बुधवार, 24 नवंबर 2010
बिहार में विकास जीता,जाति हारी
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं.बिहार की जनता ने जातिवादी शक्तियों को एक सिरे से नकारते हुए एनडीए के विकास की राजनीति पर मुहर लगा दी है वो भी तीन चौथाई के आशातीत बहुमत के साथ.एक बात तो तय है कि राजग को सभी जातियों और धर्मों के लोगों का वोट मिला है अन्यथा उसे इतना प्रचंड बहुमत नहीं मिलता.जो लालू फ़िर से बिहार का राजा बनने का सपना देख रहे थे उनके विपक्ष का नेता बनने के भी लाले पड़ गए हैं.८ साल तक बिहार की मुख्यमंत्री रही उनकी पत्नी और भारत के इतिहास में एकमात्र अनपढ़ मुख्यमंत्री रही श्रीमती राबड़ी देवी कथित ससुराल और मायका यानी सोनपुर और राघोपुर दोनों जगहों से हार गई हैं.यह भारत के किसी भी राज्य में किसी भी गठबंधन की सबसे बड़ी जीत है.इतनी बड़ी जीत की उम्मीद न तो एन.डी.ए. के नेताओं को थी और न ही मीडिया को.बिहार भूतकाल में भी भारत की राजनीति को दिशा देता रहा है.१९७४ का आन्दोलन इसी पवित्र भूमि से उठा था जिसके परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी की तानाशाही का अंत हुआ था.उसी पिछड़े और गरीब बिहार ने एक बार फ़िर देश को विकास की राजनीति अपनाने के लिए प्रेरित किया है.साथ ही पूरे भारत में जाति-धर्म के नाम पर जनता को मूर्ख बना रहे नेताओं को अपना एजेंडा बदल लेने की चेतावनी दे दी है.कोई ज्यादा समय नहीं हुआ यही कोई ५ साल पहले बिहार और बिहारी को बांकी भारत के लोग ही दृष्टि से देखते थे.आज बिहारी शब्द गाली का नहीं गर्व की अनुभूति देता है.नीतीश कुमार भले ही ५ साल के अपने शासन में बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में शामिल नहीं करा पाए.लेकिन उन्होंने बिहार के लोगों की आँखों में विकास और विकसित बिहार के सपने जरूर पैदा कर दिया.यहाँ तक कि विपक्ष के लोग भी कहीं-न-कहीं सीमित सन्दर्भ में ही सही विकास के वादे करने के लिए बाध्य हो गए.उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि जो एक बिहारी होने के नाते मैं मानता हूँ वह रही है जंगल राज वाले राज्य में कानून के शासन की स्थापना.आधारभूत संरचना का भी बिहार में पर्याप्त विकास हुआ है.सड़कों से लेकर पुल निर्माण तक काम धरातल पर नज़र आ रहा है.बिहार की जो जनता ५ साल पहले अपने बच्चों को अपहरणकर्ता बना रही थी वही जनता अब अपने बेटे-बेटियों को डॉक्टर-इंजिनियर बनाने का सपना देखने लगी है.नीतीश सरकार ने उच्च विद्यालयों में पढनेवाले बच्चों को सरकार की तरफ से साईकिल उपलब्ध कराई जिससे लड़कियां भी दूर-दूर तक पढने के लिए जाने लगीं.हालांकि जवाब में लालू ने बच्चों को मोटरसाईकिल देने का वादा किया लेकिन लोगों ने इसे लालू का मजाक मान लिया.वैसे भी लालू इस बार के चुनाव प्रचार में भी कभी गंभीर होते नहीं दिखे.प्रत्येक जनसभा में लोगों को चुटकुले सुनाते रहे.उनकी सभाओं में लोगों की भीड़ जरूर जमा होती रही लेकिन उसका उद्देश्य लालू की हँसानेवाली बातों का मजा लेना मात्र था.कुल मिलाकर जो लोग राजग सरकार से खुश नहीं थे उनके सामने भी विकल्पहीनता की स्थिति थी.लालू को वे वोट दे नहीं सकते थे और लालू के अलावा राज्य में दूसरा कोई सशक्त विकल्प था ही नहीं.इसलिए थक-हारकर उन्होंने भी राजग को मत दे दिया.चुनाव प्रचार के समय राजग ने बड़ी ही चतुराई से लोजपा और राजद को दो परिवारों की पार्टी बताना शुरू कर दिया था.इसका परिणाम यह हुआ कि यादव और पासवान जाति के लोग भी इस बात को समझ गए कि ये लोग वोट बैंक के रूप में सिर्फ उनका इस्तेमाल कर रहे हैं.लगभग सभी चरणों में जिस तरह पिछले चुनावों से कहीं ज्यादा % मतदान हो रहा था इससे लोग कयास लगा रहे थे कि जैसा कि होता आया है इस स्थिति में जनता ने कहीं सरकार के खिलाफ तो वोट नहीं दिया है.लेकिन हुआ उल्टा.इसका सीधा मतलब यह है कि जो भी मत % बढ़ा वह मत सरकार के समर्थकों का था.