सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
भारतीय संस्कृति का अंग क्रिकेट
अभी कल की ही तो बात है जब करोड़ों भारतीयों की नजरें टीवी स्क्रीन से हटाये नहीं हट रही थीं.अंततः भारत ने कशमकश भरे इस मैच को एक रन से जीत लिया.करोड़ों भारतीयों ने चैन की साँस ली.चारों तरफ खुशियाँ-ही-खुशियाँ छा गईं.ऐसा पहली बार हुआ हो ऐसा भी नहीं है.यह तो अब रोज की बात है. क्रिकेट दुनिया के लिए भले ही एक खेल हो भारत की तो संस्कृति में ही यह शामिल हो चुका है.हम भारतीयों के लिए क्रिकेट खिलाड़ी भगवान से कम का दर्जा नहीं रखते.तभी तो शेन वार्ने ने सचिन के बारे में कभी कहा था कि सचिन भारत में एक खिलाड़ी नहीं है वहां तो वह क्रिकेट का भगवान है.जिस दिन भारतीय टीम कोई अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल रही होती है वह दिन त्योहारों के देश भारत में एक ऐसा त्योहार बन जाता है जिसका पंचांगों में कोई जिक्र नहीं होता.सुबह से ही लोग मैच शुरू होने का इंतजार करने लगते हैं.मैच शुरू होते ही रिमोट पर ऊंगलियों की थिरकन बंद हो जाती है.मजबूरन समाचार चैनल वाले भी मैच अपडेट दिखाना शुरू कर देते हैं.उस दिन सबसे ज्यादा टीआरपी किस चैनल और किस कार्यक्रम का रहता होगा यह किसी से पूछने की जरूरत नहीं है.क्रिकेट भारतीयों की दिनचर्या में अचानक आकर रच-बस गया हो ऐसा भी नहीं है.आज भारतीय टीम टेस्ट रैंकिंग में नंबर १ पर है.ऐसा रातों-रात नहीं हुआ है.वर्षों की मेहनत और सुधार के बाद ऐसा संभव हुआ है.लाला अमरनाथ, राघवन, गुप्ते से लेकर रवीन्द्र जडेजा और धोनी तक हर किसी ने इसमें अपना महती योगदान दिया है.क्रिकेट इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी के दौर में भी अगर लोकप्रिय बना हुआ है तो इसके पीछे है समय के साथ फ़ॉरमेट में बदलाव करते जाना.पहले यह खेल पॉँचदिनी हुआ करता था.मैदान के बाहर और भीतर दोनों तरफ सुस्ती छाई रहती थी.फ़िर इसे एक दिन के मैच में बदल दिया गया.इससे क्रिकेट का रोमांच सातवें आसमान पर पहुँच गया.अब २०-२० ने एक बार फ़िर इसके घटते रोमांच को बढा दिया है.कुछ लोग यह आरोप लगाते रहते हैं कि क्रिकेट के चलते भारत बांकी खेलों में पिछड़ रहा है.इस आरोप में तनिक भी दम नहीं है.बांकी के खेलों से भी जो खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं भारतीय जनता उन्हें भी सिर आँखों पर बिठाने में तनिक भी कोताही नहीं करती.धनराज पिल्लई, लिएंडर पेस, महेश भूपति, सायना नेहवाल, अभिनव बिंद्रा, राज्यवर्धन राठौर, जसपाल राणा, विजेंदर, अखिल, मैरिकोम, सुशील कुमार आदि को भी भारतीयों ने अपने मन-मंदिर में उतना ही ऊंचा स्थान दिया है.सानिया मिर्जा की नथुनी तो करोड़ों भारतीयों के लिए जानलेवा बन चुकी है.असलियत तो यह है कि दूसरे खेलों में हम अगरचे तो विश्वस्तरीय प्रदर्शन कर ही नहीं पा रहे हैं और अगर कभी ऐसा संभव हो भी जाता है तो वह या तो व्यक्तिगत प्रदर्शन के कारण होता है या फ़िर उसमें सततता नहीं रह पाती.क्या किसी दूसरे खेल में हम दुनिया में नंबर वन हैं? नहीं!फ़िर कैसे क्रिकेट ने दूसरे खेलों को नुकसान पहुंचा दिया? पहले प्रदर्शन करके बताईये फ़िर अगर सम्मान न मिले तब शिकायत करिए.क्रिकेट ने तो भारतीय जनमानस में वही स्थान प्राप्त किया है जिसका वह हक़दार है.
श्रीमान जब हमारे देश में खेल को ठीक काम और कैरिअर माना ही नहीं जाता तो फिर हम खेलों में कैसे नंबर एक हो सकते हैं.
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