मंगलवार, 15 मार्च 2011

किस-किस गलती के लिए क्षमा मांगेंगे मनमोहन

manmohan
मित्रों,इन्सान को गलतियों का पुतला माना जाता है;लेकिन यह विशेषण सिर्फ उन दोपायों के लिए सही है जो भूलवश या अज्ञानतावश गलतियाँ कर जाते हैं.मेरे कहने का मतलब यह है कि ये वे इन्सान होते हैं गलतियाँ करना जिनकी फितरत नहीं होती.लेकिन कुछ लोग गलत होते ही हैं और उनका काम ही होता है गलतियाँ करना.ये लोग अज्ञानी भी नहीं होते और अपनी गलतियों से अनजान तो बिलकुल भी नहीं.
मित्रों,दुर्भाग्यवश इन दिनों इसी दूसरी तरह का एक व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री है.पहले तो वह जानबूझकर गलतियाँ करता है,कलमाड़ी को चोरी-चोरी चुपके-चुपके राष्ट्रमंडल आयोजन समिति की कमान सौंपता है,भ्रष्टाचार के राजा ए.राजा को उसके आचरण से परिचित होते हुए भी दूरसंचार मंत्री बनाता है,घोटाला करने में उस्ताद पी.जे.थामस को विपक्ष की नेता के कड़े ऐतराज के बावजूद भ्रष्टाचार-निवारक सर्वोच्च संस्था केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रधान के पद पर बिठाता है और दागी पूर्व न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयुक्त का अहम पद दे देता है.इतना ही नहीं उसकी नाक के ठीक नीचे अंतरिक्ष मंत्रालय में २ लाख करोड़ के वारे-न्यारे किए जाते हैं और वह कहता है कि उसे तो पता ही नहीं था.
मित्रों,महाभारत में एक प्रसंग आता है जब चेदी नरेश शिशुपाल अपने ममेरे भाई श्रीकृष्ण को गालियाँ देता फिरता है.वचनबद्ध होने के कारण श्रीकृष्ण उसकी ९९ गालियों को माफ़ करते जाते हैं लेकिन जैसे ही वह १००वीं गाली देता है उनका क्षमा-पात्र भर जाता है और वे अविलम्ब उस दुष्ट का वध कर देते हैं.एक झूठ को छिपाने के लिए सैंकड़ों झूठ बोले जाने की परंपरा तो हमेशा से रही है लेकिन मनमोहन एक सच को छिपाने के लिए सैंकड़ों झूठ बोलते जाते हैं और जब सच को स्वीकार कर लेने के सिवा कोई अन्य मार्ग उनके सामने शेष नहीं रहता तब अपराधं सहस्राणि क्रियन्ते अहर्निशं मया की अकिंचन मुद्रा धारण करते हुए झटपट माफ़ी मांग लेते हैं.ये अंग्रेजीदां लोग शायद यह समझते हैं कि सिर्फ एक बार सॉरी बोल देने से उनके सारे गुनाह धुल जाते हैं.
मित्रों,भारत में इन दिनों कुछेक परिवारों का शासन है जिसमें सबसे प्रमुख है गाँधी-नेहरु परिवार.विधि का शासन तो देश से बिलकुल विलुप्त ही हो चुका है जबकि हमारा संविधान देश में विधि के शासन की स्पष्ट घोषणा करता है.मनमोहन जी का यह न केवल नैतिक बल्कि संवैधानिक कर्तव्य भी है कि वे छाया शासन से बाहर आएं और देश को गाँधी-नेहरु परिवार की मर्जी से चलाने के बजाए ईमानदारीपूर्वक उस तरीके से चलाएँ जिस तरीके से शासन चलाने से देश में विधि का शासन पुनर्स्थापित हो सके.अगर मनमोहन जी ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर होगा कि अंतिम बार देश से क्षमा मांगते हुए वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दें.
