गुरुवार, 6 जनवरी 2011
ईशनिंदा कानून को समाप्त करे पाकिस्तान
पड़ोसी पाकिस्तान के लिए नए साल की शुरुआत कुछ इस तरह होगी शायद किसी ने भी नहीं सोंचा होगा.४ जनवरी, २०११; दिन मंगलवार को पंजाब के गवर्नर और राष्ट्रपति जरदारी के करीबी सलमान तासीर इस्लामाबाद के एक रेस्टोरेंट में भोजन करने के बाद जब अपनी गाड़ी में बैठने जा रहे थे तब उनके ही एक सुरक्षाकर्मी ने उन्हें गोलियों से भून डाला.उनकी एक मात्र गलती यही थी कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए कहर बन चुके कुख्यात ईशनिंदा कानून को काला कानून कहा था और उसे समाप्त करने की मांग की थी.पाकिस्तान के कई धार्मिक नेता खुलकर हत्यारे मुमताज हुसैन कादरी के समर्थन में आ गए हैं.यहाँ तक कि कल जब उसे अदालत में पेश किया गया तो बड़ी संख्या में अदालत में जमा वकीलों ने उस पर पुष्पवृष्टि की और उसके समर्थन में नारे भी लगाए.आश्चर्य है कि पाकिस्तान का पढ़ा-लिखा मुसलमान भी कितना दकियानुशी है!!ईशनिंदा कानून जो कथित रूप से इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब द्वारा बनाया गया था के अन्तर्गत खुदा,इस्लाम और मुहम्मद साहब के खिलाफ कुछ भी बोलने की मनाही है और ऐसा करने पर मौत की सजा भी दी जा सकती है.पंजाब के दिवंगत राज्यपाल अपने उदारवादी विचारों के लिए जाने जाते थे और उन्होंने अभी कुछ ही दिनों पहले इस कानून के अनुसार मौत की सजा प्राप्त ईसाई महिला आशिया बीबी से जेल में जाकर मुलाकात की थी और उसकी रिहाई के लिए राष्ट्रपति से अनुरोध करने का आश्वासन भी दिया था.साथ ही उन्होंने उक्त कानून को काला कानून कहते हुए इसे समाप्त करने का आह्वान भी किया था.पाकिस्तान की अराजक स्थिति को देखते हुए यही उचित समय है जबकि विश्व समुदाय पाकिस्तान सरकार पर इस अल्संख्यक विरोधी,सहस्तित्व के सिद्धांत को पलीता लगानेवाले कानून को समाप्त करने के लिए दबाव बनाए,वरना बहुत देर हो जाएगी.हालांकि पाकिस्तान यह तर्क दे सकता है कि यह उसका अंदरूनी मामला है लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं.इस कानून के चलते पाकिस्तान में रहनेवाले लाखों अल्पसंख्यकों जिनमें हिन्दू भी शामिल हैं,के सिर पर हमेशा आशंका की तलवार लटकती रहती है.कोई नहीं जनता कि कब किस पर इस कानून का उल्लंघन करने का झूठा आरोप लगा दिया जाए और उसकी जिंदगी को जहन्नुम बना दिया जाए.इधर कुछ सालों में पाकिस्तान में अल्संख्यक लड़कियों के अपहरण की घटनाओं में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है.सैंकड़ों हिन्दू परिवार वहां से भागकर भारत आ रहे हैं और दिन-ब-दिन यह सिलसिला और भी तेज होता जा रहा है.पूरा पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के लिए इस एक कानून के चलते उसी प्रकार विशाल यातना शिविर बन गया है जैसे कभी हिटलर के समय जर्मनी बन गया था.इसलिए अगर यह कानून पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है तो फ़िर हिटलर का अत्याचार भी अंदरूनी मामला था.वैसे भी यह कानून अभिव्यक्ति के सार्वभौम मानवाधिकारों का सरासर उल्लंघन है.इसलिए भी इसे अविलम्ब रद्द किया जाना चाहिए और इसके लिए विश्व समुदाय को अविलम्ब हस्तक्षेप करना चाहिए.जहाँ तक कानून के मुहम्मद साहब द्वारा बनाए जाने का प्रश्न है तो हो सकता है कि यह कानून १५०० साल पहले मौजूद परिस्थितियों के लिए सही रहा हो लेकिन आज के आधुनिक और वैज्ञानिक युग में यह कानून निश्चित रूप से आधुनिकता को ठेंगा दिखाता है.मैं इस कानून के समर्थक लकीरों के फकीरों से पूछना चाहता हूँ कि जब मुहम्मद साहब ने इस्लाम की घोषणा की थी तो क्या उनका यह कदम परंपरागत धर्म के खिलाफ नहीं था?जब मुहम्मद साहब ने परम्पराओं को देश,काल और परिस्थिति के अनुसार ढालने में भारी विरोध के बावजूद हिचक नहीं दिखाई तो फ़िर आज उनके बनाए नियमों में बदलाव करने में हिचक क्यों?धर्म को मानव ने बनाया या धर्म ने मानव को?
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