शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

बिहार के प्रति ममता की निर्ममता


आजादी के समय से ही रेलवे के मानचित्र पर उपेक्षित रहे बिहार से जब लगातार तीन-तीन लोग रेल मंत्री बने तब पथराई आँखों में ना जाने कितने सपने तैरने लगे. लेकिन २००९ के लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के हाथों से यह अहम् माना जानेवाला पद निकल गया और पश्चिम बंगाल की तेजतर्रार नेत्री ममता बनर्जी के हाथों में चला गया.ये वही ममता दीदी हैं जिन्होंने नंदीग्राम में गरीबों के लिए लड़ाई की और जीत पाई. फ़िर बिहार की गरीब जनता ने उनका क्या बिगाड़ा था जो उन्होंने बिहार में चल रही सभी रेल परियोजनाओं के लिए धनावंटन में भारी कटौती कर दी और इस गरीब प्रदेश की आखों में पल रहे सपनों पर गरम पानी डाल दिया.उत्तर बिहार की सात परियोजनाओं के लिए आवंटित धन पर अगर हम नज़र डालें तो आसानी से समझ सकते हैं कि ममता जी का रवैया बिहार के प्रति प्रतिशोधात्मक है ममता से परिपूरित नहीं.न्यू मुजफ्फरपुर जंक्शन के निर्माण के लिए ७० करोड़ की जगह मात्र १ करोड़, मुजफ्फरपुर-दरभंगा रेल निर्माण के लिए २८१ करोड़ की जगह सिर्फ १ लाख, मुजफ्फरपुर-जनकपुर रोड रेल निर्माण के लिए २२८ करोड़ की जगह मात्र १ लाख, सीतामढी-निर्मली रेलखंड के निर्माण के लिए ६७८ करोड़ की जगह मात्र १ लाख, मोतिहारी-सीतामढी रेल निर्माण के लिए २०६ करोड़ के स्थान पर सिर्फ १ करोड़, दरभंगा-कुशेश्वर स्थान रेलखंड के लिए २०२ करोड़ की जगह मात्र १ करोड़ और छपरा-मुजफ्फरपुर रेल दोहरीकरण के लिए ३१४ करोड़ की जगह सिर्फ २ करोड़ का आवंटन हमें यहीं सीख दे रहा है कि जब तक बिहार का कोई सपूत फ़िर से रेलमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेगा रेलवे के मामले में बिहार पिछड़ा ही रहेगा.हाँ ममता जैसी नकचढ़ी नेता को अगर रास्ते पर लाना है तो उठ खड़ा होना होगा बिहार के सभी १० करोड़ लोगों को प्रतिकार में. वैसे भी कहा गया है कि अधिकार मांगने से नहीं छीनने से मिलता है.

1 टिप्पणी:

  1. brajkishore जी mamta समय के pahiye को रोक देने का vyarth prayatn कर rahee हैं. bihar jaag गया है और उसे आगे badhne से अब koee नहीं रोक सकता. aalekh के लिए dhanyawad.
    munna, bhagalpur

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