दोस्तों,मनमोहन जी को यह अच्छी तरह पता है कि जनता कोई श्रीकृष्ण नहीं है जो झटपट चक्र सुदर्शन चला दे.जनता के हाथ में सिर्फ वोट देना है और लोकसभा चुनाव में अभी देरी है.वास्तव में मनमोहन सिर्फ एक राजनेता नहीं हैं बल्किन वर्तमान भारतीय राजनीति का प्रतीक भी हैं.असल में हमारी राजनीति ही बेहया और बेशर्म हो चुकी है.अब झूठ को एकमात्र सच की तरह पेश करना अपराध नहीं है वरन कला है,पैकेजिंग है,मार्केटिंग है.मनमोहन जी को भ्रम है कि वे अनगिनत बार अपनी गलतियों के लिए माफ़ी की गुहार लगाते रहेंगे और जनता उन्हें हर बार निर्विकार भाव से माफ़ करती रहेगी.उन्हें निश्चित रूप से यह पता नहीं है कि जनता कोई अक्षय-पात्र नहीं है जिसमें क्षमा का महासागर समा जाए.उनकी सरकार के बजट ने महंगाई की लाल अग्नि को और भी तीव्र कर दिया है और उस पर छाये अविश्वास के काले घटाटोप बादलों का रंग और भी गहरा होता जा रहा है.परन्तु मनमोहन जी हैं कि पुरानी गलतियों के लिए क्षमायाचना करते हुए नई गलतियाँ करने में लीन हैं.मैं मनमोहन जी को सावधान करना अपना नागरिक कर्त्तव्य समझते हुए चेता देना चाहता हूँ कि वे कृपया ऐसी स्थिति न आने दें जिसके चलते उन्हें जनता से बार-बार बेशर्मीपूर्वक माफ़ी मांगनी पड़े क्योंकि अगर वे २१वीं सदी के चतुर नेता हैं तो जनता भी २१वीं सदी वाली प्रबुद्ध जनता है.उन्हें और उनके जैसे अन्य बेईमान ईमानदारों को क्षमा करते-करते जनता का क्षमा-पात्र उपटाने लगा है.अब भारत की जनता न सिर्फ सत्ता को बदलेगी बल्कि सड़े-गले कानून और तंत्र को भी बदल दिया जाएगा.इतना ही नहीं संविधान में भी ऐसे अपेक्षित बदलाव कर दिए जाएंगे जिससे कि भविष्य में जानबूझकर गलतियाँ करके माफ़ी मांगनेवाला दूसरा मनमोहन सत्ता में नहीं आ सके.आखिर तंत्र,कानून या संविधान जनता का है,जनता द्वारा है और जनता के लिए है;जनता इनका,इनके द्वारा और इनके लिए नहीं है.बिल्कुल भी नहीं!!!
मित्रों,हमने कई बार तख़्त बदल दो ताज बदल दो,बेईमानों का राज बदल दो का नारा लगाया है लेकिन न तो तख्तो ताज ही बदला और न ही बेईमानों का राज ही समाप्त हुआ.इस समय अगर मनमोहन प्रधानमंत्री पद से हट भी जाते हैं तो उनकी सरकार द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का मुद्दा पृष्ठभूमि में चला जाएगा और कोई दूसरा बेईमान या बेईमान ईमानदार उनकी जगह ले लेगा.फिर से वही इमोशन,ड्रामा और सस्पेंस.मित्रों इस सरकार ने चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे करूणानिधि परिवार से एक बार फिर से समझौता कर लिया है और यह स्वयंसिद्ध कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी प्रभावी कदम उठाने नहीं जा रही है.इसलिए हमें इस पर दबाव बनाना-बढ़ाना होगा जिससे यह जनता द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक को अक्षरशः पारित कराने को बाध्य हो जाए.मैं जानता हूँ कि यह विधेयक महान भारत के निर्माण की दिशा में बहुत छोटा कदम होगा लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक महान कार्य की शुरुआत एक छोटे-से कदम से ही होती है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें