शनिवार, 13 नवंबर 2010
राजा तुम कब जाओगे
एक समय वो भी था जब मंत्री लोग भ्रष्टाचार का आरोप लगते ही शर्म के मारे इस्तीफा दे देते थे.लेकिन वक़्त बदला और समाज और देश में नैतिकता दुर्लभ हो गई. बांकी क्षेत्रों में भले ही कुछ नैतिकता बच हुई है भी लेकिन राजनीति से तो यह कपूर की माफिक उर्ध्वपातित ही हो गई है.साथ ही इस व्यवसाय से शर्म भी महानतम पशु गदहे की सिंग की तरह गायब हो गई है.अब मंत्री सारे सबूत खिलाफ होने पर भी पद से इस्तीफा नहीं देता बल्कि ढीठ की तरह कानूनी लड़ाई लड़ता है.जेल जाता भी है तो गर्व के साथ हाथी पर सवार होकर.समर्थकों का जुलूस जय-जयकार करता हुआ उसके पीछे नारा लगाता है-जब तक सूरज-चांद रहेगा.......मानों भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना शर्म की नहीं गौरव की बात हो.राजतन्त्र में भी राजा जनविद्रोह से डरता था.आज का राजा जनता से नहीं डरता और कुर्सी से फेविकोल लगाकर चिपका रहता है.भले ही उस पर १ लाख ७६ हजार करोड़ रूपये के महाघोटाले का आरोप ही क्यों न हो.पूरा देश पूछ रहा है कि राजा तुम कब जाओगे लेकिन राजा दया प्रदर्शित करने को तैयार नहीं.कोई ऐसा लक्षण नहीं जिससे यह पता चले कि पौने २ लाख के रिकार्डतोड़ घोटाले के बल पर भारत की जनता से भ्रष्टाचार के राजा का ख़िताब पा चुका यह राजा पद छोड़कर त्याग की एक नई मिशाल कायम करने के बारे में सोंच भी रहा है.जब इसे मंत्री बनाया गया था तब जनता को संदेह था कि यह सिर्फ नाम का राजा तो नहीं है.लेकिन वह तो मन का भी राजा निकला,अपने मन का राजा.किसी भी नियम-कानून को नहीं माननेवाला.सरकार का हिसाब-किताब देखनेवाले सीएजी के अनुसार २ जी स्पेक्ट्रम आवंटन में इसने कानून मंत्रालय और दूरसंचार आयोग की सलाहों को नहीं माना और कोई तर्क और कारण बताए बिना मनमानी की.क्या इन दोनों ने उसे गलत सलाह दी थी?लाइसेंस के आवंटन में कुछ ऑपरेटर्स को फायदा पहुँचाने के मकसद से नियमों में ही बदलाव कर दिया.यह यारों का यार है.यार-दोस्तों को लाभ पहुँचाने के लिए कुछ भी कर सकता है.इधर कांग्रेस भी गंभीरता से अपने इस भ्रष्टाचारी दोस्त के साथ राजनीतिक दोस्ती निभा रही है और उसे बचाने के लिए हर तरह के वैध-अवैध हथकंडे अपना रही है.नैतिकता और राजनैतिक शुचिता का तो यू.पी.ए. ने अंतिम संस्कार ही कर डाला है.सरकार अब राजा की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ने के मूड में है और तर्क दे रही है कि राजा के भ्रष्टाचारी कृत्य से जनता को लाभ ही हुआ है.भ्रष्टाचार से लाभ!उसका दावा है कि इस दृष्टिकोण से आवंटन सही है और पूरा का पूरा मामला नीतिगत है.उसके अनुसार सरकार का उद्देश्य टेलीफोन घनत्व को बढ़ाना था न कि अधिक राजस्व वसूली.चलिए इससे यह तो पता चला कि सरकार का कोई उद्देश्य भी है.वह यह तर्क भी दे रही है कि एन.डी.ए. ने भी ऐसा किया था.जबकि उसे समझना चाहिए कि गलत काम चाहे यू.पी.ए. करे अथवा एन.डी.ए. गलत तो गलत ही होता है.सरकार कैग के बारे में कह रही है कि उसे यह पूछने का कोई अधिकार नहीं है कि किस नीति के तहत स्पेक्ट्रम आवंटित किए गए.एक तरफ तो यही सरकार जनता को सूचना के अधिकार के तहत कुछ भी पूछने का अधिकार देती है तो दूसरी ओर कैग जैसी संवैधानिक संस्था के अधिकारों पर ही प्रश्नचिन्ह लगाती है.अगर सरकार को घोटाला करने का अधिकार है तो क्या जनता को पूछने का अधिकार भी नहीं है?क्या भारत का नियन्त्रक और महालेखाकार परीक्षक भारत का नागरिक नहीं है?फ़िर भी अगर कैग को बताने से किसी तरह का संवैधानिक संकट उत्पन्न होता है तो जनता को ही बता दे और इस घोटाले पर श्वेत-पत्र जारी करे.लेकिन वह ऐसा नहीं करेगी क्योंकि जो कुछ भी हुआ है वह गलत हुआ है और उसे छिपाने में ही सरकार की भलाई है.कोर्ट-कचहरी के बल पर सरकार अपने मंत्री की कुर्सी भले ही बचा ले लेकिन उसके कृत्य को वह नैतिकता की दृष्टि से किसी भी तरह से उचित नहीं सिद्ध कर सकती.अगर कैग द्वारा पूछ गया सवाल यू.पी.ए. सरकार को कठिन लग रहा हो तो वो मेरे इस सरल प्रश्न का ही उत्तर दे दे कि वह कब सत्ता पर देशहित को प्राथमिकता देना शुरू करेगी?उत्तर देने की समय-सीमा भी वही तय कर ले.सवा अरब (लोगों) का सवाल है यह.वैसे मेरा पहला सवाल भी जो सीधे राजा से है,अभी तक अनुत्तरित ही है कि राजा तुम कब जाओगे?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें