प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की अपनी एक गति होती है, अपनी रफ्तार होती है देश भी इसके अपवाद नहीं। कोई भी देश अपने नागरिकों से ही बनता है जैसे नागरिक होंगे देश भी वैसा ही होगा। अपने निष्ठावान नागरिकों की बदौलत ही जापान जैसा छोटा देश आर्थिक महाशक्ति है ,
vahइन हम विशाल क्षमता के होते हुए भी गरीब और पिछडे हैं । क्या हमारा भारत सचमुच मुर्दों का देश है। निरी भौतिकता और निरी आधात्मिकता दोनों ही घातक हैं और हमे इन दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा। हमारा भौतिकता की और दौड़ हमे बर्बादी की और ही ले जायेगी और कहीं नहीं.
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