रविवार, 20 मार्च 2022
कश्मीरी हिन्दुओं की चीत्कार है द कश्मीर फाइल्स
मित्रों, जब हम बच्चे थे तब हमने पढ़ा था कि जब भारत ने १९७४ में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था तब पूरी दुनिया में इसका विरोध हुआ था. सबसे ज्यादा विरोध वो देश कर रहे थे जिनके पास परमाणु बमों का जखीरा था. तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में एक शेर कहा था कि हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.
मित्रों, कुछ इसी तरह की स्थिति पिछले ३२ सालों से कश्मीरी हिन्दुओं की है. उनकी आँखों से लगातार आंसू बहते रहे लेकिन आंसू पोछना तो दूर किसी ने उनके दर्द को जानने-समझने की जरुरत ही नहीं समझी. उलटे जिस कौम के लोगों ने उनके साथ अविश्वसनीय अत्याचार किए उसको ही सियासत ने पीड़ित घोषित कर दिया. किसी हिन्दू युवती को सामूहिक बलात्कार के बाद लकड़ी चीरने वाले आरी से जीवित अवस्था में ही बीचों बीच चीर दिया गया तो किसी को चावल के डिब्बे में मारने के बाद उनके परिजनों को अपनों के खून से सना चावल खाने को बाध्य किया गया तो किसी शिक्षक को उसके ही मुसलमान शिष्य ने सिर्फ इसलिए गोली मार दी क्योंकि वो हिन्दू था और मारने के बाद उसके शव पर पेशाब किया.
मित्रों, एक साथ कश्मीर की हजारों मस्जिदों से घोषणाएं होने लगी कि महिलाओं को छोड़कर पुरुष हिंदू तत्काल कश्मीर घाटी से निकल जाएं. कुछ ही दिनों के भीतर पूरी-की-पूरी कश्मीर घाटी हिन्दूविहीन हो चुकी थी. सीआरपीएफ को गांवों से शहरों में भेजने के बाद मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया था और लन्दन में गोल्फ खेलने चले गए थे. कश्मीर घाटी कई दिनों तक पुलिस-प्रशासन विहीन थी. मुस्लिम पड़ोसियों की जैसे ईच्छा हुई उन्होंने हिन्दुओं पर अत्याचार किए. हिन्दू अपना अतीत, अपना सबकुछ छोड़कर कश्मीर घाटी छोड़कर भागा. कोई जम्मू में आ टिका तो कोई दिल्ली में तो कोई इंदौर या किसी अन्य शहर में. सबने फिर से शून्य से जिन्दगी शुरू की. आरम्भ में भीख भी मांगनी पड़ी लेकिन उन्होंने बदले की भावना से बंदूक नहीं उठाई बल्कि कलम को चुना. बड़े ही सुनियोजित तरीके से लाखों साल पुरानी एक संस्कृति को तलवार और अत्याचार के बल पर समाप्त कर दिया गया.
मित्रों, फिर भी साहित्य से लेकिन फिल्म तक दशकों तक जानबूझकर उन लोगों को पीड़ित बताया जाता रहा जिन्होंने जन्नत की चाह में जन्नते कश्मीर को जहन्नुम में बदल दिया था और हिन्दुओं को अपने ही देश में दर-ब-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया था. तब न तो वैश्विक मीडिया और न ही संयुक्त राष्ट्र संघ के माथे पर पसीना आया था जबकि वही मीडिया और वही संयुक्त राष्ट्र संघ सीरिया के एक बच्चे के शव को देखकर दहाड़े मार-मार कर रोने लगे थे. आज भी भारत सहित पूरी दुनिया जेहादी हिंसा और कट्टरपन से परेशान है लेकिन पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुके संयुक्त राष्ट्र संघ को उलटे इस्लाम की बदनामी की चिंता है. इस्लाम अगर बदनाम है तो अपनी करतूतों से और उस बदनामी के कलंक को दूर करने की जिम्मेदारी पूरी-की-पूरी मुसलमानों की है. जब कृत्य राक्षसों जैसे होंगे तो आलोचना ही होगी प्रशंसा नहीं.
