पिछले दिनों हमने पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिए जाने और उन पर भीषण,अमानुषिक अत्याचार किए जाने सम्बन्धी कई लेख अख़बारों-पत्रिकाओं में पढ़े हैं.
मैं इस विषय पर लेख लिखनेवाले मित्रों का स्वागत करता हूँ और साधुवाद देता हूँ.लेकिन मुझे घोर आश्चर्य है कि जिस देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और दुनिया में हिन्दुओं की सबसे बड़ी जनसंख्या जहाँ निवास करती है;में हिन्दुओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिए जाने पर क्यों नहीं उसी गंभीरता से लिखा जा रहा है.
पिछले कई वर्षों से हमारी भ्रष्टाचार पार्टी की केंद्र सरकार जिसकी प्रेरणा-स्रोत इटली से आयातित माननीय सोनिया गांधीजी हैं;ने हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध करने के लिए अभियान-सा चला रखा है.न जाने सरकार की इसके पीछे क्या मंशा है?लेकिन इतना तो निश्चित है कि हिन्दुओं के प्रति इस सरकार की मंशा अच्छी तो नहीं ही है.
आप अगर सुबह में देशभर से प्रसारित होने वाला राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन समाचार-प्रभात नियमित रूप से सुनते हैं तो उसके बीच में आनेवाला वो विज्ञापन भी आपने जरूर सुना होगा जिसमें कभी रजिया तो कभी मारिया नामक छात्राओं को केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में छूट दिए जाने की बात सगर्व की जाती है.क्या यह छूट सभी हिन्दू लड़कियों को भी नहीं मिलनी चाहिए?अगर नहीं मिलनी चाहिए तो क्यों?क्या केंद्र सरकार स्पष्टीकरण देगी?
इसी तरह एक महत्वपूर्ण मुद्दा हज पर जानेवाले मुसलमानों को सब्सिडी देने का है.केंद्र सरकार की इस असमानतापूर्ण कृपा के खिलाफ जब कोर्ट में मुकदमा किया गया तो सरकार सब्सिडी के पक्ष में खड़ी हो गई.यह सब्सिडी भी तब दी जाती है जब इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता.पड़ोसी पाकिस्तान में इसलिए इस तरह की सब्सिडी नहीं दी जाती.इसी तर्ज पर आंध्र प्रदेश की सरकार ने वर्ष २००८ में येरुसलम की यात्रा पर जानेवाले ईसाईयों को सब्सिडी देने की घोषणा की.हालांकि अमरनाथ आदि हिन्दू यात्राओं के लिए सरकारी व्यवस्था की जाती है लेकिन सब्सिडी नहीं दी जाती.क्यों नहीं दी जाती या क्यों नहीं मिलनी चाहिए?इसका जवाब भी जाहिर है कि केंद्र सरकार को ही पता होगा.कुछ लोग कह सकते हैं कि हिन्दू धार्मिक आयोजनों पर होनेवाला खर्च भी कोई कम नहीं होता.तो मैं ऐसे गुमराह लोगों को बता देना चाहूँगा कि ९९.९९९९९९९९९९९९९९९९९९ प्रतिशत हिन्दू मंदिर राज्यों द्वारा गठित प्रदेश धार्मिक न्यास पर्षदों के अन्तर्गत हैं और इन मंदिरों से सरकारों को जो प्राप्त होता है वह भी कोई कम नहीं होता.अरबों रूपये की आमदनी होती है.अगर सबके लिए कानून बराबर होता तो मुस्लिम धार्मिक स्थल भी इसके अन्तर्गत होते.जबकि सभी मुस्लिम मस्जिद और खानकाह सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड द्वारा संचालित हैं और जहाँ तक मैं जानता हूँ इनसे केंद्र और राज्य सरकारों को फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती है.
