गुरुवार, 25 मार्च 2010
सपने और हकीकत
यूं तो गीता सार को मैं हजारों बार पढ़ चुका हूँ और गीता को भी सैंकड़ों बार.मैं जानता हूँ कि दुनिया में मैं कुछ ही समय के लिए आया हूँ और सबकुछ भगवान का है.लेकिन फ़िर भी मैं न जाने कैसे बार-बार माया में उलझ जाता रहा हूँ.मैंने जब होश संभाला तो मुझे पता चला कि क्या-कौन-कैसे मेरा है और क्या-कौन-कैसे मेरा नहीं है.फ़िर मेरे हाथ लगे बहुत सारे धर्मग्रन्थ जिनमें मैंने पढ़ा कि सब माया है लेकिन शायद इस मूलमंत्र को आत्मसात नहीं कर पाया.इंटर से पहले भी मैं सपने देखा करता था लेकिन वे बचकाने होते थे.इससे पहले मैंने अपनी भावी जिंदगी के बारे में नहीं सोंचा था.वैसे मैं पढने में बहुत अच्छा नहीं तो अच्छा तो था है.इंटरमीडिएट के दौरान मुझे अपने गणित-ज्ञान पर बहुत गर्व था और लगता था जैसे इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास करना तो मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है.लेकिन जब आई.आई.टी. और बी.आई.टी. की प्रारंभिक परीक्षाओं में मैं गणित के पर्चे में जब प्रीमियर में कोचिंग करने के बावजूद एक भी प्रश्न हाल नहीं कर पाया तो मेरा घमंड चकनाचूर हो गया. इसी दौरान किसी तरह से मैं पोलिटेक्निक प्रवेश परीक्षा पास कर गया.मेरा नामांकन दरभंगा पोलिटेक्निक में सिविल इंजीनियरिंग में हुआ.कुछ प्रतियोगियों द्वारा नामांकन नहीं लेने के कारण मुझे अपना ट्रेड बदलने का अवसर मिला.उस समय सिविल इंजीनियरिंग अच्छा नहीं माना जाता था.अब मैंने पूर्णिया पोलिटेक्निक में विद्युत ट्रेड में पुनर्नामांकन करवा लिया.मन में नया उत्साह था, नयी उमंगें थीं.लेकिन कर्ता के मन में तो कुछ और ही था-तेरे मन कछु और है कर्ता के कछु और.जातिवाद की आग में झुलसते इस शहर में मुझे राजपूत जाति में जन्म लेने का खामियाजा भुगतना पड़ा और मेरी पढाई दो साल की पढाई पूरी कर लेने के बावजूद अधूरी रह गई, मेरे इंजीनियर बनने के सपने अधूरे रह गए.लेकिन आँखें अभी थकी नहीं थी सपने देखने से.अब उनमें एक नया सपना आई.ए.एस. बनने का बस गया था.मैंने ए.एन. कॉलेज, पटना से बी.ए. किया और दिल्ली के प्रसिद्ध राउज आई.ए.एस. स्टडी सर्किल में कोचिंग ली.इससे पहले मैंने एक बार घर पर रहकर ही यू.पी.एस.सी. की परीक्षा दी थी जिसमें मैं १० प्रतिशत प्रश्नों के भी सही उत्तर नहीं दे पाया था.कोचिंग के दौरान की गई मेहनत ने रंग दिखाया और मैं वहां आयोजित होनेवाली आतंरिक मूल्यांकन परीक्षाओं में प्रथम आने लगा.जैसे सपनों को नए पंख लग गए.मैं अपने को सचमुच का आई.ए.एस समझने लगा था.मुझे भी बिन पिए ही नशा हो गया था जैसे प्रेमचंद को नशा कहानी में हो गया था.मैं लगातार तीन बार पी.टी. में सफल और मुख्य परीक्षा में असफल होता रहा.जब मैं चौथी बार (मुझे कुल चार बार ही परीक्षा में बैठने की अनुमति थी) भी मुख्य परीक्षा में असफल घोषित कर दिया गया.