मित्रों, हद तो तब हो गई जब एक निर्देशक ने कश्मीरी हिन्दुओं के आंसुओं को अभिव्यक्ति देने की कोशिश की एक फिल्म द कश्मीर फाइल्स बनाकर तब फिल्म को नफरत पैदा करने का प्रयास बता दिया गया. मानो मुसलमान ११९२ से ही हिन्दुओं से एकतरफा प्यार करते आ रहे हैं और हिन्दू हैं कि उनसे नफरत ही करते जा रहे हैं. १९९० में कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भी गोधरा में मुसलमानों ने हिन्दुओं को जिन्दा जलाया, दिल्ली में दंगे किए और देशभर में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा की हजारों घटनाओं को अंजाम दिया. कल-परसों भी होली खेल रहे हिन्दुओं के ऊपर कई स्थानों पर मुसलमानों ने पथराव किए हैं, गोलियां चलाई हैं. कई स्थानों पर तो इस फिल्म के दर्शकों पर भी हमले किए गए हैं. आखिर ये कैसा भाईचारा है जो एकतरफा है. अगर यह भाईचारा है तो नहीं चाहिए हमें हिन्दुओं की जान और माल की कीमत पर भाईचारा. अगर हिन्दुओं की चीत्कार और दर्द को सामने लाने से किसी की पोल खुलती है तो जरुर खुलनी चाहिए. बल्कि हिन्दूबहुल हिंदुस्तान की सियासत से यह पूछना चाहिए कि यदि भारत के सारे नागरिक कानून की नजर में समान हैं तो क्यों हिन्दुओं के हत्यारे १९९० के बाद दशकों तक खुलेआम घूमते रहे, कुछ तो प्रधानमंत्री से हाथ मिलाते देखे गए और कुछ तो आज भी आजाद घूम रहे हैं? मैं साधुवाद देना चाहूँगा विवेक रंजन अग्निहोत्री जी को कि उन्होंने हिंदुस्तान में कश्मीरी हिन्दुओं के दर्द को दुनिया के सामने रखा, उन्होंने इस्लाम के खौफनाक चेहरे को बेनकाब करने का साहस किया. हम उम्मीद करते हैं कि वो १९८४ के सिखविरोधी दंगों, गोधरा आगजनी और दिल्ली के दंगों पर भी फिल्म बनाएँगे जिससे भारतविरोधी शक्तियों की पहचान हो सके और तदनुसार भारत सरकार हिन्दुओं और हिंदुस्तान की रक्षा के लिए अपेक्षित कदम उठा सके.
गुरुवार, 10 मार्च 2022
यूपी में सुशासन और हिंदुत्व की जीत
मित्रों, आज १० मार्च है. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का दिन. अब कोई रहस्य नहीं रह गया है कि आज भी, अभी भी देश की जनता के दिल पर भाजपा का कब्ज़ा है. उत्तर प्रदेश में १९८६ के बाद ऐसा पहली बार हुआ है किसी पार्टी की लगातार दूसरी बार सरकार बनी है. उत्तर प्रदेश सहित पाँचों राज्यों में जनता ने नया इतिहास लिखा है. जनता ने बता दिया है कि जो राम पे नाज करेगा वो हिंदुस्तान पे राज करेगा.
मित्रों, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि २०१७ से पहले उत्तर प्रदेश की स्थिति कितनी चिंताजनक थी. पूरे प्रदेश पर दंगाइयों और बलात्कारियों का कब्ज़ा था. पूरा प्रदेश जल रहा था वहीँ अखिलेश सैफई में नाच-गाना देखने में मशगुल थे. चौतरफा भ्रष्टाचार व्याप्त था और जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी. औरतों का दिन में भी घर से निकलना मुहाल था.
मित्रों, योगीजी ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले रोमियो स्कायड बनाकर औरतों को सुरक्षित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि प्रदेश में कोई महिला रात के १२ बजे भी बिना डरे बिना हिचकिचाए घर से निकले. अस्पतालों को दुरुस्त किया गया, अपराध पर पूरा नियंत्रण पाया गया, गरीबों को समय पर और पूरा-का-पूरा सस्ता अनाज उपलब्ध करवाया गया और माफियाओं के घरों पर कुछ इस पैमाने पर बुलडोजर चलाया गया कि बुलडोजर योगी आदित्यनाथ जी की सरकार का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. इसके साथ ही भाजपा ने जिस तरह से राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया उसके चलते उसे राम के साथ-साथ रामभक्त हिन्दुओं का आशीर्वाद मिलना भी तय हो गया.
मित्रों, रही बात चार अन्य राज्यों की तो देवभूमि उत्तराखंड में फिर से भाजपा की सरकार का बनना यह दर्शाता है कि लोग कांग्रेस को किसी भी तरह भाजपा का विकल्प नहीं मानते साथ ही लोगों को पार्टी और काम से मतलब है न कि मुख्यमंत्री से. इसके साथ ही उत्तराखंड की जीत में वहां के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता जिन्होंने अपनी मेहनत और कार्यकुशलता से अत्यल्प समय में एक अवश्यम्भावी हार को जीत में बदल दिया.
मित्रों, रही बात मणिपुर की तो यह देखना काफी सुखद है कि भाजपा और हिंदुत्व का झंडा अब पूर्वोत्तर में भी लहरा रहा है. हम उम्मीद करते हैं कि निकट भविष्य में भाजपा केरल, आंध्रा, तेलंगाना और तमिलनाडु समेत पूरे दक्षिण भारत में भी अपनी स्थिति मजबूत करेगी और एक दिन ऐसा भी आएगा जब वहां भाजपा की सरकार होगी.
मित्रों, बचे हुए राज्यों में जहाँ गोआ की जीत भाजपा के लिए अप्रत्याशित होते हुए भी काफी सुखद है वहीँ पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के परिणाम भविष्य में सिर्फ पंजाब के लिए ही नहीं पूरे भारत के लिए खतरनाक हो सकते हैं. भविष्य में पंजाब फिर से अलगाववाद और खालिस्तान की आग में जल सकता है.