गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
बिहार का कायाकल्प नहीं कर पाए नीतीश
बिहार में नीतीश सरकार का कार्यकाल समाप्त होने में अब कुछ ही महीने बचे हैं.पॉँच साल पहले जनता ने जिस उम्मीद के साथ उनके गठबंधन को ताज सौंपा था उस पर नीतीश कुमार की सरकार खरी उतरती नहीं दिख रही.राबड़ी के समय पूरा राज्य राजद नेताओं के प्रशासन में हस्तक्षेप से परेशान था.इस राजनीतिक अतिवाद को कम करना बेशक जरूरी था.लेकिन नई सरकार ने विषम विषस्य औषधम की नीति पर चलते हुए एक दूसरे अतिवाद को बढ़ावा दे दिया.वह अतिवाद था नौकरशाही के हाथों में राज्य को सौंप देना.इस अतिवाद ने सिर्फ जनता को ही नहीं परेशान किया है बल्कि मंत्री तक इससे पीड़ित हैं.अगर ऐसा नहीं होता तो शायद उत्पाद विभाग में वह घोटाला भी नहीं होता जिसकी इन दिनों जोर-शोर से चर्चा है.उत्पाद विभाग के अधिकारी लगातार मंत्री और मंत्री के आदेशों की अनदेखी करते रहे.परिणाम यह हुआ कि जहाँ विभाग को मात्र ९०० करोड़ रूपये का लाभ हुआ वहीँ शराब माफियाओं का अवैध कारोबार २५०० करोड़ तक जा पहुंचा.अफसरों ने बार-बार कहने पर भी जब मंत्री की नहीं सुनी तब मजबूरन उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा. उन्हें आज मंत्रिमंडल से हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने खुद अपने ही विभाग में घोटाले का आरोप लगाते हुए जाँच की भी मांग की थी.उनका यह भी आरोप था कि इस घोटाले में मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े अधिकारी भी शामिल हैं. वहीँ २००८ में सरकार की लापरवाही से हुई कोसी की विनाशलीला को झेल चुके वीरपुर के ग्रामीणों ने आज राहत में घोटाले का आरोप लगाते हुए स्थानीय एसडीओ के कार्यालय पर हमला कर दिया जिससे पुलिस को लाठी चार्ज भी करना पड़ा. नीतीश जी ने लगता है सिर्फ दिखावे के लिए इतना बड़ा मंत्रिमंडल बना रखा है.अच्छा तो होता कि वे सीधे तौर पर सचिवों को ही मंत्री बना देते या फ़िर मंत्री किसी को बनाते ही नहीं और सचिवों को ही सीधे तौर पर काम करने देते.इस सरकार के समय अपराध निश्चित रूप से काम हुआ है लेकिन नक्सली हिंसा और प्रभाव में वृद्धि हुई है.इससे यह आशंका उत्पन्न होती है कि कहीं यह शांति जबरन तो नहीं पैदा की गई है और सतही है.सतह के नीचे अब भी लावा पिघल रहा है जो मौका मिलते ही ज्वालामुखी का रूप ले सकता है.जमुई जिले में कल हुई नक्सली हिंसा के बारे में पूर्व से ही पुलिस को आशंका थी फ़िर क्यों अधिकारियों ने एहतियाती कदम नहीं उठाया?नक्सलियों से सीमित साधनों के बल पर घने जंगल के बीच टक्कर लेनेवाले आदिवासियों को अगर इस तरह मौत के मुंह में धकेल दिया जायेगा तो कोई किस तरह इनके विरुद्ध प्रशासन का साथ देने की हिमाकत करेगा?अब तो उस इलाके से लोगों का पलायन भी शुरू हो गया है.सुशासन एक आदमी के बस की बात नहीं है इसके लिए एक अच्छी टीम भी चाहिए.साथ ही उस टीम से काम लेने के लिए उस पर विश्वास भी करना पड़ेगा.भारत लोकतान्त्रिक देश है और यहाँ तानाशाही सफल नहीं हो सकती चाहे तानाशाह लालू प्रसाद हों या नीतीश कुमार.नीतीशजी दोबारा मुख्यमंत्री बन गए तो एक मौका और मिल जायेगा बिहार को विकसित राज्य बनाने का लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो निश्चित रूप से उन्हें इस बात का अफ़सोस रहेगा कि वे मौके का लाभ नहीं उठा पाए और पॉँच साल यूं ही गुजार दिया.
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