कल बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार के नाम १८ साल पुराने एक मामले में सम्मन जारी किया। आश्चर्य की बात है कि बिहार के किसी भी बड़े अख़बार ने इसे पेज १ पर प्रकाशित करने कि हिम्मत नहीं दिखाई। बिहार के सबसे बड़े अख़बार ने तो पेज २ पर भी इसे स्थान नहीं दिया। ये बातें क्या दर्शाती हैं? क्या बिहार की प्रिंट मीडिया ने सरकार के आगे घुटने टेक दिए हैं या फ़िर सरकारी विज्ञापन छिन जाने का डर सता रहा है? लगता है कि इन विशालकाय मीडिया समूहों का जनसेवा से कुछ सरोकार नहीं रह गया है। इस उपभोक्तावादी युग में कुछ लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ जो हो गया है, भगवान से भी ज्यादा बड़ा.
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