता. २०२० में केजरीवाल की पार्टी द्वारा प्रायोजित दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों ने दिल्ली की धरती को हिन्दुओं के खून से लाल कर दिया. शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ मुकदमा करना और चलाना तो दूर की बात रही राजनीति के कीचड़ के कथित अरविन्द यानि कमल ने अपनी पहली सरकार ही कांग्रेस के समर्थन से बनाई. धीरे-धीरे कालनेमि सरकार के कारनामे भी सामने आने लगे. फिर पहले तो सरकार का जेल मंत्री जेल में रहकर जेलों को सँभालने लगा बाद में उपमुख्यमंत्री जो वास्तव में मुख्यमंत्री थे भी तिहाड़ की शोभा बढाने लगे. अरविन्द केजरीवाल इतना शातिर था कि उसने सरकार में कोई विभाग नहीं लिया क्योंकि उसे घोटालों का पैसा तो चाहिए था जेल नहीं चाहिए था. लगा जैसे दिल्ली में एक बार फिर से रोबर्ट क्लाइव वाला द्वैध शासन आ गया है, जिम्मेदारी तुम्हारी मलाई हमारी. यूं तो स्वघोषित अराजकतावादी केजरीवाल ने बार-बार दिल्ली में अराजकता की स्थिति पैदा कर केंद्र की मोदी सरकार को परेशान किया लेकिन गनीमत यह थी कि अभी तक उसके हाथों में पुलिस नहीं थी. मित्रों, जैसे ही केजरीवाल ने पंजाब का चुनाव जीता उसकी यह ईच्छा भी पूरी हो गई. फिर तो पंजाब पुलिस दिल्ली में केजरीवाल के विरोधियों को पकड़ने दिल्ली पहुँचने लगी. अब जबकि उसके आम आदमीपन की पोल पट्टी उसके ४५ करोड़ के शीश महल की सच्चाई सामने आने के बाद पूरी तरह से खुल चुकी है दिल्ली प्रदेश का कथित प्रधानमंत्री केजरीवाल गुस्से से पागल हो गया है. वो कहते हैं न खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे तो दिन-रात लालू परिवार जैसे महाभ्रष्टों के साथ प्यार की पींगे पढनेवाले कथित महा ईमानदार केजरीवाल ने निरीह पत्रकारों को जेल भेजना शुरू कर दिया है वो भी झूठे मुकदमे में फंसाकर. ऐसा ही करके इन दिनों बिहार में भी लालू जी के बेटे लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं. खिलाफ में रिपोर्टिंग कईले तो गेले बेटा. मित्रों, कुल मिलाकर जिस तरह से केजरीवाल की कलई खुली है, नीला रंग उतरा है, उसके बाद सच मानिए तो बिहार और भारत की जनता किसी भी नए नेता का साथ देने में सौ बार सोंचेगी फिर चाहे वो प्रशांत किशोर ही क्यों न हों. खुद को अरविन्द यानि कमल बतानेवाला और झाड़ू हाथ में लेकर भारतीय राजनीति की गंदगी साफ़ करने का वादा करनेवाला आज भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी गंदगी बन गया है. का-का, छी-छी, केजरीवाल छी-छी.

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