वर्तमान केंद्र सरकार की गलत और हिन्दू-विरोधी नीति सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं है.इस केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते घोषित रूप से विश्व का एकमात्र हिन्दू-राष्ट्र नेपाल आज हिन्दू-राष्ट्र नहीं है.शायद इस सरकार को किसी हिन्दू-राष्ट्र से बातचीत में परेशानी होती थी.लेकिन उसी सरकार को पाकिस्तान सहित किसी भी इस्लामिक देश से सम्बन्ध सुधारने की बेताबी क्यों रहती है?इसी तरह केंद्र सरकार ने श्रीलंका में हिन्दुओं के एलटीटीई के नाम पर संहार पर भी तटस्थतापूर्ण रवैया अपनाया.चाहे देसी राजनीति हो या वैश्विक;राजनीति में मुर्दों (या मुद्दों) को भी मारा नहीं जाता;जिन्दा रखा जाता है.लेकिन केंद्र ने श्रीलंका जैसे महत्वपूर्ण पड़ोसी को चिंतामुक्त कर दिया.वही श्रीलंका अब भारत के चिर-शत्रु चीन की गोद में जा बैठा है और भारत को ही आँख दिखा रहा है.भारत के मछुआरे श्रीलंकाई नौसेना द्वारा मौत के घाट उतार दिए जाने के डर से भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा के आसपास जाने से भी डरने लगे हैं.
हिन्दूबहुल भारत में नेहरु की मूर्खता के चलते हिन्दुओं पर हिन्दू विवाह अधिनियम,अनुच्छेद ३७० आदि के द्वारा कई तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं.लेकिन मुसलमानों को आजाद रखा गया है.मुसलमान अपनी मान्यताओं के पालन के लिए स्वतंत्र हैं यानी वे राजकीय अतिथि हैं;प्रथम श्रेणी के नागरिक हैं.जबकि हिन्दू जिनकी जनसंख्या देश में तीन-चौथाई से भी ज्यादा है अपनी मान्यताओं का स्वतंत्र रूप से पालन नहीं कर सकते.उसे सरकारी नियमन का पालन करना पड़ता है.एक देश में दो कानून.बहुसंख्यक परतंत्र और अल्संख्यक स्वतंत्र.इट हैप्पेंस ओनली इन इंडिया.यही तो केंद्र सरकार का इनक्रेडिबल इंडिया है.
मैं इस विषय पर लेख लिखनेवाले मित्रों का स्वागत करता हूँ और साधुवाद देता हूँ.लेकिन मुझे घोर आश्चर्य है कि जिस देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और दुनिया में हिन्दुओं की सबसे बड़ी जनसंख्या जहाँ निवास करती है;में हिन्दुओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिए जाने पर क्यों नहीं उसी गंभीरता से लिखा जा रहा है.
पिछले कई वर्षों से हमारी भ्रष्टाचार पार्टी की केंद्र सरकार जिसकी प्रेरणा-स्रोत इटली से आयातित माननीय सोनिया गांधीजी हैं;ने हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध करने के लिए अभियान-सा चला रखा है.न जाने सरकार की इसके पीछे क्या मंशा है?लेकिन इतना तो निश्चित है कि हिन्दुओं के प्रति इस सरकार की मंशा अच्छी तो नहीं ही है.
आप अगर सुबह में देशभर से प्रसारित होने वाला राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन समाचार-प्रभात नियमित रूप से सुनते हैं तो उसके बीच में आनेवाला वो विज्ञापन भी आपने जरूर सुना होगा जिसमें कभी रजिया तो कभी मारिया नामक छात्राओं को केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में छूट दिए जाने की बात सगर्व की जाती है.क्या यह छूट सभी हिन्दू लड़कियों को भी नहीं मिलनी चाहिए?अगर नहीं मिलनी चाहिए तो क्यों?क्या केंद्र सरकार स्पष्टीकरण देगी?