तब एकबारगी जैसे मेरे सारे सपने समाप्त हो गए थे.मैं अब अकेला था यथार्थ की निर्मम जमीन पर लुटा-पुटा सा, निराश और हताश.अब समस्या यह थी कि मैं करूँ क्या?सपने खत्म हो गए थे लेकिन जीवन तो बांकी था.अभी तो सिर्फ ट्रेलर समाप्त हुआ था पूरी-की-पूरी फिल्म बची हुई थी.अंत में काफी सोंच-विचार के बाद मैंने पत्रकारिता के क्षेत्र को चुना.मेरा कैरियर शुरू हुआ हिंदुस्तान, पटना से.मुझे कहा गया था कि तुम्हारा वेतन ६००० रूपये मासिक होगा लेकिन ६ महीने बाद जब मेरे हाथ में पैसे आये तो तीन हजार मासिक की दर से.मुझे एक बार फ़िर सपनों के टूटने जैसा अहसास हुआ.इसी बीच मैंने बी.पी.एस.सी. की प्रारंभिक परीक्षा दी और सफल भी हो गया, वो भी बिना एक मिनट पढाई किये.ऑफिस से रात की ड्यूटी करके अर्द्ध जाग्रतावस्था में परीक्षा दी थी.एक बार फ़िर मेरी आँखों में जगते-सोते एस.डी.ओ. बनने के सपने के सपने तैरने लगे.मैंने अपनी नौकरी जिससे मैं संतुष्ट भी नहीं था को छोड़ दिया और जी-जान से सपनों को सच करने के इस आखिरी मौके के लिए मेहनत शुरू कर दी.अभी कुछ ही दिन पहले मुख्य परीक्षा का परिणाम आया है.मैं एक बार फ़िर मुख्य परीक्षा में जाकर छंट गया हूँ.लेकिन आधी से भी ज्यादा जिंदगी अब भी बांकी है.मेरे साथ सपनों ने धोखा किया.लेकिन कभी मेरे मन में आत्महत्या का विचार तक नहीं आया.मैं इतना कायर नहीं हूँ कि बिना लड़े ही हथियार डाल दूं.मुझे निराशा तो होती है लेकिन सब कुछ हमारे हाथों में है ही कहाँ!हमारे हाथों में है सपने देखना और उसे हकीकत में बदलने के लिए प्रयास करनासपने सच होंगे या नहीं यह तो किसी और के हाथों में है.अगर कोई मुझसे पूछे कि कौन-सा दर्द सबसे दर्दनाक होता है तो बेशक मैं कहूँगा कि सपनों के टूटने का दर्द.इसलिए अब मैंने सपने नहीं देखने का संकल्प लिया है और अपनी बची हुई जिंदगी भगवान को समर्पित कर दिया है. खुद को जीवन-नदी की अनवरत बहती धारा में डालकर छोड़ दिया है.देखें कहाँ किस घाट पर जाकर नाव किनारे पर लगती है.
हमारे नेता किस तरह हमारे सपनों के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं लेख में इसका भी जिक्र होता तो बेहतर होता.हमारे नेता सपने ही तो बेचते हैं.
जवाब देंहटाएंabhi tak mai apako nahi samajh paya tha. hamesha career ke prati laprwah hi samjhata raha. halanki itna to yaki tha ki aap bhedchal wali duniya ke liye nahi bane hain.apka blog padhane ke bad mujhe apke ander jhankane ka mauka mila. apne passion ko barkarar rakhiyega, yahi apki pahchan hai. safalta mayne nahi rakhati, insan ko safal hona chahiye. good luch
जवाब देंहटाएंHo bhai ji hamra ta ninde na padaya....Sapna kenna dekhu......Tarika ta thik hao lekin ye padh ke ninde na abaiee chho....
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