बुधवार, 18 नवंबर 2009
बिहार में शांतिपूर्ण मौत को प्राप्त हुआ सूचना का अधिकार
मैंने कई दिन पहले ही आशंका व्यक्त की थी कि बिहार सरकार इस गरीब प्रदेश में सूचना के अधिकार को शांतिपूर्ण मौत देने की साजिश रच रही है. बड़े ही दुःख की बात है कि कैबिनेट ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी है.अब एक आवेदन पर एक ही सूचना प्राप्त की जा सकेगी यानि पूर्णता में अगर सूचना चाहिए तो १००-२०० रूपये जेब से निकालने पड़ेंगे. क्या सरकार है? गरीब राज्य की सरकार!दूसरी ओर राजस्व संग्रह के दृष्टिकोण से देंखें तो इससे केवल कुछ करोड़ सालाना से ज्यादा राशि इकट्ठी नहीं होगी. तो फ़िर सरकार के इस कदम का क्या उद्देश्य है? उद्देश्य है अकर्मण्य प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी चपेट में आने से बचाना.लेकिन जनता तो अब निरुपाय हो ही गई न. एक सवाल तो सिर्फ अपीलीय प्राधिकार का पता पूछने में ही समाप्त हो जायेगा फ़िर वांछित प्रश्न कैसे पूछे जा सकेंगे?दूसरे शब्दों में कहें तो अब उस बिहार में सूचना का अधिकार नख-दन्त विहीन हो गया है जहाँ की जनता पूरे देश में नौकरशाही से सबसे ज्यादा परेशान है.अब बिहार में एक तरह से यह अधिकार समाप्त हो गया है. कौमा में चला गया है यह अधिकार. अच्छा होता यदि इस कानून को समाप्त ही कर दिया जाता. वैसे भी किसी को हमेशा के लिए पंगु बनाकर जीवित रखने से तो मौत दे देना ही अच्छा होता है. चाहे मामला व्यक्ति का हो या कानून का. केंद्र ने २००५ में आर.टी.आई. के माध्यम से जो तोहफा दिया था बिहार की सुशासनबाबू की सरकार ने समाप्त कर दिया है.अब जनता न तो अधिकारियों के क्रियाकलापों को नियंत्रित कर पायेगी न ही पंचायत और नगर निकाय के प्रतिनिधियों से सवाल ही कर पायेगी.जनता के अधिकार के इस शांतिपूर्ण अपहरण में शामिल इन षड्यंत्रकर्ताओं को ईश्वर सद्बुद्धि दें.
is tarah to nitish tanashahi shasan kayam kar sakte hain, sushasan nahin.
जवाब देंहटाएंvinay, patna