इसी तरह एक महत्वपूर्ण मुद्दा हज पर जानेवाले मुसलमानों को सब्सिडी देने का है.केंद्र सरकार की इस असमानतापूर्ण कृपा के खिलाफ जब कोर्ट में मुकदमा किया गया तो सरकार सब्सिडी के पक्ष में खड़ी हो गई.यह सब्सिडी भी तब दी जाती है जब इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता.पड़ोसी पाकिस्तान में इसलिए इस तरह की सब्सिडी नहीं दी जाती.इसी तर्ज पर आंध्र प्रदेश की सरकार ने वर्ष २००८ में येरुसलम की यात्रा पर जानेवाले ईसाईयों को सब्सिडी देने की घोषणा की.हालांकि अमरनाथ आदि हिन्दू यात्राओं के लिए सरकारी व्यवस्था की जाती है लेकिन सब्सिडी नहीं दी जाती.क्यों नहीं दी जाती या क्यों नहीं मिलनी चाहिए?इसका जवाब भी जाहिर है कि केंद्र सरकार को ही पता होगा.कुछ लोग कह सकते हैं कि हिन्दू धार्मिक आयोजनों पर होनेवाला खर्च भी कोई कम नहीं होता.तो मैं ऐसे गुमराह लोगों को बता देना चाहूँगा कि ९९.९९९९९९९९९९९९९९९९९९ प्रतिशत हिन्दू मंदिर राज्यों द्वारा गठित प्रदेश धार्मिक न्यास पर्षदों के अन्तर्गत हैं और इन मंदिरों से सरकारों को जो प्राप्त होता है वह भी कोई कम नहीं होता.अरबों रूपये की आमदनी होती है.अगर सबके लिए कानून बराबर होता तो मुस्लिम धार्मिक स्थल भी इसके अन्तर्गत होते.जबकि सभी मुस्लिम मस्जिद और खानकाह सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड द्वारा संचालित हैं और जहाँ तक मैं जानता हूँ इनसे केंद्र और राज्य सरकारों को फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती है.
वर्तमान केंद्र सरकार की गलत और हिन्दू-विरोधी नीति सिर्फ देश तक ही सीमित नहीं है.इस केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते घोषित रूप से विश्व का एकमात्र हिन्दू-राष्ट्र नेपाल आज हिन्दू-राष्ट्र नहीं है.शायद इस सरकार को किसी हिन्दू-राष्ट्र से बातचीत में परेशानी होती थी.लेकिन उसी सरकार को पाकिस्तान सहित किसी भी इस्लामिक देश से सम्बन्ध सुधारने की बेताबी क्यों रहती है?इसी तरह केंद्र सरकार ने श्रीलंका में हिन्दुओं के एलटीटीई के नाम पर संहार पर भी तटस्थतापूर्ण रवैया अपनाया.चाहे देसी राजनीति हो या वैश्विक;राजनीति में मुर्दों (या मुद्दों) को भी मारा नहीं जाता;जिन्दा रखा जाता है.लेकिन केंद्र ने श्रीलंका जैसे महत्वपूर्ण पड़ोसी को चिंतामुक्त कर दिया.वही श्रीलंका अब भारत के चिर-शत्रु चीन की गोद में जा बैठा है और भारत को ही आँख दिखा रहा है.भारत के मछुआरे श्रीलंकाई नौसेना द्वारा मौत के घाट उतार दिए जाने के डर से भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा के आसपास जाने से भी डरने लगे हैं.
हिन्दूबहुल भारत में नेहरु की मूर्खता के चलते हिन्दुओं पर हिन्दू विवाह अधिनियम,अनुच्छेद ३७० आदि के द्वारा कई तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं.लेकिन मुसलमानों को आजाद रखा गया है.मुसलमान अपनी मान्यताओं के पालन के लिए स्वतंत्र हैं यानी वे राजकीय अतिथि हैं;प्रथम श्रेणी के नागरिक हैं.जबकि हिन्दू जिनकी जनसंख्या देश में तीन-चौथाई से भी ज्यादा है अपनी मान्यताओं का स्वतंत्र रूप से पालन नहीं कर सकते.उसे सरकारी नियमन का पालन करना पड़ता है.एक देश में दो कानून.बहुसंख्यक परतंत्र और अल्संख्यक स्वतंत्र.इट हैप्पेंस ओनली इन इंडिया.यही तो केंद्र सरकार का इनक्रेडिबल इंडिया है.
दरअसल हिंदुओं को इस स्थिति मे लाने मे हिंदुओं का हाथ भी कम नहीं है। इन्हें जिस तरह से जातियों, वर्गों, और क्षेत्रों के मकडजाल मे फाँसा गया ये अपनी दिशा और दशा दोनों के प्रति बेहोश हैं... यही हाल रहा तो हिंदुओं को समय कभी माफ नहीं करेगा।
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आपने बहुत सही लिखा है, और जैसा आप महसूस कर रहे हैं ठीक वैसा ही मैं भी महसूस कर रहा हूँ
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