हद तो यह हो गई कि राजग को मुस्लिम-यादव बहुल क्षेत्रों में भी अप्रत्याशित सफलता हाथ लगी और माई समीकरण का नामो-निशान मिट गया.चुनाव में जदयू और भाजपा दोनों को ही लगभग ३०-३० सीटों का लाभ हुआ है.अभी तक तो तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद गठबंधन सफल रहा है.लेकिन जिस तरह जदयू को साधारण बहुमत से कुछ ही कम सीटें आई हैं उससे नीतीश कुमार के लिए भाजपा की जरुरत निश्चित रूप से कम हो जाएगी.इसलिए भाजपा के लिए नीतीश को संभालना अब और भी मुश्किल साबित होने जा रहा है.हालांकि इन चुनावों में राजग को मात्र ४१-४२ % जनता का वोट मिला है लेकिन इसी अल्पमत के बल पर उसने तीन चौथाई सीटें जीत ली हैं.यह शुरू से ही हमारे लोकतंत्र की बिडम्बना रही है कि देश में हमेशा अल्पमत क़ी सरकार बांटी रही है.देखना है कि सरकार जनता को किए गए वादों में से कितने को पूरा कर पाती है.प्रचार अभियान के दौरान राजग ने बिजली,रोजगार सृजन और भ्रष्टाचार सम्बन्धी नए कानून के क्रियान्वयन का वादा किया था.डगर आसान नहीं है.खासकर भ्रष्टाचार ने जिस तरह से शासन-प्रशासन के रग-रग में अपनी पैठ बना ली है.उससे ऐसा नहीं लगता कि नीतीश भ्रष्टाचारियों खासकर बड़ी मछलियों की संपत्ति पर आसानी से सरकारी कब्ज़ा कर उसमें स्कूल खोल पाएँगे जैसा कि उन्होंने अपने भाषणों में वादा किया था.पिछली बार से कहीं ज्यादा आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजग की तरफ से जीत कर विधानसभा में पहुंचे हैं.इन पर नियंत्रण रखना और इन पर मुकदमा चलाकर इन्हें सजा दिलवाना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी.अगले साल बिहार में पंचायत चुनाव होनेवाले हैं.राजग सरकार इसे दलीय आधार पर करवाना चाहती है.अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से इन चुनावों में भी राजग जीतेगा और सरकार की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाएगी.राज्य में पंचायत स्तर पर और जन वितरण प्रणाली में जो व्यापक भ्रष्टाचार है वह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है.हालांकि गांवों में शिक्षामित्रों की बहाली कर दी गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक में अभी भी गुणात्मक सुधार आना बांकी है.बिहार में १५ सालों के जंगल राज में उपजी हुई और भी बहुत-सी समस्याएं हैं जिनका समाधान नीतीश को अगले पांच सालों में ढूंढ निकालना होगा.बिहार की २१वीं सदी की जनता ज्यादा दिनों तक इंतज़ार करने के मूड में नहीं है.जनता को न तो रीझते और न ही खीझते देर लगती है.राजग को यह समझते हुए राज्य को समस्याविहीन राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर करना होगा.नहीं तो राजग का भी राज्य में वही हश्र होगा जो इस चुनाव में लालू-पासवान और कांग्रेस का हुआ है.
कितनी जल्दी बदली हुई भाषा बोलने लगे आप? हिन्दुस्तान लाइव पर आपका शानदार कमेंट जो दोटूक और हकीकत है, देखकर मैं आपके ब्लॉग पर आया। लेकिन आपने तो शीर्षक में ही अपनी रंग और तेवर दोनों बदल दी है। यह अनुभव मेरे पत्रकारिता जीवन का मजेदार छल और वैचारिक रोमांस है।
जवाब देंहटाएं-राजीव रंजन प्रसाद, प्रयोजनमूलक हिन्दी, पत्रकारिता, बीएचयू, वाराणसी, 9473630410
राजीव जी शायद आपने शीर्षक देखकर ही लेख के बारे में सारे निर्णय ले लिए.यह लेख मैंने काफी जल्दीबाजी में लिखा था फिर भी मैंने इसमें लोकतंत्र की विरूपताओं और प्रचंड बहुमत के खतरों को भी प्रकट किया है.बहुत सी बातें पहले से दिमाग में होती हैं लेकिन लिखते समय छूट जाती हैं.मैं आज भी मानता हूँ कि बिहार में विकास तो हो रहा है लेकिन वह न्याय के साथ नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के साथ हो रहा है.टिपण्णी के लिए बहुत-२ धन्यवाद् सर.
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