शुक्रवार, 24 मार्च 2023
अयोग्य ठहराए गए अयोग्य राहुल
मित्रों, कहने को तो भारत में लोकतंत्र है लेकिन वास्तव में आज भी भारत में राजतन्त्र है. यहाँ मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री बनता है और प्रधानमंत्री का बेटा प्रधानमंत्री भले ही वो इन पदों के लायक हो या न हो. अब राहुल गाँधी को ही लीजिए. कल से जबसे उनको सूरत की अदालत ने अनाप-शनाप गाली बकने के मामले में दो साल कैद की सजा सुनाई है तभी से यह चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छिड़ी है कि उनको लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है जैसे कि राहुल गाँधी बहुत बड़े समझदार नेता हों. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने भी इस मामले में अपनी नाक घुसेड़ने की कोशिश की है. कितनी तगड़ी लोबिंग है ईसाइयों की समझ में नहीं आता. राहुल गाँधी की जगह अगर कोई हिन्दुत्ववादी नेता होता तो निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की नींद नहीं उड़ती.
मित्रों, सवाल उठता है कि कई बड़े नेताओं की बेटों की तरह क्या राहुल गाँधी भी भारत की राजनीति के लायक हैं? क्या उनमें इतनी समझ है कि उनको भारत का प्रधानमंत्री तो दूर सांसद भी बनाया जा सके? जिस व्यक्ति की जीभ पर नियंत्रण नहीं हो वो भला कैसे राजनीति करेगा? साथ ही उनका मानसिक स्तर भी वैसा नहीं है जैसा कि एक जनप्रतिनिधि का होना चाहिए. हरेक भाषण से पहले उनको चार लोग मिलकर बताते हैं कि क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है लेकिन माईक पर जाते ही वो भूल जाते हैं और कुछ-न-कुछ विवादास्पद बोल जाते हैं. न जाने आरएसएस और सावरकर जी ने उनका क्या बिगाड़ा है कि वो बराबर इनके खिलाफ बोलते रहते हैं. अभी दो-तीन दिन पहले ही उन्होंने कहा कि वो सावरकर नहीं हैं राहुल गाँधी हैं. भला उनको कौन नहीं जानता जो वो इस प्रकार से अपना परिचय देते फिरते हैं? क्या राहुल जी सावरकर जी की चरण-धूलि के भी बराबर हैं? कदापि नहीं!!! सावरकर उद्दाम देशभक्त और परम विद्वान थे अच्छे वक्ता तो थे ही. जबकि राहुल गाँधी की छवि देशभक्त की नहीं देशविरोधी की है. विद्वता का तो यह हाल है कि कभी आलू से सोना बनाते हैं तो कभी खुद कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे संसद सदस्य हैं तो कभी कहते हैं कि उन्होंने खुद ही मार दिया है. ये लक्षण निश्चित रूप से मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति के हैं और संविधान कहता है कि कोई विक्षिप्त चुनाव नहीं लड़ ही नहीं सकता.
मित्रों, मुझे कांग्रेस और राहुल गाँधी दोनों पर दया आती है. बचपन में मैंने अमरकांत जी की कहानी पढ़ी थी जिन्दगी और जोंक. इस कहानी में एक भिखारी लम्बे समय तक जीवित रहता है जबकि उनके जीने का कोई मतलब नहीं है. जैसे जिंदगी उससे जोंक की तरह चिपकी हुई है. जब उनकी मौत होती है तब अमरकांत जी लिखते हैं कि आज जिन्दगी उस व्यक्ति से और वह व्यक्ति जिंदगी से छुटकारा पा गया. कुछ ऐसी ही हालत कांग्रेस और गाँधी परिवार की है. यह सिद्ध हो चुका है कि न तो कांग्रेस गाँधी परिवार को बचा सकती है और न ही गाँधी परिवार कांग्रेस का पुनरुद्धार कर सकने की स्थिति में है लेकिन दोनों एक-दूसरे से जिंदगी और जोंक की तरह चिपके हुए हैं. न जाने दोनों को कब एक-दूसरे से मुक्ति मिलेगी. इतनी जबरदस्त फजीहत के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि राहुल गाँधी को राजनीति से और राजनीति को राहुल गाँधी से मुक्ति मिलने वाली है.