सोमवार, 1 मार्च 2010
हॉकी में नस्लभेद
भले ही राजनीतिक रूप से दुनिया से नस्लभेद और रंगभेद विदा हो चुके हैं.लेकिन अब भी जहाँ भी मौका मिलता है हम भारतीयों को नीचा दिखाने में पश्चिम के देश पीछे नहीं रहते.इसलिए तो इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन के आस्ट्रेलियाई डाईरेक्टर ने बेवजह भारत के स्टार स्ट्राइकर शिवेंद्र सिंह को तीन मैचों के लिए निलंबित कर दिया है.कल भारत को आस्ट्रेलिया के साथ विश्व कप में भिड़ना है और डाईरेक्टर नहीं चाहता कि भारत जीते.इसलिए उसने शिवेंद्र को निलंबित कर दिया जबकि पाकिस्तान ने शिवेंद्र के खिलाफ अपील भी नहीं की थी.इतना ही नहीं रेफरी ने इसके लिए उन्हें ग्रीन कार्ड तक नहीं दिखाया था.न ही शिवेंद्र पर उनके पूरे कैरियर में कभी इस तरह की अनुशासनात्मक कार्रवाई ही की गई.दूसरी तरफ इंग्लैण्ड-आस्ट्रेलिया मैच के दौरान इंग्लैण्ड के एक खिलाड़ी ने आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी को जानबूझकर धक्का देकर गिरा दिया था फ़िर भी उसके खिलाफ किसी तरह के दंडात्मक कदम नहीं उठाये गए.अभी कुछ महीनों से आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर लगातार हमले हो रहे हैं और आस्ट्रेलिया की सरकार लगातार यह कहती रही है कि ये हमले नस्ली नहीं हैं.लेकिन भारतीय हॉकी टीम के मनोबल पर विश्व कप पर के दौरान हमला तो सीधे तौर पर नस्लीय है.कम-से-कम आस्ट्रेलियाई डाईरेक्टर के इस अप्रत्याशित एकतरफा निर्णय ने उन्हें शक के घेरे में तो ला ही दिया है.शिवेंद्र से उन्होंने सफाई मांगने की भी जरूरत नहीं समझी.जबकि नियमानुसार ऐसा किया जाना चाहिए था.ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की साजिश का भारतीय हॉकी को पहली बार सामना करना पड़ रहा हो.पश्चिमी देशों ने ही षड्यंत्र रचकर ८० के दशक में हॉकी के नियमों इस तरह के बदलाव कर दिए जिससे हॉकी के खेल में कलात्मकता की जगह दम-ख़म की प्रमुखता हो गई.हॉकी इंडिया को डाईरेक्टर के निर्णय का प्रत्येक मंच पर सख्ती से विरोध करना चाहिए और अगर वे लोग न माने तो विश्व कप के बांकी मैचों का बहिष्कार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.नहीं तो हमें और भी मनमानी का सामना करना पड़ेगा साथ ही हमारी टीम के मनोबल पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा.
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