घूम रहे आज हर जगह
डाकू संत के वेश में;
गांधी तेरे देश में.
खुल रही नई दुकानें
शराब की हर रोज यहाँ,
बढती है आमदनी इससे
बनी सरकारी सोंच यहाँ;
दौड़ रहा मानव
बेतहाशा पैसे की रेस में;
गांधी तेरे देश में.
हो रहा है रोज घोटाला,
भूमिचोरी,फर्जीवाड़े से केवाला;
मुश्किल हुआ निकलना घर से,
छोड़ रही पढाई ललनाएं
बलात्कारियों के डर से;
रो रही हैं भारतमाता
टूटे गृह अवशेष में;
गांधी तेरे देश में.
थाना बना बथाना
मंदिर बना दुकान,
दफ्तर दक्जनी का अड्डा
अस्पताल श्मशान;
लूट रहे लुटेरे जनता को
अफसर-डाक्टर के वेश में;
गांधी तेरे देश में.
लड़ रही जनता आपस में
हुआ विखंडित आज समाज,
रो रही अहिंसा उपेक्षित
कहाँ है तुम्हारा रामराज;
धनलोलुप बैठे हैं कुंडली मारे
पत्रिकाओं और प्रेस में;
गांधी तेरे देश में.
न्याय का मंदिर
दुकान बन गया,
भ्रष्टाचार इसकी पहचान बन गया;
खून करना शान बन गया
अपशब्द पुलिसिया जबान बन गया;
जाने क्या ईन्सान बन गया;
ले-देकर हो रहा है निर्णय
हर मुकदमा हर केस में;
गांधी तेरे देश में.
very well written ...
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