रविवार, 14 मार्च 2010
दिल तो पागल है
पिछले दिनों वीरेन्द्र सहवाग, राज्यवर्द्धन राठौर और प्रियंका चोपड़ा भारतीयों से हॉकी को दिल देने का बार-बार अनुरोध कर रहे थे मानों दिल न हुआ आटा-दाल हो गया.दिल का आना हो या दिल का जाना हो या फ़िर दिल का चले जाना या खो जाना हो सब कुछ स्वतःस्फूर्त होता है.खुद इन तीनों में से सहवाग विश्व कप के दौरान एक भी मैच देखने नहीं पहुंचे.मतलब साफ था कि खुद वे ऊपरी मन से निवेदन कर रहे थे फ़िर भी दर्शक भारी संख्या में मैच देखने पहुंचे.लेकिन मैदान मारना या मैदान हारना तो दर्शकों के हाथों में होता नहीं सो भारत की टीम अपने पहले मैच में पाकिस्तान को हराने के बाद कोई भी मैच नहीं जीत पाई और कुल मिलाकर आठवें स्थान पर रही.भारतीय टीम पहले मैच के अलावे किसी भी मैच में लय में नहीं दिखी.खिलाड़ी लाचार और बेबस से बने रहे.फारवर्ड पंक्ति के खिलाड़ी विपक्षी टीम के गोल पोस्ट में गेंद ले जाने के बाद भी मुंह के बल गिरते रहे और विश्व कप जीतने से दूर होते गए.पेनाल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ संदीप सिंह का खेल निराश करता रहा.सभी खिलाड़ियों में किलिंग स्टिंक्ट का पूरी तरह अभाव रहा.वे जीतने के लिए नहीं बस औपचारिकतावश खेलने के लिए खेलते-से दिखे.वो तो भला हो गोलकीपरों का जिन्होंने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया अन्यथा विश्व कप में गोल अंतर का रिकार्ड कनाडा या दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नहीं बल्कि भारत के खिलाफ बनता.हॉकी भारत के लिए खेलमात्र नहीं है अपितु यह हमारा सुनहरा अतीत है और पिछले ३० सालों में हमने इस खेल में सिर्फ खोया है पाया बहुत कम है.दद्दा की आत्मा हमारे प्रदर्शन से दुखी होगी या नहीं मैं नहीं बता सकता लेकिन मेरा दिल जरूर हमारे खिलाड़ियों ने तोड़ा है जो हम प्यार में और ईमानदारी में जीनेवालों का एकमात्र सहारा है.अतीत से सीख लेते हुए भविष्य के लिए तैयारी करना ही अब हमारे वश में है क्योंकि इस बार तो कप आस्ट्रेलिया ले उड़ा.आशा की जानी चाहिए कि दो साल बाद जब हम ओलंपिक में खेलेंगे तब जीतने के लिए खेलेंगे.टीम में पिलपिले खिलाड़ियों की जगह दमख़म वाले खिलाड़ी रखे जायेंगे और हमारी टीम यूरोप और आस्ट्रेलिया को तुर्की-ब-तुर्की जवाब देगी.इसके लिए सबसे पहले तो जरूरी है हॉकी इंडिया की कमान किसी रिटायर्ड खिलाड़ी के हाथों में देने की नहीं तो नौकरशाह तो इसके साथ वही व्यवहार करेंगे जैसा वे फाइलों के साथ करने के आदी रहे हैं.जब टीम अपने खेल से सबका दिल जीत लेगी तब हर भारतीय का दिल अपनी हॉकी टीम के साथ धड़का करेगा.दिल तो पागल है वह वीरेन्द्र या प्रियंका का गुलाम नहीं है कि उनके कहने से धड़के और उनके कहने से नहीं धड़के.
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